गाय की भारतीय नस्लें – भाग 5
*नागालैंड* के पहाड़ी ढलानों पर *थूथो* नस्ल विकसित हुई जो गर्म से उप उष्णकटिबंधीय जलवायु के लिए उपयुक्त है। यह नस्ल मूलतः माँस के लिए पाली जाती है।
*ओडिशा* में गाय की कुल चार नस्लें विकसित हुई। मोटू, घुमुसरी, बिंझरपुरी और खेरियार।
छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश से मिलते हुए क्षेत्र मलकानगिरी में *मोटू* नस्ल विकसित हुई। बैल खेती के काम में लाये जाते हैं और गाय इतना दूध तो दे ही देती हैं कि चाय बन सके।
गंजम और फुलबनी जिलों में *घुमुसरी* नस्ल विकसित हुई जो मूलतः भारवाहक नस्ल है। बैल खेतों में काम करते हैं और गाय एक ब्यान्त में औसतन 500 लीटर तक दूध दे देती हैं।
भद्रक, जाजपुर और केंद्रपाड़ा जिलों में द्विकाजी *बिंझरपुरी* नस्ल विकसित हुई। बैल खेती का काम करते हैं और गायें एक ब्यान्त में 1000 लीटर तक दूध दे देती हैं। वैसे 1350 लीटर तक की गायें देखी गई हैं।
बालंगीर, कालाहांडी और नऊपाड़ा जिलों में *खेरियार* नस्ल विकसित हुई जो मूलतः भारवाहक नस्ल है। बैल खेती का कार्य करने के लिए उपयुक्त हैं और गायें एक ब्यान्त में 400 लीटर तक दूध दे देती हैं।
*पंजाब* की शान *साहीवाल* नस्ल अमृतसर और फिरोजपुर जिलों में बहुतायत से पाई जाती है। इसके अतिरिक्त राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में भी इस नस्ल के पशु पाए जाते हैं। यह मूलतः पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में विकसित हुई प्रमुख दुधारू नस्ल है। गायों का औसत दूध उत्पादन 2300 लीटर प्रति ब्यान्त है। वैसे 2750 लीटर तक दूध देने वाली गायें देखी गई हैं।
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डॉ संजीव कुमार वर्मा
*प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण)*
*भाकृअनुप – केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान*
*मेरठ छावनी – 250001*
*9933221103*