गाय या भैंस में मेसीरेशन आफ फीटस
डॉ संजय कुमार मिश्र 1 एवं डॉ विकास सचान2
1.पशु चिकित्सा अधिकारी, चोमूहां, मथुरा, उत्तर प्रदेश
2. डॉ विकास सचान सहायक आचार्य, मादा पशु रोग विज्ञान विभाग, दुवासु, मथुरा, उत्तर प्रदेश
अधिकांशत गर्भावस्था के तीन से 4 महीने के बाद बच्चे की मृत्यु हो जाती है तथा जीवाणु या विषाणु का संक्रमण हो जाने से बच्चे का शरीर धीरे धीरे सड़ता या पचता रहता है इसे बच्चे का मेसीरेशन कहते हैं। इसमें बच्चे की मृत्यु जीवाणु या विषाणु जनित संक्रमण के कारण ही होती है। ऐसा प्राय: उस स्थिति में होता है जब बच्चे की मृत्यु के बाद गर्भपात नहीं हो पाता है। गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह से खुली नहीं होने के कारण मृत बच्चा बाहर नहीं आ पाता है। इस अवस्था में पीत काय या कार्पस लुटियम सिकुड़ जाता है। इसमें बच्चे के मरने के बाद गर्भपात की प्रक्रिया तो शुरू हो जाती है परंतु गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह से खुली नहीं होने के कारण बच्चा अंदर ही रह जाता है। संक्रमण के कारण गर्भाशय के तरल पदार्थ में हड्डियों के अतिरिक्त बच्चे का सारा भाग जीवाणु द्वारा सड़ या पच जाता है। इसमें उसी जीवाणु या विषाणु का संक्रमण होता है जो गर्भाशय में मौजूद रहते हैं जिनमें इसके इसटेफाइलों कोकाई, स्ट्रैप्टॉकोक्कस, सालमोनेला एवं ई. कोलाई मुख्य हैं। इनके लिए गर्भाशय में अनुकूल वातावरण मिल जाता है अर्थात पर्याप्त शारीरिक तापमान में यह जीवाणु या विषाणु वृद्धि करते हुए बच्चे व जेर को वृद्धि का माध्यम बनाते हैं। बच्चे के मैसेरेशन की प्रक्रिया गर्भाशय ग्रीवा के नजदीक वाले भाग से प्रारंभ हो जाती है। अधिकांशत: अधूरे गर्भपात में मृत्यु के बाद 2 से 3 दिन मे एमफाईसीमा हो जाता है तथा 3 से 4 दिन में मैंसेरेशन शुरू हो जाता है।
निदान:
इतिहास: पशु कई दिनों से बार-बार गर्भपात के लिए जोर लगाता है।
बदबूदार लाल भूरा स्राव देता है।
पशु को बुखार होता है और नाड़ी की गति तेज होती है।
पशु को भूख नहीं लगना दुग्ध उत्पादन में कमी कभी-कभी दस्त इत्यादि होते हैं।
गुदा परीक्षण द्वार फूला हुआ मृत बच्चा चर चर की आवाज एवं एमफाईसीमा आदि लक्षण मिलते हैं।
अधिक समय बीत जाने पर हड्डियों के अलावा सारा भाग जीवाणु द्वारा खा लिया जाता है।
उपचार:
उपचार हमेशा योग्य पशु चिकित्सक द्वारा कराना चाहिए।
यदि गर्भाशय ग्रीवा खुली हुई हो तो लुब्रिकेशन लगाकर हाथों में दस्ताने पहनकर बच्चे को बाहर निकाला जा सकता है।
यदि गर्भाशय ग्रीवा का मुख नहीं खुला है तो इंजेक्शन पीजीएफ टू अल्फा 25 मिलीग्राम, इंजेक्शन बीटा मेथासॉन् 40 मिलीग्राम एवं इंजेक्शन एपिडोसिन 48 मिलीग्राम अंतः पेशी सूची वेध द्वारा दिया जाता है।
गर्भाशय ग्रीवा खुलने के पश्चात बच्चों को बाहर निकाल दिया जाता है और
इंजेक्शन टेटरासाइक्लिन अंत: पेशी सूची वेध एवं ऑक्सीटेटरासाइक्लिन की, 500 मिलीग्राम की 6 गोली गर्भाशय में 3 से 5 दिन तक रखते हैं।
5% लूगोलस आयोडीन, 200 से 300ml तक भी गर्भाशय में डाला जा सकता है।