उच्च उत्पादक पशुओ के लिए वरदान : बायपास प्रोटीन
डॉ. अशोक कुमार पाटिल एवं डॉ. रवीन्द्र कुमार जैन
पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, महू (मध्यप्रदेश)
नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
हमारे देश मे मुख्यत: पशुओ को फसलों के उप-उत्पाद एवं निम्न गुणवत्ता के चारे खिलाकर पाला जाता है, ये चारे पोषण की दृष्टि से कम पोषक तत्व एवं कम पाचनशीलता युक्त होते है l पिछले कुछ दशको मे देश की बढ़ती जनसंख्या ने कृषि भूमि पर अधिक अन्न उत्पादन के लिए एक दबाव बनाया है जिसके कारण किसान चारा उत्पादन करने वाली जमीन पर अब अन्न उत्पादन करने लगा है जिससे देश मे पशुओ के आहार की कमी होती है l वैज्ञानिको द्वारा किये गए सर्वे के अनुसार देश मे लगभग 23.4 % सूखा चारा, 11.24 % हरा चारा एवं 28.9 % दाने की कमी है l एक तरफ पशु चारे एवं दाने की कमी ओर दूसरी तरफ इनकी निम्न गुणवत्ता, साथ ही साथ पशुओ के अमाशय मे इन आहारो का विघटन ओर किण्वन जिससे की कई सारी गेसों के रूप मे पोषक तत्व की हानी होती है l इन सब कारणो से हमारे पशुपालक भाई एक अच्छे नस्ल के जानवरो से भी अधिकतम दूध उत्पादन नहीं ले पाते l इस समस्या के निदान मे रुमेन संरक्षित प्रोटीन (बाय-पास) पोषक टेक्नोलोजी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है l
जुगाली करने वाले पशुओ का आमाशय चार भागो मे बटा होता हैं। पहला और सबसे महत्वपूर्ण भाग ‘रुमेन’ या रोमन्थिका है, जहाँ पशु द्वारा खाये जाने वाले चारा और भूसे का अधिकांश किण्वीकरण होता है। जब हम इन पशुओं को दाने या प्रोटीन की खली या चूर्ण देते हैं, तब इसका अधिकांश भाग (60-70%) रुमेन मे उपस्थित जीवाणुओं द्वारा अमोनिया नामक गैस मे परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार दाने या खली का एक महत्वपूर्ण भाग जो पशु आहार का सबसे अधिक महंगा हिस्सा होता है, बर्बाद हो जाता है। इसलिए जुगाली करने वाले पशुओ को आहार खिलाना भी एक कला है ओर जिसने इसका वैज्ञानिक कारण समझ लिया वह पशुपालन व्यवसाय से एक अच्छा लाभ ले सकता है l जैसे की हम जानते है कि प्रोटीन का पाचन मुख्यत: आमाशय के चोथे भाग एबोमेसम मे होता है, यदि हम इन प्रोटीन की खलियों को उपयुक्त रासायनिक उपचार करें तो, रूमेन में इनका किण्वन कम किया जा सकता है। यह प्रक्रिया/उपचार, जो रूमेन मे खली के प्रोटीन का किण्वन होने से रक्षा करते हैं, इस तकनीक को बाईपास प्रोटीन तकनीक कहते हैं। इसमे हम कुछ विशेष रसायनो का उपयोग करके प्रोटीन की खलियों को ऐसा बना देते है जिससे इसका विघटन रुमेन मे सूक्ष्म जीवो द्वारा नहीं हो पाता है तथा यह आमाशय के सबसे निचले भाग “एबोमेसम” मे पहुचकर वहा पाचित होता है एवं पाचन के फलस्वरूप उत्पन्न अमीनो अम्ल सीधे छोटी आंत से अवशोषित होकर पशुओ को उपलब्ध हो जाते है l इस प्रकार पशुओ की प्रोटीन की आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है l
इसको ओर विस्तृत रूप से हम जानने कि कोशिश करे तो हम कह सकते है कि जुगाली करने वाले पशुओं को दो स्तरों पर प्रोटीन की आवश्यकता होती हैः १. रूमेन डीग्रेडेबल (विघटनशील) प्रोटीन, २. रूमेन संरक्षित (अविघटनशील) प्रोटीन
- रूमेन डीग्रेडेबल (विघटनशील) प्रोटीनः यह आहार प्रोटीन का वह हिस्सा होता है जो कि रूमेन के जीवाणुओं द्वारा तोड़ा जाता है ओर इससे अमोनिया का उत्पादन होता है, जो कि रूमेन के सूक्ष्मजीवो की नाइट्रोजन की आवश्यकताओं को पूरा करता है। ये जीवाणु लगातार रूमेन से एबोमेसम होते हुये छोटी आंत में जाते रहते हैं तथा पाचन के बाद पशु की कुल प्रोटीन की जरूरत का एक महत्वपूर्ण भाग (माइक्रोबियल प्रोटीन) प्रदान करते हैं। यह क्रिया निरंतर चलती रहती है और इसके द्वारा बनी हुई प्रोटीन को माइक्रोबियल प्रोटीन कहते है l सामान्य परिस्थितियों में अत्यधिक रूमेन डीग्रेडेबल प्रोटीन देने से ज्यादा मात्रा में अमोनिया बन सकता है। माइक्रोबियल प्रोटीन के निर्माण के लिए अमोनिया नाइट्रोजन के साथ साथ ऊर्जा के रूप मे कार्बन की अवश्यकता भी होती है इसलिए स्टार्च युक्त आहार भी देना आवश्यक होता है l
रूमेन में ऊर्जा की कमी के कारण रूमेन जीवाणु अधिक अमोनिया को माइक्रोबियल प्रोटीन में नहीं बदल सकते। इस कारण कुछ अमीनो अम्ल यूरिया के रूप में नष्ट हो जाते है साथ ही अधिक यूरिया बनने से ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है, जो पशु के लिए लाभदायक नहीं है। इसलिए पशु को अत्यधिक मात्रा में रूमेन डीग्रेडेबल प्रोटीन देना ठीक नहीं है l
- रूमेन संरक्षित (अविघटनशील) प्रोटीनः आहार प्रोटीन का वह हिस्सा जो पशु के रूमेन में पाचित न होकर, बल्कि नीचे वाले पाचन तंत्र के हिस्से में पचता है, उसे संरक्षित/बायपास प्रोटीन के नाम से जाना जाता है। सामान्यत: पशुओं की अमीनो अम्ल की जरूरते माइक्रोबियल प्रोटीन एवं रुमेन मे अविघटन शील प्रोटीन (बायपास प्रोटीन) द्वारा पूरी हो जाती है । बायपास प्रोटीन पशुओ के प्रोटीन की अवश्यकता को पूरा करने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है परंतु अगर रूमेन डीग्रेडेबल प्रोटीन एवं बाई पास प्रोटीन का अनुपात 40:60 होता है तो परिणाम ओर भी अच्छे आते है इसलिए आहार बनाते समय इस अनुपात का ध्यान रखना चाहिये l
रुमेन संरक्षित प्रोटीन (बायपास) बनाने कि विधिया
- प्राकृतिक बायपास प्रोटीन श्रोत: इससे तात्पर्य यह है की समान्यत: जो अनाज एवं दलहनों के उत्पादो मे बिना किसी उपचार के भी कुछ मात्रा मे बाई पास प्रोटीन उपस्थित होता है l इस प्रकार के आहार का ज्ञान प्राप्त करके हम इन दानो का उपयोग करके आहार की लागत को कम कर सकते है ओर पशु से एक अच्छा उत्पादन ले सकते है l रूमेण संरक्षित प्रोटीन के प्राकृतिक स्त्रोत मक्के से निर्मित ग्लुटन मील, फिश मील, कपास बीज खल तथा मक्का अनाज बाईपास प्रोटीन के अच्छे स्त्रोत हैं। सोयाबीन मील, अलसी की खल, तेल रहित चावल का चोकर तथा लुसर्न लीफ मील मध्यम प्रोटीन डीग्रेडेबिलिटी के स्त्रोत हैं, जबकि सरसों की खल और मूँगफली की खल अत्यधिक रूमेन डीग्रेडेबल, अथवा कम बाईपास प्रोटीन के स्त्रोत हैं।
तालिका : 1. विभिन्न आहारो मे रूमेण संरक्षित प्रोटीन की मात्रा
भोज्य पदार्थ | रूमेण संरक्षित प्रोटीन (%) |
नारियल की खली | 70-81 |
महुआ के बीज की खली | 75 |
चावल का चोकर | 63 |
कपस्या खली | 49 |
मूँगफली खली | 22-37 |
गेंहू | 20-36 |
- 2. ऊष्मा उपचारः ऊष्मा उपचार विधि द्वारा विभिन्न डिग्री तापमान का भिन्न- भिन्न समय पर प्रयोग करके प्रोटीन को संरक्षित किया जा सकता है। जब तेल वाले दानो जैसे मूँगफली, कपास इत्यादि से तेल प्रथककरण किया जाता है, तब प्रोटीन का स्वत: ही बाइपास प्रोटीन मे परिवर्तन हो जाता है l परन्तु बाइपास प्रोटीन निर्माण करते समय विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थो के लिए उचित तापमान तथा समय का प्रयोग महत्वपूर्ण है। 2 घंटे के लिए 150 डिग्री सेल्सियस के तापमान के प्रयोग से मूंगफली और सोयाबीन की खल की प्रोटीन को प्रभावी रूप से संरक्षित किया जा सकता है।
- 3. रासायनिक उपचारः प्रोटीन को टैनिन, फारमैल्डीहाइड, ग्लूट्रैलडीहाइड, ग्लाइओक्सल, हैक्समीथाइलिन टैट्रामीन जैसे पदार्थों के उपयोग से संरक्षित किया जा सकता है। भारत में सामान्यत: प्रोटीन को बाई पास बनाने के लिए फारमैल्डीहाइड का उपयोग किया जाता है l सरसों और मूंगफली की खल के उपचार के लिए 2 ग्राम फारमैल्डीहाइड प्रति 100 ग्राम क्रूड प्रोटीन के स्तर पर प्रयोग करते है। मोटे तोर पर दाने, हे एवं साइलेज को बाई पास प्रोटीन बनाने हेतु क्रमश: 0.5-1.5, 1-3 and 3-5% फारमैल्डीहाइड का उपयोग किया जाता है l मूँगफली की खली का फारमैल्डीहाइड उपचार करने से उसमे भविष्य मे अफ्लाटॉक्सिन की समस्या नहीं होती ओर यह दूसरे फफूंद को खली मे उगने से बचाता है l
- 4. एमिनो एसिड का संरक्षणः आजकल संरक्षित एमिनो एसिड फीड एडिटिव के रूप में पशु आहार में प्रयोग किए जाते हैं। इनको सरंक्षित करने के लिए प्रयोगशालाओं में कई प्रकार की एनकैपसुलेशन प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के तौर पर मिथियोनिन के संरक्षण के लिए फैटी एसिड कोटिंग तो कभी कोलीन, लेसिथिन, ग्लूकोज या अन्य उत्पादों का प्रयोग किया जाता है। एमिनो एसिड मे संरचानात्मक परिवर्तन से भी उनका संरक्षण किया जा सकता है।
रुमेन संरक्षित प्रोटीन (बायपास) की आवश्यकता कब होती है?
- अधिक दूध उत्पादन (12-15 लीटर से अधिक) देने वाले पशुओ मे जब दुग्धवस्था की प्रथम अवस्था मे, पशु के शुष्क पदार्थ ग्रहण क्षमता कम हो जाती है एवं उत्पादन अधिक होता है जिससे की पशु को पर्याप्त मात्रा मे पोषक तत्व नहीं मिल पाते है l इन पोषक तत्वो के पर्याप्त मात्रा मे नहीं मिलने से पशु निगेटिव एनर्जि बेलेन्स मे चला जाता है जो की पशु के उत्पादन एवं प्रजनन तंत्र पर ऋणात्मक प्रभाव डालती है l ऐसी अवस्था मे बाईपास प्रोटीन पशु को उत्पादन हेतु पर्याप्त पोषक तत्व देने का कार्य करता है एवं उसकी प्रजनन क्षमता को भी बनाए रखता है l
- तेजी से बढ़ रहे बछड़ों में जिनकी वृद्धि 1 किलोग्राम/दिन हो रही हो मे भी बायपास प्रोटीन देना चाहिए l
- इसकी अवश्यकता काफी कम गुणवत्ता वाले भूसे एवं चारो पर पल रहे पशुओं में भी पड़ती हैl
- जब बाईपास प्रोटीन उपलब्ध नहीं होता है, तब पशु को कपास की खली, राइस ब्रान, मक्के का भूसा इत्यादि में बायपास प्रोटीन ज्यादा होने से इस प्रकार की खुराक पशु को आहार में दी जा सकती हैं l
रुमेन संरक्षित प्रोटीन (बायपास) खिलाने के लाभ –
- ऐसा पाया गया है कि बायपास प्रोटीन देने से बछड़ो मे 25-35 % कि वृद्धि दर मे बड़ोतरी होती है l
- भोज्य पदार्थ रूपान्तरण क्षमता मे वृद्धि होने के साथ ही आहार कीमत प्रति किलो वजन कम हो जाती है l
- विभिन्न अध्ययनो मे यह पाया गया है कि पशुओ मे बायपास प्रोटीन खिलाने से 8-10 प्रतिशत दूध कि वृद्धि होती है l
- पशुओ मे प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है l
- प्रोटीन को रुमेन संरक्षित प्रोटीन बनाने पर आहार मे उपस्थित प्रोटीन की उपयोगिता बड़ जाती है l
- अमीनो अम्ल की उपलब्धता बड़ जाती है l
- बायपास प्रोटीन खिलाने से दूध मे वसा एवं एस. एन. एफ़. की मात्रा बड़ जाती है l
- बायपास प्रोटीन खिलाने से अधिक दूध देने वाले पशुओ की पोषक तत्वो की अवश्यकताओ को आसानी से पूरा किया जा सकता है l
- बायपास प्रोटीन खिलाने से बछड़ो के शरीर भर मे अच्छी वृद्धि होती है एवं साथ ही प्रजनन क्षमता भी अच्छी रहती है l
- किसान को प्राप्त होने वाला शुध्द आर्थिक लाभ मे भी बदोतरी होती है l