आशा महिला मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी उदयपुर की सफलता की कहानी
आशा महिला मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी ली. उदयपुर,313002
कंपनी परिचय
आशा महिला मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी ली. 1956 के भाग IX-A के तहत गठित महिला दूध उत्पादक सदस्यों की एक ऐसी प्रोड्यूसर कंपनी है जो अपने सदस्यों से ही दूध का संकलन करती है और अपने सदस्यों क़े दूध उत्पादन के लागत कम करते हुए, दूध उत्पादन एवम् सदस्यों क़े दूध व्यवसाय से अर्जित लाभ को बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध है। आशा महिला मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी ने अपने स्वर्णिम सफर की शुरुआत 21 मार्च, 2016 को पाली जिले के बाली तहसील मे 11 महिलाओं के साथ की । कंपनी के शुरुआत मे धानी फाउंडेशन, अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन, सी.एम.एफ और एन.डी.डी.बी- डेरी सर्विसेंस का बहुत बड़ा योगदान रहा है जो आज भी बना हुआ है ।
कंपनी ने 23 नवंबर, 2016 पहले दिन 15 गाँव सें 227 सदस्यों से 827 ली. दूध का संकलन किया ।ओर अपने पहले साल 69 गाँव सें 2504 सदस्य जुड़े । समय बीतता गया और कारवाँ आगे बढ़ता गया । साल दर साल आशा कंपनी नये मुकाम हासिल करती रही । वर्ष 2017 में 100 गाँव मे 4695 सदस्य, वर्ष 2018 मे सिरोही जिले को जोड़कर 200 गाँव मे 9180 सदस्य जुड़ चुके थे । वर्ष 2019 मे 200 गाँव मे 11881 सदस्य। वर्ष 2020-21 मे यह सफर पाली, सिरोही, जालोर ओर उदयपुर जिले के 500 गाँव मे 23500 सदस्यो के साथ मिलकर तय कर रही हे । जिसमे इन गाँवो से 85000 ली. दुध का संकलन कर रही हे । लेकिन अभी वर्ष 2021-22 में 563 गाँव से 28000 सदस्य आशा कंपनी से जुड़ चुके है।ओर करीब 115000 लीटर दूध संकलन कर रही है। आशा कंपनी अपने सदस्यो को दुध उत्पादन से सम्बंधित
जानकारी के अलावा अन्य तक्नीकी सुविधाये भी मुहिया कराती हे जैसे:- दुध उत्पादन मे वृद्धि के लिये पशु आहार, खनिज मिश्रण, कैल्शियम ओर साईलेज की सुविधा मुहिया कराती हे नस्ल सुधार के लिये कृत्रिम गर्भाधान, ओर लागत खर्च कम करने के लिये राशन बैलैसिंग की सुविधा प्रदान करती हे पशु के बेहतर स्वास्थ्य के लिये पशु बाँझपन निवारण ओर थनैला जाँच शिविर लगाया जाता हे इस वर्ष अन्य सुविधाओं मे दवाइयो का वितरण,पशु-बीमा, ओर KCC के अंतर्गत आने वाली लोन सुवीधा भी शामिल हे ।
कैल्सीअम पशु-आहार चाफ-कटर
थनेला जांच
नाम: रेखा चौधरी
गाँव: गुडालास
तहसील: बाली
जिला: पाली
सदस्या कोड: 107
रेखा चौधरी की कहानी
“कठिन समय मजबूत इरादों को जन्म देता है” यह पंक्ति बाली तहसील के गुडालास गाँव कि सफल दुग्ध उत्पादक रेखा चौधरी पर बिल्कुल सही है। रेखा चौधरी आशा महिला मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी मे एक सफल दुग्ध उत्पादक सदस्य है।
वह जानी जाती थी एक साधारण ग्रामीण महिला के रूप मे, जो अपने आसपास के अवसरों के बारे मे बहुत ज्यादा जागरूक नहीं थी। रेखा चौधरी अपने गाँव मे ही एक निजी दुधिया को दूध देती थी। लेकिन यह उनके जीवन कि एक बड़ी गलती थी क्यूंकी दुधिया उन्हे उनकी कड़ी मेहनत ओर प्रयासों के लिए उचित प्रतिफल प्रदान नहीं करता था। वह कभी भी दूध का उचित मूल्य, ओर दूध का भुगतान उन्हे समय से नहीं करता। उसके पास दूध मापने के लिए कोई मापक नहीं था जिसे उन्हे दूध व्यवसाय मे नुकसान होने लगा।
उसी समय कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया इसमे उनका जीवन भी था। उनके पति कि नौकरी चली गई जो बाहर शहरों में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते थे। उस समय उनका पूरा परिवार गहरे संकट मे था। ओर उनके लिए कोई उम्मीद नहीं थी।
लेकिन हम कहते है ना सूर्यास्त ही सूर्योदय का पहला चरण होता है उसी समय आशा कंपनी ग्रामीण क्षेत्रों कि महिलाओं के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के मकसद से काम कर रही थी। ओर एक दिन उनके गाँव मे आशा के कुछ कर्मचारियों ने गाँव मे बैठक की। रेखा जी भी गाँव मे होने वाली बैठक के लिए काफी उत्साहित थी। उन्होंने उस बैठक मे हिस्सा लिया ओर पशुपालन के उन्मुक्त तोर तरीकों के बारे में जाना ओर उसी समय आशा कंपनी मे जुडने का मन बना लिया। इस एक घटना ने उनके ओर उनके परिवार कि जिंदग़ी बदल दी।
आशा कंपनी में 02 दिसम्बर, 2020 को एक सदस्य के रूप मे जुड़ी। ओर उनके जीवन का दूसरा अध्याय शुरू हो गया। उनको दूध का उचित मूल्य, दूध का सही भुगतान समय पर मिलने लगा। आशा कंपनी द्वारा समय-समय पर गाँव में दूध उत्पादन में वृद्धि के लिए जागरूक कार्यक्रम भी कराए गये। जिसे उन्हे दूध उत्पादन में वृद्धि के नए तोर तरीकों को अपनाकर दूध व्यवसाय में अधिक मुनाफा होने लगा। आशा कंपनी द्वारा पशु आहार, खनिज मिश्रण ओर हरे चारे के बीज समय से ओर वाजिब मूल्य पर उपलब्ध होने लगा जिससे लागत कम हुई ओर मुनाफा अधिक होने लगा। इसी मुनाफे से उन्होंने 2 पशु से 3 ओर पशु खरीद लिए। अब उनको दूध व्यवसाय से हर महीने 25000/- रुपए कि एक नियमित आमदनी हो जाती है। इस आमदनी से उनके परिवार का खर्च चल जाता है ओर कुछ पैसा भविष्य के लिए भी बचाकर रख लेते है।
अब वह पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर है एवं अपने एवं अपने बच्चों के उज्जल भविष्य के आवशस्त है। और ये सब आशा डेयरी के कारण संभव हुआ है।
नाम: खुशबू कुमारी
गाँव: लुनावा
तहसील: बाली
जिला: पाली
सदस्या कोड: 43
“मन की इच्छा शक्ति मजबूत बन जाए।
तब समाज ओर परिवार के बंधन रोक नहीं सकते हे”
ऐसे ही मजबूत इरादों कें साथ मेंने पशु पालन को अपना मुख्य व्यवसाय बनाया और अपने गाँव में संचालित अपने स्वामित्ब वाली आशा डेरी की सहायता सें पशु पालन क़े उन्नत तौर तरीके को अपनाये।
मेरा नाम खुशबू कुमारी हैं मैं बाली तहसील क़े गाँव लुनावा की रहने वाली हूँ । पहले मेरा परिवार खेती करके अपना भरणपोषण कर रहा था । लेकिन इतने सें परिवार की आर्थिक स्थिति सही नही होने वाली थीं । परिवार मे सभी सदस्यों क़े लालन पोषण का पुरा भार मेरे पिता पर था । जिससे केवल परिवार की मूलभूत आवश्यकताएँ ही पूरी हो पाती थी । लेकिन परिवार की और भी जिम्मेदारियाँ थीं उनकों भी पुरा करना था । मेने अपनी शिक्षा 12 तक की। शिक्षा पूरी करने के बाद मेरे मन में नौकरी करने की इच्छा जगी लेकिन परिवार से इसकी अनुमति नहीं मिली । क्यूंकि गाँव का समाज इसकी अनुमति नहीं देता। मैं अपने सपनों एवं परिवार की अन्य आवश्यकताओं के लिए चिंतित थी।
तभी आशा डेरी सें कुछ लोग पशु पालन पर चर्चा करने आयें जिसमें गाँव क़े कुछ लोग सम्म्लित हुए । मैं भी उनकी मीटींग में सम्म्लित हुई ओर उनकी सारी बात सुनी उन्होंने पशु पालन क़े बारे मे बहुत सारे सुझाव दिये थे । मुझे उनके सुझाव अच्छा लगे साथ ही यह भी उम्मीद जगी कि मैं गाँव में रह कर भी अपने परिवार की सहायता कर सकती हूँ। और मेंने आशा डेरी सें जुड़ने क़े लिये अपना इरादा बना लिया। लेकिन मेरे पास केवल दो ही पशु थें जिसमें केवल एक ही दुधारू था । जिससे मेरे परिवार की जरूरत ही पूरी हो पाती थीं । लेकिन मेने हार नहीं मानी ओर एक ओर पशु खरीद लिया और में आशा डेरी मे शुरुआत मे ही 23 नवंबर 2016 से जुड़ गयी । क्यूँकि यह डेरी केवल महिलाओं को हीं सदस्य बनाती हैं और यह हम महिलाओं की खुद की डेरी हैं । जिसमें मुझे दूध का सही मूल्य हर महीने में दस दिन क़े भीतर मिल जाता है । समय समय पर गाँव में पशु पालन से सम्भंधित जागरूकता कार्यक्रम किये जाते है जिससे मुझे अपने पशु पालन को सहि तरीके सें उसमे बद्लाब करके अधिक मुनाफा हुआ । पशु पालन मे बद्लाब करके अधिक मुनाफे के साथ-साथ मेंने पाँच पशु ओर खरीद लिये जिससे घऱ मे बचत भी होने लगी । ओर मेरे परिवार का आर्थिक सुधार भी हुआ ।
आशा डेरी के साथ जुड़ने से मेरे जीवन मे कई बदलाब आयें जेसे:- पशु पालन को मेने अपना मुख्य व्यवसाय बनाया, पशु पालन के नए तोर तरीकों को अपनाकर लागत खर्च कम करके अधिक मुनाफे के साथ एक नियमित आय का स्रोत बनाया आदि। मुझे हर महीने तकरीबन 22000 रुपए की आमदनी दूध व्यवसाय से हो जाती है। आज मेरे पास 7 भैंस है ओर मेरी हिस्सा राशि (शेयर) 17100 रुपए कंपनी मे जमा है।
केहतें है “परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है” मे ओर मेरा परिवार होने वाले इस बद्लाव से बहुत ख़ुश है जो की मुझे आशा डेरी ने सम्मानपूर्ण ज़िंदगी जीने का मकसद दिया है ।
नाम: सज्जन कंवर
गाँव: सिलवणी
तहसील: पिंडवाड़ा
जिला: सिरोही
सदस्या कोड: 33
“लाल बहादुर शास्त्री” जी ने क्या खूब कहा है” “बिना गाँव ओर बिना किसान किसी भी देश का सम्पूर्ण होना संभव नहीं है” क्यूंकी देश की तरक्की का रास्ता देश के गाँवों से हो कर ही गुजरता है। जिस देश में गांव समृद्धिपूर्ण होंगे वही देश विकास करेगा। लेकिन आज जब हम गांवों की हालत देखते हैं तब हर तरफ चुनोतियों के पहाड़ दिखाई देते हैं। कभी मौसम की मार के कारण तो कभी अन्य कारणों से फसल का खराब होना, तो कभी फसल का दाम अच्छा नहीं मिलना, जिससे किसान को बहुत ज्यादा मेहनत करने के बावजूद भी कुछ खास कमाई नहीं हो पाती है ऐसे हर किसान खुद को बेशहाय सा महसूस करने लगता है।
परंतु कहते हैं ना जहां आगे बढ़ने की चाहत हो वहा रास्ते खुद ही बनने लगते हैं। मेरा नाम सज्जन कंवर है एवं मेरा घर सिलवणी गांव में है। खेती योग्य जमीन कम होने के कारण हमने पशुपालन करने का सोचा। हमने शुरुआत में 2 गाय ओर तीन भैंस खरीदी एवं उनका दूध बेचना शुरू किया। लेकिन कोई संगठित संस्था न होने के कारण कोई खास लाभ नहीं मिल रहा था। दूध कभी बिक पाता कभी नहीं, कभी पैसे टाइम पर मिलते कभी नहीं, कभी भैंस बीमार पड़ जाती तो और भी परशानी हो जाती। फसल का भी कोई ठिकाना नहीं होता था कभी अच्छी बारिश हो गई ठीक नहीं तो बस खाने योग्य अनाज ही हो पाता था । ऐसे में एक बार तो मन किया की पशू बेच कर और सबकुछ छोड कर मजदूरी करना शुरू कर दें, लेकिन फिर गांव में यह खबर फैली की कोई नई डेयरी आशा डेयरी आ रही है, जिसमे केवल महिलाएं ही सदस्या बन स्कती है। मैंने पहली बार ऐसे होते देखा था। ना जाने मन में ऐसा क्यूँ लगा की ये डेयरी जरूर बदलाव ला सकती है, हमारी जिंदगी में।
फिर मै आशा डेयरी में अपना कोड खुलवा कर सदस्या बनी और दूध भराना शुरु किया। अब दूध रोज बिकने लगा और हर 10 दिन में दूध का अच्छा मूल्य हमें हमारे खाते में मिलने लगा साथ ही दूध उत्पादन में वृद्धि एवं लागत में कमी के लिए डेयरी से तकनिकी सहायता भी मिलना शुरू हो गया, जो कि मेरे लिए किसी सपने के सच होने की तरह था । इससे मुझे एवं मेरे परिवार को प्रोत्साहन मिला और मैंने पशुपालन को बढ़ाने की बात सोची।
इसके बाद जैसे हमारी जिंदगी ही बदल गई। हम मेहनत करते गए ओर मुनाफा होता गया। आज हमने अपना पक्का घर बनाया, बच्चों को पढ़ा रहे हैं या थोड़ी सी ज़मा पूंजी भी खाते में जमा कर रखी है। एक गरीब किसान का इतना ही तो सपना होता है। लेकिन हमने इससे भी आगे आकर 4 गाय एवं 7 भैंस और खरीद ली है । मेरी महीने 30200/- रुपए कि आमदनी हो जाती है। इस आमदनी से मेंने खुद का पक्का मकान बनाया। अब में अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए भी प्रतिबद्ध हूँ।
“हम सभी सपने देखते रहते हैं, और सौभाग्य से, सपने सच होते हैं।“
नाम: निर्मला
गाँव: बगथला
तहसील: सलूमबर
जिला: उदयपुर
सदस्या कोड: 10
“माना शहर में वो तुम्हारा तरक्की वाला मकान है,
मगर गांव में गरीबो के जीवन में भी सुख और शान है।“
मेरा नाम निर्मला मीणा है और में बगथला गांव की रहने वाली हूं। मेरी शादी गांव में ही हुई थी इसलिये गांव की परिस्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ थी। आज के दौर में हर कोई चाहे गांव में हो या शहर में अपनी स्थिति अच्छी करने के लिए जूझ रहा है। गांव में साक्षरतादर कम होने की वजह से इसमे और दिक्कत बढ़ जाती है। पहले हमारी पास थोड़ी सी खेती थी साथ ही 1 गाय और 1 भैंस थी। शादी के कुछ समय बाद ही मुझे समझ आ गया था कि ऐसे हमारा गुजरा नहीं चलने वाला है। मै जानती थी कि गांव में किसानों के पास खेती और पाशु पालन के अलावा और कोई आमदनी का साधन नहीं होता है। इसिलिए मुझे दोनों में से ही मैंने एक चुना था जिससे आगे जा कर जिंदगी बेहतर बन सके ।
खेती तो सीमित थी ही उसमे तो क्या बढाते लेकिन फिर हमने अपने पशु-पालन को बढ़ाने का सोचा। धीरे-धीरे दूध का रेट बढ़ने लगा और हम भी दूध बढ़ाते रहे। आज हमारे पास 6 भैंसे और 2 गाय है, जिससे हमें एक अच्छी आमदनी हो जाती है जिससे हमारा घर अच्छी तरह से चल रहा है। हमने यह भी तय किया है की हम अपने बच्चों को पढाई के बाद डेयरी व्यवसाय में भेजेगे जिससे वो हमारे ही जैसे दुसरे किसान भाई बहनो के लिए अवसर बनाए और गांव के लोगो को रोजगार के लिए बाहर नहीं जाना पड़े ।
शुरू में दिक्कते आती है, महंगाई इतनी बढ़ गई है की पशुओ का पेट भरना भी मुश्किल लगता है लेकिन 1.5 साल पहले आशा डेयरी से जुड कर मैने समझा कि अगर हम नई तकनीक के सहारे पशुओ को पालेंगे तो हमारा खर्च भी कम होगा और दूध उत्पादन भी बढ़ेगा। आगे जा कर वह हुआ भी हमने कृत्रिम गर्भाधान करवाना शूरु किया जिसे हम अच्छे पशु मिले, हमने पशु आहार और खनिज मिश्रण का इस्तेमाल किया जिससे पशुओ का स्वास्थ्य भी सुधरा और उनके ब्यात का अंतर भी कम हुआ।
आज हमे किसी भी तत्कालिन स्थिति में किसी के सामने हाथ फेलाने की जरूरत नहीं है। आज हम अपने ही डेयरी उद्योग से आजीविका कमा रहे है और खुश भी है।
नाम: आशा देवी
गाँव: सुलीवा
तहसील: रेवदर
जिला: सिरोही
सदस्या कोड: 04
मेरा नाम आशा देवी है, मै रोहूआ गांव की रहने वाली हूँ । हम पहले खेतीबाड़ी करके अपना ओर अपने परिवार का भरणपोषण करते थे लेकिन फसल भी पूरी तरह बारिश पर निर्भर होती है कभी अच्छी बारिश हो गई तो फसल भी अच्छी हो जाती है ओर नहीं हुई तो परिवार का लालन पोषण करने में मुस्किल हो जाती है में ओर मेरा पूरा परिवार इसी चक्र में अपना जीवन गुजार रहा था।
मैं ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हूँ, लेकिन मैंने खुद के भीतर से महसूस किया है कि जिंदगी बदलने में चंद लम्हों का समय लगता है जरुरी नहीं कि आप उसमे सालों खपा दे। ये ही कुछ 4 साल पहले की बात है जब हमारा जीवन ऐसा ही चलता जा रहा था तब हम को पता चला की गांव में नई डेयरी आशा डेयरी आई है और उसके कर्मचारी गांव के लोगो के साथ मिल कर मीटिंग कर रहे हैं। हम भी आशा डेयरी के बारे में जानने के लिये मीटिंग में गए, हमें आशा डेयरी के बारे में जानकर अच्छा लगा। हमें विश्वास नहीं हुआ की कोई डेयरी सिर्फ महिलाओ की भी हो सकती है जिसमें खुद मालिक बन सकते है, लेकिन जैसे-जैसे समय गुजरता गया हम सबको समझ आ गया कि आशा डेयरी वैसे ही काम कर रही है जैसा हमें मीटिंग बता गया था।
आशा डेयरी उचित मूल्य पर पूरे साल दूध खरीद रही थी एवं उसका भुगतान हर 10 दिन में हमारे खाते में कर रही थी, साथ ही दूध व्यवसाय से आय बढ़े इसके लिए तकनीकी सुविधा प्रदान कर रही थी, जिससे हम प्रेरित हुए और हमने सोचा क्यूँ न हम भी अपना पशु पालन के तौर तरीके बदले जिससे हमे कम लागत में अधिक आय हो सकें। तब हमने अपनी सोच बदली और खेतो में कपास के बदले ज्यादा गेहु, सरसो, और चारा लगाना शुरु किया। फिर हमने दूध का घी बनाकर बेचना बंद किया और दूध आशा डेयरी में देना शुरू किया। आशा डेयरी से लोग मिलने आते और पशु-पालन से जुड़े सुझाव दे कर जाते। हम भी उन्हे अपनाते गए और इससे हमारा पशुधन और दूध दोनो बढ़ने लगे। पहले हमारे पास केवल 2 पशु थी आज हमारे पास छोटे बड़ी मिला कर कुल 9 पशु है। धीरे-धीरे ही सही पर हमारा जीवन बदलने लगा। मेरी खुद कि आमदनी अब हर महीने कि लगभग 45000/- रुपए हो जाती है। अभी आशा डेरी में मेरी हिस्सेदारी 55700/- रुपए जमा है जिसका मुझे साल के अंत मे मुझे इस पर लाभांश मिल जाता है। इस आमदनी से मैंने एक घर बनाया है। ओर बच्चों कि अच्छी परवरिश करने में सक्षम हूँ।
आज जब मै 4 साल पीछे मुड़कर देखती हूँ तो अपना अतीत बहुत याद आता है कि कैसे सिर्फ एक विचार जिंदगी बदलने के लिए काफी होता है।
नाम: पुष्पा कंवर
गाँव: बीजापुर
तहसील: बाली
जिला: पाली
सदस्या कोड: 78
“एक बेटी कि परीक्षा”
“जितना कठिन संघर्ष उतनी ही शानदार जीत” ऐसी ही एक संघर्ष कि कहानी जीवित है गाँव बीजापुर जिला पाली कि गलियों में जहां पर एक बहुत संघर्ष से परिपूर्ण नारी पुष्पा कंवर रहती है।जिनके जीवन मे संघर्ष ने शादी से ही जीवन साथी कि तरह मजबूत संबंध बना लिया था। शादी कि खुशियां उनके जीवन में केवल कुछ समय के लिए ही थी। शादी के कुछ समय उपरांत ही उनके पति कि अकाल मृत्यु हो गई अब उनके कंधों पर दो मासूम बच्चों के लालन पालन कि जिम्मेदारी का बोज भी आ पड़ा। इन्ही विकट समस्याओं के बीच एक ओर मुसीबत आया पड़ी जब उन्हे किन्ही कारणों कि वजह से अपने पीहर लोटना पड़ा। इस रूदीवादी समाज ने उनका जीना दुर्भर कर दिया। रोज के ताने एक आम बात सी हो गई ओर अपना जीवन यापन करने तथा समाज में सर उठाकर जीना एक बहुत बड़ी चुनोती हो गई।
पति से विरह के दुख का विलाप करने का भी पूरा अवसर भी नहीं मिला था। ओर जिम्मेदारियों को कंधों पे उठा उन्होंने घर कि दहलीज से बाहर हिम्मत के कदम बड़ाए ओर तानों कि परवाह न करते हुए ओर बहुत सी रूढ़िवादी विचार धाराओं को दरकिनार करते हुए अपने व अपने बच्चों के पोषण का विचार करते हुए वह सी.एम.एफ से जुड़ी । जिसमे वह ग्रामीण क्षेत्रों कि साधारण महिलाओं को स्वयं सहायता समूह में जोड़ने का कार्य करती थी। इस नेक काम में महिलाओं को ऋण सुविधा उपलब्ध हो जाती थी। अब आजीविका के साथ-साथ बहुत से लोगों से मिलना जुलना भी प्रारंभ हुआ। उन्होंने जल्द ही बहुत से लोगों को स्वयं सहायता समूह से जोड़ लिया।
साल 2016 में पाली जिला के बाली तहसील में आशा कंपनी का उदय हुआ। इनको एक ओर अवसर मिला आशा कंपनी के साथ जुड़कर ग्रामीण क्षेत्रों कि दुग्ध उत्पादक महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए।
आशा में जुडने के बाद इनको पशुपालन से होने वाली आमदनी के बारे में पता लगा तो इन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों कि महिलाओ को जागरूक करने कि ठानी ओर अपने साथ-साथ उनको भी पशु पालन के बारे मे जागरूक किया। खुद कि आमदनी तो बड़ी ओर अपने साथ-साथ उनको भी आमदनी के अवसर से अवगत कराया।
आशा कंपनी द्वारा सुझाए गये पशु पालन के तोर तरीको अपनाकर उन्होंने पशु पालन को ओर बड़ाया ओर उन्होंने पशु कि संख्या दो से कुल पाँच हो गई।
इसी प्रकार मेहनत करते हुए उन्होंने अपना पूरा जीवन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रण ले लिया।
नाम: ललिता कुँवर
गाँव: गुरेल
तहसील: सलूमबर
जिला: उदयपुर
सदस्या कोड: 09
मन की इच्छा शक्ति मजबूत बन जाए तब समाज ओर परिवार के बंधन रोक नहीं सकते हे । ऐसे ही मजबूत इरादा रखकर आगे बढ़ने के लिए ललिता कुँवर ने खुद को ओर परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का सोचा तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा । शिछित ना होने के बावजूद मजबूत इरादे ने उनके कदमो को नहीं रोक पाये ।
महज 16 वर्ष की अल्प आयु मे विवाह कर अपने ससुराल मे आयी । तब ससुराल की आर्थिक स्थिति इतनी सही नहीं थी । पति खेती ओर मजदूरी करके परिवार का पलान-पोषण करते थे ।
वर्ष 2021 के फ़रवरी मे गाँव मे कुछ लोगों द्वारा बेठक रखी गई । आशा डेरी से कुछ लोग गाँव मे आये ओर उन्होंने गाँव के किसानों को एक जगह एकत्र किया ओर पशु पालन से संभनधित मेहत्तबपूर्ण जानकारी ओर दूध बढ़ाने के सुझाव दिए ।
मुझे उनके सुझाव अच्छे लगे ओर मेने पशु -पालन को अपना मुख्य व्यवसाय बनाने के लिए सोचा । मेरे पास केवल एक ही भैंस थी । मेने डेरी मे अपना आवेदन दिया ओर आशा डेरी के साथ जुड़ गयी । मेने डेरी मे दूध देना शुरू किया ओर मुझे बहुत फायदा हुआ क्यूंकि आशा डेरी की न्याय प्रणाली व्यवस्था बहुत अच्छी हे इसमे मुझे हर महीने के दस दिन के भीतर दूध का भुगतान हो जाता हे ओर पैसा पूरा ओर उसका सही दाम मिलता हे शिछित ना होने के बावजूद मुझे आशा ने कंपनी मे मालिकाना हक दिया जिससे मे अपने आप पर गर्व महसूस कर पाती हूँ । मेने दूध व्यवसाय से आज मेरे पास 5 भैंस हे ओर मेरी पूरे महीने की आमदनी 25000 हो जाती हे जिससे मे अपने बच्चों को एक अच्छी शिक्षा दे सकती हूँ ओर अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत कर पायी हूँ । आज मेरा परिवार सुख पूर्ण जिंदग़ी जी रहा हे ।
“ज़िंदगी रुकने का नाम नहीं, जब जागो तभी सवेरा हे”
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