गोपशुओं में असामान्य व्यवहार/आदतें
डॉ. राहुल चौहाण, डॉ. देवांगिनी पंड्या एवं डॉ.ओम पटेल,
पशु औषध विज्ञान विभाग, कामधेनु विश्वविद्यालया, आणंद, गुजरात.
सभी पशु-प्राणी वातावरण के प्रति एक प्रकार का सामान्य व्यवहार करते हैं। यह व्यवहार उस पशु या प्राणी की सामान्य / स्वस्थ दशा को दर्शाता है। साधारण परिस्तिथियों में वातावरण के प्रति सामान्य से हटकर कुछ अलग प्रकार यो व्यपहार से हम उस पशु के प्रबंधन अथवा उसमें हुई किसी प्रकार की कमी को पहचान सकते हैं। विभिन्न अवस्थाओं तथा भिन्न-भिन्न आयु वर्गों के पशुओं में अलग-अलग प्रकार से व्यवहार को दर्शाया जाता है। पशु के असामान्य व्यवहार या प्रतिकूल आदतों के होते हुए हम उससे अधिकतम उत्पादन की अपेक्षा नहीं कर सकते। इस प्रकार के व्यवहार से पशु स्वस्थ नहीं रहता है तथा उसमें उचित शारीरिक वृद्धि भी नहीं होती है। इन व्यवहारों के बारे में समझना आवश्यक हो जाता है ताकि हम समय रहते उचित उपाय द्वारा पशु को इनसे छुटकारा दिला सकें। इस लेख में गोपशुओं में पाए जाने वाले कुछ प्रमुख असामान्य व्यवहारों का वर्णन किया गया है।
- चाटना
इस अवस्था में पशु अपनी जीभ के प्रयोग से किसी ठगैस वस्तु को चाटता है। यह पशु अपने बाड़े की दीवार अथवा फर्श को चाटता है। नवजात शिशुओं में दूध न मिलना या दूध छुड़ाने के तुरंत पश्चात् प्रायः देखने को मिलता है। ऐसा पशुओं में खुराक की कमी अथवा पेट में बीड़े के कारण भी हो सकता है। इसके निवारण हेतु पशु को पेट के कीड़े मारने नियमित अन्तराल पर तथा पोषण में लवणारने की दवाई निय देनी चाहिए।
- शरीर को रगड़ना
जो पशु बाड़े के अन्दर अधिक समय तक बंधे रहते हैं. उनमें सिर को दीवार या खोर से रगड़ने की प्रवृत्ति आरंभ हो जाती है। बाह्य परचीनी से प्ररित पशु भी अपने शरीर को किसी ठोस वस्तु से रगड़ते हैं। यह पशु शरीर के जिस अंग को रगड़ते हैं उस स्थान से बाल झड़ जाते हैं तथा चमड़ी मोटी हो जाती है। परजीवियों का संक्रमण होने पर पशुचिकित्सक की सलाह तुरंत लेनी चाहिए। खनिज लवण गुक्त पोषण का प्रभाव पशु पर तुरंत दिखाई देता है।
- शिशुओं द्वारा एक दूसरे को चूसना
जो नवजात शिशु माँ से अलग हो जाते हैं अथवा जिनका दूध छुड़ाया जाता है, जनमें दूसरे शिशुओं के कोई अंग जैसे कि कान, अंडकोष, नाभि, थन अथवा बाल चूसने की आदत हो जाती है। समूहों में रखे गए तथा टब से दूध पीने वाले बछड़ों में यह आदत पाई जाती है। मुंह पर छींका लगाकर बछड़ों को इस बुरे से दूर रखा जा सकता है।
- गाय द्वारा अपना या दूसरी गाय का दूध पीना
कुछ गायों में अपना दूध पीने की आदत हो जाती है तथा कुछ पशु दूसरी गायों का दूध पीना आरंभ कर देते हैं (चित्र-1)। ऐसा होने की अवस्था में दूध पिलाने वाली गाय में दूध की मात्रा कम हो जाती है। समुचित और संतुलित आहार तथा पशुओं की निगरानी करके इस आदत को छुड़ाया जा सकता है। यदि पशु अपना ही दूध पीता है तो उसे रोकने हेतु उसके मुंह पर एक पट्टीनुमा यंत्र लगाकर इस आदत से निजात दिलाया जा सकता है।
चित्र-1. एक पशु द्वारा दूसरे पशु का दूध पीना
- टक्कर मारना
पशु अपने सिर से टक्कर मारकर दूसरे पशु अथवा किसी व्यक्ति को घायल कर देता है। सांडों में यह प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है तथा सावधानी की आवश्यकता होती है। कुछ फार्मों पर सांडों द्वारा अनहोनी भी दर्ज की गयी है। पशुओं को कम आयु में सींग-विहीन करने से इस प्रकार की घटनाओं से बचा जा सकता है।
- लात मारना
यह व्यवहार अधिकतर पशुओं में देखने को मिलता है। पशु अपने बचाव में किसी अनजान अथवा जिससे उसको खतरा हो को लात मारते हैं। विशेषकर भारतीय नस्ल की गायों तथा सांडों व भैंसों में लात मारने की आदत पाई जाती है। दूध निकालते समय गायों में लात मारने की आदत को रोकने के लिए प्रायः नियाना लगाया जाता है।
- गुहा व बालों को खाना
कुछ पशुओं को अपनी अथवा दूसरे पशुओं की गुहा, गोबर या बालों को खाने की आदत हो जाती है। जिन नवजात बच्चों को प्रथक बाड़े से हटाकर समूह में रखा जाता है, उनमें इस प्रकार का व्यवहार पाया जाता है। बालों को खाने से पशु के पेट में इनका गुच्छा बन जाता है तथा पशु को कब्ज व पेट की अन्य शिकागते हो जाती हैं। गुहा के सेवन से पशु को कृमि आदि के रोग हो सकते हैं और पेट खराब हो सकता है।
- जीभ घुमाना
इरा व्यवहार में पशु मुंह में बिना किसी वस्तु के होते हुए जीम को बाहर निकालकर चारों तरफ व मुंह के अंदर बाहर करके घुमाता है (चित्र)। ऐसा अक्सर भोजन ग्रहण करने के ठीक पहले अथवा इसके पश्चात् पशु के द्वारा दर्शाया जाता है। यह अनुवांशिकी, निरंतर पशु को बांधकर रखना या कम रेशे वाला भोजन के कारण हो सकता है। चित्र- पशु द्वारा जीभ को घुमाना (साभार इन्टरनेट)।
- निष्क्रिय पड़े रहना
कुछ पशुओं में जैसे कि गतिहीन बैठे रहना, लेटना या खड़े रहना एक असामान्य व्यवहार के रूप में पाया जाता है। एक लम्बे समय तक छोटे बाड़े में बछड़े को रखने से इस प्रकार के व्यवहार की प्रवृत्ति पाई गई है। ऐसा इनमें इमारतों के साथ निम्न संवेदी संपर्क के कारण भी हो सकता है। कभी-कभी पशु लम्बे समय तक एक ही अवरथा में बाड़े की दीवार का सहारा लेकर खड़ा रहता है। इस प्रकार के पशुओं को भरपूर व्यायाम कराना चाहिए।
- अतिक्रियाशीलता
इस प्रकार का व्यवहार सघन समूह में रखे गए पशुओं में देखने को मिलता है। इस प्रकार के व्यवहार के कारण दूसरे पशु अथवा व्यक्ति को नुकसान पहुँच सकता है।
- अधिकता में भोजन ग्रहण करना
कुछ पशु अपने आहार को जल्दी-जल्दी ग्रहण कर समाप्त कर देते हैं। ऐसा करने से पशु की पाचन क्रिया प्रभावित होती है। दाने वाला आहार एक समय में अधिक मात्रा में ग्रहण करने से पशु अम्लीयता का शिकार हो सकता है।
- बाड़े के पाइपों/बल्लियों को काटना
बाड़े में रखे गए पशु इसमें लगी बल्लियों/पाइपों को काटना आरंभ कर देते हैं। ऐसा करने वाले पशु के दांत घिस जाते हैं। पशुओं में होने वाली इस प्रकार की बीमारी को पाइका कहते हैं जिसमें पशु भिन्न-भिन्न प्रकार की वस्तुओं को चबाना और खाना आरंभ कर देता है। ऐसा पशुओं में फोस्फोरस तत्व की कमी से होता है। अतः पशुओं को खनिज लवण खिलाने से यह बीमारी ठीक हो जाती है।
- चारे को खोर/नांद से बाहर गिराना
कुछ पशु विशेषकर शीघ्रता से भोजन ग्रहण करने वाले अथवा आहार से किसी विशेष अवयव को चाव से खाने वाले, अपनी नांद/खोर से चारे को गिराते हैं। उसके पश्चात् फर्श पर गिरे हुए चारे को खाते हैं। ऐसा करने से चारे में गंदगी शामिल हो जाती है तथा चारे की बर्बादी भी होती है। इस आदत को रोकने के लिए नांद की किनारी पर लोहे का पाईप (गार्ड रेल) लगा दिया जाता है जिससे पशु अपने मुंह से चारे को गिरा नहीं पाता है। इन पाइपों को लगाने से जिन पशुओं को नांद/खोर में बैठने की आदत होती है, वह भी बंद हो जाती है।
- सींग को दीवार से टकराना
नायः भैंसों या कभी-कभी गायों में अपने सींगों को किसी दीवार अथवा खम्भे से टकराने की आदत हो जाती है। ऐसे पशु अक्सर जुगाली के समय खड़े होकर या बैठकर अपने सींग को काफी समय तक टकराते हैं। ऐसा करने से इनमें सींगों के कैंसर की सम्भावना बढ़ जाती है। पशु के सींग दागने से इनसे होने वाली अनेकों घटनाओं से बचा जा सकता है।
असामान्य व्यवहार/बुरी आदतों से पशुओं का बचावः
असामान्य व्यवहार अथवा नापसंद आदतों से पशु का उत्पादन, वृद्धि तथा प्रबंधन प्रभावित होता है और इनसे पशुपालक को आर्थिक हानि होती है। अतः पशुपालक को चाहिए कि इन आदतों का पता चलते ही इनके निवारण के उपाय करने चाहियें। इन व्यवहारों को रोकने हेतु निम्नलिखित उपाय अपनाये जा सकते हैं।
- पशुशाला/पशुओं का बाड़ा उनकी आवश्यकताके अनुरूप बनाना चाहिए। पशुशाला का फर्श आरामदायक होना चाहिए ताकि पशु आराम से बैठकर जुगाली कर सके।
- पशुओं विशेषकर नवजात शिशुओं को एक समूह में निर्धारित संख्या से अधिक न रखें।
- नवजात शिशुओं के मुँह पर छींका लगाकर रखें। पशुओं को संतुलित आहार देना चाहिए तथा आहार में रेशे की निर्धारित मात्रा होनी चाहिए।
- पशुओं को लगातार अधिक समय तक एक ही स्थान पर बंधे नहीं रहने देना चाहिए।
- असामान्य व्यवहार वाले पशु को अलग रखना चाहिए।
- पशुओं को छड़ी से नहीं मारना चाहिए व उनके साथ प्यार से बर्ताव करना चाहिए।
- पशुओं को भरपूर व्यायाम का अवसर मिलना चाहिए।
- पशुशाला की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- पशुओं के स्वास्थ्य की नियमित जांच करानी चाहिए तथा बीमारी होने पर तुरंत उसका उपचार होना चाहिए।