गाय, भैंसों मे गर्भपात क्यों।

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यौवन अवस्था प्राप्त करने के बाद पशु प्रजनन चक्र से गुजरता है और गर्भावस्था को प्राप्त करता है, गर्भावस्था अवधि के दौरान पशुओं का विशेष देखभाल आरै प्रबंधन की आवश्यकता होती है विभिन्न बिमारियाँ गर्भावस्था के दौरान पशुओं को प्रभावित करती है और गर्भावस्था की सामान्य प्रगति को बाधित करती है, जिसमें से गर्भपात एक प्रमुख कारण है। पशुओ में गर्भ धारण के बाद किसी भी अवस्था में भ्रूणकी म्रत्यु हो जाना या किसी करण से गर्भ को फेक देना तो उसे गर्भपात कहते है , गर्भधारणके शुरुआती दिनों में गर्भपात का पता नही चलता है

गाय और भैंसों में गर्भपात के कई कारण होते हैं, , जो मूलतः दो प्रकारों में विभाजित किये जाते हैं:(1) संक्रामक कारण , (2) असंक्रामक कारण

1. संक्रामक कारण: (a)जीवाणु कारण:

क) विब्रिओसिस (ख) ब्रूसेलोसिस (ग) लेप्टोस्पायरोसिस

(घ) लिस्टरियोसिस (ड) तपेदिक क्षय रोग (च) कम्पायलोबैक्टीरियोसिस छ)माइकोप्लाजमोसिस

b. विषाणु कारण:

क) संक्रामक पस्चयुल वल्वोवैजिनाइटिस (आईपीवी)

ख) गोजातीय वायरल डायरिया-म्यूकोजल रोग (बीवीडी-एमडी)

c. क्लैमाइडियल गर्भपात

d. फफूंदी रोग के कारण गर्भपात

e. प्रोटोजोअल कारण:क) ट्राईकोमोनियासिस ख) नीयोस्पोरियोसिस

2. असंक्रामक कारण:

क) सायन, ड्रग्स, धातुएं-आर्सेनिक, तथा नाइट्रेट जहर, और जहरीले पौधे जैसे कि लोको-वीड्स, पाइन वीड्स या अन्य जहरीली खरपतवार

ख) हार्मोनल कारण

ग) पोषण संबंधी कारण

घ) शारीरिक कारण

ङ)आनुबंशिक क्रोमोसोमल

कारण : गर्भपात के कारण बछड़े और दुग्ध उत्पादन का नकुसान होता है जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है और पशुओं में बांझपन की समस्या उत्पन होती है। गर्भपात के संक्रामक कारक एक जानवर से दूसरे में रोगों के प्रसार के लिए जिम्मेदार होते हैं और पशुओं के समुह में गर्भपात के तूफान (एक साथ कई पशुओं में गर्भपात) का कारण बनते हैं। इस प्रकार, गर्भावधि के दौरान जानवरों की देखभाल करना और डेयरी किसानों के लाभ के लिए, गर्भपात को रोकना अति महत्वपूर्ण है।

गर्भपात के मुख्य संक्रामक कारण इस प्रकार के रोग संक्रमण कृत्रिम गर्भाधारण या प्राकृतिक सम्भोग से फैलते हैं।एक विशिष्ट सक्रंमण पुरे समहू को प्रभावित कर सकता हैं।इसमें ब्रुसलोसिस, केम्पाइलोबैक्टेरिओसिस , ट्राइकोमोनीओसिस, आईबीआर — आईपीबी संक्रमण शामिल हैं।

जीवाणु कारण:

क) ब्रूसेलोसिस-

कारण : -यह बीमारी, बैंग की बीमारी, माल्टा बुखार, क्रीमिया बुखार, रॉक बुखार, और जिब्राल्टर बुखार के रूप में भी जानी जाती है। मवेशियों और भैंसों में यह रोग ब्रूसेला अबोरट्स जीवाणु के कारण होता है।

लक्षण: गर्भपात गर्भावस्था की तीसरी तिमाही के दौरान होता है फिर पशु स्थायी वाहक के रूप में कार्य करता है क्योंकि यह जीवाणु पूरे जीवन के लिए पशु के शरीर में बना रहता है और समुह के अन्य जानवरों और मनुष्यों को भी संक्रमण हो सकता हैं।यह एक जूनोटिक ( पशुओं से मनुष्य मैं फैलने ) वाला रोग हैं , संक्रमण का प्रमुख मार्ग संक्रमित भोजन और पानी के माध्यम से होता हैं । सक्रंमण का प्रमुख श्रोत गर्भपात पीड़ित पशु होता हैं, पीड़ित पशु होता हैं जिनसे भू्रण, नाल, भ्रूणतरल पदार्थ और दूध अत्याधिक दूषित होते हैं जो दूसरे पशुओं तक रोग फैलाते हैं। यदि कच्चे दूध का सेवन किया जाता है तो मनुष्यों में भी बीमारी हो जाती है। यह जीवाणु बरकरार त्वचा के माध्यम से भी शरीर में घुस सकता है। पशुओं में प्राकृतिक संभोग के कारण यह रोग नहीं फैलता है क्योंकि गर्मी के समय योनि की दीवार बहुरेखित स्तरीकृत होती है, इसलिए जीवाणु प्रवेश नहीं कर सकता है और दूसरा, यह जीव गैर गतिशील भी होता है। कृत्रिम गर्भाधान में वीर्य को सीधे गर्भाशय में डाला जाता है और यदि वीर्य ब्रूसेला जीवाणु से संक्रमित होता है तो संक्रमण का कारण बनता है। इसके बाद, यह प्लेसेंटा (नाल/जेर) की सूजन का कारण बनता है और बाद में गर्भपात होता है। गर्भपात के कुछ दिनों के बाद, जीव गर्भाशय और गर्भाशय के निर्वहन से गायब हो जाते हैं और लसीका (लिम्फ) नोड्स में स्थानीयकृत हो जाते हैं।

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रोग के मुख्य लक्षणों में गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में गर्भपात एवं गर्भपात के सभी मामलों में जेर का रुकना शामिल हैं। जेर सूखी, चमड़े जैसी और बीच-बीच में पीले रंग की दिखाई देती है। अधिकांश मामलों में गर्भपात के तुरंत बाद भ्रूणमर जाता है या मरा हुआ पैदा होता है\

निदान:- पुराना रिकॉर्ड और लक्षण

– अंतिम तिमाही में गर्भपात और जेर का रुकना

– दूध रिंग टेस्ट यह टेस्ट समुह में ब्रुसेलोसिस के निदान के लिए उपयोग किया जाता है।

-सीरम एग्लूटीनेशन टेस्ट

रोकथाम और नियंत्रण: -पशुओं में संक्रमण के उपरांत इस बीमारी का कोई इलाज नही है लेकिन इसे फैलने से रोका जा सकता है।

– इसे उचित स्वास्थ्य परिस्थितियों को बनाए रखने से रोका जा सकता है।

– टेस्ट और हटाने या संक्रमित पशुओं के अलगाव की नीति

– ब्रूसेला एस-19 लाईब ठीके के साथ टीकाकरण करके , नर और गर्भवती पशुओं को टीका नहीं लगाया जाता है। यह गर्भवती जानवरों में गर्भपात और पुरुषों में वृषण की सूजन का कारण हो सकता है।

लेप्टोस्पायरोसिस

कारण: – लेप्टोस्पायरोसिस मवेशियों और अन्य स्तनधारियों का एक महत्वपूर्ण जूनोटिक (पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाला) रोग है और लेप्टोस्पाइरा नाम के जीवाणु के कारण होता है।

लक्षण: – संक्रमण त्वचा, आँखों, मुंह या नाक की झिल्ली के माध्यम से प्रवेश कर सकते हैं। यह प्राकृतिक सम्भोगिक क्रिया के बाद वीर्य में प्रसारित होता है। जीवाणु विशेष रूप से मूत्र में स्त्रावित होता है और जो संक्रमण के स्रोत के रूप में कार्य करता है। हेपेटाइटिस, नेफ्रैटिस (गुर्दे का संक्रमण) और लहु मुतना हो सकता है तथा गर्भपात गर्भावस्था के 6 महीने के बाद सबसे अधिक होता है।

निदान: – गाय एवं भैंस में लेप्टोस्पायरोसिस का निदान ब्रूसेलोसिस से मुश्किल होता है।

-पशु विकृति विज्ञान विशेषज्ञ की सलाह से निदान सरल होता है।

-नमूनों की सिल्वर स्टैनिंग निदान मैं मदद कर सकता हैं।

– कोशिका समागमन परीक्षण (केपिलरी टेस्ट) निदान के लिए प्रयोग किया जाता है।

उपचार:- लेप्टोस्पायरोसिस के नियंत्रण और उपचार को स्वच्छता, टीकाकरण और एंटीबायोटिक उपचार द्वारा पूरा किया जा सकता है।

लेपटोंस्पाइरोसिस के तीव्र चरण के उपसार में एंटीबायोटिक दवाओं की बड़ी खुराक पेनिसिलिन (3 मिलियन यूनिट), और स्ट्रेप्टोमाइसिन (5 ग्राम) सहित दो बार प्रतिदिन शामिल है।

लिस्टरियोसिस:

कारण : – लिस्टिरिया मोनोसाइटॉजिन्स जीवाणु मुख्य रूप से भेड़ और मवेशियों में केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का रोगजनक है जिसमे यह एन्सफेलाइटिस का कारण बनता है।लिस्टिरिया मोनोसाइटॉजिन्स वातावरण में सर्वव्यापी है। मिट्टी, सीवेज का प्रवाह, पशु बाडा़ आरै खाद्य पदार्था मेंं यह मौजूद रहता हैं।

लक्षण : – गर्भपात के मामलों में संक्रमण का स्रोत घास के साइलेज है जो मोटे तौर पर मिट्टी से दूषित होती है और कम सूखे पदार्थ की सामग्री होती है या अपर्याप्त किण्वन से गुजर रहा होता है। गर्भपात आम तौर पर गर्भावस्था के अंतिम तीन माहों में होते हैं। लिस्टरियोसिस से ग्रसित पशु को एक तरफ का लकवा रोग हो जाता है जिसकी वजह से पशु का एक तरफ का कान व आंख काम नहीं करते हैं तथा पशु खड़ा रहकर एक तरफ से चक्कर लगाता रहता है।

निदान:- गर्भावस्था के अंतिम काल में गर्भपात होना।

– बच्चे के दिमाग में फोड़ा मिलना।

रोकथाम एवम उपचार:- साइलेज को सही प्रकार से बनायें।

– रोगी पशु को दुसरे पशुओं से अलग रखने।

– रोगी पशु का उपचार टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक से करवायें।

तपेदिक क्षय रोग (टीबी)

कारण : – यह मायकोबैक्टीरियम बोविस नामक जीवाणु के कारण होता है। यह मुख्य रूप से संक्रमित भोजन या पानी से संचारित होता है। यह प्राकृतिक संभोग के द्वारा भी संचारित होता है।

लक्षण : – संक्रमण के बाद, पशु काफी कमजोर हो जाता है और उसकी पसलियाँ दिखने लगती हैं। गर्भाशय से पीले रंग का स्त्राव देखा जाता हैं।क्षय रागे से गाय एव भसै दोनों मैं गर्भपात गर्भावस्ता के किसी भी कल मैं हो सकता हैं।

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रोकथाम एव नियंत्रण :- कोई इलाज नहीं है।

– इसे केवल उचित स्वच्छ उपायों को अपनाने से रोका जा सकता है।

– ग्रसित पशु को बाकी पशुओं से अलग रखना चाहिये।

कम्पायलोबैक्टीरियोसिस (विब्रिओसिस):

कारण:- यह कैम्पय्लोबक्टेर फीटस उपप्रजाति वेनेरेलिस नामक जीवाणु की वजह से होने वाली मवेशी की एक मस्तिष्क की बीमारी है। सांड इस रोग के लिए स्थायी वाहक का काम करते हैं। वे संभोग के दौरान मादा से मादा पशु को संचारित करते हैं। यह जीवाणु मादा जननांग, नाल और सांड के वीर्य में पाया जाता है। यह संक्रमित सांड से प्राप्त वीर्य के कृत्रिम गर्भाधान द्वारा भी मादा पशुओं में फैल सकता है।

लक्षण : – जब पशुओं के समुह में संक्रमण होता है, गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में भू्रणिक मृत्यु के बाद मादा गर्मी/मद अवस्था में लौट जाती है जो गर्मी/मद के 25 दिनों से अधिक समय पर अनियमित होती है

– संक्रमित सांड से पहली बार ब्याने वाली मादाओं में कम गर्भाधान की दर और गर्मी मद पर अनियमित काल बाद वापसी होती है। इस रोग में प्रारंभिक भ्रूणमृत्यु, बांझपन और लंबे समय तक गर्भ ना ठहरना मुख्य लक्षण होते हैं।

निदान : – लम्बे समय से गायों के समुह में बाँझपन

– 3–4 महीने पर गर्भपात

– एलाइजा टेस्ट

– नमूनों से जीवाणु की लेबोरेट्री में पहचान

रोकथाम एव उपचार : -ग्रसित पशुओं को 4 -6 महीने तक प्रजनन से आराम ।

– झुण्ड में नये व युवा सांड का उपयोग।

– सांड की लगातार 6 महीने के अन्तराल पर जाँच।

माइकोप्लाजमोसिस:

कारणः – यह माइकोप्लाज्मा बोवीजिनेटालियम जीवाणु के कारण होता है और संक्रमित वीर्य के साथ कृत्रिम गर्भाधान द्वारा प्रेषित होता है। इस रोग को दानेदार या नोडयुलर वुल्वो-वैजीनाटाइटिस के रूप में भी जाना जाता है।

लक्षणः – योनि मैं बिशेस रूप से भगशेफ के आसपास 1 -3 मि.मी. व्यास के सक्रंमण फोड़ों का गठन हो जाता हैं. पशु योनि परीक्षण के साथ व संभोग के बाद दर्द महसूस करते हैं। इस बीमारी में गर्भपात गर्भावस्था के 5 से 7 महीनों के दौरान होता है।

रोकथाम: – प्राकृतिक संभोग से बचने और रोग मुक्त तथा एंटीबायोटिक उपचारित वीर्य के साथ कृत्रिम गर्भाधान करने से इस रोग को रोका जा सकता है

विषाणु कारण:

संक्रामक पस्चयुलर वल्वोवैजिनाइटिस (आईपीवी)

कारण : – यह बोवाइन हर्पीस वायरस-1 (बीएचवी-1) के कारण होता है। यह मवेशियों के एक तीव्र श्वसन रोग का कारण बनता है। जननांग प्रणाली की बीमारी संक्रामक पस्चयुलर वल्वोवैजिनाइटिस (आईपीवी), वैसिक्युलर वैनियरयल रोग और कॉयटल वैसिक्युलर एकशनथीमा के रूप में जाना जाता है। बीएचवी -1 बीमारी के जननांग प्रकार के साथ साथ श्व्सन रोग का भी कारण बनता हैं, हालांकि बीमारी के दोनों रूप आमतौर पर स्वतंत्र रूप से होते हैं बीएचवी -1 भी गर्भपात का कारण बनता हैं, जो सामान्यत: बीमारी के जननांग रूप से श्व्सन के बाद होता हैं.

लक्षण: – बीएचवी-1 प्रथम बार ग्रसित होने वाली मादाओं और गायों में बांझपन के साथ भी जुड़ा हुआ है। जननांग रूप गर्मी के समय मिलान, दूिषत बाडा़ आरै आपसी शारीरिक लड़ाई द्वारा संचारित होता है। गर्भपात 4 महीने से लेकर 8 महीने की गर्भावधि तक होता है।

रोकथाम:- जननांग घाव स्वत ठीक हो जाते हैं, इसलिए कोई इलाज आवश्यक नहीं है।

– संक्रमित जानवरों को पृथक किया जाना चाहिए।

– मादा पशुओं को ६ महीने की आयु में जीन एटीन्यएू टडे वैक्सीन के साथ टीका लगाया जाना चाहिए, इसके बाद वार्षिक टीकाकरण किया जाना चाहिए।

– गर्भवती पशुओं को किल्ड वैक्सीन के साथ टीका लगाया जाना चाहिए।

गोजातीय वायरल डायरिया-म्यूकोजल रोग (बीवीडी-एमडी)

कारण: – बीवीडी विषाणु एक पेस्टी विषाणु है।

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लक्षण: – रोग की पहचान तेज बुखार, पानी जैसे दस्त, नाक से स्राव, मुँह के छाले और लंगड़ापन द्वारा की जाती है। बीवीडी वायरस से दूषित बीर्य के साथ काम गर्भधारण दर होती हैं. गर्भपात गर्भबस्था के किसी भी स्तर पर हो सकता हैं. अधिकांश नुकशान तीसरे तिमाही से पहले होता हैं. गर्भा के ५-६ महीने से दिमाग और आँख के जन्मजात असामान्यताओं वाले बछड़ों का गर्भपात या जन्म हो सकता हैं.

क्लैमाइडियल गर्भपात

कारण :-क्लैमाइडिया सितासाईं नर और मादा जननांग मार्ग दोनों का एक रोगाणु है। प्रभावित सांड के वीर्य में कभी- कभी जीव पाया जाता है। विशेष रूप से, गर्भपात नैदानिक संकेतों के बिना गर्भ के अंतिम तिमाही के दौरान होता है। गर्भपात मौसमी होते हैं।

लक्षण : – गर्भपात के लिए जोखिम के समय पशुओं को 6 महीने से कम गर्भवती होना चाहिए। जेर के बीच कुछ क्षेत्रों का मोटा होना, चमड़े और लाल सफदे अपारदर्शी मलिनकरण और एडिमा (सूजना) काफी आम है। एक बार गर्भपात होने के बाद पशु प्रतिरक्षा करता है, इसलिए सबसे बड़ा जोखिम पहली बार ब्याने वाली मवेशियों को होता है।

फफूंदी रोग के कारण गर्भपात

कारण : – यह म्यूकोर, एब्सिडिया, राइजापेस आरै एस्परजिलस जैसे कवक, फफूंदी के कारण होता है। यह आमतौर पर सर्दी के मौसम के दौरान घास या साइलेज खाने के कारण होता है क्योंकि साइलेज और घास में कवक बहुत अच्छी तरह से पनपती है।

लक्षण : – सक्रंमण होने पर गर्भबस्था के ४-९ महीनों के दौरान यहं गर्भपात का करण बनता हैं. गर्भपात के उपरांत चमड़ी पर दाद के आकर के छल्ले प्रतीत होती हैं.

निदान: – भ्रूणया नाल से फंगल कवक हाइफा के प्रदर्शन से निदान किया जा सकता है।

उपचार: – इसे माईकोस्टाटिन देकर इलाज किया जा सकता है।

प्रोटोजोअल कारण

ट्राईकोमोनियासिस

कारण: – यह एक यौन रोग है जो संभोग के दौरान नर से मादाओं में संचारित होता है। कारक जीव ट्राईकोमोनास फीटस नमक एक परजीवी है।

लक्षण:- यह गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में भ्रूणमृत्यु का कारण बनता है जिससे मादा पशु गर्मी/मद को अनियमित समय बाद लौटता है, हालांकि कुछ प्रदर्शन सामान्य या छोटा भी होता हैं। यह रोग प्रारंभिक भ्रूण मृत्यु दर, प्रारंभिक गर्भपात (2–4 महीने), गर्भाशय की सूजन और बांझपन से जुड़ा होता है।

निदानः- ट्राईकोमोनियासिस का एक सकारात्मक निदान, मादा पशुओं से प्राप्त नमूनों से, गर्भस्था भ्रूणऔर पेट के ऊतकों से किया जाता है। नमूने का सबसे अच्छा स्रोत भ्रूणझिल्ली या एक गर्भपात हुए भ्रूणके अंगों, विशेषकर पेट है।

उपचार व रोकथाम:- कृत्रिम गर्भाधान द्वारा मादा पशुओ का गर्भित करवाये

– पुराने बैलों की जगह युवा नर पशुओं का उपयोग करना।

-रोग पीड़ित मादा पशुओं को 4–6 महीने के लिए प्रजनन से आराम देना।

नीयोस्पोरियोसिस:

कारण: – निओस्पोरा कैनाइनम एक हाल ही में खोजा गया कोशिका में पाया जाने वाला, कोक्सीडियन परजीवी है। यह गर्भपात या फिर दुनिया भर में मवेशियों, भेड़, बकरी, घोड़े और हिरण में नवजात शिशुओं में नाडी तथा मासपेशियों में पक्षाघात पैदा करने के लिए जाना जाता है।

रोकथाम : – इस बीमारी में भ्रूण को नुकसान, भ्रूण ममीकरण आदि विशेषता है। अधिकांश मामलों में गर्भपात गर्भ के 5–6 महीने में होता है। वर्तमान में नीयोस्पोरियासिस के लिए कोई प्रभावी उपचार नहीं है। रोकथाम के लिए, कुत्तों की पशु बाड़े या चारे तक पहुँच नहीं होनी चाहिये क्योंकि यह रोग कुत्ते द्वारा आगे फैलता है। भोजन के दूषित होने से बचाने के लिए जंगली पक्षियों, आंगतुकों और अन्य जंगली जानवरों को पशुओं के चारे तक नही पहुँचने देना चाहिए।

लेखक -डॉ. मधु शिवहरे , डॉ. माधुरी धुर्वे , डॉ. दीपिका, राहुल चौरसिया

वेटरनरी कॉलेज , महु (म.प्र.)

संकलन – सबीन भोगरा, पशुधन विशेषज्ञ, हरियाणा

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