दुधारू पशुओं में गर्भपात के कारण एवं इससे बचाव के उपाय
डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चोमूहां मथुरा
डेयरी के व्यवसाय में पशु के प्रजनन पर सब कुछ निर्भर करता है। यदि प्रजनन सही है तो पशु गर्भ धारण करेगा, बच्चा देगा तथा दुग्ध उत्पादन करेगा। दुधारू पशु का समय पर गर्भधारण करना एवं उस गर्भ को पूरे गर्भकाल तक ले जाना और अंत में सही तरीके से बच्चा देना एवं जेर डालना डेयरी व्यवसाय की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। यदि गर्भपात हो जाए या पशु समय से पहले बच्चा दे दे तो वह एक घाटे का सौदा होता है ।
गर्भपात: यदि किसी गर्भित पशु में गर्भकाल पूरा होने से पहले,ही भ्रूण या मृत बच्चे का पैदा होना या पैदा होते ही बच्चे का मर जाना गर्भपात कहलाता है।
पशुओं में गर्भपात की समस्या पशुपालकों की अर्थव्यवस्था पर बहुआयामी नकारात्मक प्रभाव डालती है जैसे- भविष्य की पीढ़ी की हानि, 2 बच्चों के जन्म के मध्य अधिक समय अंतराल, दुग्ध उत्पादन में कमी, साथ ही पशुओं में बीमारी फैलने का डर जो काफी हानिकारक हो सकता है और सबसे बड़ी समस्या पशुपालकों के लाभ में अत्याधिक कमी।
पशुपालकों को गर्भपात के मुख्य कारणों तथा उनसे निजात पाने के उपायों की मूलभूत जानकारी होना अति आवश्यक है। इससे वे गर्भपात की समस्या से होने वाले घाटे से बच सकते हैं।
पशुओं में गर्भपात के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
संक्रामक कारण:
१. जीवाणुओं जनित कारण: जैसे ब्रूसेलोसिस,
लेप्टोंस्पाईरोसिस, कैंपाइलोबैक्टीरियोसिस, लिस्टीरियोसिस, ट्यूबरकुलोसिस आदि मुख्य हैं इनके अतिरिक्त अतिरिक्त अन्य जीवाणुओं के संक्रमण में अधिक बुखार लगातार रहने पर भी पशुओं में गर्भपात हो सकता है।
२. विषाणुओं जनित कारण:
मुख्य रूप से इनफेक्शियस बोवाइन राइनोट्रेकियाइटिस/ आई.बी.आर.-आई.पी.वी.,
इसके अतिरिक्त खुरपका मुंह पका /एफ.एम.डी.,ग्रेन्यूलर वेजिनाइटिस, बोवाइन वायरल डायरिया, एपीजूटिक बोवाइन वायरल डायरिया, एपीजूटिक बोवाइन अबॉर्शन, रिफ्टवैली फीवर, ब्लूटंग विषाणु,पैराइनफ्लुएंजा विषाणु आदि से भी पशुओं में गर्भपात हो सकता है ।
३. कवक या फफूंदी जनित:
कवक की एस्परजिलस, मुकोरेलस एवं ईस्ट प्रजातियों से पशुओं में गर्भपात हो सकता है।
४. प्रोटोजोआ जनित:
ट्राई-ट्राइकोंमोनिऐसिस, टॉक्सोप्लास्मोसिस,ट्रिपनोसोमिएसिस, तथा एनाप्लास्मोसिस आदि रोगों से भी पशुओं में गर्भपात होता है।
असंक्रामक कारण:
१ हानिकारक रसायन एवं औषधि द्वारा:
इसमें अर्गट, क्लोरिनेटेड नेप्थलीनस, तथा आरसैनिक/ संखिया आदि मुख्य है।
२.हारमोंस द्वारा:
गर्भकाल में एस्ट्रोजनस,ग्लूकोकॉर्टिकॉइडस तथा प्रोस्टाग्लैंडिन हारमोंस के उपयोग से गर्भपात हो जाता है। प्रोजेस्ट्रोन नामक हार्मोन की कमी से भी गर्भपात होता है।
३. पोषण द्वारा:
पशुओं के भूखे रहने, कुपोषण विटामिन ए तथा आयोडीन की कमी से गर्भपात हो सकता है।
४. अनुवांशिक कारणों द्वारा:
गर्भ के अंदर बच्चे में दोष आ जाने से भी पशुओं में गर्भपात हो सकता है।
५. आघात एवं अन्य भौतिक कारणों द्वारा:
गर्भित पशुओं की डूसिंग, गर्भित गर्भाशय में कृत्रिम रूप से वीर्य अथवा अन्य पदार्थों का प्रवेश कराना, गर्भ आवरण का झटके अथवा आघात आदि से फटना, यातायात के कारण पशुओं को अधिक इधर-उधर भगाना, ऊंची नीची जमीन पर भगाना व अन्य बीमारियों से कमजोरी थकावट एवं तनाव का होना आदि कारणों से भी पशुओं में गर्भपात होने की संभावनाएं अत्यधिक बढ़ जाती हैं।
६. अन्य कारणों द्वारा:
कभी-कभी असामान्य कारणों से भी गर्भपात होने की संभावनाएं रहती हैं जैसे एलर्जी शॉक, फाइटो एस्ट्रोजनयुक्त जहरीली घास खाने से तथा गर्भाशय के ट्यूमर आदि।
यदि कुछ मूलभूत बातों पर ध्यान दिया जाए तो गर्भपात की दर को अत्याधिक कम किया जा सकता है व अन्य पशुओं में बीमारी फैलने से रोका जा सकता है। पशुओं से मानव में आने वाली बीमारियों से बचाव हो सकता है एवं गर्भपात से होने
वाली हानियों से बचा जा सकता है।
गर्भपात से बचाव के मुख्य उपाय:
१. पशु चिकित्सक के निर्देशानुसार समय-समय पर सूक्ष्मजीवों के प्रति टीकाकरण करवाएं। ब्रूसेलोसिस जो कि गर्भपात का एक मुख्य जीवाणु जनित कारण है, जिसमें गर्भपात गर्भकाल के अंतिम त्रैमास में होता है से बचने के लिए कॉटन स्ट्रेन-19, नामक टीका 4 से 8 माह की उम्र में केवल मादा बछियों एवं कटडि़यों को लगाई जाती है। इस वैक्सीन के लगाने से जीवन भर लगभग (5 बयॉत तक) के लिए इस रोग से होने वाले गर्भपात से बचा जा सकता है। यह टीका कभी भी नर पशु (बछड़े या कटड़े) में नहीं लगवाना चाहिए।
२. पशुओं के रहने का स्थान साफ एवं हवादार होना चाहिए। सूर्य की रोशनी पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए।
३. यदि किसी पशु में गर्भपात होने की संभावना प्रतीत हो रही हो तो उसे तुरंत अलग स्थान पर रखना चाहिए।
४. बच्चा जनने वाले पशु को भी , ब्याने से 1 सप्ताह पहले से ही पृथक स्थान पर रखना चाहिए।
५.गर्भपात द्वारा प्राप्त बच्चे, योनि स्राव तथा जेर की झिल्ली आदि को सावधानीपूर्वक या तो जला देना चाहिए अथवा दूर स्थान पर गड्ढा खोदकर गाड़ देना चाहिए।
६. दूषित जगह को बार बार साफ करना चाहिए तथा उस पर जीवाणु नाशक दवा का प्रयोग करना चाहिए।
७. प्रयोग में लाए गए यंत्रों, बर्तनों आदि को भी जीवाणु नाशक दवाओं से धोकर रखना चाहिए।
८. पशु सेवक को भी अपनी सफाई एवं बचाव का ध्यान रखना चाहिए। इस कार्य के लिए नियुक्त पशु सेवक को पशुशाला के अन्य स्थानों पर नहीं जाना चाहिए।
९. सामान्य प्रसव के , उपरांत पशु को 60 दिनों का लैंगिक विश्राम दिया जाना चाहिए। गर्भपात की समस्या होने पर आने वाले दो मदकालों मैं पशु का गर्भाधान न कराया जाए तो यह अति उत्तम होगा।
१०. बाहरी पशुओं का पशुशाला में प्रवेश निषेध होना चाहिए। इससे बीमारी आने का भय बना रहता है।
११. पशुओं को पोष्टिक एवं संतुलित आहार देना चाहिए। पशुओं को हमेशा कुपोषण से बचा कर रखें। दाने में 2% खनिज लवण एवं 1% नमक अवश्य मिलाना चाहिए।
१२. आयोडीन की कमी वाले क्षेत्रों में सादे नमक के स्थान पर आयोडीन युक्त नमक का प्रयोग करना चाहिए।
१३. औषधियों का उपयोग नजदीकी पशु चिकित्सक की सलाह पर ही करना चाहिए।
१४. कुछ पौधों में फाइटोएस्ट्रोजन से मिलते जुलते रसायन पाए जाते हैं जो कि गर्भपात कराने में सक्षम है जैसे अल्फा अल्फा। गर्भित पशु के चारे में इन घासों का प्रयोग ना करें। फफूंद वाला, कटा फटा,बारिश एवं मौसम की मार से खराब हुआ निम्न कोटि का चारा पशुओं को ना खिलाए इसमें भी फाइटोएस्ट्रोजन होता है।
१५. पशुओं को गर्भकाल के दौरान कोई भी औषधि देने अथवा टीकाकरण से पहले पशु चिकित्सक से अवश्य सलाह लें। कभी-कभी किसी अन्य बीमारी के लिए दी जाने वाली औषधि भी गर्भपात का कारण बन सकती है।
१६. उचित संतुलित आहार दूध एवं शारीरिक भार के अनुसार , आखिरी 2 महीनों में दूध ना निकालना। गर्भकाल काल के अंतिम डेढ़ महीने कैल्शियम की मात्रा कम कर दें।
नोट: जीवन में एक बार 4 से 8 माह की बछियों एवं कटडि़यों, को टीका लगवाएं। संक्रामक गर्भपात से आजीवन छुटकारा पाएं।।