Acidosis (अम्लता)
पशुओं मे दुर्घटनावश अत्यधिक मात्रा मे कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ खाने के कारण उनका सही पाचन नही हो पाता,फलस्वरुप किण्वन क्रिया होती है ,जिससे रूमन की pH कम अर्थात अम्लीय (acidic) हो जाती है एवं रूमन का तरल अतिसांद्रित (hypertonic ruminal fluid) हो जाता है, जिससे रूमन के तरल की मात्रा और बढ़ जाती है ,बाद मे रुमन की गति भी बंद हो जाती है ! इसे निम्न नामों से भी जाना जाता है – Ruminal overload , acid indigestion , acute carbohydrate engorgement आदि !
कारण (etiology) :
इस रोग के रोगकारक निम्न प्रकार हो सकते है –
* अधिक मात्रा मे कार्बोहाइड्रेटयुक्त खाद्य पदार्थ (carbohydrate rich feed),जैसे – अनाज , गेहूँ , जौ , जई , चावल , चुकन्दर , आलु , चीनी का घोल इत्यादि खाने के कारण !
* शादियों मे बचा-खुचा प्राणी द्वारा खाने के कारण !
* सांद्रित पदार्थ की मात्रा अथवा गुणवत्ता मे अचानक परिवर्तन के कारण !
* सामान्य खाद्य पदार्थ खाने वाले प्राणी को अचानक अधिक मात्रा मे दाने खिलाने से !
* दाने की गुणवत्ता अचानक बदलने के कारण ,जैसे – ज्वार की बजाय गेहूँ देना शुरु करना !
* सड़ा हुआ साइलेज खिलाने के कारण !
लक्षण (symptoms) :
1. रोगी पशु अचानक खाना-पीना एकदम कम कर देता है तथा धीरे-धीरे वह खाना-पीना बंद कर देता है !
2. रोगी पशु बहुत उदास व सुस्त हो जाता है एवं चलने-फिरने मे भी असमर्थ हो जाता है !
3. रुमन की गति कम हो जाती है ,जो बाद मे बिल्कुल बंद हो जाती है
4 . रोगी प्राणी का पेट शुरुआत मे एक तरफ से व बाद मे दोनो तरफ से फूला हुआ दिखाई देता है !
5.रूमन मे पानी भरा हुआ महसूस होता है (fluid splashing sound)
6. रोगी प्राणी के पेट मे दर्द एवं सांस लेने मे परेशानी के लक्षण दिखाई देते है !
7. रोगी पशु को अर्द्धतरल से पानी जैसे दस्त हो सकते है एवं मल का रंग रोगी पशु द्वारा ग्रहण किए गए पदार्थ पर निर्भर करता है ! अनाज खाए हुए प्राणी का मल कठोर ,गहरे रंग का , श्लेष्मयुक्त व कम मात्रा मे होता है जबकी सड़ा – गला भोजन ग्रहण किए प्राणी का मल कम मात्रा मे व अक्सर दुर्गन्धयुक्त तरल के रूप मे होता है !
8. रोग बढ़ने पर मूत्र निष्कासन की मात्रा मे कमी की स्थिती उत्पन्न हो सकती है !
9. गम्भीर स्थिती मे रोगी प्राणी तंत्रिकीय लक्षण प्रदर्शित कर सकता है !
10. रोग के अन्य परिणामो मे लंगड़ापन , foetal peritonitis एवं गर्भपात हो सकते है !
Diagnosis and clinical pathology :
इस रोग की पहचान रोग के लक्षणों व खान-पान के इतिहास की जानकारी (history) से की जा सकती है ! इसके अलावा rumen fluid की pH जाँच !
विभेदीय पहचान (differential diagnosis) :
√ milk fever
√ peritonitis
√ simple indigestion
√ traumatic reticuloperitonitis etc.
उपचार (treatment) :
* इस रोग के उपचार के लिए सबसे पहले रोगी पशु का पानी कुछ समय के लिए (8-12 घण्टे) रोक देना चाहिए !इसके साथ ही उसे अच्छी गुणवत्ता का सूखा चारा खिलाना चाहिए व सम्भव हो तो समुचित व्यायाम भी उपलब्ध करवाना चाहिए !
* purgative के रूप मे magnesium sulphate दिया चाहिए (मात्रा पशु जाती पर निर्भर करती है )
* ruminal pH सही करने हेतु Sodium bicarbonate या Magnesium carbonate मुँह से देने चाहिए !
* Sodium bicarbonate का 2.5-5% विलयन आवश्यकतानुसार I/v दिया जाना चाहिए ,लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि इसे अधिक नही दिया जाए ताकि इससे क्षारीयता (alkalosis) उत्पन्न नही हो ! इसके साथ ही Ringer’s lactate (RL) भी काम मे लिया जा सकता है * रोगी पशु को मुख मार्ग से प्रतिजैविक औषधिया ,जैसे – Amoxycillin (20 mg./kg) , oxytetracycline (20mg./kg) इत्यादि देनी चाहिए जिससे लैक्टिक अम्ल निर्माण करने वाले जीवाणुओ वृद्धि नियंत्रित हो सके !
* रोगी पशु के शरीर मे निर्जलीकरण को दूर करने एवं रूधिर की मात्रा सही करने हेतु Dextrose saline solution 5% I/v देना चाहिए !
* stomach tube व probang मुँह मार्ग से रूमन मे डाल कर ruminal fluid को बार निकाला जा सकता है * इसके अलावा रोगी प्राणी की स्थिती के अनुसार उसे सहारात्मक व लक्षणात्मक उपचार e.g. Antihistamine drug , vit-B complex , Corticosteroids , NSAIDs भी उपलब्ध कराना चाहिए !