अधिक दुग्ध उत्पादन हेतु गर्भित एवं नवजात पशुओं की देखभाल एवं प्रबन्धन

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अधिक दुग्ध उत्पादन हेतु गर्भित एवं नवजात पशुओं की देखभाल एवं प्रबन्धन

*डा0 एस.एस. कश्यप, **डा0 के.डी. सिंह एवं **डा0 विशुद्धानन्द

*विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केन्द्र, संत कबीर नगर
**सहायक प्राध्यापक, पशुधन प्रक्षेत्र विभाग, पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय
आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज-अयोध्या (उ0प्र0)

गर्भावस्था में पशुओं की देखभाल अन्य पशुओं की अपेक्षा अधिक करनी पड़ती है। गर्भित होने के पश्चात् एक गाय लगभग 9 महीने 9 दिन तथा भैंस 10 महीने 10 दिन में बच्चा देती है।

पशु के गर्भित होने से लेकर ब्याने तक सामान्यतः निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिये।

 गर्भित पशु को शान्त वातावरण में रखा जाऐ।
 पशु को केवल आवश्यक साधारण व्यायाम ही कराया जाए, न उसे दौड़ाया जाए न अन्य पशुओं द्वारा उसे परेशान किया जाए।
 गर्भित पशु को नियमित रूप से अच्छे चारागाह में भेजा जाए।
 ब्याने की अनुमानित तिथि से 2 माह पूर्व से पशु का दूध लेना बन्द कर देना चाहिये तथा उसके दाने में वृद्धि कर देनी चाहिये, यह वृद्धि दूध देते समय की आधी होनी चाहिये।
 दाना सुपाच्य एवं स्वादिष्ट होना चाहिये, भीगा या चिपचिपा नहीं।
 एक गर्भित गाय/भैंस को साधारणतया 30-35 किग्रा0 हरा चार, 3-4 किग्रा0 सूखा चार (भूसा इत्यादि), 2-3 किग्रा0 दाना एवं 50 ग्राम नमक प्रतिदन दिया जाना चाहिये।
 यदि पशु को मुख्य रूप से सूखे चारे पर रखना है तो उसे 5-8 किग्रा० भूसा और 5-10 किग्रा० हरा चारा दिया जाना चाहिये।
 वर्षा ऋतु में लोबिया+ मक्का का हरा चारा अथवा लोबिया+ज्वार की कुट्टी का मिश्रण उत्तम रहता है।
 ब्याने के लगभग 6 सप्ताह पूर्व पशु की विशेष खिलाई-पिलाई आवश्यक होती है।
 पशु के ब्याने के 15 दिन पूर्व उसे अन्य पशुओं से अलग कर दिया जाना चाहिये।
 जिन पशुओं के ब्याने के पूर्व दूध उतर आता है उन्हें ब्याने के पहले नहीं दुहना चाहिये, इससे गर्भकाल बढ़ जाता है तथा ब्याने की प्रक्रिया कष्टकारी हो सकती है।
 पशु को ब्याने के समय शान्त वातावरण में स्वच्छ एवं बिछावनयुक्त स्थान में रखना चाहिये।
 पशु को यथा सम्भव प्रतिकूल मौसम से सुरक्षित रखना चाहिये।
 ब्याने के पश्चात बछड़े की नाल को काट कर उस पर टिंक्चर आयोडीन लगा देना चाहिये।
 शिशु को गुनगुने पानी में भीगे हुए तौलिए से साफ करना चाहिये।
 नवजात शिशु के नथुने एवं मुँह को साफ करके कोलस्ट्रम पिलाना चाहिये।
 ब्याने के 2-4 घण्टे के पश्चात् जेर स्वतः निकल जाती है किन्तु यदि 8 घण्टे तक भी जेर स्वतः न निकल तो उसे निकालने के उपाय करने चाहिये।
 जेर निकलने पर इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि उसे पशु खा न ले, जेर को गहरे गड्ढे में गाड़ देना चाहिये।
 ब्याने के स्थान (Calving pen) की सफाई फिनायल के घोल से समुचित रूप से करनी चाहिये।
 अधिक दूध देने वाले (Heavy yielder) पशुओं से एक बार में पूरी खीस (कोलस्ट्रम) न निकालें बल्कि थोड़ा-थोड़ा करके दिन में 3-4 बार निकालें। एक बार में पूरी खीस निकालने से मिल्क फीवर की आशंका होती है।
 तुरन्त ब्याए हुए पशु को गेहूँ का दलिया, गुड़, सोंठ एवं अजवाइन आदि मिलाकर हल्का पका कर खिलाना चाहिये।
 पीने हेतु गुनगुना पानी इच्छानुसार देना चाहिये।

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गर्भावस्था में आहार व्यवस्था:

o गर्भित गाय के निर्वाह एवं उत्पादन के ऊपर एवं भ्रूण के विकास हेतु (गर्भित होने के 5-6 माह बाद) 0.14 किलो पाचक प्रोटीन (D.C.P.), 0.7 किग्रा0 सम्पूर्ण पाचक तत्व (T.D.N.) 12 ग्राम कैल्सियम, 7 ग्राम फास्फोरस तथा 30 मिग्रा0 बिटामिन ’ए’ मिलना चाहिये।
o उपरोक्त आवश्यकता 1.5 किग्रा0 अच्छा पौष्टिक मिश्रण देने से पूरी हो जाती है एवं साथ में दाने में 2 प्रतिशत कैल्शियम कार्बोनेट और मिला दिया जाता है।
o यदि इस अवधि में गाय दूध दे रही हो तो उसका दूध सुखा देना चाहिये।
o गर्भित गाय के ब्याने के एक या दो सप्ताह पूर्व चोकर तथा अलसी की खली दे कर दाने की मात्रा बढ़ा देनी चाहिये।
o पशु के ब्याने के पश्चात् तुरन्त कार्बोहाइड्रेट युक्त चारा खिलाना चाहिये।
o ब्याने के पश्चात् 3-4 दिन तक तैलीय खली (Oil cakes) नहीं देनी चाहिये।
o दाने की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिये जिससे एक या दो सप्ताह में पशु अपनी आवश्यकतानुसार अधिक से अधिक दाना खा सके। बाद में पशु को निर्वहन एवं उत्पादन आवश्यकता से ऊपर लगभग 0.5 किग्रा0 सम्पूर्ण पाचक तत्व (T.D.N.) प्रतिदिन और देना चाहिये।
o ब्याने के बाद गर्भाशय की सफाई के लिये पशु को औटी दी जा सकती है न कि जौ का आटा या अरहर की दाल।
o पशु को संतुलित चारा ही दिया जाए।

नवजात शिशुओं की आहार व्यवस्था:

• जन्म के पश्चात् प्रथम 3 दिन तक खीस पिलानी चाहिये, खीस में विटमिन ’ए’ तथा एण्डीबाँडीज होते हैं जिनसे बच्चों की विभिन्न बीमारियों से रक्षा होती है।
• यदि किसी कारणवश खीस उपलब्ध न हो तो 1/2 चम्मच अण्डी का तेल, 1/2 पिंट में फेंटा हुआ एक अण्डा, एक पिंट गर्म दूध मिलाकर पहले 3 दिन तक दें, इसे दि में 3 बार तक दिया जा सकता है।
• 1 से 2 माह तक के बछड़े को उसके शरीर के 10वाँ भाग की मात्रा में दूध पिलाना चाहिये। प्रारम्भ से लगभग 2.5 लीटर दूध देकर दूसरे माह में 3.5 लीटर दूध पिलाना चाहिये।
• 2 माह के पश्चात् धीरे-धीरे सम्पूर्ण दूध के स्थान पर सेपरेटेड मिल्क देना चाहिये।
• ऊर्जा पूर्ति के लिये 1 माह की आयु से ही थोड़ा-थोड़ा पौष्टिक मिश्रण, पूरक आहार के रूप में देना प्रारम्भ कर देना चाहिये।
• दाने की मात्रा 1 मुट्ठी से प्रारम्भ कर धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिये जिससे 6 माह में यह 1.5 किग्रा0 तक पहुंच जाये।
• चौथे माह से सेपरेटेड मिल्क कम कर देना चाहिये।

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बछड़े के लिये पौष्टिक मिश्रण

जौ, जई या मक्का (दला हुआ)- 45 भाग
मूंगफली की खली – 35 भाग
चोकर – 17 भाग
खड़िया – 2 भाग
नमक – 1 भाग

• छोटे बच्चों को तामचीनी के तसले में दूध पिलाना चाहिये।
• पैदा होने के प्रथम 2 सप्ताह तक बछड़े को दिन में 3-4 बार दूध पिलाना चाहिये।
• बछड़े को कम से कम 5 दिन तक सम्पूर्ण दूध पिलाना चाहिये।
• विटामिन की कमी को पूरा करने के लिये मछली का तेल पिलाया जा सकता है।
 यदि दुग्ध परिवर्तन काल में बछड़े को दस्त आने लगें तो उसे 24 घण्टे भूखा रख कर उबाला हुआ पानी + 2 औंस अण्डी का तेल पिलाना चाहिये तथा आवश्यकतानुसार एंटीबायोटिक या सल्फाड्रग्स भी देनी चाहिये।
• बछड़ों के आहार में एकाएक परिवर्तन नहीं करना चाहिये, यह परिवर्तन क्रमिक होना चाहिये।
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