बरसात के मौसम में पशुओं में आहार के माध्यम से होने वाला सबसे महत्वपूर्ण समस्या अफलाटॉक्सिकोसिस
लेखक -डॉ जितेंद्र सिंह, पशु चिकित्सा अधिकारी ,कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश
पशुओं को फफूंदी लगा चारा खिलाया तो दूध का शरीर पर पड़ेगा सीधा असर.
किसान पशुओं को बिना सोचे समझे गला सड़ा हुआ चारा व खल बिनौला डाल देते हैं तो यह पशुओं के साथ साथ दूध पीने वाले लोगों के शरीर पर भी असर पड़ेगा। फफूंदी लगे हुए इस चारे में एफलाटोक्सिन बी वन नामक एक विषैला पदार्थ पैदा होता है जिसे खाने के बाद पशु एफलाटोक्सिन एमवन नामक एक विषैला पदार्थ पैदा करते हैं। यह टोक्सिन दूध के जरिए मानव शरीर में चला जाता है, जिससे कैंसर जैसे खतरनाक रोग होने का खतरा रहता है। दूध में एफलाटोक्सिन एमवन M1 की पहचान करना इतना आसान काम नहीं है, क्योंकि यह बहुत कम मात्रा में पाया जाता है।
पशुओं से अधिकतम दूध उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्हें पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक चारे की आवश्यकता होती है। इसके लिए किसान पशुओं को खल, बिनौले, फीड तथा विभिन्न प्रकार के अनाज के दाने के रूप में पशुओं को खिलाते हैं तथा भविष्य के लिए इसका भंडारण भी करते हैं। अगर इस प्रकार के आहार का सावधानीपूर्वक भंडारण न किया जाए तो उसमें फफूंदी पैदा हो जाती है तथा यह फंफूदी एफलाटोक्सिन बी वन पैदा करती है। मुख्यरूप से फफूंदी नमी तथा गर्म वातवरण में अधिक पैदा होती है। इस फफूंदी लगे हुए आहार को खाने से एफलाटोक्सिन बी वन पशुओं के शरीर में चला जाता है और उनके लीवर में एफलाटोक्सिन एम वन में परिवर्तित हो जाता है तथा दुधारू पशुओं के दूध के जरिए मानव शरीर में प्रवेश कर जाता है। हालांकि एफलाटोक्सिन एम वन, बी वन से कम घातक होता है, परंतु इससे कैंसर होने का खतरा रहता है। इस टोक्सिन की आसान तरीके से पहचान करने के तरीके विकसित करने पर काम अभी चल रही है।
72 घंटे तक रहती है दूध में आने की संभावना
छह प्रतिशत एफलाटोक्सिन बी वन, एम वन में परिवर्तित हो जाता है। एक बार पशु इस एफलाटोक्सिन बी वन वाले चारे को खा ले तो लगभग 72 घंटे तक इस टोक्सिन की दूध में आने की संभावना रहती है। इसकी जांच के लिए अत्याधुनिक उपकरण तथा प्रशिक्षित व्यक्ति की जरूरत होती है। भारतीयखाद्यसुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण FSSAI एफएसएसएआई ने इसके मानक तय किए हैं, जोकि 0.5 माइक्रोग्राम प्रति लीटर दूध में ह
दूध को गर्म करने से भी नहीं मरता टोक्सिन
दूध को गर्म करने के बाद भी यह टोक्सिन नष्ट नहीं होता है। जिसे पीने से मनुष्य को कैंसर सहित कई प्रकार के रोग होने का खतरा बना रहता है। अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान संस्था, फ्रांस ने भी एफलाटोक्सिन बी वन टोक्सिन को ग्रुप 2 बी श्रेणी में शामिल किया है। इस श्रेणी में उन पदार्थो को ही शामिल किया गया है, जिनसे कैंसर पैदा करने की संभावना अधिक है।
यही नहीं पशुओं में भी यह एफ्ला टॉक्सिन बहुत ज्यादा प्रभाव स्वास्थ्य पर डालता है। अक्सर जब हम अपने पशुओं को बरसात के दिनों में खासकर जुलाई-अगस्त सितंबर के महीने में सूखा चारा जैसे कि धान या गेहूं का पुआल देते हैं उस पुआल में नमी ज्यादा रहती है उस नमी के चलते उसमें फूफा जी लग जाती है जब पशु पुआल को या सूखे चारे को खाता है तब अफलाटॉक्सिन बीमारी से ग्रसित हो जाता है। इसमें जानवर का लीवर यानी की यकृत खराब हो जाता है ,जानवर खाना पीना कम कर देता है, बाद में जौंडिस हो जाता है ,यदि इसका इलाज नहीं किया गया तो जानवर मर भी जाता है ।इसका उपचार के लिए निकटतम पशु चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए तथा अपने पशुओं को समय-समय पर बाजार में उपलब्ध लिवर टॉनिक देना चाहिए साथ ही पशु के सूखा चारा या हरा चारा को धूप में सुखाकर ही खाने के लिए देना चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि पशु पूरक आहार में नमी ना हो। यदि आप पशु आहार बनाते हैं तो उसमें टॉक्सिन बाइंडर का उपयोग जरूर करें। बाजार में बहुत सारी कंपनियां टॉक्सिन बाइंडर अलग-अलग नामों से लेकर आई है।
बरसात के मौसम में पशुओं का बेहतर प्रबंधन एवं देखभाल हेतु पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण सुझाव