संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास के लक्ष्य
डॉ रेखा शर्मा प्रधानाचार्य महात्मा गांधी स्मारक इंटर कॉलेज सौंख मथुरा
संयुक्त राष्ट्र संघ की देखरेख एवं संरक्षण में 25 सितंबर 2015 को विश्व के 193 देशों में मानव के अच्छे भविष्य एवं सतत विकास के लिए विभिन्न लक्ष्यों का निर्धारण किया जिन्हें सामान्य भाषा में यस डी जी या संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास के लक्ष्य के नाम से जाना जाता है। लक्ष्यों का मूल उद्देश्य गरीबी उन्मूलन, पृथ्वी जैसे सुंदर ग्रह का पूर्ण संरक्षण तथा मानव का उत्तरोत्तर विकास है। मिलेनियम विकास लक्ष्यों की सफलता के उपरांत संयुक्त राष्ट्र संघ ने सतत विकास लक्ष्य निर्धारित किए, जो कि मूलतः इस ग्रह से गरीबी के समूल विनाश की तरफ उन्मुख होगा। यह लक्ष्य सभी देशों को दिशा निर्देश देंगे जिससे मानव कल्याण से जुड़ी विभिन्न योजनाएं कार्यान्वित होंगी तथा विश्व में खुशहाली के साथ-साथ प्राकृतिक संपदाओ का संरक्षण भी होगा इन लक्ष्यों में सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य कृषि तथा इससे संबंधित विभिन्न अवयवों का संरक्षण संवर्धन तथा सतत विकास होगा जिससे विश्व के सभी लोगों को भरपेट भोजन, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा न्याय मिल सकेगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने सदस्य देशों की सहमति से निम्नांकित लक्ष्य निर्धारित किए हैं:-
१. गरीबी उन्मूलन
२. भुखमरी का समूल विनाश
३. अच्छा स्वास्थ्य
४. उच्च गुणवत्ता की शिक्षा
५. लिंग भेद न करना
६. स्वच्छ पानी की उपलब्धता तथा सफाई
७. वहन करने योग्य ऊर्जा के स्वच्छ स्रोत
८. सम्मानजनक कार्य एवं आर्थिक संपन्नता
९. देश के मूलभूत ढांचे का विकास
१०. असमानता में कमी लाना
११. सतत विकासशील शहरीकरण एवं समाज
१२. उत्पादन एवं उपभोग में समन्वय
१३. जलवायु परिवर्तन के साथ समन्वय
१४. जलीय जीवों का संरक्षण एवं संवर्धन
१५. स्थलीय जीवो का संरक्षण एवं संवर्धन
१६. शांति एवं न्याय प्रिय समाज की संरचना
१७. विकसित एवं विकासशील देशों के बीच में सहभागिता
पिछले कुछ दशकों के अवलोकन से यह पता चलता है कि समाज अन्याय असुरक्षा तथा दुखों से भरा रहा है परंतु हम ऐसे समाज की परिकल्पना करते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, भयमुक्त वातावरण तथा न्याय पा सके। संयुक्त राष्ट्र संघ के 2030 की परिकल्पना अनुसार सभी को संपूर्ण सम्मान, बराबरी का दर्जा तथा भेदभाव रहित समाज मिल सके। उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए 193 देशों ने संकल्प लिया तथा उन्हें प्राप्त करने का वचन दिया।
विभिन्न उद्देश्यों की सूक्ष्म चर्चा निम्न वत है:-
१.गरीबी उन्मूलन:
विश्व में लगभग 384 मिलियन लोग गरीबी में जीवन यापन करते हैं जिनकी दैनिक आय 1.25 डॉलर से भी कम है, लोगों को मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ कृत संकल्प है तथा योजना अनुसार 2030 तक इस गरीबी को 50% कम करना है जिससे अधिकांश लोग औसतन अच्छा जीवन निर्वहन कर सकें।
२. भुखमरी का समूल विनाश:
भुखमरी का समूल विनाश तभी संभव है जब पूरे विश्व में पौधों एवं पशुओं की आनुवंशिक विविधता को संरक्षित रखते हुए मध्यम एवं लघु कृषकों की उत्पादकता में आशातीत वृद्धि की जाए क्योंकि इससे पूर्ण जनसंख्या को भरपूर भोजन अनवरत मिलता रहेगा।
३. अच्छा स्वास्थ्य:
विश्व को टी.बी.,एड्स, मलेरिया ,जल जनित बीमारियों एवं अन्य घातक संक्रामक रोगों से मुक्त करने के साथ प्रजनन संबंधित विकारों एवं परिवार नियोजन के विषय में समाज को जागरूक करना है जिससे मातृ मृत्यु की दर 70 प्रति एक लाख से नीचे पहुंच सके।
४. उच्च गुणवत्ता की शिक्षा:
समाज के सभी वर्गों को प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराना जिसमें लैंगिक विषमताएं ना हो साथ ही साथ विभिन्न क्षमताओं के व्यक्तियों को सभी स्तर पर शिक्षा के पूर्ण अवसर प्राप्त हो।
५. लिंग भेद न करना:
राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में लिंग के आधार पर भेदभाव न किया जाए तथा सभी स्तरों पर फैसला लेने के लिए महिलाओं को प्रेरित किया जाए। सार्वजनिक स्थलों पर सभी प्रकार की उत्पीड़न से मुक्त समाज का निर्माण किया जाए जिससे समाज तीव्र गति से आगे बढ़ सके।
६. स्वच्छ पानी की उपलब्धता एवं सफाई:
आज विश्व में लगभग 900 मिलियन व्यक्ति झुग्गी झोपड़ियों में जीवन यापन कर रहे हैं जिनकी वर्ष 2000 में संख्या 760 मिलियन थी तथा इन की 82% जनसंख्या अभी भी खुले में शौच कर रही है इन परिस्थितियों में सभी को पीने योग्य शुद्ध मीठा पानी उपलब्ध कराना दुष्कर कार्य होगा अतः जल उत्खनन एवं उपयोग की क्षमता को उचित एवं विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग में लाया जाए जिससे पानी की उपलब्धता के साथ-साथ स्वच्छता का भी ध्यान दिया जा सके।
७. वहन करने योग्य ऊर्जा के स्वच्छ स्त्रोत:
वर्तमान में विश्व की 2.4 बिलियन जनसंख्या खाना पकाने के लिए प्रदूषण युक्त इंधन का प्रयोग करते हैं जिनमें लकड़ी, कोयला तथा पशुओं के सूखे गोबर शामिल है का प्रयोग करते हैं तथा लगभग 1.3 बिलीयन लोगों को बिजली उपलब्ध नहीं है अतः 2030 तक सभी को वहन करने योग्य स्वच्छ बिजली की उपलब्धता का संकल्प लिया गया।
८. सम्मानजनक कार्य एवं आर्थिक संपन्नता:
संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्देश्य है की सभी को सम्मानजनक एवं उत्पादक कार्य मिले जिसमें लिंगभेद ना हो सके तथा विभिन्न क्षमताओं के व्यक्तियों को भी पूर्ण स्थान प्राप्त हो। समान मूल्यों के कार्य हेतु समान वेतन प्राप्त हो। ऐसी आशा व्यक्त की गई है कि विश्व की आर्थिक वृद्धि औसतन 7% की दर से बढ़े।
९. देश के मूलभूत ढांचो का विकास:
औद्योगिकरण को वैज्ञानिक दृष्टिकोण देना जिसमें अन्वेषण को नई सोच मिल सके और विकासशील देश तीव्र गति से आधारभूत ढांचे को विकसित कर सके जिससे उनके सकल आय में गति आ सके।
१०. देशों के मध्य असमानता में कमी लाना:
विकसित एवं विकासशील देशों के मध्य आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, उम्र, लिंग तथा विभिन्न क्षमताओं के व्यक्तियों के मध्य अधिक सामंजस्य होना चाहिए जिससे निम्न स्तर पर व्यतीत कर रही जनसंख्या को लगभग 40% जीवन के लिए आवश्यक मूलभूत सुविधाएं मिल सके।
११. सतत विकास शील शहरीकरण एवं समाज:
संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्देश्य है की अविकसित देशों को तकनीकी तथा आर्थिक मदद दी जाए जिससे वहां की जलवायु तथा स्थानीय संसाधनों का प्रयोग अधिकाधिक ढंग से किया जा सके जिससे सभी नागरिकों को स्वच्छ एवं सस्ते रहने के संसाधन उपलब्ध हो सके।
१२. उत्पादन एवं उपभोग में समन्वय:
प्राकृतिक संसाधनों का दोहन एवं उपयोग इस प्रकार किया जाए जिससे विभिन्न अवयवों की उपलब्धता सभी को सस्ती दरों पर हो तथा वेस्ट की उत्पत्ति कम से कम हो तथा पुनरोत्पादन में प्रयोग किया जा सके। जीवाश्म ईंधन की निर्भरता को धीरे धीरे कम करना जिससे उत्पादन एवं उपभोग का औचित्य पूर्ण समन्वय स्थापित हो सके। वेस्ट मटेरियल का उत्पादन कम से कम हो सके।
१३. जलवायु परिवर्तन के साथ संसाधनों का समन्वय:
वर्ष 1990 के उपरांत विश्व में लगभग 50% कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ा है जिससे वातावरण में अनेक अप्रत्याशित बदलाव नजर आ रहे हैं अतः अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वनों की सघनता को बढ़ाने पर बल दिया जा रहा है जिससे वनों का अाच्छादन पृथ्वी पर बढ़े और प्रत्येक देश इसकी महत्ता को देखते हुए अपनी नीति निर्धारण में समाहित कर ले जिससे इस दिशा में सतत विकास होता रहे।
१४. जलीय जीवों का संरक्षण एवं संवर्धन:
विश्व में लगभग 14% भूभाग तथा तटीय क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र के रूप में जाना जाता है जो कि मानव की खाद्य श्रृंखला का अभिन्न अंग है अतः सभी देशों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे जलीय एवं स्थलीय प्रदूषण को कम करें जिससे जलीय जीवों का संरक्षण हो सके ताकि आने वाली पीढ़ियों को जलीय स्रोत से प्राप्त खाद्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो सके।
१५. स्थलीय जीवो तथा क्षेत्रों का संरक्षण एवं संवर्धन:
सभी तरह के वन क्षेत्रों का रखरखाव आधुनिक तकनीकों से करते हुए संरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है जिससे वन उत्पाद हर नस्ल को भविष्य में उपलब्ध होते रहे रेगिस्तान का फैलाव कम हो सके तथा असमय अप्रत्याशित प्राकृतिक विपदा
ओं से समाज की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
१६. शांति एवं न्याय प्रिय समाज की संरचना:
सभ्य एवं आधुनिक समाज की दुहाई देते हुए हम समय के उस मोड़ पर पहुंच गए हैं जहां पर आज विश्व की लगभग 1.5 मिलियन जनसंख्या उन स्थलों पर निवास कर रही है जो समाज की कलह, असुरक्षा तथा अपराध के लिए जाने जाते हैं अतः विश्व संस्था की यह परिकल्पना है कि ऐसे समाज का निर्माण हो जहां पर गरीबी के स्तर पर गुजर बसर करने वाले परिवारों को भी ससमय न्याय मिल सके और वह शांत एवं भयमुक्त समाज में अपनी क्षमताओं का प्रयोग करते हुए देश के विकास में अग्रणी भूमिका निभा सके।
१७. विकसित एवं विकासशील देशों के बीच सहभागिता:
विकसित देशों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे विकासशील देशों को ऐसी तकनीकों को विकसित करने तथा उनके क्रियान्वयन में रियायती दरों पर, संसाधन उपलब्ध कराएं जिससे उनका अधिकाधिक प्रयोग जन कल्याण के लिए किया जा सके।
उपर्युक्त लक्ष्य मानव जीवन शैली को धनी बनाने में सहायक होंगे तथा इस ग्रह में खजाने के रूप में संरक्षित संसाधनों को उनके वास्तविक रूप में आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित करने में सक्षम होंगे अतः यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम इन गुणों में समृद्धि करते हुए बढ़ावा दें तथा भविष्य में मानव को अच्छे समाज तथा समय का भरोसा दे जिससे यह समाज सुख एवं समृद्धि के मार्ग पर अनवरत अग्रसर होता रहे।