कृत्रिम गर्भाधान के दौरान अपनाएं जाने वाले जैव सुरक्षा उपाय, उनका महत्त्व और सिद्धान्तों का विश्लेषण
डॉ अनीता तिवारी, डॉ बालेश्वरी दीक्षित, डॉ योगेश चतुर, डॉ अभिलाषा सिंह
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, रीवा (नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्वविद्यालय), मध्य प्रदेश
जैव सुरक्षा का शाब्दिक अर्थ है ‘सुरक्षित जीवन’। हालांकि, पशु प्रबंधन में जैव सुरक्षा को किसी भी अभ्यास, नीतियों या नियोजित प्रक्रियाएं के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो एक पशु फार्म पर और/ या पशु प्रजनन केंद्र में बहार से प्रवेश करने वाली बीमारियों को नियंत्रित करें। पशु जैव सुरक्षा सभी क्रियाओं का एक संयोजन है एक संस्था द्वारा किया गया। यह बीमारी फ़ैलाने वाले कारको को किसी विशिस्ट छेत्र में प्रवेश को रोक कर रोग को शुरू होने से रोकता है।
कृत्रिम गर्भाधान- कृत्रिम विधि से नर पशु से वीर्य एकत्रित करके मादा पशु की प्रजनन नली में रखने की प्रक्रिया को कृत्रिम गर्भाधान कहते हैं | भारत वर्ष में सन् १९३७ में पैलेस डेयरी फार्म मैसूर में कृत्रिम गर्भाधान का प्रथम प्रयोग किया गया था | आज सम्पूर्ण भारत वर्ष तथा विश्व में पालतू पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान की विधि अपनायी जा रही है। पशुपालन में सफलता इसके जैव सुरक्षा प्रबंध पैर निर्भर जरती है। क्यूंकि कई संक्रामक रोग हैं जो वीर्य के माध्यम से फैलते हैं।
वीर्य के माध्यम से फ़ैलने वाले कुछ संक्रामक गोजातीय बीमारिया इस प्रकार है – गोजातीय ब्रुसेलोसिस (बीबी), गोजातीय तपेदिक (बी टीबी), राइनोट्रेकाइटिस, गोजातीय जननांग कैम्पिलोबैक्टीरियोसिस (BGC), ट्राइकोमोनोसिस, पैर और मुंह की बीमारी (एफएमडी), ब्लूटंग (बीटी) और बोवाइन वायरल डायरिया (बीवीडी) | इनमें से अधिकांश रोग घातक नहीं होते हैं और वयस्क नर में इनमें विशिष्ट लक्षण नहीं दिखते हैं, परन्तु यह संभव है कि एक स्पष्ट रूप से स्वस्थ दिखने वाला सांड के वीर्य में संक्रामक एजेंट बहाया जा सकता है|
जैव सुरक्षा के सिद्धान्तों
१- पशु फार्म और/या पशु प्रजनन केंद्र में रोग की शुरूआत को रोकें
२- एक पशु फार्म से दूसरे फार्म तक फैलने वाले रोग को सीमित करना (बाहरी नियंत्रण)
३- पशु फार्म और/या पशु प्रजनन केंद्र के भीतर पशु -से-पशु फैलने वाली बीमारी को रोकें (आंतरिक नियंत्रण)
४- पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार (बीमारी प्रतिरोध)
५- आर्थिक नुकसान को कम करना
- पशु फार्म और/या पशु प्रजनन केंद्र में रोग की शुरूआत को रोकें
- एक पशु फार्म से दूसरे फार्म तक फैलने वाले रोग को सीमित करना (बाहरी नियंत्रण)
पशु प्रजनन केंद्र के मुख्य प्रवेश द्वार पर “जैव-सुरक्षित क्षेत्र” का संकेत देने वाला साइन बोर्ड लगाया जाना चाहिए जो आगंतुकों को बिना किसी अधिकृत व्यक्ति की अनुमति के बिना जैव-सुरक्षित छेत्र में प्रवेश न करने की सूचना दे। सुरक्षा गार्डों को चाहिए की कड़ाई से नियम का पालन करे और अनधिकृत आगंतुक/ व्यक्तियों के प्रवेश को रोके।
जैव सुरक्षा निति के अनुसार, आगंतुक तीन प्रकार के हो सकते है –
पशु फार्म से पशु फार्म: क्वारंटाइन/ संगरोध/ अलगाव प्रक्रिया होने तक अनुमति नहीं
पशु फार्म से कार्यालय: उचित प्रोटोकॉल के साथ अनुमति
कार्यालय से कार्यालय: अनुमत
आगंतुकों के लिए दिशानिर्देश: आम तौर पर आगंतुकों को फार्म परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती है। पशु संबंधी सुविधाएं पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं। हालांकि अत्यावश्यक स्थिति में निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए- नियुक्ति द्वारा दौरा, लॉग बुक में प्रवेश और निकास का समय, प्रवेश के समय हाथों, जूते और उपकरण की सफाई और की कीटाणुशोधन, बूट के लिए पॉलीथिन कवर का प्रयोग, अन्य पशु फार्म में पशु संपर्क और पशु प्रजनन केंद्र परिसर में जाने के बीच प्रतीक्षा अवधि कम से कम ३ दिन होनी चाहिए।
वाहनों और कर्मियों की कीटाणुशोधन: टायर डिप – सोडियम कार्बोनेट (वाशिंग सोडा) के 4% घोल के साथ। दिन में एक बार मुख्य द्वार पर करीब 10 किलो चूना पाउडर छिड़का जाता है। मुख्य द्वार पर पैर और हाथ धोने की व्यवस्था होनी चाहिए।
प्रतिबंधित प्रवेश और निकास/ आवागमन: मुख्य प्रवेश द्वार के पास वाहन पार्किंग क्षेत्र, मुख्य द्वार पर आगंतुक कक्ष, आगंतुक लॉग बुक में प्रविष्टियां की जानी चाहिए। फार्म पैर आने वाले तरल नाइट्रोजन कंटेनर (वीर्य और तरल नाइट्रोजन की डिलीवरी के समय) को फार्म के प्रवेश द्वार पर ४% धोवन सोडा के साथ छिड़काव् किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
जंगली/अन्य जानवरों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने के लिए: पशु फार्म/ या पशु प्रजनन केंद्र के चारों ओर बाड़ और चारदीवारी का बंदोबस्त आवश्यक है।
रिंग टीकाकरण कार्यक्रम: पैर और मुंह की बीमारी (, एफएमडी) के खिलाफ सभी फटे खुर वाले जानवरों का टीकाकरण आवश्यक है। प्रत्येक वर्ष हर पशु फार्म के ५ किलोमीटर के दायरे में आने वाले गांवों के सभी फटे खुर वाले जानवरों का पैर और मुंह की बीमारी के खिलाफ टीकाकरण कराया जाता है। यह व्यवस्था, एफएमडी जो की विनाशकारी बीमारी है, के खिलाफ पशु फार्म के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बना देती है। ऑयल एडजुवेंट एफएमडी टीका इस रोग के खिलाफ लंबे समय तक प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
श्रमिकों की साफ़ स्वच्छता: निर्दिष्ट ड्रेस कोड के अनुसार प्रत्येक श्रमिक को पशु फार्म में प्रवेश करने से पहले स्वच्छ स्नान, स्वच्छ वर्दी और लंबे जूते पहनें चाहिए, श्रमिकों/अधिकारियों का क्षय रोग परीक्षण, व्यक्तिगत स्वच्छता के लिए नियमित जाँच आवश्यक है।
आगंतुकों के लिए दिशानिर्देश: आम तौर पर आगंतुकों को फार्म परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती है। पशु संबंधी सुविधाएं पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं। हालांकि अत्यावश्यक स्थिति में निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए- नियुक्ति द्वारा दौरा, लॉग बुक में प्रवेश और निकास का समय, प्रवेश के समय हाथों, जूते और उपकरण की सफाई और की कीटाणुशोधन, बूट के लिए पॉलीथिन कवर का प्रयोग, अन्य पशु फार्म में पशु संपर्क और पशु प्रजनन केंद्र परिसर में जाने के बीच प्रतीक्षा अवधि कम से कम ३ दिन होनी चाहिए।
जानवरों का अलगाव/ पृथक्करण: नए पशु खरीदने के समय एक निर्धारित प्रोटोकॉल का पालन करते हुए केवल विश्वसनीय पशु फार्म से स्वास्थ्य रिकॉर्ड वाले पशु खरीदने चाहिये। नए जानवर को क्वारंटीन किया जाए, भारत सरकार के न्यूनतम मानक प्रोटोकॉल (MSP) के अनुसार नए जानवरों को पुराने पशुओ के संपर्क में लाने से पहले 60 दिनों की न्यूनतम संगरोध अवधि अनिवार्य है , बैल के मामले में अगर बैल ज्ञात स्रोतों से लाया गया है तो 30 दिनों का संगरोध पर्याप्त है। क्वारेंटीने के समय नए पशुओ की प्रमुख संक्रामक रोगों के खिलाफ जांच होनी चाहिए जैसे टीबी, जेडी, ब्रुसेलोसिस, संक्रामक गोजातीय राइनोट्रेकाइटिस, कैम्पिलोबैक्टीरिस और ट्राइकोमोनिएसिस। क्वारंटाइन स्टेशन और निवासी पशुअलाय के बीच कम से कम पांच किलोमीटर की दूरी को आदर्श माना जाता है।
३– पशु फार्म और/या पशु प्रजनन केंद्र के भीतर पशु –से-पशु फैलने वाली बीमारी को रोकें (आंतरिक नियंत्रण)
पशु फार्म गतिविधियाँ: पशु फार्म गतिविधियों को प्रतिबंधित करें जो पशुओ में रोग संक्रमण का खतरा पैदा कर सकती है। पशुालय, वीर्य संग्रह क्षेत्र, चारा मिश्रण और भंडारण क्षेत्र, पशु चिकित्सा औषधालय, आदि में प्रवेश केवल संबंधित कर्मचारियों तक सीमित होना चाहिए। विभिन्न कार्य अनुभागों के लिए अलग ड्रेस कोड होना चाहिए।
जंगली जानवर / कृंतक / कीट नियंत्रण कार्यक्रम: कुत्तों, बिल्लियों, नील गाय और सियार जैसे वन्य जीव जंतु, कीट, कृन्तकों, आदि से सुरक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए। जंगली/अन्य जानवर का प्रवेश दोहरी चारदीवारी प्रणाली द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए । एक दीवार मुख्य परिसर के चारो ओर दूसरी पशु सम्बंधित फैसिलिटी के चारो ओर होनी चाहिए। माखी मच्चर और कीट का नियंत्रण करने के लिए २% बेगॉन कीटाणुनाशक पानी में मिलकर इस कीटाणुनाशक को प्रत्येक पशु बाड़े में रखा जाता है और प्रत्येक सप्ताह इसे बदलना चाहिए। पशुओ पे बुटोक्स का ३-३ माह के बाद छिड़काव बाह्य कीटाणु को रोकने के लिए आवश्यक है। दीवार और छतो में आये हुए दरार और छिद्र को बंद करना और बाड़े के ५ मीटर की परिधि में घास झाड़ इत्यादि न जमने पाए इसका बंदोबस्त आवश्यक है।
चारे भूसे की प्रभंधन- नियमित रूप से चारे आदि का गुणवत्ता विश्लेषण/ जाँच आवश्यक है। कीट नियंत्रण सुनिश्चित करना चाहिए। एफ्लाटॉक्सिन और मोल्ड्स/ फंगस लगने की स्थिति में टेस्टिंग के लिए प्रयोग शाळा में भेजने का प्रबंध होना चाहिए।
जलापूर्ति– पानी बीमारी फैलाने का एक मुख्य करक है। अतः ये किसी भी केमिकल/ रसायन और जैविक संदूषण से मुक्त होना चाहिए, हर तीन साल में पानी का टेस्ट करवाए ।
पशु आवास सुविधा: दैनिक सफाई का प्रबंद, ग्लूटारल्डेहाइड द्वारा नियमित कीटाणुशोधन का कार्य किया जाता है। साल में एक बार बाड़े की जमीन को भूसा आदि जलाकर कीटाणुशामन करना चाहिए।
पृथकरण की व्यवस्था – बीमार पशु जो किसी स्पर्शसंचारी बिमारियों से ग्रषित हो उन्हें आइसोलेशन बॉक्स में रखना चाहिए। गहन उपचार और देखभाल करना चाहिए। लाइलाज बीमारी से ग्रषित पशुऔ की कलिंग करना जिससे अन्य पशु न बीमार पड़े ।
गोबर निपटान– प्रतिदिन गोबर मूत्र आदि का निष्काशन करना। निष्काषित गोबर आदि को गोबर गैस या खाद पिट में प्रयोग करके सदुपयोग में लाना चाहिए।
मृत पशु का निपटान– मृतपशुओं एवं इनसे पनपने वाले रोग के नियंत्रण के लिए पशु के मृत शरीर का उचित निपटान बहुत ही आवश्यक है। तुरंत बड़े से हटा के जलाये या दफनाए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रयोग किये गए वाहन की सफाई होनी चाहिए। दूषित बिस्तर, खाद या चारा का उचित निपटान करें। मृत जानवर को संभालते समय सुरक्षात्मक कपड़े पहनें । बाड़े की जमीं और दीवारों की धुलाई एवम १% फिनॉल का छिड़काव द्वारा कीटाणुशोधन होना चाहिए । दीवारों पे चुने का लपेन और छिड़काव करे। २-३ दिन तक बाड़े को सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए । मृत पशुओं के शव का निपटान निम्न बिधियों द्वारा किया जाता है।
पशु के शव को दफनाना
शव को जलाना
शव का प्रतिपादन
मृत शव का खाद बनाना (कंपोस्टिंग)
वीर्य संग्रह क्षेत्र- ठोस कंक्रीट की प्लेटफॉर्म होना चाहिए जो की जमीं से एक फुट की उचाई पे हो। यह रेत्त, बजरी और चुने से मिलकर बना होना चाहिए जिसका पीएच ९.५ होना चाहिए । वीर्य संग्रह से पहले नार्मल सेलाइन से बैल के प्रजनन अंगो को धोना चाहिए या नैपकिन/ साफ़ कपडे की मदद से पोछना चाहिए। प्रत्येक सांड के लिए अलग-अलग नैपकिन का प्रयोग करे। वीर्य संग्रह के बाद, पूरा क्षेत्र को गंधहीन कीटाणुनाशक घोल (कोलाइडल आयोडीन) से अच्छी तरह से साफ किया जाता और इसका छिड़काव किया जाता है।
प्रयोगशाला स्वच्छता: कपड़े, त्वचा और प्रयोगशाला कार्मिक के बाल संदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। अतः सभी प्रयोगशाला कर्मी को चाहिए की जब भी वे प्रयोगशाला में हो, वे नियमित रूप से एप्रन, फेस मास्क, कैप और जूते पहने। लैब में प्रवेश करने से पहले साबुन और पानी से हाथ धुले, फिर ७०% अल्कोहल हाथो पे अच्छे से मले । लैब में प्रवेश प्रतिबंधित होना चाहिए ।
प्रयोगशाला को रोगाणु मुक्त रखने के लिए वीर्य प्रसंस्करण कक्ष में निम्नलिखित सुविधाएं होनी चाहिए-रोगाणुनाशक अल्ट्रा वायलेट लैम्प्स, लैमिनार फ्लो इकाइयाँ और साफ़ एप्रन और दस्ताने। १२ मिलीलीटर ३७% फॉर्मलाडेहाइड को १00 मिलीलीटर पानी में मिलकर जो मिश्रण तैयार हो उसे प्रति घन मीटर के हिसाब से हुमिडिफिएर की सहायता से प्रयोगशाला का धूमन किया जाता है। प्रयोगशाला से निकला हुआ व्यर्थ कचरा जल्दी से जल्दी जला के नष्ट कर दे।
४– पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार (बीमारी प्रतिरोध)
जैव सुरक्षा उपायों का एकमात्र उद्देश्य पशुओं को रोगमुक्त रखना है। उच्च गुणवत्ता वाला आहार और जल प्रदान करने के साथ साथ, निम्न उपाय करके प्रतिरोधक छमता बड़ाई जा सकती है-
१. नियमित स्वास्थ्य जांच- क्षय रोग, पारा-ट्यूबरक्लोसिस , ब्रुसेलोइस, ट्राइकोमोनिएसिस और कैम्पिलोबैक्टीरियोसिस की नियमित जाँच आवश्यक है। जाँच पॉजिटिव आने पर रोगी पशु की तुरंत कलिंग करना या बधिया करके गोशाला भेज देना तथा ऐसे पशुओ से एकत्रतित वीर्य को तुरंत खारिज करना।
टीकाकरण– मृत शव का खाद बनाना (कंपोस्टिंग)का समय -समय पर टीकाकरण।
डीवॉर्मिंग / कृमिहरण : आतंरिक और बाह्य परजीवी के संक्रमण से जानवरों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। व्यापक स्पेक्ट्रम कृमिनाशक के द्वारा हर साल डीवॉर्मिंग कराई जाने चाहिए । हर ३ माह पे कृमिनाशक का छिड़काव बाह्य परजीवी की रोकथाम के लिए आव्यशक है। साल में एक बार बफैलो / भैंसा- बैल के बड़े हो चुके बालों की शेविंग, और नीम के तेल का लेपन आव्यशक है ।
५– आर्थिक नुकसान को कम करना
महामारी और प्राकृतिक आपदा के समय आपातकालीन प्रतिक्रिया का प्रबंद होना चाहिए। इससे भारी मात्रा में होने वाले आर्थिक नुकसान से बचने में मदद मिलेगी। ऊपर दिए गए सभी चरणों का नियम से पालन करना आर्थिक नुक्सान को रोकने का एक प्रमुख मार्ग है।