अंधा और आईना
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एक गूंगे ने बहरे से की बात–
चलो अंधे से पूंछे अभी
दिन है या रात?
गूंगे ने अपने परम मित्र
लंगङे को दौङाया ।
लंगङा लूले को पकङ लाया।
लूला आते ही तलवार लेकर
नाचने लगा,गूंगा गाने लगा;
बहरा सुनी सुनाई खबरें
सुनाने लगा।
अंधे ने जब यह दृश्य देखा
तो खुशी से फूल गया।
अभी रात है या दिन ?
इस मूल प्रश्न को ही भूल गया।
भारत माता के सपूत,
प्रजातंत्र के देवदूत नेता जी ने कहा—
डा जे पी माफ करो
बात जरा साफ करो ।
डा जे पी ने हांथ जोङा
और बोला—-
नेताजी इसमें माफ की क्या बात?
बात तो बिल्कुल ही साफ है।
वह जो गूंगा है,
वह इस देश का आम आदमी है।
उसकी बंधी बंधाई जुबान पर
प्रतिबंधों की काई जमी है।
वह जो बहरा है,
वह इस देश का नेता है।
वह कभी भी किसी बात पर
ध्यान नहीं देता है।
अंधा है विशेषज्ञ
जो दूरद्रष्टा होने का ढोंग रचाता है।
लेकिन उसे खुद का चेहरा भी
नजर नहीं आता है।
लंगङा है अफसर
जो ब्यवस्था को चलाता है।
यह अलग बात है कि
उसे दो कदम चलना नहीं आता है।
लूला है प्रशासक
जिनके हाथों में ब्यवस्था की
डोर थमी है।
लेकिन गौर से देखें तो
उनके हाथ ही नहीं है।
कबतक हम इन विसंगतियों
की वेदनाओं को सहते रहेंगे?
कबतक हम अंधों के शहर में
आईना बेचते रहेंगे ??
–डा जे पी सिंह “जागृति “
संयुक्त निदेशक पशुपालन विभाग बिहार (सेवा निवृत्त )