कृषि एवं पशुपालन के साथ समेकित मत्स्य पालन
मांसाहारी भोजन की बढ़ती मांग के कारण मत्स्य उत्पादन में वृद्धि अति आवश्यक हो गया है। यदि मत्स्य उत्पादन अन्य खाद्य उत्पादों के साथ-साथ किया जाए तो उत्पादन में वृद्धि नहीं बल्कि भूमि एवं जल का औचित्यपूर्ण उपयोग से रोजगार के साधन भी उपलब्ध होंगे। पं.बंगाल में धान व मत्स्य तथा बिहार में मखाना व मत्स्य पालन के साथ मुर्गी, बत्तख, बकरी सूअर आदि का सह तालाबों में जैविक खाद की आपूर्ति होती है, साथ ही मांस दूध अण्डों के रूप में अतिरिक्त आय होती है।
मछली-सह-सूअर पालन
ग्रामीण तथा कम विकसित शहरी क्षेत्रों में सूअर पालन काफी लोकप्रिय है खासकर आदिवासी बहुल्य क्षेत्रों में इसके मांस की काफी मांग रहती है। मछली सह सूअर पालन भी मिश्रित मछली पालन की तरह ही किया जाता है। यहाँ सूअर पालन की विस्तृत जानकारी दी जा रही है ।
सूअर एक सर्वभक्षी पशु है इसलिए इसके पालन में अधिक परेशानी नहीं होती है। मछली पालन में सूअर के खाद का अच्छा उपयोग होता है चूँकि यह काफी खाता है इसलिए सभी भोज्य पदार्थों को अच्छी तरह पचा नहीं पाता है और अनपचा भोज्य पदार्थ मल-मूत्र के रूप में निकलता है जो कुछ मछलियों के लिए भोजन का काम करता है बाकी भाग तालाब में प्राकृतिक भोजन तैयार करने में मदद करता है। सूअर की खाद तालाब में जल्दी सड़ती है क्योंकि इसमें नाइट्रोजन और कार्बन 1:14 के अनुपात में होता है । एक 25 से 30 किलोग्राम के सूअर से 5-7 किलोग्राम तथा 40-50 किलोग्राम के सूअर से 8-9 किलोग्राम एवं 50-80 किलोग्राम वाले सूअर से 10-11 किलोग्राम मल-मूत्र प्रतिदिन प्राप्त होता है । एक सूअर 5-6 महीना पालन के बाद बाजार में बेचने लायक हो जाता है एस दौरान वह लगभग 200-250 किलोग्राम मल-मूत्र का त्याग करता है।
इस क्षेत्र में काले सूअर के मांस को अधिक पसंद किया जाता है। अत: देशी सूअर एवं संकर नस्ल को अधिक प्रमुखता दी जाती है। सूकर पालन के लिए ब्लैक टी एंड डी प्रजातियां इस प्रदेश के लिए उपयुक्त है। देशीनस्ल एक बार में 4-7 बच्चे देती है जबकि संकर 10-15 बच्चे देती है । इनमें रोग रोधी क्षमता अधिक होती है तथा इनके बच्चे भी आसानी से उपलब्ध होते हैं। प्रति हेक्टेयर के तालाब के लिए 30-35 सुकर रखना उपयुक्त है।
धान–सह–मछली पालन
झारखण्ड राज्य के वैसे धान खेत जो प्राकृतिक रूप से गहरे हो या उनमें दो माह तक पानी जमा रहता हो में थोड़े परिवर्तन करके धान के साथ-साथ उनमें मछली पालन भी किया जा सकता है जिससे किसान भईयों को अतिरिक्त आय प्राप्त हो सकती है। इसके अनेक लाभ हैं-
- किसान द्वारा अपनाई गई कृषि पद्धति में बिना परिवर्तन किये मछली का उत्पादन संभव।
- किसानों की सम्पदा का एक से अधिक उपयोग एवं अतिरिक्त आय में वृद्धि।
- जब मछलियाँ 2.5 सें.मी. से बड़ी हो जाती है, तो धान के खेत का खरपतवार, कीड़ों एवं हानिकारक कीटाणुओं को खेती है, जिससे फसल रोगमुक्त रहती हैं।
- मछलियों द्वारा उत्सर्जित मलमूत्र खेत के लिए खाद का काम करता है।
- किसान अपने धान के खेत को अंगुलिकाओं की उत्पादन के लिए रियरिंग के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
- पानी में मछली इधर-उधर तैरती हैं, साथ ही भोजन के लिए खेत को मिटटी में वायु संचरण होता है और खेत की जुताई का लाभ भी मिलता है।
- धान-सह-मछली पालन से धान पैदावार में 5-15 प्रतिशत की वृद्धि तथा पुआल में 5-9 प्रतिशत की वृद्धि संभव है।
- सालों भर रोजगार के सुअवसर।
मछली-सह-बत्तख पालन
बत्तख पालन हेतु कोई विशेष स्थान की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि वे अधिकतर समय तालाब में ही व्यतीत करते हैं । इन बत्तखों को रात के समय रखने के लिए बांस से बनी एक छोटी कुटिया की आवश्यकता होती है। बत्तख रखने के लिए आवश्यक कुटिया तालाब के निकट या इसके तटबंध पर बनाया जा सकता है। तेल के बैरल के उपयोग में तैरने वाली कुटिया भी बनायी जा सकती है । कुटिया छोटी नहीं होनी चाहिए अन्यथा अण्डों के उत्पादन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । बत्तखों को रहने के लिए सामान्यत: 0.3–0.5 वर्गमीटर स्थान की आवश्यकता होती है ।
बत्तख पालन के लिए इण्डियन रनर या खाकी कैम्बेल प्रजातियाँ उपयुक्त हैं। यह देखा गया है कि1 हेक्टेयर जल क्षेत्र में खाद देने के लिए 200-300 बत्तखों की आवश्यकता होती है। 2-4 माह आयु वाले बत्तखों को आवश्यक रोग प्रतिरोधक उपचार के बाद तालाब में छोड़ा जाता है। इन बत्तखों को मुर्गियों के लिए बनी रेडीमेड आहार के साथ चावल की भूसी 1:2 अनुपात में मिलाकर 100 ग्राम आहार प्रति बत्तख प्रतिदिन की दर से दिया जाता है। बत्तख 24 सप्ताह आयु के बाद 2 वर्षों तक अंडे देती रहती हैं। स्थानीय पराजित इण्डियन रनर, खाकी कैम्बेल प्रति वर्ष 180-200 अंडे देती हैं । चूँकि बत्तख रात के समय अंडे देती हैं, अत: अंडे तालाब में नष्ट नहीं होते हैं । कुटिया में एक ओर कुछ घास रख दिया जाना चाहिए जिस पर अंडे दिये जा सकें। बत्तखों के बिट (मल) से तालाबों की खाद की आवश्यकता तथा मछलियों की पूरक आहार की भी पूर्ति होती हैं । बत्तख पालन के कारण तालाब में खरपतवार भी नियंत्रित रहते हैं जिससे सतह के पोषक तत्व को ओर आते हैं। बत्तखों का 20-50% आहार जलीय पौधों, कीटों, मोलोस्कों आदि से प्राप्त होता है ।
मछली के साथ मुर्गी व बत्तख काफी लाभदायक है। एकल उत्पादन की तुलना में बहु–उत्पादकों की खेती में पारस्परिक निर्भरता के कारण आदान एवं देख –रेख पर होनेवाला व्यय काफी घट जाता है फलस्वरुप आय में काफी वृद्धि हो जाती है ।
Compiled & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)
Image-Courtesy-Google
Reference-On Request.
समेकित कृषि प्रणाली: टिकाऊ पशुपालन तथा कृषि उत्पादन का जरिया