अपनी दुधारू गाय खुद तैयार कीजिये-भाग 3
खीस को अमृत के समान माना गया है। इसीलिए नवजात बछिया को जन्म के चार घण्टों के अंदर-अंदर खीस पिलाया जाना बहुत आवश्यक है। जिन बछियों को इन पहले चार घण्टों के दौरान खीस नहीं पिलाया जाता उनके जीवित रहने की प्रतिशतता कम होती जाती है और अगर वह जीवित रहें भी तो वह अच्छी दुधारू गाय बन ही नहीं सकती।
बछिया जब पैदा होती है तो उसकी अपनी कोई रोग प्रतिरोधकता नहीं होती है। जिसके कारण वह बहुत शीघ्र किसी भी रोग की चपेट में आ सकती है। खीस उसे रोग प्रतिरोधकता प्रदान करता है और उसके खुद के रोग प्रतिरोधकतन्त्र को विकसित करने में सहायता प्रदान करता है।
बछिया जब पैदा होती है तो उसके पास ना तो पर्याप्त ग्लाइकोजन स्टोर होता है और ना ही इतना फैट होता है कि इन दोनों के उपापचय से बछिया को जीने के लिए पर्याप्त ऊर्जा मिल जाए। इस समय बछिया को ऊर्जा मिलनी है खीस से ही। खीस में उपस्थित कुल सॉलिड का लगभग पांचवा हिस्सा आसानी से पचने योग्य फैट होता है। इसी फैट के पाचन से बछिया को आवश्यक ऊर्जा मिलती है और उसकी वृद्धि होती है।
बछिया माँ के पेट के अंदर हमेशा एक निश्चित वातावरण और तापमान में रही है। पेट से बाहर आने के बाद वातावरण का तापमान भिन्न होता है। खीस के कारण ही बछिया उस तापमान से सामंजस्य बैठा पाती है। एक अध्ययन में तो यहां तक पाया गया है कि खीस पीने के 1 घन्टे बाद बछिया के शरीर का तापमान 15 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
खीस में मौजूद इम्युनोग्लोबुलिन्स का अवशोषण वैसे तो अगले 16 घण्टों तक होता रहता है मगर सर्वाधिक अवशोषण पहले चार घण्टों में ही होता है। बछिया को इन पहले चार घण्टों में खीस ना पिलाने से उसे जीवन के पहले एक महीने के दौरान श्वसन तंत्र के रोगों से सामना करना पड़ेगा और 30 प्रतिशत मामलों में बछिया की मृत्यु तक हो जाती है।
इम्युनोग्लोबुलिन के अलावा खीस में ‘लैक्टोफेरिन’ पाया जाता है जिसके कारण बछिया विभिन्न बैक्टीरिया, फंगस, वायरस और प्रोटोज़ोआ के हमलों से बची रहती है। इसी के कारण बछिया में डायरिया के कारण होने वाली मौतों पर भी लगाम लगती है।
बछिया जब पैदा होती है तो उसकी आंतों में कोई भी लाभकारी माइक्रोफ्लोरा नहीं होता है। खीस में कुछ महत्वपूर्ण लाभकारी बैक्टीरिया भी मौजूद होते हैं जो बछिया की आंतों में जाकर सैटल हो जाते हैं। लाभकारी बैक्टीरिया की उपस्थिति के कारण वहाँ हानिकारक बैक्टीरिया पनप नहीं पाते। खीस पीने वाली बछिया को सबसे घातक बैक्टीरिया ई कोलाई का इन्फेक्शन बहुत कम होता है।
खीस पीने वाली बछिया की उत्पादकता बेहतर होती है और वह अच्छी दुधारू गाय बनने के बाद ज्यादा समय तक जीवित रहती है। जिन बछियों को खीस पिलाया जाता है उनमें वृद्धिकाल में वृद्धि की दर भी अपेक्षाकृत अधिक होती है और वह अपेक्षाकृत कम समय में सर्विस कराए जाने के लिए तैयार हो जाती हैं।
जिन बछियों को खीस पिलाया जाता है वह अपने पहले ब्यान्त में अधिक दूध देती हैं।
खीस दस्तावर भी होता है जिसके कारण बछिया के पेट में मौजूद मल जिसे मेकोनियम कहते हैं, आसानी से बाहर निकल जाता है।
कल बात करेंगे खीस के फीडिंग शेड्यूल की और तीन दिन की उम्र से लेकर छह महीने की उम्र तक के फीडिंग शेड्यूल की।
क्रमशः…
डॉ संजीव कुमार वर्मा
प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण)
केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान, मेरठ