‘आर्टिफीसियल इंडक्शन ऑफ़ लैक्टेशन’: बाँझ पशुओं से दुग्ध उत्पादन

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1988

आर्टिफीसियल इंडक्शन ऑफ़ लैक्टेशन’: बाँझ पशुओं से दुग्ध उत्पादन

Artificial Induction of Lactation : Milk Production from Infertile Dairy Cattle

डॉ. निपुणा ठाकुर, डॉ. गीतांजलि सिंह, डॉ. ऋषिका विज, डॉ. अंजलि सोमल

परिचय:

  • बाँझ अथवा बिना ब्याये पशुओं से कृत्रिम रूप से दूध प्राप्त करने की प्रक्रिया को ‘आर्टिफीसियल इंडक्शन ऑफ़ लैक्टेशन’ कहा जाता है।
  • यह एक हार्मोनल प्रक्रिया है, जिसमे दूध संश्लेषित करने वाले हॉर्मोनो और ऊतकों के बीच सामंजस्य बना कर पशु के अयन को दूध बनाने की अवस्था में लाया जा सकता है ।
  • इस प्रक्रिया के संभावित लक्ष्य, ऐसे पशु हैं जो निरंतर प्रयासों के बाद भी गर्भ धारण नहीं कर पाए हों। बाँझ पशुओं की श्रेणी में 3 से 4 वर्ष की ऐसी गायें व बछड़ियाँ आती हैं, जो कृतिम गर्भाधान (आर्टिफीसियल इनसेमिनेशन) के 4 से 5 प्रयासों के बाद भी गाभिन नहीं हो पाई हों ।
  • इसके कई कारण, जैसे पशु की प्रजनन प्रणाली में संक्रामक रोग या योनि में संक्रमण, शारीरिक बनावट अथवा प्रजनन तंत्र से सम्बंधित विकृति, गर्भाधान या भ्रूण धारण करने में अवरोध, शारीरिक दुर्बलता, मद चक्र से संबंधित असमानताएं, इत्यादि हो सकते हैं ।
  • बाँझ पशु किसान पर आर्थिक भोज बन जाते हैं और अक्सर यह ‘लावारिस जानवरों’ की समस्या को जन्म देते हैं ।
  • अच्छी नस्लों के दुधारू पशुओं का इस तरह अनुर्वर रहना बेहतर जनन द्रव्य की बर्बादी है ।
  • इस तकनीक द्वारा प्रजनन रोगों से ग्रसित अथवा गर्भ धारण करने में अशक्षम, अच्छी नस्ल के दुधारू पशुओं से कुछ समय तक दूध लिया जा सकता है ।

बाँझ पशुओं (गायें, भैसें, बछड़ियों), का चुनाव:

  • पशु की उम्र 3 से 4 वर्ष तक और वज़न वयस्क श्रेणी का हो।
  • पशु पूर्ण रूप से स्वस्थ व रोग रहित होना चाहिए ।
  • पशु शारीरिक संरचना का बी. सी. एस. स्कोर 3 से अधिक हो।
  • पशु के प्रजनन अंगों में खराबी या बीमारी नहीं होनी चाहिए ।
  • पशु का अयन एवं थन पूर्णतः विकसित, रोग-विकृति रहित और दोहन के लिए उपयुक्त होने चाहिए।
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आर्टिफीसियल इंडक्शन ऑफ़ लैक्टेशनकी विधि:

  1. पशु का वज़न माप लें और वज़न के अनुसार हॉर्मोनो की डोज़ गणित कर लें।
  2. हार्मोन पाऊडरों को अलग-अलग शीशियों में अल्कोहल में घोल कर, 7 दिन की दवा तैयार कर लें।
  3. इलाज के पहले 7 दिनों में, एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोनो की बराबर मात्रा (1: 1 प्रतिशत) का टीका बनाकर, पशु को दिन में 2 बार (सुबह व शाम), 12 घंटे के अंतराल पर गले की चमड़ी के नीचे दिया जाता है। ऐसा करने से बाँझ पशु के अयन में दूध बनाने की प्रक्रिया का संचार होता है।
  4. अलगे 7 दिन कोई इलाज नहीं होता और पशु को आराम करने दिया जाता है।
  5. पन्द्रवे दिन से पशु के अयन व थनों को 5-10 मिनट के लिए दिन में दो बार सहलाना शुरू किया जाता है। ऐसा करने से रक्त में दूध बनाने वाले मुख्य हॉर्मोनो (प्रोलैक्टिन एवं कोर्टिसोल) की मात्रा बढ़ जाती है। इस से अयन में दूध अच्छी मात्रा में बनने लगता है, जो गायों में 5-7 दिनों में ही उतर आता है। इसकी उपेक्षा भैंसों में 10 से 12 दिन सहलाने के बाद दूध देर से उतरता है।
  6. इस प्रक्रिया से पशु तीसरे हफ्ते से दूध देना शुरू कर देता है और अगर अयन का विकास पूर्ण रूप से न हो तो अयन को सहलाने की प्रक्रिया चौथे हफ्ते तक भी की जा सकती है ।
  7. अयन में पूरी तरह दूध भर आने पर ही दोहन की प्रक्रिया प्रारम्भ करें ।
  8. इस प्रकार कृत्रिम रूप से पोसाए गए दूध की सरंचना, पहले 2 से 3 दिन तक खीस की तरह होती है, जो 7 से 10 दिन बाद सामान्य हो जाती है ।
  9. पहले 2 हफ़्तों तक दूध पशु को पिलायें या उसकी सानी कर दें ।
  10. इस प्रक्रिया से साहीवाल व थारपारकर गायों से 6-8 और अच्छी नस्ल की भैसों से 10-12 किलोग्राम दूध प्रतिदिन लिया जा सकता है ।
  11. एक बार दूध निकालने के बाद, ऐसे पशु पुरे ब्यांत में दूध देते रहते हैं, लेकिन अयन व थनों को प्रतिदिन दोहने से पहले 5-10 मिनट तक सहलाना चाहिए ।
  12. इस विधि से प्राप्त दूध की मात्रा पिछले ब्यांत की दूध की मात्रा की 60-70 % तक हो सकती है ।
  13. इस विधि से उपचारित 75-80% पशु दोहने लायक अच्छी मात्रा में दूध देने लगते हैं। बाकी पशुओं में दूध की मात्रा शुरू में 200-300 मि. ली. तक हो सकती है। ऐसे पशु और इसके अथवा 2 महीने तक भी कम दूध देने वाले पशुओं को सूखा कर फिर से हॉर्मोन टीके लगा सकते हैं। परन्तु दो उपचारों के बीच कम से कम 2 महीने का अंतर आवश्यक है।
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दवा की ख़ुराक (पशु चिकित्षक के परामर्श से):

  • 1:1 (देसी नस्ल की गायों) अथवा 1:2.5 (विदेशी नस्ल की गायों) अनुपात में, हॉर्मोन ‘एस्ट्राडिओल 17- बीटा’ (0.1 मिली ग्राम प्रति किलो वजन) और हॉर्मोन ‘प्रोजेस्टेरोन’ (0.25 मिली ग्राम प्रति किलो वजन) प्रतिदिन, 7 दिन के लिए (2 भागों में बाँटकर, सुबह व शाम, 12 घंटे के अंतराल पर) चमड़ी के नीचे दें ।
  • इंडक्शन की अन्य प्रक्रियाओं में अयन के विकास में वृद्धि करने वाले औषधीय पदार्थ जैसे की: ‘रेकॉम्बिनैंट ग्रोथ हॉर्मोन’ (आर. बी. एस. टी.) (शुरू में और हर 14 दिन बाद); प्रोलैक्टिन हॉर्मोन को बढ़ाने वाला ‘रेसेरपीन’ (दिन 9 से 14 के बीच एकांतर पर); और रक्त में ग्लूकोस बढ़ाने वाले ‘ग्लुकोकोर्टीकोइड’ (डेक्सामेथासोन) (दिन 18 से 20 पर) आदि भी, इंडक्शन की प्रक्रिया को और कारगर बनाने के लिए दिए जा सकते हैं ।

हॉर्मोन टीके गले की चमड़ी के नीचे दें              अयन का अच्छा विकास होने पर और दूध उतरने पर, दोहन प्रक्रिया शुरू करें

 

विशेष बातों पर ग़ौर:

  • सुबह शाम के टीकों के बीच 12 घंटे का अंतराल ।
  • पशु के अयन व थनों को प्रतिदिन सुबह शाम सहलाना।
  • पशु को साफ़,खुला पानी, संतुलित दाना और हरा चारा दें।
  • प्रक्रिया से पूर्व पशु की डीवॉर्मिंग व वेक्सिनेशन ।
  • साफ़, आरामदायक व शांत पशु आवास।
  • गर्मी या ठण्ड से पशु का बचाव ।

लाभ:

  1. मद चक्र का सामान्य हो जाना
  • हॉर्मोनो से उपचार के बाद 50% पशु सामान्य प्रजनन चक्र में आ जाते हैं और गाभिन भी हो जाते हैं ।
  • हॉर्मोन के टीके लगाने के समय और पश्चात् पशु गर्मी दिखाते रहते हैं, लेकिन यह गर्मी एस्ट्राडिओल हॉर्मोन के कारण दिखती है और मद चक्र से संबंधित असली गर्मी नहीं होती।
  • पशु सही गर्मी दूध देने के बाद ही दिखाता है, जब मद चक्र सामान्य हो जाता है ।
  • उस समय ऐसे पशुओं को गर्भित किया जा सकता है ।
  1. दूध की आपूर्ति से साल भर आर्थिक लाभ
  • अगर उपचारित पशु गाभिन न हो सकें तो, उनसे पुरे ब्यांत में दूध लेने के बाद जब दूध की मात्रा 1-2 किलो रह जाए तो उन्हें सुखाकर फिर से 2-3 महीने बाद हॉर्मोनो द्वारा उपचारित किया जा सकता है।
  1. आवारा पशुओं की समस्या का अच्छा विकल्प
  • किसान बाँझ पशुओं को अक्सर लावारिस छोड़ देते हैं और वह सड़क दुर्घटनाओं, फसलों और चरागाहों की बर्बादी, सड़क हिंसा, जैसी गंभीर समस्याओं के कारण बनते हैं।
  • ‘आर्टिफीसियल इंडक्शन ऑफ़ लैक्टेशन’ हार्मोनल प्रक्रिया द्वारा बाँझ पशुओं से कुछ दूध लिया जा सकता है और इनके मद चक्र के सामान्य हो कर गाभिन होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है ।
  • अगर किसानों को अच्छी नस्ल की गायों से थोड़ा भी दूध प्राप्त होता रहेगा, तो वह इन जानवरों को सड़कों पर आवारा न छोड़ कर, अपनाने के लिए प्रेरित होंगे और इससे ‘आवारा पशुओं की समस्या’ से भी कुछ निजात मिल सकती है ।
  1. भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक जैसे कुछ विशिष्ट शोध कार्यों के लिए भी इस तकनीक से उपचारित पशुओं का प्रयोग किया जा सकता है
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सारंश:

उचित तकनिकी सहयोग एवं बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन करने पर, ‘आर्टिफीसियल इंडक्शन ऑफ़ लैक्टेशन’ प्रक्रिया किसानों की आय वृद्धि, बाँझ एवं लावारिस पशुओं की समस्या, का एक प्रस्तावित हल बन सकती है।

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