बकरी मे कृत्रिम गर्भाधान बकरी पालन का करे उत्थान

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बकरी मे कृत्रिम गर्भाधान

बकरी मे कृत्रिम गर्भाधान बकरी पालन का करे उत्थान

डॉ० विपिन सिंह,1 डॉ० मोहित महाजन 2, डॉ० अखिल पटेल,3 डॉ० शिव प्रसाद 4

बकरी जुगाली (रुमीनेसन) करने वाला पशु है, तथा बकरी पालन का व्यवसाय गरीब किसानों और भूमिहीन  मजदूरों के लिए आय का एक अच्छा साधन बनता जा रहा है। उचित जानकारी के अभाव में किसान उससे ज्यादा लाभ नहीं कमा पाते हैं । किसान को पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन का ज्ञान होना अत्यधिक आवश्यक है। अगर किसान बकरी पालन को वैज्ञानिक तरीके से करें तो इस व्यवसाय से किसानों की आय दोगुनी से तिगुनी की जा सकती है। किसान को बकरी पालन शुरू करने से पहले उचित प्रशिक्षण लेना चाहिए। यदि किसान  बकरियों को सही समय पर और सही नस्ल के सीमेन से गर्भित कराते हैं तो  किसान को अत्यधिक लाभ मिलेगा।

  • बकरी से किसान को दूध, दूध से बने पदार्थ, मांस और चमड़ा प्राप्त होता है जिससे किसान की आय मे बृद्धि होती है ।
  • बकरी का दूध कई बीमारियों मे चिकित्सा के रूप मे प्रयोग मे आता है और बकरी वातावरण मे नुकसानदायक खरपतवार को खाकर वातावरण को साफसुथरा रखने का भी कार्य करती है ।
  • मनुष्य की जनसंख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है जिससे भविष्य मे खाद्य पदार्थों की मांग भी बढ़ेगी । बकरी से मनुष्य को मांस के रूप मे भोजन भी प्राप्त होता है ।
  • बकरियों मे नस्ल सुधार और उनकी संख्या तेजी से बढ़ाने के लिए आधुनिक प्रजनन तकनीति को अपनाना बहुत ही आवश्यक है ।
  • आधुनिक प्रजनन तकनीति मे बकरी मे गर्मी का एकीकरण (एस्ट्रस सीन्क्रोनाइजेसन) एवं कृत्रिम गर्भाधान मुख्य हैं ।
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  • गर्मी का एकीकरण (इस्ट्रस सीन्क्रोनाइजेसन)

बकरी के समूह को एक साथ गर्मी मे लाने की प्रक्रिया को ही इस्ट्रस सीन्क्रोनाइजेसन कहा जाता है, इस के निम्नलिखित मुख्य लाभ हैं जैसे की

  • बकरियों मे गर्मी मे आने की पहचान आसानी से हो जाती है।
  • गर्भित बकरियों की एकसाथ देख रेख मे भी आसानी होती है।
  • एक साथ ही नवजात मेमने प्राप्त होते हैं और उनकी देखरेख मे आसानी होती है।

 

  • पशु चिकित्सक द्वारा बकरी के समूह मे गर्मी का एकीकरण करने के लिए हॉर्मोन जैसे की प्रोस्टागलांडीन या प्रोजेस्ट्रोन नामक हॉर्मोन का उपयोग किया जाता है जिससे अधिक से अधिक पशु एक साथ ही गर्मी पर आते हैं।

 

  • बिना हॉर्मोन के प्रयोग से जैसे की प्रकाश की अवधि परिवर्तित कर या फिर नर बकरे का प्रयोग कर के भी बकरी को गर्मी पर लाया जा सकता है ।

 

बकरी मे गर्मी की पहचान करना

बकरी मे मासिक चक्र २१ दिन का होता है तथा बकरी २४ से ३६ घंटे तक गर्मी पर रहती है । बकरी मे गर्मी की पहचान करना बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है जिसके उपरांत ही सही समय पर बकरी मे कृत्रिम गर्भाधान या फिर सामान्य ब्रीडिंग कर सकते हैं।

बकरी मे गर्मी के प्रमुख लक्षण

  • बकरी के ऊपर् दूसरी बकरियों का चढ़ना
  • भूख और दूध का कम होना
  • बकरी का तेज आवाज करना
  • दूसरी बकरियों की रगड़ना
  • भग मे सूजन और लाल हो जाना
  • साफ तरल पदार्थ का गिरना इत्यादि

बकरी मे प्रजनन के महीने मे या गर्मी के एकीकरण के पश्चात रोजाना १५ से २० मिनट तक दो से तीन बार गर्मी मे आए पशुओ की पहचान करना आवश्यक होता है । एकदम सुबह और देर दोपहर बाद का समय गर्मी की पहचान करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।

  • बकरी मे कृत्रिम गर्भाधान
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उच्च नस्ल के बकरे से सीमेन को निकालकर उसका प्रयोगशाला मे अतिशीत (-१९६° से.) करके संरछित किया जाता है, तथा बकरी के गर्मी पर आने पर उपयुक्त समय पर गर्भाशय मे कृत्रिम गर्भाधान तकनीकी ब्यक्तियों द्वारा डाला जाता है जिससे गर्भधारण होता है।

  • कृत्रिम गर्भाधान से उच्च कोटि के नस्ल के मेमनों की प्राप्ति होती है।
  • बकरी मे बकरे से फैलने वाली प्रजनन संबंधी गंभीर बीमारियों से बचाव होता है।
  • अगर बकरियों को सही समय पर गर्भित कराते हैं तो गर्भधारण दर मे बृद्धि होती है और किसान को लाभ मिलता है।
  • उत्तर भारत में बकरियों को 15 सिंतबर से लेकर नवंबर और 15 अप्रैल से लेकर जून तक गाभिन कराना चाहिए।
  • सही समय पर बकरियों को गाभिन कराने से नवजात मेमनों की मृत्युदर मे भी कमी आती है और किसान के लिए लाभप्रद भी होता है।

बकरी के प्रजनन शक्ति , स्वस्थ और दुग्ध को बनाए रहने के लिए संतुलित आहार के साथ साथ नियमित साफ-सफाई भी बहुत आवश्यक  है। जहां पर बकरी को बांधे वहां की एक या दो इंच परत मिट्टी की समय-समय पर पलट दें या उसे नियमित समय पर बदलते रहें , जिससे उसमें जो परजीवी होते हैं, वो निकल जाते हैं। बाड़े की मिट्टी जितनी सूखी होती है उतनी ही बकरियों को बीमारियां कम होती है। इसके अलावा बकरियों को गीले स्थान से दूर रखा जाए।

  • बकरी के ग्याभिन होने पर उसे अत्यधिक मात्रा में हरा चारा और खनिज लवण देना चाहिए। पशुपालक ब्यात के पश्चात मेमने को जितना जल्दी बच्चे को मां का पहला दूध (खीस) पिलाएंगे उतना ही बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता तेजी से बढ़ती है और मेमने की मृत्युदर मे भी कमी आती है।
  • बकरीपालन मे नई प्रजनन तकनीति का उपयोग करके किसान को अत्यधिक लाभ मिल सकता है और पशुधन के विकास के साथ ही किसान की आय मे भी बृद्धि होती है।
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Authors Detail

  • डॉ० विपिन सिंह
    टीचिंग परसनल , मादा रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग. जी. बी. पी. यू. ए. टी. पंत नगर (उत्तराखंड)
  • डॉ० मोहित महाजन
    पी.एच.डी. स्कॉलर मादा रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग.  जी. बी. पी. यू. ए. टी. पंत नगर (उत्तराखंड)
  • डॉ० अखिल पटेल, सहायक प्राध्यापक, मादा रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग , यस.वी. पी. यू. ए. टी. मेरठ (उत्तर प्रदेश)
  • डॉ० शिव प्रसाद

प्राध्यापक,  मादा रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग. जी. बी. पी. यू. ए. टी. पंत नगर (उत्तराखंड)

 

 

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