कुत्ते और बिल्लीयों में दमा (Asthama) रोग एवं निदान

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कुत्ते और बिल्लीयों में दमा (Asthama) रोग एवं निदान

डॉ. अपूर्वा वर्मा1, डॉ.नृपेंद्र सिंह2

  1. एम.वी.एससी स्कॉलर थेरियोजेनोलॉजी प्रयोगशाला, वेटरनरी गायनोकोलॉजी एंड ऑब्सटेट्रिक्स, दक्षिणी क्षेत्रीय स्टेशन, आईसीएआर-राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान बेंगलुरु-560030
  2. एम.वी.एससी स्कॉलर पशु शरीर रचना एवं उत्तक विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज, अयोध्या, उत्तर प्रदेश

एक एलर्जी से पीड़ित पशु में दमा का रोग हो सकता है। होमियोपैथिक चिकित्सकों के अनुसार त्वचा में खाज खुजली से यह प्रारम्भ होता है और कोर्टिसोन / स्टेरायड देकर इसको दबाने से यह फेफड़े के गहरे परत में चला जाता हैं। स्वास लेने में कठिनाई दमा के मरीज को रहती है। दमा की चढ़ाई से स्वास लेने में अधिक कठिनाई होती. खांसी आना बढ़ जाता है और गले की घरघराहट बढ़ जाती है। दमा का मरीज पशु जब स्वास लेता है तो उसकी घर-घराहट दूर तक सुनाई पड़ती है। आक्सीजन की कमी से दांत और मसुड़े उसके नीले पड़ जाते हैं। छोटा बच्चा मुँह खोलकर केवल लेट जाता है और स्वांस लेने की कोशिश करता है। दमा की चढ़ाई धीमी गति से भी हो सकती है और भयानक रूप से रोग से भी पशु परेशान हो सकता है। वह अपने कंधे को उठाकर या बैठाकर भी बैठा रह सकता है। दमे का आक्रमण जानलेवा साबित हो सकता है। इसलिए पशु को स्वास लेने में जब अधिक कठिनाई हो तो उसे अस्पताल में भर्ती करा देना चाहिए। कुत्तों से अधिक बिल्लीयों में दमा रोग हुआ करता है। हृदय के रोग की परिणति भी पशुओं में दमे के रूप में हो सकती है। एलोपैथिक पशु चिकित्सा पद्धति में कुत्तों के दमे का इलाज उसे कोरटिसोन एडरेनलीन और ब्रोकोडायलेटर दवाएं देकर की जाती है, लेकिन बिल्लीयों को यह नहीं दिया जाता। दमा में पालतु पशु को शान्त करना पहला काम होता है और इसके लिए सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धतियां बहुत उपयुक्त रहती है। रसायनिक दवा स्टेरायड द्वारा पशु का इलाज पशु के लिए ठीक नहीं होता। इससे पशु की सुरक्षा कवच छिन भिन्न हो जाती है और रोग गहरे से गहरे गर्त में दब जाता है। जबकि सम्पूर्ण चिकित्सा द्वारा रोगों को दबाने के बजाय निकाल दिया जाता है। अनित्रा फेजरवे ने इसका कारण रक्त शर्करा की कमी बताया है और इसका सम्बंध हिपोग्लोसेनिया से जोड़ा है। जोन्स वाल्व ने दमा का कारण मैग्नेशियम की कमी बताया है या मैग्नेशियम को पचाने की शारीरिक क्षमता की कमी पशु में बताया है। फेफड़े में चारों ओर फैली मांसपेशियों में आक्सीजन की कमी के कारण ऐठन या संकोचन प्रचारण होता है और इस के कारण दमा का आक्रमण होता है। मैग्नेशियम ही शरीर में कही भी मांसपेशियों का ऐठन हो, एक मात्र औषधि है। इसलिए दमा रोग से पीड़ित पशु को हिपो ग्लीसेमिक अहार देना चाहिए। व्यवसायिक सल्फाइट अहार उसे कभी नहीं खिलाना चाहिए। उसे उस स्थान पर रखना चाहिए. जहां पर बीड़ी सिगरेट का धुआँ न जाता हो। ऐसे रोग में भूलकर भी बीफ नहीं देना चाहिए।

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पोषण चिकित्सा :- रोगी पशु को प्राकृतिक अहार ही दीजिए तथा बाजार में उपलब्द्ध कुत्ते और बिल्लीयों के लिए ‘गुडीज’ उसे भूल कर भी नहीं दीजिए। रोगी कुत्ते को कथा हाइड भी मत दीजिए। उसे ग्लीसेमिक अहार दीजिए जिसका अर्थ होता है अधिक प्रोटीन युक्त अहार, उसे थोड़ा-थोड़ा खाना दिन में कई बार खिलाइए, जिसमें शकरा न हो और न रसायनिक उत्पाद कोई वस्तु ही हो पाकेट अहार तो उसे दीजिए ही नहीं सम्पूर्ण कव्या अहार दीजिए जिसमें कार्बोहाइड्रेट की बहुलता न हो और प्रतिदिन के अहार में प्रयाप्त मात्रा में विटामिन्स और मिनरल्स को भी मिलाइए। ठंडा भोजन, डेयरी उत्पाद और वीट उसे मत दीजिए।

प्राकृतिक चिकित्सा :- चूना तत्व को शरीर में आपूर्ति के लिए तरल क्लोरोफील रोगी पशु को देना जरूरी है। इससे रक्त शरकरा का भी संतुलन होता है। मोन उत्पाद एलर्जिक पशु को देना जरूरी है, जो दमा का शिकार हो चूका है। इसके बदले में रोगी पशु को प्रतिदिन कच्चा शहद भी दे सकते हैं। इससे पशु का सुरक्षात्मक कवच मजबूत होता है। लहसून जरूर प्रतिदिन के अहार के साथ पशु को दीजिए। यह आन्तरिक एण्टीसेप्टीक का काम करता है। केल्प और हड्डी का पाउडर पशु की मांसपेशियों के जकड़न को दूर करता है और पशु में चूना और मैगनेशियम की आपूर्ति करता है। सप्ताह में उसे एक बार उपवास कराइए इससे शारीरिक विषाक्त मल निकल जाता है तथा प्रत्येक अहार के साथ पाचक इन्जाइम उसे अवश्य दीजिए।

विटामिन और मिनरल्स चिकित्सा :- विटामिन ए और ‘ई’ शरीर से विषाक्त तत्वों को दूर करने और फेफड़े को मजबूत रखने के लिए रोगी पशु को देना ठीक रहता है। लेकिन इसके साथ प्राकृतिक अहार ही दीजिए विटामिन ए से टिसूओं की मरम्मत हो जाती है और शारीरिक सुरक्षा कवच को भी बल मिलता है और विटामिन ‘ई’ फेफड़े को जख्मी होने तथा उसे चिड़चिड़ा होने से बचाता है। पशु को प्रतिदिन के अहार के साथ ‘बी’ कमप्लेक्स, बी-5 (पैनटोथेनिक) एशिड). B-6 (प्रिडीक्सीन) तथा बी-12 (सीनोकोबले माइन) दीजिए। मैग्नेशियम देने से दमा का आक्रमण रूक जाएगा। जेम्स वाल्व के सूझाव के अनुसार मैग्नेशियम 750 एमजी और चूना 1500 एमजी शिशु पशु को दीजिए और बड़े पशुओं को उसके शारीरिक वजन के अनुसार मात्रा बढ़ा कर दीजिए। बायोफेमोनायड के साथ 250 एमजी विटामिन सी पशु को पानी के साथ पीलाइए।

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होमियोपैथिक चिकित्सा :- एकोनाइट दमा के आक्रमण के पहले दीजिए जिससे पशु में ठंड से भय दूर हो जाय। अरसेनिकम’ से शारीरिक गर्मी बढ़ती है और पशु को शान्ति मिलती है और उसका थकान दूर होता है। चैमोमिला दीजिए जब रोगी पशु में दमा का दौरा पड़ने पर गुस्सा आता हो और वह अशान्त हो। कार्बोवेग को पशु के उस हालत में दीजिए जब उसे नाक मुँह से अधिक खखार पोटा निकलता हो और इसी का कय करता हो, जोर-जोर से स्वांस लेता हो और अधिक थकान महसूस करता हो। जब पशु कठिनाई से स्वांस ले पाता हो तो उसका म्यूकस मेम्बरेन क्षतिग्रस्त हो चूका होता है और इसके लिए फोसफोरस दीजिए। उ से 5 बजे सुबह होने वाले दमा के दौरा में काली कार्ब अधिक उपयुक्त होता है। लावेला को आप देकर कोशिश कर सकते हैं।

https://www.narayanahealth.org/blog/know-asthma-to-beat-asthma-hindi/

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