अजोला : पशुओं के लिए एक वरदान
भारत की अर्थव्यवस्था में पश्ाुपालन की सदैव महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पशुपालन व्यवसाय लघू और सीमान्त किसानों, ग्रामीण महिलाओं और भूमिहीन कृषि श्रमिकों को रोजगार के पर्याप्त व सुनिश्चित अवसर देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ठोस आधार प्रदान करता है। प्राय: मानसून के अलावा पशुओं को फसल अवशेषों एवं भूसे आदि पर पालना पड़ता है जिससे पशुओं की बढोतरी, उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
इस समस्या से उभरने के लिए पशुपालकों को अजोला फर्न की खेती आश्वयक रूप से करनी चाहिए।
अजोला के गुण:-
अजोला जल सतह पर मुक्त रूप से तैरने वाली जलीय फर्न है। यह छोटे छोटे समूह में सद्यन हरित गुक्ष्छ की तरह तैरती है। भारत में मुख्य रूप से अजोला की जाति अजोला पिन्नाटा पाई जाती है। यह काफी हद तक गर्मी सहन करने वाली किस्म है।
•यह जल मे तीव्र गति से बढवार करती है।
•यह प्रोईन आवशयक अमीनो अम्ल, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा कैरोटीन) विकास वर्धक सहायक तत्वों एवं कैल्श्ाियम, फॉस्फोरस, पोटेश्ाियम, फैरस, कॉपर एवं मैग्नश्ाियम से भरपूर है।
•इसमें उत्तम गुणवत्ता युक्त प्रोटीन एवं निमनलिखत तत्व होने के कारण मवेश्ाी इसे आसानी से पचा लेते है।
•शुष्क वजन के आधार पर इसमें 20-30 प्रतिशत प्रोईन, 20-30 प्रतिशत वसा, 50-70 प्रतिशत खनिज ततव, 10-13 प्रतिशत रेश्ाा, बायो-एक्टिव पदार्थ एवं बायो पॉलीमर पाये जाते हैं
•इसकी उत्पादन लागत काफी कम होती हैं
•यह औसतन 15 क़िग़्रा वर्गमीटर की दर से प्रति सप्ताह उपज देती है
•सामान्य अवस्था मे यह फर्न तीन दिन में दौगुनी हो जाती है
•यह जानवरों के लिए प्रति जैविक का कार्य करती है।
•यह पशुओ के लिए आर्दश्ा आहार के साथ साथ भूमि उर्वरा शक्ति बढाने के लिए हरी खाद के रूप में भी उपयुक्त है।
•रिजका एवं संकर नेपियर की तुलना मे अजोला से 4 से 5 गुना उच्च गुणवता युकत प्रोटीन प्राप्त होती है यदि जैव भार उत्पादन के रूप में तुलना करे तो रिजका व संकर नेपियर से अजोला 4 से 10 गुना तक अधिक उत्पादन देता है। आर्थि पशुपालन उत्पादन की वृद्वि में इन दोनो कारको के अति महत्वपूर्ण होने से अजोला को जादुई फर्न अथवा सर्वोत्तम पादप अथवा हरा सोना अथवा पशुओ के लिए च्वनप्राश्ा की संज्ञा दी गई है।
•किसी छायादार स्थान पर 60 X 10 X 2 मीटर आकार की क्यारी खोदें
•क्यारी में 120 गेज की सिलपुटिन शीट को बिछाकर उपर के किनारो पर मिटटी का लेप कर व्यवस्थित कर दें।
•सिलपुटिन शीट को बिछाने की जगह पशुपालक पक्का निर्माण कर क्यारी तैयार कर सकते है।
•80-100 किलोग्राम साफ उपजाउ मिटटी की परत कयारी में बिछा दें।
•5-7 किलो गोबर (2-3 दिन पुराना) 10-15 लीटर पानी में घोल बनाकर मिटटी पर फेला दें।
•क्यारी में 400-500 लीटर पानी भरे जिसमे क्यारी में पानी की गहराई लगभग 10-15 सेमी तक हो जावें।
•अब उपजाउ मिटटी व गोबर खाद को जल में अच्छी तरह मिश्रित कर देवे।
•इस मिश्रण पर दो किलो ताजा अजोला को फेला देवें इसके पश्चात से 10 लीटर पानी को अच्छी तरह से अजोला पर छिडके जिससे अजोला अपनी सही स्थिति में आ सकें।
•कयारी को अब 50 प्रतिशत नायलोन जाली से ढक कर 15-20 दिन तक अजोला को वृद्वि करने दें।
•21वें दिन से औसतन 15-2़0 क़िलोग्राम अजोला प्रतिदिन प्राप्त की जा सकती है।
•प्रतिदिन 15-2़0 क़िलोग्राम अजोला की उपज प्राप्त करने हेतु 20 ग्राम सुपरफॉस्फेट तथा 50 क़िलोग्राम गोबर का घोल बनाकर प्रति माह क्यारी में मिलावें।
•मुर्गियों को 30-50 ग्राम अजोला प्रतिदिन खिलाने से मुर्गियों मे शारीरिक भार व अण्डा उत्पादन क्षमता में 10-15 प्रतिशत की वृद्वि होती है।
•भेंड एवं बकरियों को 150-200 ग्राम ताजा अजोला खिलाने से शारीरिक वृद्वि एवं दुग्ध उत्पादन में बढोतरी होती है।
रखरखाव
•क्यारी में जल स्तर को 10 सेमी तक बनाये रखें
•प्रतिदिन 15-2़0 क़िलोग्राम अजोला की उपज प्राप्त करने हेतु 20 ग्राम सुपरफॉस्फेट तथा 50 क़िलोग्राम गोबर का घोल बनाकर प्रति माह क्यारी में मिलावे।
•प्रत्येक 3 माह पश्चात अजोला को हटाकर पानी व मिटटी बदलें तथा नई क्यारी के रूप में दुबारा पुनसवर्धन करें।
•अजोला की अच्छी बढवार हेतु 20-35 सेन्टीग्रेड तापक्रम उपयुक्त रहता है।
•शीत ऋतु में ताक्रम 60 सेन्टीग्रेड से नीचे आने पर अजोला क्यारी के प्लास्टिक मल्च अथवा पुरानी बोरी के टाट अथवा चददर से रात्रि में ढक देवे।
अजोला उत्पादन इकाई स्थापना में कयारी निर्माण, सिलपुटिन शीट छायादार नाइलोन जाली एवं अजोला बीज की लागत पशुपालक को प्रति वर्ष नही देनी पडती है इन कारकों को ध्यान में रखते हुए अजोला उत्पादन लागत लगभग 100 रू क़िलो से कम आंकी गयी है।
अजोला क्यारी से हटाये पानी को सब्जियों एवं पुष्प खेती मे काम मे लेने से यह एक वृद्वि नियामक का कार्य करता है। जिससे सब्जियों एवं फूलों के उत्पादन में वृद्वि होती है। अजोला एक उत्तम जैविक एवं हरी खाद के रूप में कार्य करता है।
डॉ जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी ,कानपुर देहात,Azolla उत्तर प्रदेश