झारखंड में मनाया जाने वाला शिकार पर्व बाहा सेंदरा

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झारखंड में मनाया जाने वाला शिकार पर्व बाहा सेंदरा

 

जमशेदपुर में ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले संथाल आदिवासी हर साल अपनी परंपरा के अनुसार बाहा सेंदरा पर्व मनाते हैं. इसके अनुसार पहले आदिवासी समाज के पुरुष सेंदरा करने जंगल की ओर जाते हैं. सेंदरा का अर्थ शिकार होता है. सेंदरा से लौटने पर उनका इंतजार करने वाली महिलाएं पैर धोकर उनका स्वागत करती हैं और पानी से ही होली खेलती हैं. इनकी होली में रंग का इस्तेमाल नहीं होता.

झारखंड में जल जंगल जमीन की पूजा करने वाले आदिवासी समाज द्वारा मनाए जाना वाला बाहा पर्व को समाज आज भी पुरानी संस्कृति के अनुसार निभाते आ रहे हैं. प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास से पहले मनाए जाने वाले बाहा पर्व में संथाल समाज के लोग सेंदरा पर जाते हैं और उनके लौटने पर गांव में उनका स्वागत करते हुए पानी की होली खेली जाती है. ग्रामीण पानी की होली को पवित्र मानते हैं. प्रकृति की पूजा करने वाले आदिवासी समाज में मनाए जाने वाले सभी पर्व त्योहार प्रकृति से जुड़े हुए होते हैं. यह समाज आज भी सभी पर्व त्योहार को अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार निभाता आ रहा है.

बाहा से पहले पूरे गांव में होता है घरों का रंग रोगन

जानकारी के अनुसार बाहा से पहले पूरे गांव में घरों का रंग रोगन कर गांव को सजाया जाता है. आदिवासी अपनी भाषा के गीतों पर झूमते हैं जिनमें महिलाएं, युवा पीढ़ी के अलावा बुजुर्ग भी शामिल रहते हैं. वहीं, गांव में जगह-जगह महिलाएं अपने घरों के बाहर लोटा में पानी लेकर अपने दरवाजे के पास खड़ी सेंदरा मनाने गए युवकों के आने का इंतजार करती हैं.

ढोल, नगाड़ा, मांदर की थाप पर ग्रामीण झूमते गाते गांव पहुंचते हैं. उनके आते ही महिलाएं तेल और पानी से उनके पैर को धोकर उनका स्वागत करती हैं और उनका आशीर्वाद लेती हैं. इस मौके पर महिलाएं सेंदरा मनाकर लौटने वाले ग्रामीणों पर पानी की बौछार करती हैं. इस तरह आदिवासी समाज में पानी की होली खेली जाती है. इस दौरान ग्रामीणों को चना और हड़िया भी दिया जाता है जिसका वो सेवन करते हैं.

तीर धनुष और अन्य हथियार की पूजा

अपनी इस पुरानी परंपरा संस्कृति के बारे में माझी परगना के दशमत हांसदा बताते हैं कि बाहा के दिन गांव के नायके यानी पंडित के घर ग्रामीण अपने तीर धनुष और अन्य हथियार को पूजा के लिए रखते हैं और शगुन सुपड़ी जिसे मिट्टी का कलश कहते हैं उसमें जल भरकर रखते हैं. दूसरे दिन शुभ मुहूर्त देखकर तीर धनुष हथियार लेकर गांव के आस-पास के जंगलों में सेंदरा करने जाते हैं. सेंदरा के दौरान कई जड़ी बूटियों की जानकारी भी उन्हें मिलती है. उनका भी शिकार कर घर लाया जाता है. गांव में लाए गए शिकार को सभी के बीच बांटा जाता है.

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सेंदरा से लौटने का इंतजार करती हैं महिलाएं

गांव में महिलाएं सेंदरा के लिए गए लोगों के लौटने का इंतजार करती हैं और आने पर अपनी परंपरा के अनुसार स्वागत करती हैं. दशमत हांसदा बताते हैं कि शगुन सुपड़ी के जल को देखकर पूरे वर्ष का हाल पता चल जाता है. अगर शगुन सुपड़ी में पानी लबालब रहता है तो यह मान्यता है कि इस साल फसल अच्छी होगी, गांव में रिश्ते बनेंगे. अगर पानी कम होता है तो यह माना जाता है संकट का समय रहेगा जिसके लिए वे व्यवस्था कर लेते है. उनका कहना है कि आज की युवा पीढ़ी भी समाज की इस परंपरा से जुड़ रही है.

रंग का इस्तेमाल सिर्फ शादी में

बाहा सेंदरा पर्व में गांव का नजारा अदभुत रहता है. ग्रामीण तनाव मुक्त बिना संकोच के अपनी परंपरा को उल्लास के साथ निभाते हैं. गांव के छोटे प्रधान चंपई मुर्मू को अपनी इस पुरानी परंपरा पर गर्व है. उन्होंने बताया कि आदिवासी समाज में रंग से होली नहीं खेली जाती है. पानी भी उसी पर डालते हैं जिससे पारिवारिक संबंध होता है. रंग का इस्तेमाल सिर्फ विवाह में करते हैं. यह मान्यता है कि अगर किसी लड़की पर रंग लग जाये तो उसे छड़वी कहते हैं इसलिए प्रकृति की देन सिर्फ पानी से होली खेलते हैं.

युवा पीढ़ी पर भी परंपरा का रंग

ग्रामीण पुरुषों का पैर धोने के बाद जो रिश्ते में बड़े होते हैं वो महिलाओं को पानी की बूंदे छींटकर आशीर्वाद देते हैं. गांव की युवा पीढ़ी भी इस परंपरा के रंग में खुद को शामिल कर खुश है. रूपी हांसदा बताती हैं कि उन्हें अपनी पुरानी परंपरा संस्कृति से लगाव है उसे अच्छा लगता है. बचपन से उनके परिजन उसे अपने पर्व त्योहार की जानकारी देकर उनका महत्व बताते आ रहे हैं. वहीं, गांव की बुजुर्ग महिला दुखनी सोरेन का कहना है कि सब कुछ बदला लेकिन हमारी परंपरा नहीं बदली है. हम आज भी अपनी पुरानी परंपरा को मनाकर खुश हैं.

गांव के जाहेर स्थान कमेटी के अध्यक्ष भोक्ता हांसदा बताते हैं कि वर्तमान में सेंदरा के लिए गांव के टोला में ग्रामीण मुर्गी का शिकार कर लौटते हैं और आगामी चैत माह के बाद मनाए जाने वाले सेंदरा की तैयारी शुरू हो जाती है. इस साल कोरोना को देखते हुए जाहेर स्थान में प्रार्थना की गई है कि कोरोना ना फैले और देश से कोरोना खत्म हो जाए.

 

आदिवासियों के पारंपरिक शिकार पर्व की तिथि तय हो गई. दलमा राजा राकेश हेम्ब्रम के गदड़ा स्थित आवास पर दलमा बुरू सेंदरा समिति की बैठक में आगामी 9 मई को शिकार पर्व मनाने का निर्णय लिया. बैठक में 12 मौजा के मांझी महाल, मुंडा, परगना, सेंदरा वीर समेत स्थानीय ग्रामीण शामिल हुए. बैठक के बाद दलमा राजा राकेश हेम्ब्रम ने बताया कि शिकार पर्व के दिन सभी सेंदरा वीर डुगडुगी बजाकर एवं मशाल जलाकर शिकार करने जाते हैं. बाजा की आवाज एवं मसाल देखकर जीव जंतु स्वयं भाग जाते हैं. जो नहीं भागते हैं, हमला करने की तैयारी करते हैं, उन्हीं जानवरों का शिकार किया जाता है. इससे पहले आज सुबह परंपरागत तरीके से दलमा माई, वन देवता, ग्राम देवता और इष्‍ट देवता की पूजा-अर्चना की गई. उसके बाद बैठक में सेंदरा वीरों से अलग-अलग विचार लिए गए. उन्होंने कहा कि शिकार पर्व का आयोजन सदियों से होते आ रहा है. पूर्वजों की परंपरा को बरकरार रखने एवं देवी-देवताओं से आशीर्वाद के लिये ही सभी जंगल जाते हैं. दलमा राजा ने बताया कि पूर्वजों की परंपरा के अनुसार शिकार पर्व के दिन सभी जड़ी-बूटी की भी खोज एवं सिंहराय शिक्षा प्राप्त करने जंगल जाते हैं. इसके तहत परंपरा की जानकारी पहली बार शिकार पर गए लोगों को प्रदान की जाती है.  इस दौरान दलमा रेंज के डीएफओ अभिषेक कुमार और रेंजर दिनेश चंद्रा ने सेंदरा वीरों से शिकार पर्व नहीं मनाने और जंगली जानवरों का शिकार नहीं करने की अपील की. इस दौरान सेंदरा वीरों को लघु फिल्म भी दिखाई गई. शिकार पर्व की तिथि तय होने के बाद इसकी जानकारी सभी सेंदरा वीरों को भेजने की कार्रवाई शुरू की गई. इस पर्व में झारखंड के अलावे बिहार, प. बंगाल एवं ओड़िसा के सेंदरा वीरों को शामिल होने के लिए न्योता भेजा गया. दस हजार सेंदरा वीरों के शामिल होने की उम्मीद है. बैठक में दलमा राजा की पत्नी, दलमा बुरू सेंदरा समिति के सलाहकार डेमका सोय, जेना जामुदा, राजेश सामंत, बेंडो बरजो, सुकरा बरजो, लिटा बानसिंह, धानु मार्डी, रौशन पुर्ति, भूपति सरदार, लगन सामद, छोटे सरदार, भगत मुर्मू, सुशील मुर्मू, धीरेन मार्डि, मोहन गगराई, सेलाई गगराई, के अलावा दलमा रेंज के डीएफओ अभिषेक कुमार और रेंजर दिनेश चंद्रा भी उपस्थित रहे.

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शिकार पर्व को लेकर दलमा जंगल किसी भी जानवरों का शिकार नहीं होने देने के लिए वन विभाग अपनी ओर से पूरी तैयारी कर ली है। इसके लिए शिकारियों को जंगल में जाने वाले सभी रास्ते पर चेकनाका बनाए जा रहे हैं।

दलमा बुरू सेंदरा समिति की ओर से इस वर्ष सेंदरा यानि शिकार पर्व को यादगार बनाने के लिए जोर-शोर से तैयारी चल रही है। शिकार पर्व के संबंध में दलमा राजा राकेश हेम्ब्रम ने बताया कि गिरा सिकम यानी निमंत्रण पत्र बांटने का काम चल रहा है। दलमा राजा ने बताया कि शुक्रवार को राज्य के परिवहन मंत्री चंपई सोरेन, घाटशिला के विधायक रामदास सोरेन, पोटका के विधायक संजीव सरदार, झामुमो नेता महावीर मुर्मू, महेंद्र हालदा आदि को शिकार पर्व में शामिल होने के लिए निमंत्रण दिया।

आठ मई को होगी बोंगा बुरु की पूजा

निमंत्रण देने के बाद सभी नेताओं ने दलमा बुरू सेंदरा समिति के सदस्यों को आश्वासन दिया कि यदि उनके पास समय रहेगा और जमशेदपुर में रहेंगे तो अवश्य आएंगे। निमंत्रण देने वालों में दलमा राजा राकेश हेम्ब्रम, लाल मोहन गागराई, धानो मार्डी आदि शामिल थे। दलमा राजा राकेश हेम्ब्रम ने बताया कि सेंदरा बीरों से अपील किया गया कि वह अपने साथ बंदूक, जाल-फांस आदि नहीं लाएं। दलमा राजा ने बताया कि शनिवार को पूजा स्थल की साफ-सफाई की जाएगी, 8 मई को बोंगा बुरू का पूजा होगा। तथा 9 मई को दलमा में शिकार करने के लिए चढाई किया जाएगा।

सेंदरा रोकने को वन विभाग 11 स्थानों पर बना रही चेकनाका

शिकार पर्व को लेकर दलमा जंगल किसी भी जानवरों का शिकार नहीं होने देने के लिए वन विभाग अपनी ओर से पूरी तैयारी कर ली है। इसके लिए शिकारियों को जंगल में जाने वाले सभी रास्ते पर चेकनाका बनाए जा रहे हैं। जहां वन विभाग के कर्मचारियों, पदाधिकारियों के साथ ही सहयोग में पुलिस के जवान तैनात रहेंगे। लोगों को जागरूक करने के लिए मुख्य वन संरक्षक वाइल्ड लाइफ विश्वनाथ शाह लगातार तीन दिनों से जमशेदपुर में कैंप किए हुए हैं। शुक्रवार को भी उन्होंने दलमा के मकुलाकोचा व मानगो वन भवन में इको विकास समिति के पदाधिकारियों व ग्रामीणों को शिकार नहीं करने देने की बात कही। उन्हें बताया गया कि बाहर से आने वाले शिकारियों की पड़ताल करेंगें, ताकि वह अपने साथ कोई जाल-फांस या बंदूक नहीं ले जा सके। इस अवसर पर डीएफओ डा. अभिषेक कुमार, रेंजर दिनेश चंद्रा, रेंजर अर्पणा चंद्रा के अलावा इको विकास समिति के सदस्य शामिल थे।

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शिकार रोकने को यहां बनेंगे चेकनाका

दाड़ीसोल नाका बहरागोड़ा वन

बहरागोड़ा चेकनाका टू

धालभूमगढ़ चेकनाका

पारडीह कालीमंदिर चेकनाका

घाटशिला चेकनाका

हाता चेक नाका

देवघर भिलाईपहाड़ी चेक नाका

दाहुबेड़ा चेकनाका

चांडिल स्टेशन, रघुनाथपुर व नीमडीह

भादुडीह चेकनाका

गेरूआ चेकनाका

पीसीसीएफ ने शिकार रोकने को तैनात किए आइएफएस

ममता प्रियदर्शी, डीएफओ जमशेदपुर

सत्यम कुमार, डीएफओ चाईबासा

मौन प्रकाश, डीएम लघु वन पदार्थ

अभिषेक भूषण, डीएफओ कोल्हान

नितिश कुमार, डीएफओ पोड़ाहाट

आदित्य नारायण, डीएफओ सरायकेला

सुनील कुमार, डीएफओ समाजिक वानिकी आदित्यपुर

चंद्रमौली प्रसाद सिन्हा, डीएफओ सारंडा

https://avenuemail.in/baha-festival-in-jharkhands-latia-village-prayers-for-peace-and-happiness/

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