ऊंट के दुग्ध का लाभकारी गुण तथा दुग्ध उत्पादन में योगदान

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ऊंट के दुग्ध का लाभकारी गुण तथा दुग्ध उत्पादन में योगदान

 

ऊंट प्रजाति मरुस्थलीय व शुष्क क्षेत्रों में पाया जाने वाला बहुपयोगी पशुधन है। ऊंटनी का दूध केवल पोषण की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, भारत व अन्य देशों में इसका उपयोग कई बीमारियों में बहुत लाभप्रद पाया गया है।

ऊंटनी के दूध में मौजूद स्वास्थय गुणों को जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. इसके अंदर मौजूद गुणों की वजह से ही इन दिनों ऊंटनी के दूध की विशेष मांग है. और ये मांग लगातार बढ़ती जा रही है. ऊंटनी के दूध में फायदेमंद असंतृप्त वसीय अम्ल, विटामिन और खनिज लवण की उच्च मात्रा और औषधीय गुण मौजूद होते हैं जिसके कारण यह दूध सुपरफूड की श्रेणी में रखा जा सकता है. स्वास्थय संबंधी विशेषताओं को देखते हुए ऊंटनी का दूध पोषण की दृष्टि से दूसरे डेयरी पशुओं से श्रेष्ठ है. इसके इतने गुणों के कारण और अन्य अनुसन्धान करने के लिए राजस्थान के बीकानेर में ऊंट अनुसन्धान केंद्र (NRC) की स्थापना की गई थी.

 

  • ऊंटनी के दूध की रोग प्रतिरोधक क्षमता और फायदा

ऊंट डेयरी दुनिया के सूखे क्षेत्रों में गाय डेयरी का एक विकल्प है। गाय डेयरी में वातानुकूलित परिस्थिति प्रदान करने के लिए बड़ी मात्रा में पानी और बिजली का उपभोग…

ऊंटनी के दूध से निर्मित उत्पाद (Camel milk products)

इसके दूध से कुल्फी, चीज, पनीर, खीर, चोकलेट, गुलाब जामुन, बर्फी, पेड़ा, संदेश, मिल्क पाउडर जैसे प्रॉडक्ट बनते है. इसके अलावा इसे दवाइयों में भी इस्तेमाल किया जाता है. अपने गुणों की वजह ऊंट के दूध की कीमत बहुत ज्यादा है.

ऊंटनी के दूध से फायदे (Benefits of camel milk)

  • इसके दूध में उपस्थित ग्लोब्यूल्स वसा की कम मात्रा और एग्लूटीनिन की अनुपस्थिति के कारण ऊंटनी का दूध जल्दी पच जाता है.
  • अगर किसी व्यक्ति को दूध से एलर्जी है उसके लिए ये उपयोगी है. गौरतलब है कि बहुत से लोगों का शरीर अन्य दूध को ग्रहण नहीं कर पाता है जिसकी वजह से बहुत से लोग दूध पीना ही बंद कर देते हैं. क्योंकि ऊंट के दूध में मेलैक्टोग्लोब्यूलिन नहीं होता जिससे एलर्जिक की समस्या भी नहीं आती है. इसलिए ये बहुत जल्दी पच जाता है और हर कोई इसे पी सकता है.
  • कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली को इस दूध के निरंतर सेवन से प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत किया जा सकता है|
  • गाय के दूध की तुलना में ऊंटनी के दूध में वसा, प्रोटीन और कार्बोहाईड्रेट की कम मात्रा होती है और असंतृप्त वसा अम्ल के कारण हृदय रोग के जोखिम बहुत ही कम हो जाता है.
  • शिशुओं में ऊंटनी का दूध तेजी से हड्डियों का निर्माण और आंतरिक रोगो को खत्म करने में मदद करता है.
  • ऊंटनी के दूध में इंसुलिन की भरपूर मात्रा होती हैं, जिससे शरीर में शुगर की मात्रा नहीं बढ़ती और ऊंटनी के दूध से डायबिटीज का इलाज भी किया जाता है.
  • विटामिन सी की प्रचुर मात्रा होने की वजह से ऊंट की दूध से त्वचा को एंटीऑक्सीडेंट मिलता है और यह त्वचा की कोशिकाओं और रक्त वाहिकाओं के विकास में मदद करता है. जिससे झुर्रियां भी कम पड़ती है.
  • ऊंटनी के दूध और इसके उत्पादों से अल्सर, लीवर सम्बन्धी रोग, डायरिया और तपेदिक का इलाज किया जाता है.
  • नई खोज के अनुसार इसके दूध से पीलिया, फेफड़े से संबन्धित रोग, अस्थमा, एनीमिया आदि रोगों के इलाज में उपयोग किया जाता है|
  • लैक्टिक एसिड जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि कर बायोएंजाइम की क्रियाशीलता बढ़ाता है.
  • इसमें पेप्टिडोग्लाइकन-रिकग्निशन नामक प्रोटीन होता है, जो मेटास्टेसिस को नियंत्रित कर स्तन कैंसर और आंत के कैंसर से बचाता है.

ऊंट रेगिस्तान का एक महत्वपूर्ण पशुधन है और उसके दूध में मानव के लि‍ए लाभकारी पोषक तत्त्व पाए जाते है। साल 2012  के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में ऊंट की जनसँख्या 4 लाख पाई गई थी जो कि औसतन 22.63 प्रतिशत गिरावट दर्शाता है।

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अच्‍छी नस्‍ल के ऊंट की दुग्ध उत्पादन क्षमता 7  – 8 लीटर दूध प्रति दिन होती है। लेकिन जैसलमेरी या बिकानेरी नस्लों की औसतन उत्पादन  प्रति दिन केवल 5 – 6 लीटर है जो कि काफी कम है। ऊंट के पास किसी अन्य पशुधन की तुलना में रेगिस्तान की कठोर परिस्थितियों में लम्बे समय की अवधि तक अधिक से अधिक दूध का उत्पादन करने की क्षमता है।

ऊॅट की लैक्टेशन अवधि 8 – 18 महीनों की होती है। औसतन, दैनिक दूध उत्पादन का अनुमान बेहतर खाद्य की उपलब्धता , पानी की उपलब्धता और पशु चिकित्सा  व देखभाल पर निर्भर करता है। भारत, रूस और सूडान सहित कई देशों में ऊंट के दूध का मानव उपभोग में बहुत बड़ा योगदान है।

इस दूध में मानव आवश्‍यकता के सभी पोषक तत्व स्वाभाविक रूप से मौजूद होते हैं जिसमे अधिकतम मात्रा प्रोटीनों की होती है।  इसका दूध विभिन्न बीमारिया जैसे कि जलोदर, पीलिया, तपेदिक, अस्थमा और लेशमैनियासिस से उपचार के लिए लाभदाई है।

ऊंट के दूध की विशेषताए

ऊंट का दूध आम तौर पर अपारदर्शी सफेद रंग, फेनयुक्त और थोड़ा नमकीन होता है। इसका कारण शुष्क क्षेत्र में कुछ झाड़ियों और जड़ी-बूटियों पर भोजन करने के कारण हो सकता है। औसत ऊंट के दूध का घनत्व 1.029 ग्राम सेमीहोता है और गाय के दूध की तुलना में कम गाढ़ा होता है।

ऊंट के दूध का पीएच 6.4 से 6.7 के बीच पाया जाता है। ऊंट के दूध का ठंड बिंदु 0.57 और 0.61 डिग्री सेल्सियस के बीच है और केलोरीफ़िक मान 701 किलो कैलोरी / लीटर होता है। ऊंट के दूध में 87-90 प्रतिशत पानी की मात्रा होती है। ऊंट के दूध की कुल प्रोटीन मात्रा 2.15 से 4.1 प्रतिशत के बीच है। कैसिन की मात्रा ऊंट और गाय के दूध काफी समान है। हालांकि, व्हेय प्रोटीन की मात्रा ऊंट के दूध में अधिक पाया जाता है।

ऊंट के दूध में व्हेय प्रोटीन और कैसिन का अनुपात गाय के दूध से अधिक होता है । ऊंट के दूध की वसा की मात्रा 1.2२ से 4.5 प्रतिशत के बीच होती है। ऊंट के दूध की लैक्टोज की मात्रा लगभग अपरिवर्तित रहती है और यह औसत 3.5 – 4.5 प्रतिशत के बीच होती है। ऊंट के दूध की कुल खनिज मात्रा 0.6 से 0.9 प्रतिशत होती है।

ऊंट के दूध में जिंक, आयरन , कॉपर एवं मैंगनीज जैसे समृद्ध खनिज पाए जाते है। पानी में घुलनशील विटामिन जैसे कि नियासिन और विटामिन सी ऊंट के दूध में गाय के मुकाबले अधिक मात्रा में मौजूद रहते है।

विटामिन बी1, बी2, फोलिक एसिड और पैंटोथेनिक एसिड की मात्रा ऊंट के दूध में कम होते है। बी 6 और बी 12 की मात्रा गाय दूध के समान है और मानव दूध की तुलना में अधिक है। विटामिन ए की मात्रा ऊंट के दूध काफ़ी कम होती है।

ऊंटनी के दूध के फायदे

ऊंट का दूध असाधारण औषधीय गुणों के लिए मान्यता प्राप्त है। यह कैंसर समेत कई रोगों के विरुद्ध औषधीय क्षमता के लिए जाना जाता है। दीर्घकाल से ऊंटनी का दूध रोगों की विस्तृत शृंखला में अपने लाभकारी प्रभाव के कारण उपयोग किया जाता रहा हैं। इंसुलिन निर्भर मधुमेह मेल्टिस (आईडीडीएम), शिशु दस्त, हेपिटाइटिस, एलर्जी, लैक्टोज असहिष्णुता, आटिज्म और शराब के कारण हुई यकृत क्षति इत्यादि का इस क्रम में उल्लेख किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इस दूध में लाइसोजाइम, लैक्टोपेफरिन तथा लैक्टोपेराॅक्सिडेस जैसे महत्वपूर्ण प्रतिरक्षित अणु भी होते हैं। इस दूध में विभिन्न रोगों जैसे-ड्राॅप्सी, पीलिया, तपेदिक, अस्थमा, एनीमिया तथा खाद्य एलर्जी आदि के विरुद्ध भी औषधीय गुण होते हैं।

ऊंटनी के दूध के गुण

1.भौतिक गुण

ऊंटनी का दूध सामान्य दूधिया गंध के साथ रंग में अपारदर्शी सफेद तथा स्वाद में नमकीन मीठा होता है, जो मुख्य रूप से चराई क्षेत्र में उपलब्ध चारे या वनस्पति के प्रकार पर निर्भर करता है। ऊंटनी के ताजे दूध का पी-एच 6.4 से 6.7 तापमान तक होता है। यह भेड़ के दूध के समान एवं मवेशी के दूध से कम है।

  1. प्रोटीन
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दूध में औसत प्रोटीन की सर्वाधिक मात्रा कच्छी नस्ल में, उसके बाद बीकानेरी तथा जैसलमेरी नस्ल में दर्ज की गई है। केसीन प्रोटीन के लिए भी इसी प्रकार की प्रवृति देखी गई है। ऊंटनी के दूध की कुल प्रोटीन मात्रा 2.1 से 4.9 प्रतिशत तक दर्ज की गई है। यह कुछ प्रसंस्करण विशेषताओं, ऊष्मीय उपचार तथा केसिन मिसेल्स की जमावट को प्रभावित करता है।

मट्ठा प्रोटीन कुल प्रोटीन का 20-25 प्रतिशत होता है तथा ऊंटनी के दूध में इसकी मात्रा 0.63 से 0.80 प्रतिशत पाई जाती है। तुलनात्मक अध्ययन के अनुसार ऊंटनी तथा गाय के दूध के मट्ठा की प्रोटीन में विभिन्नताएं दर्शाते हैं। दो प्रकार की मट्ठा प्रोटीन में से अल्पफा-लैक्टोएलव्यूमिन प्रमुख हैं तथा बीटा-लेक्टोग्लोबूलिन कम मात्रा में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त ऊंटनी के दूध में सीरम एल्ब्यूमिन, लैक्टोपेफरिन, इक्यूनोग्लोबूलिन तथा पेप्टाइडोग्लाइकन की पहचान करने वाले प्रोटीन इत्यादि पाए जाते हैं।

  1. दूध शर्करा

सभी स्तनधारियों के दूध में लैक्टोज व मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट होता है। ऊंटनी के दूध में इसकी मात्रा 2.40 प्रतिशत से 58 प्रतिशत तक होती है। विभिन्नता का कारण चराई क्षेत्र में पाए जाने वाले शुष्क पौधों तथा झाडि़यों की विविधता हो सकता है।

  1. खनिज पदार्थ

ऊंटनी का दूध क्लोराइड का समृद्ध स्रोत है, जिसका कारण ऊंटनी द्वारा खाए जाने वाली बबूल तथा एटिप्लेक्स की झाडि़यां हैं। इनमें नमक की मात्रा अधिक होती है। ऊंटनी के दूध का स्वाद नमकीन होने का यह एक कारण हो सकता है। भिन्न-भिन्न नस्लों की ऊटनियों में सूक्ष्म खनिज पदार्थ की मात्रा भिन्न होती है, जिसका कारण आहार, विश्लेषणात्मक प्रक्रिया तथा पानी का सेवन हो सकता है।

  1. एंटीवायरल गतिविधि

रोटा वायरस दुनिया के अधिकांश हिस्सों में शिशुओं और बछड़ों में गैर जीवाणुजनित गैस्ट्रोएंटरिटिस का कारण है। सूत्रों के अनुसार ऊंटनी के दूध से प्राप्त इम्यूनोग्लोबुलिन (आईजी-जी) और स्रावित इम्यूनोग्लोबिन, (एसआईजीए) मवेशी एवं मानव से प्राप्त रोटा वायरस के विरुद्ध प्रभावी हैं।

  1. एंटीबैक्टीरियल गतिविधि

ऊंटनी का दूध विभिन्न श्रेणी के रोगाणुओं को बाधित करता है। इसमें उपस्थित लैक्टोपेफरिन कोलोन कैंसर के प्रसार को रोकने की क्षमता रखता है। इसमें इक्यूनोग्लोबुलिन की मात्रा गाय अथवा भैंस की तुलना में अधिक पाई जाती है।

  1. विटामिन

पानी में घुलनशील विटामिन में से ऊंटनी के दूध में नियासिन और विटामिन ‘सी’ की मात्रा अधिक होती है। मवेशी की तुलना में ऊंटनी के दूध में 3 से 5 गुना अधिक विटामिन ‘सी’ पाया जाता है। कच्चे दूध में इसकी मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है ऊंटनी के दूध में विटामिन बी1, बी2, फोलिक एसिड तथा पेंटोथेनिक एसिड कम मात्रा में पाए जाते हैं, जबकि विटामिन-बी6 और बी12 की मात्रा गाय के दूध के समान होती है।

 

 ऊंट के दूध का औषधीय गूण 

स्तनपायी नवजात के लिए ऊंटके दूध को सम्पूर्ण भोजन माना जाता है क्योंकि यह प्रत्येक प्रजातियों की पूर्ण पोषण प्रदान करता है। इसमे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों और घटकों के जैविक रूप के सक्रिय पदार्थ के कारण प्रतिरक्षा संरक्षण संबंधित आवश्यकताएं समस्याए नवजात और वयस्कों दोनों के लिए वरदान है।

जीवाणुरोधी गतिविधिया

ऊंट के दूध की जीवाणुरोधी गतिविधिया रोगाणुरोधी पदार्थों की मौजूदगी के कारण होती है जैसे कि लाइसोज़ाईम, हाइड्रोजन पेरोक्साइड, लैक्टोफेरिन, लैक्टोपेरॉक्सीडेज औरइम्युनोग्लोबुलिन जिनकी मात्रा दूसरे पशुधन के दूध की तुलना में ज्यादा सूचित किया गया है। ऊंट के दूध का रोगाणुरोधी प्रभाव ग्राम पॉजिटिव और ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया के लिए पाया गया है। ऊंट के दूध को जब हम 100 डिग्री सेल्सियस पर 30 मिनट के लिए उबालते है तो उसकी जीवाणुरोधी गतिविधिया पूरी तरह से नष्ट हो जाती है।

मधुमेह नियंत्रण एवं प्रबंधन

ऊंट दूध में इंसुलिन / इंसुलिन जैसे पदार्थों की उच्च एकाग्रता और मानव के उदर में पूरी तरह से जमावट की कमी के कारण टाइप 1 मधुमेह और टाइप 2 मधुमेह में हाइपोग्लाइसेमिक प्रभाव का महत्वपूर्ण  योगदानहै। दूध में पाए जाने वाले आंतरिक गाबा जो कि दूसरे पशुधन की तुलना में ज्यादा मात्रा में है और उसकी प्रतिक्रिया के कारण हाइपोग्लाइसेमिक अवस्था पर एक दमदार प्रभाव पड़ता है।

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कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम करना

किण्वित ऊंट का दूध और उत्पाद बीफिडोबैक्टीरियम लैक्टिस बैक्टीरिया का समायोजन करता है जो कि   हाइपोकॉलेस्टेरोलिमिक प्रभाव करता है। ऊंट के दूध का हाइपोकॉलेस्ट्रोलेमिक प्रभाव अभी भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है,लेकिन बायोएक्टिव प्रोटीन तत्वों से प्राप्त विभिन्न अनुमानों में पेप्टाइड्स परिणामस्वरूप कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करते है।

एंजियोटेनसिन- परिवर्तित एंजाइम निरोधात्मक गतिविधि

एंजियोटेनसिन परिवर्तित एंजाइम (एसीई)- निरोधात्मक पेप्टाइड्स प्राथमिक रूप से ऊंट के दूध में मौजूद होते हैं। दूध प्रोटीन सहित विभिन्न खाद्य प्रोटीन स्रोतों की संरचना ये पेप्टाइड्स हैं। किण्वित ऊंट दूध में भी मिला प्रोबायोटिक बैक्टीरिया को पेप्टाइड्स को तोड़कर मुक्त अमीनो अम्ल की संख्या में वृद्धि करने में  सक्षम पाया गया है।

एलर्जी नि‍वारण  

ऊंट का दूध हाल ही में बच्चों के लिए भोजन विकल्प के रूप में सुझाया गया । गाय के दूध से एलर्जी एवं माताओं के दूध से एलर्जी होने की सूचना अक्सर आती रहती है। इससे उम्मीद की जाती है कि दूध से एलर्जी ग्रसित बच्चों के लिए एक नया प्रोटीन स्रोत हो सकता है। इसका कारण लेक्टोग्लोबुलिन और इम्युनोग्लोबुलिन की असमानता बताया गया है जो कि दूध में एलर्जी के तत्वों को गति प्रदान करता है।

टी. बी. में लाभकारी 

ऊंट के दूध में उच्च मात्रा में रोगाणुरोधी घटकों की उपस्थिति के कारण, यहपुरानी बीमारियों के उपचार में प्रभावी हो सकता है।जहां दवा प्रतिरोधी और / या पक्षप्रभाव अधिक चिंता का विषय हैं वही  ऊंट के दूध की खपत का लाभकारी / नैदानिक प्रभाव​ दमन, अर्थात्, खाँसी, उम्मीद और सांस की कमी,हेमोप्टीसिस और बुखार, एक्जिमा ग्रसित रोगियों में देखा गया है । ऊंट का दूध खानेसे भूख में वृद्धि एवं  रोगियों में एक सहायक पोषण पूरक के रूप में कार्य कर सकता है।

कैंसर विरोधी एवं अन्य गतिविधि

अच्छे पौष्टिक मूल्य के अलावा, ऊंट के दूध के बारे में बताया गया है कि वह कैंसर विरोधी भी हैं।  आत्मकेंद्रित मुख्य रूप से एक आंतों की एंजाइम की क्रिया की वजह से  एक ऑटोइम्यून रोग है। कैसिइन से अमीनो एसिड के गठन की स्थिति में, कैसोमोर्फिन, एक शक्तिशाली ऑपियोइड, उत्पन्न होता है जिससे सामान्य संज्ञानात्मक और व्यवहार लक्षण प्रदर्शित होता है।

कैसोमोर्फिन युवाओं में मस्तिष्क क्षति भी पैदा करता है। दूध और दूध उत्पादों की खपत के कारण, मनुष्य में उपयुक्त हालात पैदा होते है। हालांकि, ऊंट के दूध मेंप्रतिरक्षा बनाए रखने के लिए जरूरी सुरक्षात्मक प्रोटीन शामिल हैं जो कि मस्तिष्क के विकास के लिए फायदेमंद है। ऊंट का दूध ऑटिस्टिक मरीजों पर फायदेमंद प्रभाव पड़ता है।

अतः ऊंट का दूध और उनके उत्पादों पर निर्भर रहने वाले लोगों के लिए यह एक अच्छा पोषण स्रोत हैं। हाल के वर्षों में उपभोक्ताओं द्वारा बढती मांग के कारण, शुष्क और अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में ऊंट के दूध का कारोबार धीरे-धीरे बढ़ रहा है। दूध में बायोएक्टिव पदार्थों की उपलब्धता के आधार पर उपभोक्ताओंको अधिक व्यापकप्रस्तावित स्वास्थ्य लाभों की पुष्टि करने और इन्हें बढ़ाने के लिए ऊंट के दूध पर अध्ययन की आवश्यकता है।

ज्यादा जानकारी के लिए संपर्क contact) करें:

राजस्थान के बीकानेर में स्थापित ऊंट अनुसन्धान केन्द्र ऊंट पर नई खोज, दूध से निर्मित उत्पादों की सम्पूर्ण जानकारी और ऊंट पालन का प्रशिक्षण देता है. अगर किसी को ज्यादा जानकारी चाहिए तो संपर्क कर सकते हैं.

ऊंट अनुसन्धान केंद्र (NRC), बीकानेर,  राजस्थान

हेल्पलाइन नंबर-151-2230183

डॉ जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी ,कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश

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