मुर्गियों में जैव-सुरक्षा
डॉ. ओम प्रकाश दीनानी
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, अंजोरा, दुर्ग
सहायक प्राध्यापक, आई.एल.एफ.सी.विभाग
Corrosponding author email:dr_dinani@rediffmail.com
जैव-सुरक्षा का शाब्दिक अर्थ होता है-रोग प्रतिबंधात्मक तरीकों को अपनाना, जिससे कि किसी भी प्राकर के रोग होने की संभावना न्यूनतम हो जाये। जैव सरुक्षा एक प्रकार से व्यापक एवं विभिन्न प्रबन्धीय क्रियाओं को दर्शाता है, जो कि मुर्गियों की जीवन सुरक्षा को ध्यान में रखकर तैयार किये जाते हैं। जैव सुरक्षा एक प्रकार से मुर्गियों को बीमारी पैदा करने वाले कीटाणुओं से दूर रखने के लिये अपनाये गये उपाय हैं। जैव सुरक्षा बीमारी पैदा करने वाले कीटाणुओं को मुर्गी फार्म में प्रवेश को रोकने तथा एक फार्म से दूसरे फार्म में फैलने से बचाने के लिये अपनाये गये उपायों का दूसरा नाम है, जिससे हानिकारक एवं बीमारी पैदा करने वाले कीटाणुओं की संख्या को इतना कम किया जा सके, जिससे मुर्गियों में रोग पैदा ने हो सके। जैव सुरक्षा के सर्वोत्तम उपाय मुर्गी फार्मों में सदैव अपनाने चाहिये तथा केवल रोगों के प्रकोप के समय के लिये हैं।
मुर्गीपालन कृषि क्षेत्र के अंतर्गत सर्वाधिक विकास दर वाला क्षेत्र है एवं इसका सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1.1 प्रतिशत का योगदान है। लाखों की संख्या में अनेक मुर्गीपालक मुर्गीपालन का कार्य हमारे देश में करते हैं, जिससे उन्हें स्वरोजगार प्राप्ति, नियमित आमदनी का स्त्रोत एवं अण्डे व मुर्गी मांस के रूप में कुपोषण दूर करने में भी मदद मिलती हैं अन्य अनेक युवा, महिला एवं लोग मुर्गीपालन का कार्य करना चाहते हैं, क्योंकि इससे ब्रायलर उत्पादन में 35 दिनों तथा अण्डा उत्पादन में 140 दिनों से आय प्राप्त होना शुरू ओ जाती है। लेकिन मुर्गीपालन को व्यावासायिक स्तर पर शुरू करने हेतु एक सबसे बड़ी समस्या है कि किसी भी प्रकार की बीमारी होने पर मुर्गियों की मृत्यु होने से नुकसान की आशंका रहती है। इस मुर्गियों में बीमारी की आशंका को जैव सुरक्षा के उपायों द्वारा कम किया जा सकता है। वर्तमान में सभी व्यावसायिक मुर्गीपालक जैव-सुरक्षा के उपायों का कड़ाई से पालन करते हैं। जिसका वर्णन हम इस अध्याय में करेगें।
जैव सुरक्षा के उद्देश्य-
1. बीमारी पैदा करने वाले कीटाणुओं को मुर्गी फार्म में प्रवेश से रोकना।
2. मुर्गी फार्म के आस-पास कीटाणुओं की संख्या कम करना।
3. मुर्गी फार्म के अंदर बीमारी पैदा करने वाले कीटाणुओं को पूरी तरह नष्ट करना।
जैव सुरक्षा के लाभ-
01. जैव सुरक्षा के उपाय अपनाना हमेशा रोग उद्भेद होने पर उपचार करने में सस्ता ही होता है जिससे आर्थिक हानि को कम किया जा सके। नियमित रूपसे जैव सुरक्षा के उपायों को अपनाने से मुर्गियों को बीमारियों से बचाया जा सकता है। इसके अलावा
02. मनुष्य भी मुर्गियों में होने वाली बीमारियों जैसे-रानीखेत, बर्ड फ्लू, साल्मोनेला इत्यादि से बच सकता है।
03. जैव सुरक्षा अपनाकर मुर्गीपालन को आर्थिक रूप् से भी अधिक लाभकर बना सकते हैं क्योंकि मुर्गियों में बीमारी होने की आशंका कम हो जाती है।
मुर्गियों में बीमारियों के फैलने के कारण-
1. रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया, वाइरस, फॅंगस, प्रोटोजोआ, अन्तः एवं बाहृय परजीवी इत्यादि।
2. दूषित पेयजल। इसमें पेयजल को मौलिक रासायनिक एवं जैविक संदूषण से पूर्णतया मुक्त होना चाहिये।
3. खाद्य आहार या कुक्कुट आहार का किसी भी प्रकार के संक्रमण से युक्त होना आवश्यक है। मुर्गी आहार माइकोटॉक्सिन एवं अन्य खाद्य टाक्सिन इत्यादि से मुक्त होना चाहिये। खाद्य आहार संतुलित पोषक तत्वों से युक्त होना चाहिये। सभी आवश्यक विटामिन, खनिज लवण एवं अमाईनो अम्लों की संतुलित मात्रा होना चाहिये।
4. आसपास की हवा स्वच्छ एवं संक्रमणयुक्त होनी चाहिये। दो मुर्गी घरों के बीच कम से कम 15 मीटर की दूरी अवश्य होनी चाहिय। दो मुर्गी फार्मों के बीच कम से कम 1 कि.मी. की दूरी होनी चाहिये ताकि श्वसन तंत्र से संबंधित कोई भी संक्रमण एक फार्म से दूसरे फार्म में न फैल सके।
मुर्गियों में बीमारियों के फैलने के माध्यम
1. मुर्गियों की अधिकतर बीमारियॉं एक फार्म से दूसरे फार्म तक संदूषित व्यक्तियों, उपकरणों एवं वाहनों से फैलती है।
2. हवा के धूल कणों से मुख्यतः श्वासन संबंधित बीमारियांॅ फैलती है जैसे कि-माइकोप्लाज्मा जनित रोग, रानीखेत, इनफेंकसियस ब्रोंकाइटिस, इैनफेक्सियस कोराजा एवं इंनफैक्साटीयस लैंरेजो ट्रैकाईटिस।
3. संदूषित अण्डों से चूजों में बीमारी का संक्रमण जिसे वर्टीकली फैलने वाली बीमारी कहते हैं, जैसे-साल्मोनेला, ई.डी.एस.-76, एवियन इनसैफलो माइसिस, चिकन ईनफेसियस एनिमिया इत्यादि।
4. हैचरी से भी फैलने वाली बीमारी फैलने की आशंका रहती है। यदि प्रबंधन सही तरीके से न किया गया हो। जैसे-नामिनाल में सूजन, मूसी चिक रोग, एस्परजिलोसिस, फंगस का संक्रमण, स्टैफाइलोकोकस जनित बम्बल फुट बीमारी इत्यादि।
5. चूहों, वन्यजीवों, घुम्मक्कड़ पक्षियों द्वारा भी संक्रामक बीमारियांॅ फैलती है।
6. बाहृय परजीवी जैसे-मक्खी, मच्छर इत्यादि बीमारी फैलाने के माध्यम का कार्य करते हैं।
7. संदूषित दाना, दाने के बैग, वाहन एवं मुर्गी फार्म का विछावन (लिटर) जैसे-मेडीहस्क, लकड़ी का बुरादा इत्यादि रोग फैलाने के माध्यम हैं।
8. सवंमित मुर्गियों से प्राप्त अण्डों से निकलने वाले चूजों में भी बीमारियांॅ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचारित होती है।
9. मैले एवं दूषित अण्डों के कवच से भी बीमारी फैलती है।
10. आंगुतक व्यक्तियों के हाथों, जूतों एवं कपड़ों द्वारा भी संक्रामक बीमारियांॅ फैलती है।
11. संक्रामक रोगों से युक्त हुई मुर्गियांॅ कई रोगों के वाहक (कैरियर) का कार्य करती है।
12. किसी अन्य स्थान से खरीदी गई चूजे या मुर्गियों को पहले 7 दिनों के लिये क्वारंनटाईन में (अलग) रखना चाहिये। जिससे कोई रोग बिना लाक्षणिक अवस्था का संचारित न हो सके।
जैव सुरक्षा के सिद्धांत-
1. पार्थक्य/विलगित/अलग करना-
मुर्गियों को एक सीमित दायरे के अंदर अलग वातावरण में रखना चाहिये, जिससे वो बाहरी व्यक्तियों, वन्य पशुओं, पक्षियों एवं परजीवी एवं परपक्षी जन्तुओं से बच सके। इसके लिये मुर्गी घर बनाकर एवं बाड़ (फेन्स) लगाकर भी अलग किया जा सकता है।
रोगों के संचरण को रोकने के लिए एक ही आयु के पक्षी एक साथ पालने चाहिए। ताकि प्रौढ़/व्यस्क मुर्गियों से नवजात एवं वर्धमान (ग्रोवर) चूजों में बीमारी नहीं फैल सके। इसे श्एक बैच पद्धतिश् आंल इन-ऑल आऊट सिस्टम कहते है (एक साथ अदर तथा एक साथ बाहर वाली पद्धति)।
एक ही मुर्गी फार्म के अंदर जब भिन्न-भिन्न आयु की मुर्गियां पाली जाती , तो इससे लगभग 25ः स्थान एवं 50ः उपकरणों की बचत होती हैं। इसे श्मल्टीपल बैच पद्धतिश् कहते हैं। परंतु इस पद्धति में व्यस्क मुर्गियों से नवजात चूजों में बीमारी फैलने की आंशका अधिक होती है। मल्टीपल बैच पद्धति में चूजो, ग्रोवर एवं अण्डा देने वाली लेयर मुर्गियों को अलग-अलग कमरे में रखकर रोग संचरण को कम किया जा सकता है।
मुर्गी फार्म में उपरोक्त में किसी भी पद्धति का उपयोग करने पर मुर्गी घर हेतु 7-10 दिनों का डाऊन टाइम अवश्य देना चाहिए। इस समय का उपयोग मुर्गी घर की साफ-सफाई, चूना पोताई, फर्श की धुलाई, जाला हटाने, मुर्गी उपकरणों की साफ-सफाई, कीटनाशक दवा छिड़काव, विधूम्ररीकरण (फ्यूमेगेशन) हेतु करना चाहिए, ताकि मुर्गी घर मे उपस्थिति सभी प्रकार के संक्रमण को खत्म किया जा सके। इससे नयी
2. यातायात सीमित करना-
मुर्गी फार्म एक जैव-सुरक्षा क्षेत्र होता है। अतः मुर्गी फार्म में आंगुतुक व्यक्तियों, वाहनों, वन्य जीवों, परभक्षी पालतू पशु जैसे कुत्ता, बिल्ली एवं अन्य पक्षियों के प्रवेश पर रोक लगानी जरूरी है। क्योंकि इन माध्यमों से मुर्गी घरों में बीमारियां फैलती है। एक व्यावसासायिक मुर्गी फार्म में काम करने वाले हैचरी, चिक, ग्रोवर एवं लेयर पक्षियों हेतु व्यक्ति अलग-अलग होने चाहिए जिसमें आपस में कोई संक्रमण न फैल सके। मुर्गी फार्म में काम करने वाले व्यक्तियों की संख्या कम होने पर सर्वप्रथम हैचरी का कार्य फिर क्रमशः चूजे, ग्रोवर एवं व्यस्क पक्षियों का दाना-पानी किया जाना चाहिए चूंकि व्यस्क से ग्रोवर चूजें में बीमारी फैलने की आंशका कम होती है। बीमार पक्षियों का दाना-पानी करने वाला व्यक्ति अलग होना चाहिए या स्वस्थ पक्षियों के बाद इनका दाना-पानी किया जाना चिहए। एक मुर्गी फार्म मे उपयोग किए हुए उपकरणों व अन्य समान को संक्रमण युक्त करने के बाद ही दूसरे मुर्गी घर मे उपयोग करना चाहिए।
3. मुर्गी फार्म व उसके आस-पास सफाई एवं स्वच्छता रखना-
मुर्गी घर एवं उसके आस-पास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। मरी हुई मुर्गियों को मुर्गी घर से तुरंत हटाकर आवश्यकतानुसार शव विच्छेदन परीक्षण करवाकार जमीन के अंदर गहरे गाड़ देना चाहिए या दहनगृह (इनसाईनिरेटर) में दहन कर देना चाहिए। बिछावन (लिटर) को एक वर्ष उपयोग के पश्चात् हटा देना चाहिए। माह में एक बार बिछावन में सूखा चूना पाउडर 1 कि.ग्रा. प्रति 15 वर्ग फभ्ट जगह में उपयोग करना चाहिए।
जैव सुरक्षा के उपाय-
मुर्गी फार्म मं जैव सुरक्षा के उपायों को निम्न दो भागों में बांटा जा सकता हैः-
1. संरचनात्मक (स्ट्रक्चरल) जैव सुरक्षा।
2. संक्रियात्मक (ऑपरेशनल) जैव सुरक्षा।
1. संरचनात्मक (स्ट्रक्चरल) जैव सुरक्षा-
इस जैव सुरक्षा के उपाय मुर्गी फार्म की संरचना से जुड़े होते हैं। मुर्गी फार्म में जगह का चुनाव एवं मुर्गी घर निर्माण हेतु निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहियेः-
1. मुर्गी घर का लम्बवत् अक्ष पूर्व से पश्चिम दिशा में होना चाहिये, जिससे सूर्य के प्रकाश से गर्मी कम से कम पडे़।
2. दो मुर्गी घरों के बीच कम से कम 15 मीटर की दूरी होनी चाहिये।
3. दो मुर्गी फार्मों के बीच कम से कम 1 से 2 कि.मी. की दूरी होनी चाहिये।
4. हैचरी इकाई एवं मुर्गी घर के बीच कम से कम 500 फीट की दूरी होनी चाहिये।
5. मुर्गी फार्म मानव आबादी एवं रिहायशी बसाहट वाले क्षेत्रों से दूर होना चाहिये, जिससे वाहनों एवं फैक्ट्रियों के शोलगुल से मर्गियांॅ दूर रहे। मुर्गियों के मल-मूत्र से उत्पन्न बदबू एवं मक्खी-मच्छरों से मनुष्यों को बचाया जा सके।
6. मुर्गी फार्म आस-पास की पक्की सड़क के नजदीक होना चाहिये ताकि मार्केटिंग, दाना परिवहन एवं श्रमिकों की उपलब्धता आसानी से हो सके।
7. मुर्गी फार्म के आस-पास का क्षेत्र ऊॅंचा होना चाहिये। ताकि जल-जमाव या बाढ़ की स्थिति न आवें।
8. मुर्गी फार्म में लगातार बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित होनी चाहिये। हैचरी होने पर जनरेटर की उपलब्धता आवश्यक है।
9. मुर्गी घर का फर्श कंक्रीट का बना होना चाहिये, जिससे साफ-सफाई, सोड़ा से धुलाई, विद्युतीकरण (फ्यूमिगेशन) आसान हो सके। इसके अलावा कंक्रीट के फर्श में चूहे अपना घर नहीं बना पाते। चूहे मुर्गी दाना खाने के साथ बीमारी फैलाने का भी कार्य करते हैं।
10. मुर्गी घर जमीन से कम से कम 3 फीट ऊंचाई पर फर्श होना चाहिये, जिससे बाहृय परजीवी एवं बारिश का पानी अंदर न आ सके।
11. मुर्गी घर के आस-पास पेड़-पौधे नहीं होने चाहिये क्योंकि ये वन्य पक्षी को आश्रय देते हैं एवं मुर्गियों के लिए रोगवाहक का कार्य करते हैं।
12. मुर्गी फार्म क्षेत्र मे मुख्य द्वार के पास आफिस (कार्यालय), भण्डारण कक्ष, कपड़े बदलने एवं नहाने के अलग कक्ष होना चाहिए।
13. मुर्गी फार्म के प्रवेश द्वार एवं प्रत्येक मुर्गी घर के प्रवेश द्वार पर फुटबांथ (कीटाणु नाशक घोल) अवश्य होना चाहिए, जिससे फार्म में प्रवेश करने वाले के पैरों के संक्रमण से मुर्गीयों में कोई बीमारी ना फैले।
14. मुर्गी फार्म बाड़े (फेसिंग) से घिरा होना चाहिए।
(2) संक्रियात्मक जैव सुरक्षा उपाय-
1. रोस्टर के अनुसार रोग प्रतिबंधात्मक टीकाकरण एवं कृमि नाशक दवा पान अवश्य करावें।
2. आगंतुक एवं बाहरी व्यकित्यों एवं वाहनों के प्रवेश को सीमित रखें।
3. जो व्यक्ति मुर्गी फार्म में कार्य करते हैं उन्हें अन्यथा बर्ड फ्लू जैसी भयंकर बीमारी फैलने की आशंका होती है।
4. एक प्रजाति एवं आयु वर्ग की मुर्गियों की देख-भाल में कार्यरत व्यक्तियों को अन्य दूसरी प्रजाति/आयु वर्ग के मुर्गियों के घरों-घरो मे नही जाने देना चाहिए।
5. किसी मुर्गी प्रदर्शनी में ले जाने के बाद उसी मुर्गियां को वापस फार्म में नही लाना चाहिए। उसे विक्रय कर देना उचित होता है।
6. पोल्ट्री फार्म में केवल एक ही प्रवेश एक ही निकास द्वारा होना चाहिये।
7. मुर्गी घर उपकरणों का प्रति सप्ताह साफ-सफाई एवं रोगाणु नाशन करना चाहिये।
8. चूहों पर नियंत्रण हेतु पिंजरों एवं रोडे टीसाइट का उपयोग करना चाहिये।
9. बाहृय परजीवी नियंत्रण जैसे-जूं, किल्ली इत्यादि हेतु स्प्रेयिंग, डस्टिंग आदि करना चाहिये।
10. मुर्गी घर के बिछावन में नमीं की मात्रा 25 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिये। इसके लिए चूना पाउडर 1 कि.ग्रा. प्रति 15 वर्ग फीट की दर से बिछावन में प्रतिमाह मिलाना चाहिये।
11. मुर्गी के पीने के पानी में वॉटर सेनेटाइजर जैसे-ब्लीचिंग पाउडर इत्यादि का प्रयोग करना चाहिये।