डॉ संजय कुमार मिश्र पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुहां मथुरा
स्वाइन फ्लू एवं बर्ड फ्लू, रेबीज आदि ऐसे संक्रामक रोग हैं ,जो कि पशुओं से मनुष्यों में फैलते हैं ,इस प्रकार से पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाले रोगों को जूनोटिक रोग कहते हैं। इन रोगों का प्रसार सघन संपर्क वायु , पशुओं के काटने से, कीटों के काटने आदि से फैलते हैं। यदि किसी प्रकार से इन रोगों के विषाणुओं का पशुओं से मनुष्यों में संक्रमण रोक लिया जाए तो इस प्रकार के जूनोटिक रोगों की रोकथाम हो सकती है एवं ऐसे उपायों को जैव सुरक्षा उपाय कहते हैं।
१. अपने बैकयार्ड की उचित दीवार फेंसिंग आदि लगा कर सुरक्षा करनी चाहिये , जिससे अनावश्यक पशुओं एवं व्यक्तियों से सुरक्षा हो सके।२. मुर्गियों / सुकरों को आपस में लड़ने से रोकना चाहिए।
३. मुर्गियों एवं सुकरो का कार्य करने के उपरांत अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धो लेना चाहिए।
४. एक ही बाड़े या घर में मुर्गी, सूकर, बतख आदि एक साथ ना पाले।
५. राशन , पानी आदि के संक्रमण की जांच करानी उचित होगी।
५. संदिग्ध या अचानक मृत्यु होने की दशा में तुरंत पशु चिकित्सक से सलाह लेनी उचित होगी।
६. पशु चिकित्सा कर्मियों को उनके कार्य जैसे टीकाकरण, खून की जांच , नमूनों को एकत्र करनाआदि में सहायता करनी चाहिए।
७ यदि किसी मुर्गी या शूकर में इनफ्लुएंजा के लक्षण प्रदर्शित होते हो, तो उस दशा में तुरंत निकटतम पशु चिकित्सा केंद्र को सूचना देनी चाहिए।
एवियन इनफ्लुएंजा के लक्षण:
१. अचानक पक्षियों की मृत्यु
२. शिथिलता एवं भूख में कमी।
३. आंख, सिर व कलगी पर सूजन।
४. जांघों तथा कलगी का बैगनी हो जाना।
५. नाक से स्राव।
६. खांसी, जुखाम।
७. दस्त।
8. मुलायम कवच वाले अंडे।
शूकर इन्फ्लूएंजा(फलू) के लक्षण:
१. शिथिलता एवं भूख में कमी।
२. बुखार
३. नाक से सराव,
४. खांसी , जुकाम
५. दस्त
मुर्गी एवं सूकर पालकों के ध्यान देने हेतु जैव सुरक्षा उपाय:
१. जंगली मुर्गी, प्रवासी पक्षी, जलीय पक्षियों की अचानक मृत्यु की दशा में निकटतम पशु चिकित्सा केंद्र से संपर्क करें।
२. मृत पशुओं या मुर्गियों के शवों को समुचित रूप से चूना आदि डालकर दफनाए।
३. उपरोक्त दशा में यह उचित होगा की कुशल पशु चिकित्सक की सलाह लें एवं उनके अनुसार ही कार्य करें।
३. बीमार पक्षी एवं पशुओं से दूर रहें एवं अपने परिवार के सदस्यों प्रमुख रूप से बच्चों को उनसे दूर रखें।
४. बीमार पक्षियों या पशुओं को अपने रहने के स्थान से दूर बांधे।
५. मांस आदि का सेवन करते समय यह ध्यान रखें कि मांस पूर्णतया पका हुआ हो तथा उसमें कहीं भी गुलाबीपन ना हो। पके हुए मांस के सेवन से बीमारी नहीं फैलती है।
६. मांस को बनाते समय ध्यान पूर्वक कार्य करें। पूर्णतया पकाएं एवं पकाने के बाद हाथों को साबुन या एंटीसेप्टिक घोल से धोएं।
७. बूचड़ का चाकू भी विसंक्रमित किया जाना आवश्यक है।
यदि इन जैव सुरक्षा उपायों को अमल किया जाए तो भविष्य में होने वाली अनेक प्रकार की जूनोटिक बीमारियों से बचाव हो सकता है एवं उनके प्रसार पर नियंत्रण हो सकेगा।