बोवाइन ट्यूबरकुलोसिस (टीबी, क्षय रोग): एक जूनोटिक रोग

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                 बोवाइन ट्यूबरकुलोसिस (टीबी, क्षय रोग): एक जूनोटिक रोग

डॉ. श्वेता राजौरिया, डॉ. अर्चना जैन, डॉ. मनोज कुमार अहिरवार, डॉ रंजीत एच,

डॉ. ज्योत्सना शक्करपुड़े, डॉ. कविता रावत, डॉ. दीपिका डायना जेसी एवं डॉ. आम्रपाली भीमटे

नानाजी देशमुख पशुविज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर, महू (म. प्र.)

 

बोवाइन ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) एक गंभीर और संक्रामक रोग है जो मुख्य रूप से मवेशियों में होता है। यह रोग माइकोबैक्टीरियम बोविस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है, जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस कॉम्प्लेक्स का हिस्सा है। बोवाइन टीबी न केवल पशुओं की सेहत को प्रभावित करता है, बल्कि यह मनुष्यों में भी फैल सकता है, जिससे यह एक ज़ूनोटिक रोग बन जाता है। भारत जैसे देश में, जहां पशुपालन और डेयरी उद्योग का आर्थिक और सामाजिक महत्व अत्यधिक है, बोवाइन टीबी एक गंभीर समस्या है। है। यह रोग भारत में पशुधन के लिए एक बड़ी समस्या है, विशेष रूप से गायों और भैंसों में, जिनका दुग्ध उत्पादन और कृषि कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह न केवल पशुओं की सेहत को प्रभावित करता है, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी नुकसानदायक है।

रोग का प्रसार और कारण

टीबी एक धीमी गति से विकसित होने वाला रोग है, जो पशुओं में कई महीनों या वर्षों तक बिना किसी स्पष्ट लक्षण के रह सकता है। बोवाइन टीबी का मुख्य प्रसार संक्रमित पशुओं के सीधे संपर्क, दूषित पानी और भोजन के माध्यम से होता है। संक्रमित पशु अपने थूक, मूत्र, मल, और दूध के माध्यम से बैक्टीरिया फैलाते हैं, जिससे अन्य पशुओं और मनुष्यों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। खासकर उन इलाकों में जहां पशुओं और मनुष्यों का नज़दीकी संपर्क होता है, जैसे कि ग्रामीण क्षेत्रों में, यह रोग तेजी से फैल सकता है।

भारत में, मवेशियों में टीबी का प्रसार एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि अधिकांश ग्रामीण इलाकों में पशुओं की निगरानी और चिकित्सा सुविधा सीमित होती है। इसके अलावा, कई बार पशुपालक रोग के लक्षणों को पहचानने में असमर्थ होते हैं, जिससे संक्रमण का प्रसार और बढ़ जाता है। दूषित दूध और मांस का सेवन भी इस रोग के मानवों में फैलने का एक प्रमुख कारण है।

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भारत में, यह रोग मुख्य रूप से डेयरी पशुओं में पाया जाता है। दूध उत्पादन में कमी, प्रजनन संबंधी समस्याएं, और गंभीर मामलों में पशु की मृत्यु तक हो सकती है। यह न केवल पशुपालकों के लिए आर्थिक नुकसान का कारण बनता है, बल्कि इससे मानव स्वास्थ्य पर भी खतरा मंडराता है, क्योंकि माइकोबैक्टीरियम बोविस से दूषित दूध और मांस का सेवन करने से यह रोग मनुष्यों में भी फैल सकता है।

बोवाइन टीबी के लक्षण

बोवाइन टीबी के लक्षण अक्सर धीरे-धीरे प्रकट होते हैं और अन्य बीमारियों के लक्षणों से मिलते-जुलते होते हैं, जिससे इसका निदान करना कठिन हो सकता है। पशुओं में इस रोग के सामान्य लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. वजन कम होना:संक्रमित पशु धीरे-धीरे अपना वजन खोने लगते हैं, और उनकी भूख में भी कमी आती है।
  2. श्वसन समस्याएं:पशुओं को सांस लेने में कठिनाई होती है, और खांसी भी हो सकती है।
  3. प्रजनन समस्याएं:बोवाइन टीबी से प्रभावित पशुओं में प्रजनन संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है।
  4. दूध उत्पादन में कमी:टीबी से संक्रमित मवेशियों का दूध उत्पादन कम हो जाता है, जिससे डेयरी उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

ज़ूनोटिक प्रभाव

बोवाइन टीबी का सबसे गंभीर पहलू इसका ज़ूनोटिक प्रभाव है, अर्थात यह रोग पशुओं से मनुष्यों में फैल सकता है। भारत में, ग्रामीण क्षेत्रों में बिना पाश्चराइज किए हुए दूध का सेवन आम बात है, जिससे माइकोबैक्टीरियम बोविस से संक्रमित दूध के माध्यम से यह रोग मनुष्यों में फैल सकता है। इसके अलावा, उन लोगों को भी इस रोग का खतरा होता है जो संक्रमित पशुओं के संपर्क में आते हैं, जैसे कि किसान, पशु चिकित्सक, और बूचड़खाने के श्रमिक।

मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव

मनुष्यों में बोवाइन टीबी के लक्षण माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के कारण होने वाले सामान्य टीबी से मिलते-जुलते होते हैं। हालांकि, यह फेफड़ों के अलावा अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है, जिसे एक्स्ट्रा-पल्मोनरी टीबी कहा जाता है। इसका निदान करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि सामान्य टीबी की जांच प्रक्रियाएं माइकोबैक्टीरियम बोविस और माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के बीच भेदभाव नहीं कर पाती हैं। इस कारण, ज़ूनोटिक टीबी के मामलों का कम आंकलन होता है, और रोग का सही समय पर इलाज नहीं हो पाता।

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रोकथाम और नियंत्रण

भारत में पशुओं में टीबी की रोकथाम और नियंत्रण के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार और विभिन्न पशु चिकित्सा संस्थानों द्वारा टीबी के निदान और उपचार के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। टीबी के निदान के लिए ट्यूबरकुलिन परीक्षण एक आम तरीका है, जिसमें संक्रमित पशुओं की पहचान कर उन्हें स्वस्थ पशुओं से अलग किया जाता है। संक्रमित पशुओं को अलग करके उनके उचित इलाज का प्रबंध किया जाता है, ताकि रोग का प्रसार रोका जा सके।

इसके अलावा, पशुचिकित्सकों द्वारा टीबी के प्रति संवेदनशील पशुओं को नियमित रूप से परीक्षण करने और टीकाकरण की भी सलाह दी जाती है। पशुओं को टीबी से बचाने के लिए उनके रहने के स्थानों की सफाई, स्वच्छता, और उचित पोषण का ध्यान रखना भी आवश्यक है। इस रोग के रोकथाम के लिए पशुओं की नियमित जांच और टीकाकरण आवश्यक है। इसके अलावा, पशुओं के रहने के स्थानों की सफाई और स्वच्छता पर ध्यान देना भी महत्वपूर्ण है, ताकि संक्रमण के प्रसार को रोका जा सके। सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा पशुपालकों को इस रोग के लक्षणों की पहचान करने और इसे रोकने के तरीकों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण और शिक्षा कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

बोवाइन टीबी का इलाज

बोवाइन टीबी का इलाज एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि यह बैक्टीरिया कुछ सामान्य एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधी होता है। इसके लिए विशेष एंटीबायोटिक्स की आवश्यकता होती है, और इलाज की अवधि भी लंबी होती है। संक्रमित पशुओं को अलग करना और उनका उचित इलाज करना आवश्यक है, ताकि रोग का प्रसार रोका जा सके। मानवों में ज़ूनोटिक टीबी के मामलों में, रोगियों को उचित चिकित्सा उपचार और दीर्घकालिक देखभाल की आवश्यकता होती है, क्योंकि इस रोग का उपचार सामान्य टीबी से अलग हो सकता है।

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चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा

हालांकि भारत में टीबी के नियंत्रण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, फिर भी कई चुनौतियाँ सामने हैं। ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी, चिकित्सा सुविधाओं की अनुपलब्धता, और संक्रमित पशुओं की सही पहचान करना कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं। इसके अलावा, ज़ूनोटिक टीबी के मामलों का सही आंकलन और रिपोर्टिंग भी एक बड़ी समस्या है। अंततः, भारत में पशुओं में टीबी की समस्या का समाधान करने के लिए सतत प्रयास, सरकारी और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग, और ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता है। इससे न केवल पशुधन को संरक्षित किया जा सकेगा, बल्कि यह देश की आर्थिक स्थिति और मानव स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगा।

आने वाले वर्षों में, बोवाइन टीबी के नियंत्रण के लिए सतत प्रयास और सरकार, गैर-सरकारी संगठनों, और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग आवश्यक है। पशुओं और मनुष्यों के बीच संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें वन हेल्थ (One Health) दृष्टिकोण को अपनाया जाना चाहिए। इसके तहत पशु चिकित्सा, मानव चिकित्सा, और पर्यावरणीय स्वास्थ्य सेवाओं के बीच तालमेल बढ़ाकर इस रोग के प्रसार को रोका जा सकता है।

निष्कर्ष

भारत में बोवाइन टीबी एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, जो न केवल पशुओं के लिए बल्कि मनुष्यों के लिए भी खतरा पैदा करती है। इस रोग के ज़ूनोटिक प्रभाव के कारण, इसका सही समय पर निदान और इलाज अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत जैसे देश में, जहां पशुपालन और डेयरी उद्योग का सामाजिक और आर्थिक महत्व अत्यधिक है, बोवाइन टीबी के नियंत्रण और रोकथाम के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार, वैज्ञानिक समुदाय, और जनता के संयुक्त प्रयास आवश्यक हैं, ताकि इस रोग से न केवल पशुधन को संरक्षित किया जा सके, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला जा सके।

 

 

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