संकर नस्ल के सांडों में प्रजनन संबंधी समस्याएं एवं इसके कारक
छाया रानी
पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभाग, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर, बरेली– 243122,
प्रजनन सम्बंधित समस्या डेयरी में उत्पादन की कमी का एक प्रमुख कारण हैं। प्रजनन विकारों के कारण डेयरी में प्रति वर्ष पशुओं की संख्या कम हो रही है। एक प्रबंधित डेयरी में 10 प्रतिशत से ज्यादा प्रजनन समस्याएं चिंता का विषय होती है। कुछ वर्षों पहले तक यह कथन था कि किसी भी डेरी फ़ार्म के दुग्ध उत्पादन में प्रजनक सांड का योगदान आधा होता है लेकिन अब वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रजनन हेतु प्रयोग होने वाले सांडों का योगदान 70 प्रतिशत तक होता है। कई देशों में दुग्ध उत्पादन में सुधार के लिए उन्नत नस्लों की विदेशी (बोस टॉरस) और स्वेदशी नस्लों (बोस इंडिकस) के बीच संकरण (क्रॉस) किया जा रहा है। संकर प्रजाति को मोटे तौर पर दो या दो से अधिक विशिष्ट वंशों के बीच संकरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो एक नई प्रजाति की उत्पत्ति में योगदान देता है। जिसके परिणामस्वरूप उच्च दुग्ध उत्पादकता, लंबी स्तनपान अवधि, जल्दी परिपक्व होने की क्षमता, कम उम्र में पहली बार ब्यांत और कम ब्यांत अंतराल जैसे वांछनीय गुणों के मिश्रण वाली संतानें प्राप्त होती हैं जिसके प्रभाव से कई देश दुग्ध उत्पादन के मामले में अपर्याप्त से पर्याप्त में परिवर्तित हुए है। जिससे गरीब किसानों की आजीविका में सुधार हुआ है तथा विभिन्न विदेशी एवं देशी गायों के संकरण में तेजी एवं आर्थिक प्रगति हुई है। । इसके विपरीत, संकर पशुओं मे प्रजनन क्षमता का निम्न स्तर किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है। संकर संतानों की उत्पादन क्षमता संकरीकरण के कारण उच्च होती है, जबकि उनकी प्रजनन क्षमता का स्तर निम्न होता है। यद्यपि बांझपन अक्सर संकर (क्रॉसब्रेड) नरों के साथ-साथ मादाओं में भी होता है, सांडो में बांझपन एक महत्वपूर्ण प्रभाव रखता है क्योंकि एक नर के वीर्य का उपयोग कई हजार मादाओं के प्रजनन के लिए किया जाता है। मादा प्रजनन क्षमता में आनुवंशिक चयन और एआरटी (ARTs) तकनीकों के जरिये सुधार किया गया है, जबकि तुलनात्मक रूप से, नर-प्रजनन क्षमता पर उतना ध्यान नहीं दिया गया है। प्राय: यह पाया गया है की संकर नरों की प्रजनन क्षमता बांझपन और अल्प प्रजनन जैसी समस्याओं से प्रभावित होती हैं । सर्वोत्तम नरों और मादाओं की संतान होने के बावजूद, खराब वीर्य गुणवत्ता और उप-प्रजनन क्षमता (सबफर्टिलिटी) /बांझपन, संकर (क्रॉसब्रेड) नरों की कलिंग (छंटनी) का मुख्य कारण हैं। अध्ययनों के अनुसार, 80-90% शुद्ध नस्ल के जानवरों में प्रजनन संबंधी समस्याएं नहीं होती हैं जबकि अपनी मूल शुद्ध नस्लों की तुलना में, संकर नस्लों में कम प्रजनन क्षमता दर्ज की गई हैं। खराब वीर्य गुणवत्ता के कारण नरों की प्रजनन क्षमता में कमी वैश्विक स्तर पर प्रजनन विफलता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
संकर सांडों में प्रजनन संबंधी समस्याएं
वीर्य की खराब गुणवत्ता
संकर सांडों में, स्वदेशी सांडों की तुलना में वीर्य की मात्रा अधिक पायी जाती है, लेकिन वीर्य गुणवत्ता मानदंड जैसे शुक्राणुओं की संख्या, गतिविधि, सांद्रता एवं कुल गतिशील शुक्राणुओं की संख्या आदि कम दर्ज की गए हैं। संकर सांडों (64.8-75.4%) की तुलना में देशी नस्ल के सांडों (स्वदेशी एवं विदेशी) में जीवित शुक्राणुओं की संख्या भी अधिक होती है। संकर सांडों में शुक्राणु की संरचनात्मक असामान्यताओं का स्तर भी शुद्ध नस्ल के स्वदेशी सांडों की तुलना में अधिक पाया गया है। रिपोर्टों के अनुसार, कई संकर सांडों में वीर्य जमने के लिए आवश्यक न्यूनतम कारको का वीर्य स्खलन के समय पालन नहीं होता है। प्रायः, जमने और पिघलने के बाद, देशी नस्ल के सांडों की तुलना में संकर सांडों के शुक्राणुओं की फेनोटाइपिक विशेषताओं और कार्यक्षमता में काफी बदलाव होता है, जो इन सांडों में कम प्रजनन क्षमता की उच्च स्तरो का कारण हो सकता है।
उप-प्रजनन क्षमता (सबफर्टिलिटी) और कलिंग (छंटनी) का उच्च स्तर
देशी नस्ल के सांडों की तुलना में संकर नस्ल के सांडों में उप-प्रजनन क्षमता (सबफर्टिलिटी) एवं बांझपन का स्तर अधिक होता है तथा गर्भाधान की दर भी कम होती है। संकर नस्ल के सांडों के शुक्राणुओं का क्रायोटोलरेंस स्तर शुद्ध नस्ल के सांडों के शुक्राणुओं से कम पाया गया है। देशी नस्ल के सांडों की तुलना में, संकर नस्ल के सांडों में वीर्य की खराब गुणवत्ता, खराब शुक्राणु क्रायोटोलेरेंस और उप-प्रजनन क्षमता (सबफर्टिलिटी) एवं बांझपन के कारण कलिंग (छंटनी) की उच्च दर (40-70%) दर्ज की गई है।
वीर्य की गुणवत्ता में मौसमी बदलाव
संकर नस्ल के सांडों में वीर्य की गुणवत्ता मे मौसमी प्रभाव भी दर्ज किया गया है। ऐसा पाया गया है की देशी नस्ल के सांडों की तुलना में संकर नस्ल के सांडों में पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति अधिक संवेदनशीलता होती है। जमने योग्य गुणवत्ता वाले वीर्य स्खलन पर मौसम और नस्ल × मौसम की परस्पर क्रिया का प्रभाव देशी नस्ल के सांडों की तुलना में संकर सांडों में अधिक दर्ज किया गया है।
संकर सांडों में बांझपन/उप-प्रजनन क्षमता (सबफर्टिलिटी) के लिए उत्तरदायी कारक
संकर सांडों में बांझपन/उप-प्रजनन क्षमता (सबफर्टिलिटी) की अधिक स्तर के पीछे के कारणों को समझने के प्रयास में, कई शोधकर्ताओं ने संकर नस्ल और देशी नस्ल के सांडों के बीच शारीरिक और आणविक संरचनाओ का अध्ययन किया है । कुछ अध्ययनों ने आनुवंशिक, हार्मोनल, वीर्यविज्ञान और एंड्रोलॉजिकल स्तरों पर साक्ष्य प्रस्तावित किए है । हालाँकि, संकर नस्ल के सांड में बांझपन/उपजनन क्षमता की अधिक स्तरो के सटीक कारण अभी भी अस्पष्ट बने हुए हैं।
शुक्राणु की आणविक संरचना में परिवर्तन
पहले यह माना जाता था कि शुक्राणु केवल पैतृक डीएनए को अंडाणु तक पहुंचाने का काम करते हैं। बाद में, शुक्राणु में आरएनए की खोज ने पैतृक डीएनए प्रदान करने के अलावा अतिरिक्त भूमिकाएं भी सुझाईं है । हाल के अध्ययनों ने शुक्राणु आरएनए और शुक्राणु कार्यों और निषेचन क्षमता में संभावित भूमिकाओं की रूपरेखा तैयार की है। विभिन शोधो से संकेत मिलता है कि एमआरएनए, प्रोटीन, फॉस्फोप्रोटीन और मेटाबोलाइट्स सहित शुक्राणु अणुओं की अभिव्यक्ति, विभिन्न प्रजनन रेटिंग वाले सांडों में परिवर्तित पायी गई है । ये सभी अणु शुक्राणु के स्वास्थ्य को दर्शाते हैं और उनकी निषेचन क्षमता से संबंधित होते हैं।
वृषण कोशिकाओं की संरचना में परिवर्तन
वीर्य नलिका आकृति और संरचना के संदर्भ में संकर और देशी या विदेशी शुद्ध नस्ल के सांडों के बीच काफी भिन्नता पायी जाती है । वृषणकोश का वजन, लंबाई, चौड़ाई और आयतन, साथ ही वृषणकोश की परिधि, देशी सांड की तुलना में संकर सांड में अधिक पाई जाती है । देशी सांडों की तुलना में संकर सांडों में वीर्य नलिकाओं का व्यास और क्षेत्रफल भी अधिक पाया गया है । इन शारीरिक विविधताओं के अलावा, संकर सांडों की तुलना में शुद्ध नस्ल के सांडों में सर्टोली कोशिकाओं का स्तर भी अधिक पाया गया है । सर्टोली कोशिकाओं को शुक्राणुजनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है, और सर्टोली कोशिका की संख्या में परिवर्तन से शुक्राणुजनन में कमी और नर बांझपन हो सकता है । वृषण में दैनिक शुक्राणु उत्पादन और वृषण का आकार सर्टोली कोशिकाओं की संख्या पर निर्भर करता है । इसके अलावा, सर्टोली कोशिकाएं रोगाणु कोशिका विकास के लिए भौतिक सहायता में या पोषक तत्वों और विकास कारकों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ।
वृषण आणविक स्वास्थ्य में परिवर्तन
उचित शुक्राणुजनन के लिए वृषण में एक उपयुक्त आणविक वातावरण की आवश्यकता होती है। देशी नस्ल के सांडों के वृषण की तुलना में संकर सांडों के वृषण में शुक्राणु के कार्य और निषेचन क्षमता से संबंधित वृषण ट्रांस्क्रिप्त्स मे बदलाव दर्ज किए गए है, जिसमे शुक्राणु के कार्य और निषेचन क्षमता से संबंधित ट्रांस्क्रिप्त्स को संकर और देशी के बीच अलग-अलग रूप से व्यक्त किया गया है ।
प्रजनन संबंधी एंडोक्रिनोलॉजिकल असमानता
सफल प्रजनन अंतःस्रावी परिवेश पर भी निर्भर करता है। वृषण के विकास, यौन परिपक्वता और शुक्राणुजनन के लिए प्रजनन हार्मोनो की आवश्यकता होती है, मुख्य रूप से फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन (एफएसएच), ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (एलएच), और टेस्टोस्टेरोन। यद्यपि विभिन्न गोजातीय नस्लों के बीच एफएसएच, एलएच और टेस्टोस्टेरोन की परिसंचारी सांद्रता में व्यापक भिन्नता पाई गई है। उच्च सीरम टेस्टोस्टेरोन सांद्रता संकर सांडों में खराब वीर्य गुणवत्ता से जुड़ी पाई गई है । देशी सांडों की तुलना में, एलएच हार्मोन के प्रभाव में अंतरालीय कोशिकाओं (लेडिग कोशिकाओं) से उत्पादित टेस्टोस्टेरोन, सामान्य शुक्राणुजनन और नर विशेषताओं के लिए महत्वपूर्ण होता है । इसके अलावा, सर्टोली कोशिकाएं इनहिबिन, एक्टिविन (एफएसएच स्राव को बनाए रखने में शामिल) और एण्ड्रोजन बाइंडिंग प्रोटीन (सेमिनिफेरस नलिकाओं में टेस्टोस्टेरोन स्तर बनाए रखने मे सहायक) का उत्पादन करती हैं; इसलिए, संकर नस्ल के सांडों में सर्टोली कोशिका संख्या कम होने से एफएसएच स्राव और टेस्टोस्टेरोन स्तर में परिवर्तन हो सकता है जो इन सांडों में प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
जीन और क्रोमोसोमल परिवर्तन
X और Y गुणसूत्र में समान न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम (98-100%) का छोटा खंड होता है जो उनकी छोटी या लंबी भुजाओं के टर्मिनल भाग में स्थित होता है; समरूपता के इस क्रम को छद्म ऑटोसोमल क्षेत्र (PAR) के रूप में जाना जाता है। इस PAR में ऑटोसोम्स और सेक्स क्रोमोसोम की तुलना में भिन्न कार्यात्मक और आणविक विशेषताएं होती हैं । अंतर-प्रजाति प्रजनन से संतानों में X और Y गुणसूत्र के PAR के बीच संरचनात्मक और/या आणविक/आनुवंशिक विसंगति पैदा हो सकती है जोकि नर अर्ध-सूत्री विभाजन के दौरान सामान्य सिनैप्स और पुनर्संयोजन में हस्तक्षेप करता है, जिसके परिणामस्वरूप बांझपन की संभावनाए बढ़ जाती है।
निष्कर्ष एवं भविष्य दृष्टिकोण
निस्संदेह, कम उत्पादन वाली स्वदेशी गायों के उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले विदेशी सांडो (क्रॉसब्रेड नर) से सकरण के परिणामस्वरूप उच्च दुग्ध उत्पादन क्षमता के साथ-साथ उन्नत जीनोटाइप वाली संततियों का उत्पादन भी हुआ है । जबकि दूसरी ओर, यह भी स्पष्ट है कि संकर नस्ल के सांडों में शुद्ध नस्ल की तुलना में प्रजनन स्तर पर समस्याओ में भी बदोत्तरी हुई है । सांडो में प्रजनन क्षमता एक महत्वपूर्ण प्रभाव रखती है क्योंकि एक नर के वीर्य का उपयोग कई सारी मादाओं के प्रजनन के लिए किया जाता है। संकर नस्लों में बांझपन/उप-प्रजनन क्षमता के कारणों को स्पष्ट रूप से समझने एवं उसमें सुधार लाने के लिए उपयोगी कदम उठाए जाने अति आवश्यक है।