भैंसों में प्रजनन सम्बधिंत तकनीकियां
ऋषिपाल यादव1, पूजा यादव2 एवं रवि दत्त1
1 मादा पशु एंव प्रसूति रोग विभाग
2 पशु शल्य चिकित्सा एवं रेडियोलोजी विभाग
पशु चिकित्सा महाविद्यालय, हिसार ( हरियाणा)
लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एंव पशु विज्ञान विश्वविद्यालय
हिसार (125 004)
Corresponding author – Dr. Rishipal Yadav, Email id – drishiyadav.96666@gmail.com
भैंस का भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। छोटे किसान अपनी आजीविका के लिये म ुख्यतौर पर पशुपालन पर निर्भर हैं। भैंस का दुग्ध उत्पादन देशी गाय से बेहतर है तथा भैंस के दूध में वसा की मात्रा भी ज्यादा होती है। इसलिये किसान गांय के मुकाबले भैंस को पालना ज्यादा पसंद करते हैं। हरियाणा मुर्राह नस्ल की भैंस के लिये पूरे विश्व में प्रसिद्व है। भैंस के महत्व को देखते हुये उनके प्रजनन में होने वाली समस्याओं की तरफ ध्यान देना अति आवश्यक है।
भैंस की प्रजनन क्षमता में गिरावट एक गंभीर चिंता का विषय है और इसके सुधार की तरफ ध्यान देने की जरुरत है। भैंसों में प्रजनन कई निहित समस्याओं जैसे देरी परिपक्वत्ता, मूक गर्मीतथा खास तौर पर ग्रीष्म काल में ब्याने के बाद लम्बे समय तक गर्मीमें न आना व कम गर्भाधान दर आदि से ग्रस्त है। भैंस के गर्भाधान में देरी सीधे तौर पर पशुपालक की आय को प्रभावित करती है। ऊष्णकटिबंधीय वातावरण ( भारतीय हालात) प्रजनन प्रदर्शन और प्रजनन क्षमता साल में समय के साथ विशिष्ट प्रभाव दिखाता है। इसलिये पशु के प्रजनन क्रिया विज्ञान की बुनियादी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुये कृत्रिम जैव प्रौद्योगिकी की तकनीकों के मानकीकरण की प्रक्रिया में विकसित करने की आवश्यकता है। इनकी सहायता से पशुओं प्रजनन क्षमता को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है।
ये प्रजनन तकनीक निम्न प्रकार से है:-
1. सुपर ओवुलेसन तकनीक तथा भ्रूण प्रत्यारोपन तकनीक ( एंब्रियो ट्रांस्फर टेक्नोलाॅजी अर्थात् ई0 टी0 टी0)
2. कृत्रिम परिवेशी निषेधन ( इन विट्रो फ्रटीलाइजेशन अर्थात आई0 वी0 एफ0 )
3. भ्रूण का शीत भंडारण ( एंब्रियो फ्रीजिंग)
4. भू्रण के लिंग को सुनिश्चित करना ( सेक्स ड़िटेरमिनेशन आॅफ एंब्रियो)
1. सुपर ओवुलेसन तकनीकभ्रूण प्रत्यारोपन तकनीक ( एंब्रियो ट्रांस्फर टेक्नोलाॅजी अर्थात् ई0 टी0 टी0)
सामान्य पशु के एक मादा चक्र में ड़िम्ब ग्रन्थियों से एक ड़िम्बरिहा होता है लेकिन इस तकनीक के द्वारा उत्तम गुणों वाली गांय को हार्मोन के द्वारा उत्तेजित करके एक मादा के चक्र में एक से ज्यादा ड़िम्ब रिहा करा दिये जाते हैं। यह प्रक्रिया पशु में उत्तम, नस्ल,जलवायु, खान-पान, दूग्ध उत्पादन सुपर ओवुलेसन करवाने वालीदवा और मादा चक्र का चरण आदि से प्रभावित होती है। पुटक उत्तेजक हार्मोन ( फोलिकल स्टुमुलेटिंग हार्मोन/एफ0 एस0 एच0) पी0 एम0 एस0 जी0 हृार्मोस से अच्छीदवा है। भैंस की डिम्ब ग्रन्थियों में अविकसित पुटकों की संख्या गांय के मुकाबले कम होती है। अविकसित पुटक ही विकसित होने के बाद ड़िम्ब ( अण्ड़ा) रिहा करता है। इसलिये यह तकनीक गांयों में ज्यादा कामयाब है।
भू्रण प्रत्यारोपनतकनीक में किसी उत्तम मादा पशु जिसे मादा ( ड़ोनर) कहा जाता है, से भू्रण एकत्रित करके उसे उसी वंश की किसी दूसरी मादा पशु जिसे प्राप्तकर्ता ( रेसिपियन्ट) बोलते हैं के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है। इस तकनीक में उत्तम गुणों वाली मादा से सुपरओवुलेसन की तकनीक का प्रयोग करके एक से ज्यादा ड़िम्ब रिहा करा दिये जाते हैं तथा डोनर मादा पशु के गर्मी में आने के उपरान्त उसका उत्तम सांड़ के शुक्राणु से कृत्रिम गर्भाधान कर दिया जाता है। कृत्रिम गर्भाधान के छः से सात दिन बाद डोनर मादा पशु के गर्भ से भू्रणों को एकत्रित किया जाता है । हृार्मोन की सहायता से प्राप्तकर्ता मादाओं का मादा चक्र भी इस तरह से नियंत्रित कर लिया जाता है। जिससे वो मादा डोनर से 12 से 24 घंटे पहले गरमी में आ जाये। भू्रण की डोनरमादा पशु के गर्भ से निकालने के बाद गुणवत्ता जांची जाती है। वह भू्रण जो तय मानकों में खरे उतरते हैं, उन्हें ही प्राप्तकार्ता मादाओं में भू्रण परखनली के माध्यम से उनके गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। प्राप्तकर्ता मादाओं के गर्भ में ही से भू्रण अपना गर्भकाल पूरा करते हैं।
लाभ
1. उच्चतम भू्रणों वाली मादा से पर्याप्त लाभ को उठाने के लिये यह तकनीक सहायक है।
2. प्राकृतिक प्रजनन से फैलने वाली बिमारियों से भी बचा जा सकता है।
3. एक उच्चतम गुणों वाली मादा से भू्रण एकत्रित कर कर तथा प्राप्तकर्ता मादाओं में भू्रण प्रत्यारोपण कर एक से ज्यादा बच्चे पैदा किये जा सकते हैं।
4. भू्रण प्रत्यारोपन से पहले लिंग निष्चित करके ज्यादा से ज्यादा मादा बच्चों को पैदा किया जा सकता है।
5. एकत्रित भू्रणों को तरल नाइट्रोजन में संरक्षित किया जा सकता है, तथा जरुरत पड़ने पर प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
6. उन संरक्षित भू्रणों को दूर दराज इलाकों और दूसरे देषों में भी आसानी से भेजा जा सकता है, जिसमें उच्चतम गुणों वाली मादा पषु से लाभ उठाया जा सकता है।
कमियां
1. भैंस ग्रीष्म ऋतु में मुख्य तौर पर अप्रैल से जून में यौन प्रक्रिया लगभग निष्क्रिय होती है। ग्रीष्म ऋतु में इस पशु में प्रोलेक्टिन हृार्मोन ज्यादा मात्रा में बनता है। इसके कारण पुटक की परिपक्वत्ता प्रभावित होती है तथा ड़िम्ब ( अण्ड़ा) रिहा नही हो पाता। इस समय में तकनीक कामयाब नही है।
2. यह तकनीक महंगी है।
3. भू्रण संकलित करने तथा प्रत्यारोपन के दौरान भू्रण की मृत्यु भी हो सकती है।
2. कृत्रिम परिवेषी निषेषन (इन विट्रो फ्रटीलाइजेसन अर्थात आई0 वी0 एफ0 )
इस प्रक्रिया में षुक्राणुओं तथा अंडों का निषेचन कृत्रिम परिवेष से करवाया जाता है।डोनर मादा पशु के योनि मार्ग से ड़िम्ब ( अण्डा ) को प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में एक अल्ट्रासांउड चलित सुई योनि की दीवार को भेद कर डिम्बग्रन्थियों तक पहुंचती है, इस सुई के दवारा पुटकों का चुषण किया जाता है। ताकि पुटकीय द्रव प्राप्त किया जा सके। इस पुटकीय द्रव्य को प्रयोगशाला में ले जाकर अंडाणुओं को एकत्रित (संकलित) किया जा सकता है। यदि संकलित अंडाणु परिपक्व नही होते हैं तो इन्हें परिपक्व करने के लिये एक पौष्टिक माध्यम में रखा जाता है। परिपक्व होने के बाद अंडाणुओं का शुक्राणु के निषेचन किया जाता है। निषेचित अंडों को सात दिनों तक अंडा सेने की मशीन में रखा जाता है। इसी दौरान, वृद्वि स्तर के अनुकूलमाध्यम में नियमित रुप से बदलाव होता है। उसके बाद परंपरागत भू्रण प्रत्यारोपन की तकनीक की भाँति प्राप्तकर्ता गाय के गर्भाशय में भू्रण को प्रत्यारोपित किया जाता है।
लाभ
1. इस तकनीक से कृत्रिम गर्भाशय या प्राकृतिक सम्भोग की तुलना में बहुत कम शुक्राणुओं की आवश्यकता होती है। जब कोई उत्तम गुणों वाला नर पशु कम शुक्राणु बना पाता है तो इस तकनीक के माध्यम से उस पशु से बच्चे प्राप्त किये जा सकते हैं।
2. अगर किसी उत्तम गुणों वाली मादा पशु की अण्डावाही नलियाँ किसी कारणवश बंद हो जाती है तो उसके डिम्ब को एकत्रित (संकलित) करके कृत्रिम परिवेश में निषेचन करवाकर बच्चे प्राप्त किये जा सकते हैं।
3. उत्तम गुणों वाली मादा पशु जो किसी बिमारी या चोट की वजह से बच्चा देने में असमर्थ है, लेकिन पशुओं की डिम्बग्रंथियाँ सही काम कर रही है, तो इस तकनीक के माध्यम से उन मादा पशुओं से भी बच्चे प्राप्त कर सकते हैं।
कमियाँ
1. यह तकनीक अत्यधिक महंगी है।
2. भू्रण के छेडछाड के कारण नवजात बछड़ों में अनुवांशिक ( जन्म-जात) बीमारियाँ हो सकती हैं।
3. प्राप्तकर्ता मादा में भू्रण रोपन के योग्य हृार्माेन संतुलित होना अति आवश्यक है, अन्यथा गर्भपात हो सकता है।
3 शीत भंडारित भू्रण ( एम्ब्रायो फ्रीजिंग)
संकलित भू्रणों को तरल नाइट्रोजन ( दृ196° सी) में संरक्षित किया जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर विगलन करके इन्हें प्राप्त कर्ता मादाओं में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। यह तकनीक भू्रण प्रत्यारोपण की तकनीक को ओर अधिक प्रभावशाली बनाती है।
लाभ
1. भैंसों में इस तकनीक का बहुत फायदा है क्योंकि भैंस ग्रीष्म काल में कम गर्मी में आती है तथा इस दौरान भू्रण प्रत्यारोपन नही किया जा सकता। संकलित भू्रण को ठण्ड में संरक्षित करके उपयुक्त समय आने पर प्रत्यारोपण किया जा सकता है।
2. इस तकनीक से उत्तम गुणों वाली मादा पशु के भू्रण को दूसरे देशों में ले जाया जा सकता है तथा विश्व के दूसरे देशों में भी उच्च नस्ल के पशु पैदा किये जा सकते हैं।
कमियां
1. तापमान में ज्यादा बदलाव होने से भू्रण की मृत्यु हो सकती है।
2. नवजात बछडों के अनुवांशिक ( जन्म-जात) बीमारियाँ हो सकती हैं।
4 भू्रण लिंग की जांच
भू्रण के लिंग का पता लगाने वाली कई तकनीक हैं। इनमें से प्रमुख हैं ग्. क्रोमोसोम से सम्बधिंत एनजाईम ( किण्वक), गतिविधि भ्.ल् प्रतिजन को पता लगाने वाली एंटीबोडीज तथाल्.क्रोमोसोम सम्बधिंत डीएनए जाँच।
लाभ
1. यह तकनीक ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करके किसान की आय तथा देश का दुग्ध उत्पादन बढ़ाने में सहायक है।
2. मादा लिंग का गर्भ में होने पर पशु की कीमत बढ जाती है।
कमियां
1. यह तकनीक कम सटीकता और समय लेने वाली है।
भविष्य की संभावनायें
पिछले दो दशकों में, एशिया महाद्वीप के कुछ विकसित देशों ने भू्रण जैव प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाओं में बहुत निवेश किया है। ताकि उन्हे कुशल जनशक्ति मिल सके जो उनकी भैंस का आनुवांशिक गुणों में सुधार करने में सहायक सिद्व हो। भू्रण प्रत्यारोपण की तकनीक को आनुवांशिक सुधार के लिये प्रयोग में लाया जा सकता है। कई उत्साहजनक परिणामों के बावजूद, इन तकनीकों को पूरी तरह कामयाब बनाने के लिये अधिक अध्ययन और शोध की आवश्यकता है।