गाय की भारतीय नस्लें – भाग 2
*कर्नाटक* में द्विकाजी देवनी और भारवाहक अमृतमहल, हल्लीकर, खिल्लार, कृष्णावेली और मलनाड गिद्दा नस्लें विकसित हुई।
कर्नाटक के बीदर जिले में द्विकाजी *देवनी* नस्ल विकसित हुई। बैल भारी काम के लिए अच्छे हैं तो गायें 1200 लीटर तक दूध दे देती हैं। ऐसा माना जाता है कि देवनी नस्ल का विकास गिर से ही हुआ है।
कर्नाटक के चिकमंगलूर, चित्रदुर्ग, देवांगीर, हस्सन, शिमोगा और टुमकुर जिलों में *अमृतमहल* के पशु उपस्थित हैं। इनके बैल भारवाहन के लिए अच्छे हैं और गायें 600 लीटर तक दूध दे देती हैं।
कर्नाटक के बैंगलुरु, चित्रदुर्ग, हस्सन, कोलार, मांड्या, मैसूरु और टुमकुर जिलों में *हल्लीकर* नस्ल का विकास हुआ जो मुख्यतः भारवाहक नस्ल है। इनकी गायें 550 लीटर तक दूध दे देती हैं। वैसे हल्लीकर कम्युनिटी के किसानों के पास 1100 लीटर तक दूध देने वाली गायें हैं। इन्हीं बेहतरीन गायों के संवर्धन की आज आवश्यकता है।
कर्नाटक की *खिल्लार* भी मुख्य भारवाहक नस्ल है जो बेलगाम, बीजापुर, धारवाड़, गुलबर्गा और बागलकोट जिलों में पनपी। इसके बैल तेज गति के लिए प्रसिद्ध हैं और गायें 450 से 550 लीटर तक दूध दे देती हैं।
कर्नाटक की *कृष्णावेली* भी भारवाहक नस्ल है जो मुख्यतः बेलगाम, बीजापुर और रायचूर जिलों में पाई जाती है। इसके बैल कृष्णा नदी के आसपास की ब्लैक कॉटन साइल में काम करने के लिए बहुत उपयुक्त हैं।
कर्नाटक की भारवाहक *मलनाड गिद्दा* नस्ल के पशु चिकमंगलूर, दक्षिणी कन्नड़, हस्सन, कोडागु, शिमोगा, उत्तर कन्नड़ और उडीपी जिलों में पाए जाते हैं।
*केरल* की मिनिएचर *वेचुर* नस्ल मुख्यतः दुधारू नस्ल है। केरल के हॉट और ह्यूमिड क्लाइमेट में ऐसी नस्ल की आवश्यकता थी जिसकी पोषण आवश्यकता कम हो और वह उस क्लाइमेट में भी रह सके। इसी कारण वहां छोटी कद काठी की वेचुर नस्ल विकसित हुई जिसके सांडों की ऊंचाई मात्र 1 मीटर और गायों की तो मात्र 90 सेंटीमीटर है। बहुत कम इनपुट में यह गाय एक ब्यान्त में 500 से 600 लीटर दूध दे देती है।
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डॉ संजीव कुमार वर्मा-
प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण)
*भाकृअनुप – केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान*
*मेरठ छावनी – 250001*
*9933221103*