गाय की भारतीय नस्लें – भाग 1
किस जगह कौन सी ब्रीड विकसित हुई?
जिस भूभाग में जो नस्ल विकसित हुई वह उस जगह के क्लाइमेट, माइक्रो इन्वाइरनमेंट, वनस्पति और ज्योग्राफी के अनुसार ही विकसित हुई। जिस तरह के पशु विकसित हुए उसी तरह की फ़ूड हैबिट डवलप हो गई उस भूभाग के निवासियों की।
*आंध्रप्रदेश* में दो नस्लें विकसित हुई *ओंगोल* और *पुंगनूर*। ईस्ट गोदावरी, कुरनूल, गुंटूर, नेल्लोर और प्रकाशम जिलों में ओंगोल पाई जाती है और चित्तूर में पुंगनूर। दोनों ही भारवाही नस्लें हैं। ओंगोल का प्रति ब्यान्त औसत दूध उत्पादन 800 लीटर तक होता है। जबकि पुंगनूर का मात्र 550 लीटर। वैसे 1100 लीटर तक की गाय भी देखी गई। दोनों ही हीट टॉलरेंट नस्लें हैं।
*आसाम* हॉट एंड ह्यूमिड क्लाइमेट में गाय की *लखिमी* नस्ल विकसित हुई। इसके बैल भारवाहन और धान के खेतों में काम करने में सक्षम है और गायें प्रति ब्यान्त 400 लीटर तक दूध दे देती हैं।
*बिहार* तीन नस्लें विकसित हुई। बछौर, गंगातीरी और पूर्णिया। दरभंगा, मधुबनी और सीतामढ़ी जिलों में *बछौर*, भोजपुर और गंगा के मैदानी भागों में *गंगातीरी* और अररिया, कटिहार, किशनगंज, माधेपुरा, पूर्णिया और सुपौल में *पूर्णिया* नस्ल। बछौर भारवाही नस्ल हैं जबकि गंगातीरी और पूर्णिया में दूध का भी पोटेंशियल है। इसलिए इन दोनों की ब्रीडिंग पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
*छत्तीसगढ़* के कौशल में गाय की *कौशली* नस्ल विकसित हुई। बिलासपुर, दुर्ग, जांजगीर और रायपुर जिले इसका होम ट्रैक्ट हैं। मूलतः द्विकाजी है।
*गुजरात* गाय की नस्लों के बारे में धनी रहा। दुधारू के रूप में गिर; द्विकाजी के रूप में कांकरेज, थारपारकर, डांगी, नारी और भारवाहक रूप में डाग़री नस्लें विकसित हुई। *गिर* का होम ट्रैक्ट अमरेली, भावनगर, जूनागढ़ और राजकोट जिले: *कांकरेज* का होम ट्रैक्ट अहमदाबाद, बनासकाठा, खेड़ा, कच्छ, मेहसाणा और साबर काठा जिले हैं। *थारपारकर* नस्ल कच्छ में विकसित हुई। डांग एरिया में *डांगी* फली फूली। बनासकाठा और साबर काठा में *नारी* का विकास हुआ। छोटा उदयपुर, दाहोद, गोदारा, पंचमहल और नर्मदा जिलों में *डाग़री* गाय विकसित हुई। गुजरात में गिर के सुव्यवस्थित फार्म विकसित किए जाने की आवश्यकता है। लोगों को अगर गिर का दूध पसन्द है तो गुजरात में पैदा किया जाए और पूरे भारत में भेजा जाए। गिर अगर गुजरात में 3300 लीटर तक दूध दे सकती है तो कोई जरूरी नहीं कि देश के अन्य भूभागों की अन्य जलवायु में भी 3300 लीटर ही दूध देगी।
*हरियाणा* में गाय की तीन नस्लें विकसित हुई द्विकाजी बेलाही और हरियाणा नस्ल और भारवाहक मेवाती। अम्बाला, चंडीगढ़, पंचकूला और यमुनानगर में *बेलाही* गाय पाई जाती है। गुरुग्राम, हिसार झज्जर, जींद, रोहतक और सोनीपत जिलों में *हरियाणा* नस्ल। मेवात के गुरुग्राम और फरीदाबाद जिलों में *मेवाती* नस्ल विकसित हुई। हरियाणा नस्ल की गाय 1750 लीटर जबकि बेलाही नस्ल की गाय 2100 लीटर तक दूध देने वाली पाई गई हैं।
*हिमाचल प्रदेश* में *हिमाचली पहाड़ी* नस्ल विकसित हुई जो ठंडे पहाड़ी ढलानों के लिए उपयुक्त थी। यह द्विकाजी नस्ल सिरमौर जिले से लेकर चंबा, कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लू, मंडी, शिमला और लाहौल स्फीति जिलों तक में पाई जाती है। हिमाचली पहाड़ी गाय एक ब्यान्त में औसतन 550 लीटर तक दूध देती है। मगर इसके बैल पहाड़ी ढलानों पर खेती करने के लिए सर्वोत्तम हैं।
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*डॉ संजीव कुमार वर्मा*
*प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण)*
*भाकृअनुप – केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान*
*मेरठ छावनी – 250001*
*9933221103*