यह पशुओं एवं मानव में होने वाली संक्रामक बीमारी है जो कि बुसेल्ला नामक जीवाणु से होती है।
*लक्षण:*
* गर्भावस्था के छ: महीने के बाद से लेकर नौ महीने तक गर्भपात, जेर रुकना, बच्चे दानी में सूजन तथा मवाद पड़ जाता है।
* गर्भपात होने के बाद गर्भ धारण में दिक्कत आती है।
* पैर के जोड़ों में भी सूजन (हाइग्रोमा) आ जाती है।
*बचाव*
* इस बीमारी का कोई कारगर उपचार नहीं है इसलिए बचाव के तरीके अपनाकर पशुओं को इससे बचाया जा सकता है बछियों में 4 से 8 महीने की उम में टीका लगवाकर इससे बचा जा सकता है। इसका टीका एक बार लगाने के बाद पूरे जीवन काल तक सुरक्षा प्रदान करता है।
• पशु में गर्भपात होने के बाद भूण, जैर एवं योनि श्राव को सावधानी पूर्वक निस्तारित करना चाहिए क्योंकि इनमें इस बीमारी के कीटाणु बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं एवं इनके माध्यम से ही जीवाणु स्वस्थ पशु एवं मनुष्यों में फैलते हैं। गर्भपात वाले स्थान को फिनाइल के घोल से अच्छी तरह धोना चाहिए। गर्भपात वाले पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर दें गाभिन पशु नहीं खरीदना चाहिए।
अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें:
डा. नेमी चन्द प्रधान वैज्ञानिक (पशु चिकित्सा औषधि विज्ञान) के. गो. अनु, सं., मेरठ