बुढा
प्रिये! न बुढा मुझे कहो तुम
शब्दकोश में प्रिये
बहुत गालियाँ मिल जाएंगी,
बर्षों की गिनती को भूलो ,
दिल की कलियाँ खिल जायेगीं
सब कहता साठा सो पाठा,
इस सारतत्व को प्रिये !
गहो तुम ।
हाय ! न बुढा मुझे कहो तुम ।
बालों पे आ रही सफेदी,
टोको मत , उसको आने दो ।
मेरे शिर के इस कालिख को ,
शुभे! स्वयं ही मिट जाने दो ।
जबतक पूरी तरह चान्दनी,
नहीं चांद पर लहराएगी ;
तबतक तन के ताजमहल पर ,
गोरी नही ललच पाएगी ।
उमर पचपन का दिल बचपन का
होता है।
कवि नहीं बूढ़ा होता है।
जबतक उधर लोट पोट
तबतक तीन चोट होता है।
कवि नहीं बूढ़ा होता है ।
पके बाल पर मत कटाझ कर ,
जे पी का दिल भी रोता है ।
कवि नहीं बूढ़ा होता है।
—डा जे पी सिंह
संयुक्त निदेशक पशुपालन विभाग बिहार (सेवा निवृत्त )