दुधारू पषुओं की मौसम अनुरूप देखभाल
तनुजा परमार
सह-आर्चाय, पषुचिकित्सा जनस्वास्थ्य विभाग,
अरावली पषुचिकित्सा महाविधालय, सीकर
Email – tanuparmar277@gmail.com
भारत एक कृषि प्रधान देष तथा यहां कृषि तथा पषुपालन अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार स्तम्भ है। यहां पर कृषि, कृषि आधारित व्यवसाय तथा पषुपालन के क्षेत्र में उन्नति की अपार संभावनाएं उपलब्ध है। इनको यदि वैज्ञानिक तरीके से अपनाया जाये तो ग्रामीण युवकों तथा महिलाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त होने के साथ आर्थिक स्वावलम्बन प्राप्त होगा। पषुओं का प्रभावी प्रबंधन तब तक अधूरा है जब तक कि पर्याप्त स्थान तथा योजनाबद्ध तरीके से पषु आवास का निर्माण न हो। दुधारू पषुओं की मौसम अनुरूप देखभाल अतयन्तः आवष्यक है। पषुधन देखभाल एवं प्रबंध की निम्न मौसम संबंधित बातों को ध्यान में रखना आवष्यक हैः-
वर्षा ऋतु में पषुओं की देखभाल
जून से सितम्बर माह तक वर्षा का समय रहता है। इस दौरान वातावरण में अधिक आर्दता होने के कारण वातावरण में तापमान में अधिक उतार चढ़ाव देखने को मिलता है। वातावरण में बदलाव के कारण पषु की पाचन प्रक्रिया के साथ-साथ उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है। परिणामस्वरूप अनेक रोग पषु को घेर लेते हैं। जिनमें परजीवी जनित रोग तथा अन्य रोग प्रमुख है। इन रोगों से पषु का स्वास्थय बिगड़ जाता है जिससे पषुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। यहां पर कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं का उल्लेख किया जा रहा है जिसे अपनाने से पषुपालक अपने पषुओं को मौसमी प्रकोप से बचा सकते हैं।
1. पषुओं को साफ पानी ही पिलाना चाहिए, खेतों के समीप गड्ढे या जोहड़ का पानी पिलाने से परहेज करना चाहिए, क्योंकि खेतों से खरपतवार एवं किटनाषक रिसकर इन गड्ढों में आ जाती है। इसके अलावा भी इन गड्ढों में आसपास की गन्दगी इकटठी हो जाती है।
2. पषुओं को हरा चारा अच्छी तरह झाड़ कर खिलाना चाहिए, क्योंकि वर्षा ऋतु में घोंघों का प्रकोप अधिक होता है।
3. पषुषाला या पषुवाड़े में गोबर व मूत्र कीक निकासी का उचित प्रबंध करना चाहिए। पषुषाला को दिन में 1 बार फिनाइल के घोल से अवष्य साफ करना चाहिए।
4. बरसात के मौसम में मक्खियों का प्रकोप बढ़ जाता है। अतः मक्खियों की रोकथाम जरूरी है तथा अगर पषुओं में घाव हो तो उन पर मक्खियां नहीं बैठने देनी चाहिए।
5. पषुषाला की खिड़कियां खुली रखनी चाहिए तथा बिजली के पखों का प्रयोग करना चाहिए, जिससे पषुओं को गर्मी तथा उमस से राहत मिले।
6. बरसात के दिनों में पषुओं में संक्रमित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि मौसम में नमी बढ़ जाती है तथा जीवाणुओं को पनपने के लिए उपयुक्त वातावरण मिल जाता है। बरसात के दिनोंमें पषुओं में कई संक्रामक बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है, जैसे कि गलघोंटू, लंगड़ा बुखार, खुरपका-मुंहपका तथा फड़किया आदि प्रमुख रोग है। अतः बरसात से पहले अपने पषुओं में इन रोगों के टीके अवष्य लगवा लेवें।
7. पषुषाला में किचड़ जमा ना होने दें तथा पषुषाला को सुखा रखे वरना अधिक किचड़ की वजह से पषुओं के खुरों में संक्रमण हो सकता है।
8. अन्तः परजीवियों से बचाने के लिए पषुओं में उनके वजन के अनुसार कृमिनाषक दवाओं का उपयोग करना चाहिए। तथा बाह्य परजीवियों से बचाने के लिए आवरमेक्टीन या परजीविनाषक घोल का प्रयोग करना चाहिए।
9. पषुओं को बीमारियों से बचाने के लिए खनिज मिश्रण अवष्य देवें।
10. बारिष के मौसम में पषुओं को बाहर नहीं चराना चाहिए, क्योंकि बारिष में कई तरह के कीड़े जमीन में से निकल कर घास पर बैठ जाते थे।
11. बरसात में पषुओं में दाद, खाज या खुजली आदि का खतरा भी बढ़ जाता है। अतः इनसे पषुओं को बचाने के लिए प्रभावित पषुओं को स्वस्थ पषुओं से अलग रखना चाहिए तथा प्रभावित पषुओं का पषुचिकित्सक की सलाह से उपचार कराना चाहिए।
12. यदि इस मौसम में अन्य कोई विकार पषुओं में उत्पन्न होता है तो पषुचिकित्सक को दिखाना चाहिए।
शीतकाल में दुधारू पषुओं की देखभाल
मौसम परिवर्तन से पषुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पषुपालकों को सामान्य दिनों की अपेक्षा अपने पषुओं के स्वास्थ्य को लेकर ठण्ड के मौसम में ध्यान देने की अत्याधिक आवष्यकता है। ठण्ड के मौसम में पषुओं की दूध देने की क्षमता षिखर पर होती हो तथा दूध की मांग भी बढ़ जाती है। ऐसे में अगर पषु ठण्ड की वजह से बीमार होता हो तो उसका आर्थिक नुकसान पषुपालक को उठाना पड़ता है। यहां पर कुछ महत्वपर्ण बिन्दुओं का उल्लेख किया जा रहा है। जिसे अपनाने से पषुपालक अपने पषुओं को मौसमी प्रकोप से बचा सकते हैं।
1. पषुओं को शीतलहर से बचाने के लिए बोरे के झूल बनाकर ओढावें, रात के समय पषुओं को छत या छप्पर के नीचे तथा दिन के समय सूर्य की धूप में बांधें।
2. पषुषाला के अंदर रोषनदान, दरवाजों एवं खिड़कियों को टाट और बोरे से ढककर रखें।
3. पषुषाला में गोबर व मूत्र निकास की उचित व्यवस्था करें ताकि जल जमाव न हो पाये।
4. पषुषाला को नमी और शीलन से बचायें और ऐसी व्यवस्था करें की सूर्य की रोषनी पषुषाला में देर तक रहे।
5. इस समय पैदा होने वाले नवजात बछड़ों को सर्दी से बचाने का विषेष ध्यान रखें व उन्हें समुचित मात्रा में खीस पिलायें।
6. सर्दी में पषुओं को ऊर्जा की आवष्यकता अधिक रहती है अतः भोजन में चारे व बांटे की मात्रा बढ़ायें तथा बांटा व पानी गुनगुना करके देंवें।
7. पषुआहार में हरे चारे की मात्रा नियमित रखें तथा इसे सूखे चारे के साथ मिलाकर देंवे।
8. कुछ स्थानों पर वातावरण में अधिक नमी होने से सूखे चारे में फफूंद विकसित हो जाती है जिसे खाने से कई प्रकर की समस्याएं हो सकती है। अतः ऐसे फफूंदग्रसित काले चारे को पषुओं को ना खिलायें।
9. प्रसव के बाद मादा पषु को ठंडा पानी न पिलाकर गुनगुना पानी पिलाना चाहिए।
10. पषुषाला में बिछावन के रूप में पुआल का प्रयोग करें तथा बिछावन को समय-समय पर बदलते रहें।
11. पषुओं को परजीवी नाषक दवा का हर बार बदल-बदलकर उपयोग में लें, जिससे पषुओं के स्वास्थ्य में सुधार के साथ दुग्ध उत्पादन भी बढे़गा।
12. ठंड के मौसम में पषुओं को जरूरत से ज्यादा दलहनी हरा चारा तथा अन्न व आटा तथा बचा हुआ बासी भोजन खिलाने के कारण आफरा हो जाता है। हींग 5 ग्राम, अजवाइन 15 ग्राम, काला नमक 100 ग्राम, मीठा तेल (अलसी, तिल आदि) 500 एम.एल. आदि पिलाने से इसमें आराम मिलता है। इसके अलावा जब रोग अति तीव्र अवस्था में हो और कुछ साधन न हो तो तारपीन का तेल, फार्मलीन भी पिलाया जा सकता है।
13. ठंड के दिनों में पषुओं में निमोनिया तथा ठंड लगने का खतरा भी बढ़ जाता है। इनके लक्षण दिखने पर तत्काल पषुचिकित्सक को दिखाना चाहिए।
14. पषुओं को घूटन भरे स्थान पर ना रखें और ना ही पषुषाला में धुआं करें अन्यथा पषुओं को निमोनिया एवं सांस की तकलीफ हो सकती है।
15. सर्दी के मौसम में पषुओं को हमेषा ताजा पानी पिलायें व ताजे पानी से नहलाना चाहिए। कमजोर पषुओं को नहलाने की बजाय पराली से रगड़कर सूखे कपड़े से सफाई करें।
16. पषुओं को बीमारियों से बचाने के लिए खनिज मिश्रण अवष्य देवें।
ग्रीष्मकाल में दूधारू पषुओं की देखभाल
सामान्यतः गर्मियों में दूधारू पषुओं के दूध उत्पादन में कमी आ जाती है। अतः गर्मियों के मौसम में दुधारू पषुओं की विषेष देखभाल की आवष्यकता होती है। अधिकतर गर्मियों में प्राकृतिक रूप से उगने वाली घासें प्रायः सूख जाती है या पक जाती है और हरे चारे, जैसे- बरसीम, रिजका या जई की पैदावार बहुत कम हो जाती है और इनका पोषकमान भी घट जाता है।
जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जाती है, दूधारू गायें एवं भैंसे गर्मी के कारण अपने खा जाने वाली खुराक में कमी करती जाती है, जिससे कि खाद्यों से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा से उनको किसी तरह की कोई परेषानी ना हो। अतः इन पषुओं की अधिक मात्रा में सूर्योदय से पहले एवं सांय सूर्यास्त के बाद खिलायें, जिससे गर्मी का कम से कम प्रभाव पड़े एवं ये पषु पर्याप्त मात्रा में चारा खा सके। इन दिनों पषुओ को ऐसे पदार्थ देना चाहिए जिसमें रेषा कम हो और ऊर्जा प्रतिकिलो खाद्य पदार्थ अधिक हो, जिससे कि व्यर्थ होने वाली ऊर्जा का खराब असर कम से कम हो।
ज्वार के हरे चारे को एक बरसात होने के बाद ही खिलायें , या जब दो सिचांई हो जाने के बाद खिलाएं, जिससे कि हाइड्रोसाइनिक एसिड जैसे जहरबाद से पषुओं को किसी प्रकार का नुकसान न हों।
गर्मियों के मौसम में पषुओं के लिए समुचित मात्रा में स्वच्छ पानी का प्रबन्ध रखें और गन्दे तालाबों/पोखरों का ठंडा अथवा ठहरा हुआ पानी पषुओं को ना पिलायें। पानी में किसी प्रकार के विषैले पदार्थ, बीमारी पैदा करने वाले जीवाणु या अंतड़ियों में बीमारी फैलाने वाले किसी प्रकार के परजीवी या उनके अंडे नहीं होना चाहिए।
गाय व भैंसों के जीवन निर्वाह हेतु 30-35 लीटर पानी की प्रतिदिन आवष्यकता होती है। इसके अतिरिक्त दुधारू पषओं के लिए एक लीटर दूध के पीछे दो लीटर पानी की अतिरिक्त आवष्यकता होती है। पानी की आवष्यकता गर्मी के मौसम में और भी बढ़ जाती है और ये आवष्यकताएं पषुओं को 3-4 बार पानी पिलाकर पूरी की जा सकती है। वैसे भी पानी तो जीवन है। सभी कार्यों (नहलाना, धुलाना, सफाई इत्यादि) के लिए कुल पानी की आवष्यकता लगभग 100 लीटर प्रति व्यस्क पषु होती है।
गर्मियों के मौसम में बाहरी वायुमंडल का तापक्रम अधिक होने के कारण पषुओं के शरीर का तापक्रम कम रखना अत्यंत आवष्यक होता है। अतः इन दिनों 2-3 बाल्टी पानी सुबह, दोपहर तथा शाम को दुधारू पषुओं के शरीर पर डालें। इससे उनके शरीर का तापक्रम ठंडा रहेगा।
गर्मियों के मौसम में पषुओं में ईस्ट्रम समय पर नहीं आता तथा अत्यधिक गर्मी के कारण पषु ताव के लक्षण भी नहीं दर्षाता अतः ऊपर बताई गयी विधि द्वारा शरीर का तापक्रम ठंडा करने पर पषु ईस्ट्रम में भी जल्दी से आते रहेंगे। प्रायः यह देखा गया है कि गर्मी के मौसम में वायुमंडल का तापक्रम अधिक होने के कारण शारीरिक तापक्रम भी बढ़ जाता है और ऐसे पषु में ईस्ट्रस पहचानने के लिए खस्सी सांड का उपयोग भी किया जा सकता है।
दुधारू पषुओं को गर्मी में बाहरी ताप और गर्मी से बचाना आवष्यक है। पेड़ों की छाया से पषुओं को काफी आराम मिलता है। पर्याप्त साधन होने पर दुधारू पषुओं को छाया वाली आवास-व्यवस्था भी अत्यंत आवष्यक है। शेड के लिए आवष्यकता पड़ने पर एसबेस्टस की नालीदार चादरें काम में लाई जाती है। पक्की पषुषाला बनाना काफी खर्चीला रहता है। अतः इसको तभी बनाना चाहिए जब डेरी व्यवसाय जम जाये और आमदनी काफी होने लगे।