बरसात के मौसम में पशुओं की देखभाल
डॉ. धर्मेन्द्र कुमार, डॉ. नीलम टान्डिया, डॉ. प्रिया सिंह, डॉ. अभिषेक वर्मा, डॉ. अर्पिता श्रीवास्तव, डॉ. राजीव रंजन, डॉ अमित झा एवं डॉ. राजेश रंजन
वर्षा ऋतू देश के समस्त भू भाग पर अपने पुरजोर प्राकर्म से बरस रही है | मानसून के कारन समस्त प्राणियों ने राहत की एक सांस ली है | अगर हम किसान भाइयों के दृष्टिकोण से देखे तो वर्षा ऋतू को समस्त ऋतुओं की तुलना में सबसे श्रेष्ठ माना गया है | चहू ओर हरियाली, पशुओं के लिए खाने का प्रयाप्त भोजन, मनुष्यों के लिए धान की रोपाई, प्रचुर लताएं अपने फलों के साथ पवन वेग में अटखेलियाँ खेलती हुई नजर आती है | समस्त दिशाओं में एक आनंदित वातावरण व्यापत रहता है | बर्षा ऋतू अपने साथ एक आनंद की अनभूति तो लेकर आती ही है , पर जैसे कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, वर्षा ऋतू खुशियों के बौछार के साथ साथ कई समस्याएं भी साथ लेकर आई है | वर्षा ऋतू शरद ऋतू और गर्मी ऋतू एक प्राकृतिक चक्र है, इस कारणवश सभी प्राणियों को इसका सामना भी करना ही पड़ता है | इस मौसम में नमी अत्यधिक होती है जिसके कारण पशुओं को कई तरह के विषाणु, कीटाणु और जीवाणु का खतरा बना रहता है, क्योकि यह मौसम इनके पनपने के लिए अनुकूल होता है | इसलिए जैसे ही बारिश शुरू होती है, विषाणु ओर कीटाणु अनुकूल वातावरण का फायदा उठा कर पनपने लगते हैं, ओर हमारे पशुओं को संक्रमित कर उन्हें बीमार कर देते हैं | इस कारणवश इस मौसम में दूध देने वाले पशुओं का विशेष देखभाल आवश्यक हो जाता है | चूँकि यह मौसम संक्रमण का एक अनुकूल वातावरण देता है, अतः पशुपालक को इस मौसम में अपने पशुओं का विशेस ध्यान देना चाहिए | पशुपालको द्वारा ध्यान देने वाली कुछ मुख्य बातें निम्न लिखित हैं|
- पशुओं के लिए उचित स्थान का चयन – अगर पशु रखने का स्थान किसी नीची जगह ,या किसी नदी के किनारे है तो सबसे पहले हमें पशुओं के लिए कोई ऊँची जगह का चयन कर चिन्हित कर लेना चाहिए, जहाँ हम अपने पशु को बाढ की स्थिति में सुरक्षित पहुंचा सकें |
- पशुओं को रखने के स्थान की मरम्मत :- हमें गौशाला का समुचित निरक्षण करना चाहिए, जिससे की अगर ये किसी जगह से टपकता है, तो इसकी अति शीघ्र मरमत्त कर लेनी चाहिए | टपकता छत पशुओं को भिगो देगा एवं उसे मानसिक ओर शारीरिक रूप से बीमार कर देगा, जिससे उसकी उत्पादकता कम हो जायेगी |
- हवा का बहाव:- जिस स्थान पर पशु को रखा जाता है वहां हवा का बहाव निरंतर होना चाहिए जिससे कि वह स्थान सूखा रहे | गीला फर्श पशुओं के खुर एवं शरीर में बेक्टिरिअल एवं फंगल संक्रमण का एक प्रमुख कारण होता है| बर्षा ऋतू में हवा में नमी बहुत रहती है , जिसके कारण वातावरण में एक उमस रहती है , ये गर्मी ओर उमस पशु के फेफड़ों को संक्रमित कर देता है, ओर अनेको बार ये देखा गया है कि पशु निमोनिया से संक्रमित हो जाता है| इससे बचने का राम वाण तरीका है की गौशाला में पंखे का प्रबंध कर दें, पँखे के कारण गौशाला में हवा का बहाव बना रहेगा, गौशाला का फर्स सुखा रहेगा एवं पशु संक्रमण से बचा रहेगा |
- जल जमाव को रोकना:- जिस स्थान पर पशु पालक अपने पशुओं को रखते हैं उसके चारों ओर बारिश का पानी इकठ्ठा नहीं होना चाहिए, अगर किसी कारण उस स्थान पर बारिश का पानी इकठ्ठा हो रहा है तो पशु पालक को उचित नालियां बनवाकर पानी के निकास की व्यवस्था करनी चाहिए | पानी का जमाव मच्छर एवं मक्खी के प्रजनन का एक स्थान है | ये मच्छर एवं मक्खी परजीवियों के फलने, फूलने एवं फैलने का एक वाहक है | ये परजीवी पशु को बीमार करने और कृषक को निर्धन बनाने के लिए प्रयाप्त है| मच्छर एवं मक्खी भी पशु को बेतहाशा तंग करते हैं और पशु के उत्पादन को कम करने के लिए बेबश कर देते हैं| इस कारणवश पशु मालिक को कोई भी ऐसा स्थान नहीं छोड़ना चाहिए जिसमे ये पनप सके |
- मक्खियों की रोकथाम :- जिस स्थान पर पशु को रखा जाता है वहां मच्छर ,मक्खी वा अन्य कीड़े मकोड़े की रोकथाम का उचित इंतजाम किया जाना अत्यंत ही आवश्यक है| इसके लिए पशु पालक को वहां अल्ट्रावोयलेट इन्सेक्ट किलर मशीन लगवाना चाहिये, यह बहुत ही सस्ता यन्त्र है, इसके अलावा पशुपालक वहां नीम की पत्तियों का धुआं भी कर सकते है |
- बारिस में पशुओं को चरने से रोकना – जब भी बारिश हो पशुओं को कभी भी चरने के लिए चारागाह में ना छोड़े | पशुओं के भीगने से वो अस्वस्थ हो सकते हैं, उन्हें बुखार या सर्दी हो सकता है | छोटे बछड़ों में प्रायः निमोनिया की शिकायत देखी गयी है |
- चारागाह में परजीवियों का निरिक्षण:- जिस चारागाह में पशुओं को चराया जाता है पशु पालकों को उस चारागाह का उचित निरीक्षण करना चाहिए कि वहां कोई परजीबी जैसे किलनी ,पिस्सू, घोंघे आदि तो नहीं है जो पशु के शरीर से चिपक कर पशु में संक्रमण तो नहीं फैला रहे है| पशु को नदियों या तालाब के किनारे चराने से पूर्व किसान को इनका उल्मुलन करना अति आवश्यक है| इनके उल्मुलन के लिए पशुपालक मिश्रित खेती कर सकते है| मिश्रित खेती में पशुपालक बत्तख, मुर्गी को इन इलाको में चरने छोड़ दें इससे समस्त परजीवी नियंत्रण में आ जायेंगे| इसके अलावा मेटलडीहाईड, मिथिओकार्ब, आयरन इ डी टी ए या कोई भी नेचुरल घोंगा को मारने की दवाई का उपयोग कर सकते हैं| घोंगा परजीवियों का एक खजाना होता है ,इनको ग्रहण करने से पशु परजीवियों से संक्रमित हो जाता है एवं पशुपालकों को व्यर्थ हीं आर्थिक नुक्सान पहुँचता है |
- चारागाह में बिशाक्त पोधों का निरिक्षण – चारागाह में वर्षा ऋतू में बहुतायत बिशाक्त खर पतवार पनपने लगते हैं | अगर इन पौधों को कम मात्रा में भी पशु खा लें तो ये पशुओं में एलर्जी, बीमारी एवं मृत्यु का कारण बन जाता है| इन बिशाक्त पौधों में मुख्य हैं गुलमेहंदी, धतुरा, बेहाया, ब्रेकेन फ़र्न इत्यादि | अतः पशु पालकों को चाहिए की वो समस्त चारागाह का सूक्ष्म निरक्षण करे एवं समस्त खर पतवार को समूल से नष्ट कर दे | बहुतेरे यह देखा गया है की स्वस्थ पशु अचानक इन खर पतवार को खा कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है ओर पशु पालकों अपूर्णीय आर्थिक क्षति पहुंचा जाता है |
- पशु आहार भण्डारण कक्ष का निरिक्षण :- पशु पालकों को पशुओं के आहार जैसे भूसा चोकर, खली आदि रखने के स्थान का बारबार निरिक्षण करना चाहिए जिससे उस स्थान पर नमी न रहने पाये, नमी के कारण पशु के आहार में फफूंद लग सकती है या वो सड़ सकता है, जिसको खाकर पशु बीमार पड़ सकता है| कई बार तो इन आहार को खा कर पशु को अपने जान से हाथ धोना पड़ता है| अपने आर्थिक नुकसान को बचाने के लिए पशु मालिक को पशु आहार को जमीन से थोड़ा ऊपर उठा कर रखना चाहिए जिससे आहार के नीचे हवा का उचित बहाव रहे एवं वह स्थान सूखा बना रहे | बार बार निरिक्षण ही इस समस्या का उपाय है|
- .फ्युमीगेशन:- पशु को किलनी या अन्य कीड़ों से रोकथाम के लिए पशु को बांधने के स्थान पर फोर्मलीन का धुआं करना चाहिए जिससे वह स्थान कीट रहित हो सके, परन्तु जिस समय फ्युमिगेशन की क्रिया की जाये उस समय पशु को वहां से बाहर निकाल देना चाहिए नहीं तो पशु के फेफड़ों में संक्रमण का खतरा हो सकता है |
- .दीवारों की दरारों को ठीक करना:-चटके हुए दीवार कीटाणु के प्रजनन का एक मुख्य स्थान होता है इनसे बचने के लिए पशु पालकों को दीवारों के छिद्रों को मिटटी या वाइट सीमेंट के लेप से भर देना चाहिए | दरारे भरने उपरांत दीवारों पर चूने से पुताई करवाना चाहिए |
- . टीकाकरण:- वर्षा ऋतू प्रारंभ होने से पहले पशु पालक को अपने पशुओं का उचित टीकाकरण करवाना चाहिए | इस मौसम के पूर्व पशुओं को गलघोटू, खुरपका मुंहपका, लंगड़ा बुखार एवं संक्रामक गर्भपात का टीकाकरण अवश्य लगवाना चाहिए |
- . कृमिनाशक दवाई – वरसात में उदर के कृमि या पेट में कीड़े का प्रकोप दूषित आहार के सेवन से बड जाता है | अतः पशु पालक को अपने पशु को कृमिनाशक दवाई जैसे कि अल्बेनडाज़ोले या फेनबेंडाज़ोले जरुर देनी चाहिए |
- . संतुलित आहार :- वर्षा ऋतू में पशु पालकको अपने दुधारू पशुओं को संतुलित आहार देना चाहिए जिसमे उसे हरा चारा, सूखा चारा, चोकर, खली, दाना आदि संतुलित मात्रा में हो | पशुओं को आहार देने का सबसे सूद्ध एवं सरल तरिका है –
गाय – प्रति १०० किलोग्राम शारीरिक वजन हेतु २ – २.५ किलोग्राम सुखा पदार्थ
भैष- – प्रति १०० किलोग्राम शारीरिक वजन हेतु २.५ -३ किलोग्राम सुखा पदार्थ
समस्त सुखा पदार्थ का – २/३ भाग चारा एवं १/३ कंसन्ट्रेट
२/३ भाग चारा का – २/३ भाग सुखा चारा एवं ३/४ भाग हरा चारा
रख रखाव राशन का अनुभवसिद्ध सरल तरीका है – देशी नस्ल हेतु ४ किलोग्राम चारा एवं १-१.२५ किलोग्राम कंसन्ट्रेट , क्रॉस ब्रीड गाय हेतु के लिए ४-६ किलोग्राम चारा एवं २ किलोग्राम कंसन्ट्रेट
प्रतेक २.५ किलोग्राम दूध उत्पादन हेतु देशी नस्ल गाय के लिए १ किलोग्राम अतरिक्त राशन, एवं प्रतेक २ किलोग्राम दूध उत्पादन हेतु शंकर नस्ल गाय के लिए १ किलोग्राम अतरिक्त राशन आवश्यक है |
१५. शुद्ध पेय जल का प्रबंध– अक्सर ये देखा गया है की बरसात में पानी गन्दा हो जाता है, जिसे पीने के बाड़ पशु बीमार पड़ जाता है |अतः हमें अपने पशु के लिए शुद्ध पेय जल का प्रबंध करना चाहिए एवं पानी पीने के नाद को हमेशा साफ़ करते रहना चाहिए |
१५. दुग्ध संग्रह के बर्तन की सफाई:- दूध संग्रह के बर्तन एवं भण्डारण कक्ष में वर्षा ऋतू में भी कीटाणु, फफूंद एवं विषाणुओं के पनपने की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती है , इसके निदान के लिए पशु पालक को भण्डारण कक्ष की किसी भी डिशइन्फेक्टेंट से नियमित सफाई करना चाहिए एवं दूध निकलने वाले बर्तन को नियमित रूप से रोजाना अच्छी तरह से साफ़ करना चाहिए |
१६. थनों की सफाई :- दुधारू पशुओं के दूध निकलने से पहले एवं बाद में थनों को लाल दवा (पोटेशियम परमेगनेट ) से अच्छी तरह सफाई करना चाहिए | दूध निकालने के उपरांत टीट स्फिन्क्टर कुछ देर तक खुले रहते है अगर पशु इस दरमियान बैठता है तो थनों में संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है ,इसलिए दूध निकलने के बाद टीट को नीला थोथा (कॉपर सलफेट १%) में डुबा कर उपचारित करना चाहिए |इस प्रक्रिया को हमेशा उपयोग में लाना चाहिए पर वर्षा ऋतू में यह अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है| अगर इस प्रक्रिया को हम नहीं करेंगे तो थान में संक्रमण चला जाएगा एवं पशु थनैला रोग से संक्रमित हो जाएगा ओर पशु मालिक को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ जाएगा|
यदि पशु पालक इन प्रक्रियाओं को वर्षा ऋतू में नियमित रूप से करते हैं तो वह अपने पशु को स्वस्थ बनाये रख सकते है एवं पशु के दुग्ध उत्पादन क्षमता को बड़ा कर अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं |
बरसात के मौसम में पशुओं का बेहतर प्रबंधन एवं देखभाल हेतु पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण सुझाव