गर्मी में पशुओं की देखभाल
CARE AND MANAGEMENT OF ANIMALS DURING SUMMER
दिव्यांशु पांडे¹, अंकिता भोसले², संचितपाल सिंह³, नीलम पुरोहित⁴, श्रुति गुप्ता⁵, स्नेहलमिसाळ⁶
1, 3, 6 पशु आनुवांशिकी एवं प्रजनन विभाग, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल हरियाणा -132001
2, 4, 5 पशुधन उत्पादन एवं प्रबंधन विभाग, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल हरियाणा–132001
ठंडी जलवायु दुधारू पशुओं के लिए मानवीय है। अगर जानवर लगातार धूप के संपर्क में रहता है तो उसका स्वास्थ्य प्रभावित होता है। तापमान बढ़ने से शरीर का तापमान बढ़ता है, चारे की मात्रा कम हो जाती है। आमतौर पर गर्मियों के दौरान हरे चारे की कमी के साथ-साथ भैंसों में गर्मी के प्रति कम प्रतिरोध के कारण पशुओं के दूध उत्पादन में कमी आती है।भैंसें दिन में कम चरती हैं और शाम को अधिक चरती हैं, और बढ़ती गर्मी के साथ पशुओं में रोग की घटनाएं बढ़ जाती हैं।
प्रजनन गतिविधि पशु के अन्य सभी शारीरिक कार्यों पर निर्भर करती है। गर्मियों में पशुओं को कम चारा, कम और सूखा चारा, कम पानी और अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ता है। जीवित रहने के लिए आवश्यक समान शारीरिक कार्य शरीर पर बहुत अधिक तनाव डालते हैं, इस प्रकार प्रजनन क्षमता को रोकते या क्षीण करते हैं। मार्च से जून की अवधि के दौरान वातावरण में तापमान बहुत बढ़ जाता है और इससे जानवर थक जाते हैं।
गाय-भैंसों की तरह सांडों और लालों की भी गर्मी में प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। प्राकृतिक गर्भाधान से बांझपन की संभावना बढ़ जाती है और मुख्य रूप से शुक्राणु की गुणवत्ता कम हो जाती है। फिर, यदि प्रजनन के लिए बैल और लाल का उपयोग किया जाता है और एक जानवर को हर दिन खिलाया जाता है, तो ये जानवर नहीं मुड़ेंगे। गर्मी के मौसम में गर्भवती पशुओं की देखभाल जरूरी है। क्योंकि नवजात बछड़े की प्रजनन क्षमता उसे गर्भावस्था से मिलने वाले पोषण पर निर्भर करती है। संकर और विदेशी जानवर अत्यधिक गर्मी को सहन नहीं कर सकते। इस अवधि में पशुओं को सुबह और देर दोपहर में चराने ले जाना, दोपहर की सूखी गर्मी में शेड या छाया में बनाना, उन्हें भरपूर और साफ पानी देना आदि। यदि समाधान की योजना बनाई जाती है, तो गर्मियों में भी संकर और विदेशी गायें बाजार में रहेंगी।
गर्मी के मौसम में पशुओं को अपने शरीर का तापमान सामान्य बनाएं रखने में काफी दिक्कतें आती हैं। हीट स्ट्रेस के कारण जब पशुओं के शरीर का तापमान 101.5 डिग्री फेरनेहाइट से 102.8 फेरनहाइट तक बढ़ जाता है, तब पशुओं के शरीर में इसके लक्षण दिखने लगते हैं। भैंसों एवं गायों के लिए थर्मोन्यूट्रल जोन 5 डिग्री सेंटीग्रेड से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होता है। थर्मोन्यूट्रल जोन में सामान्य मेटाबोलिक क्रियाओं से जितनी गर्मी उत्पन्न होती है, उतनी ही मात्रा में पशु पसीने के रूप में गर्मी को बाहर निकालकर शरीर का तापमान सामान्य बनाए रखते हैं। हीट स्ट्रेस के दौरान गायों में सामान्य तापक्रम बनाए रखने के लिए खनपान में कमी, दुग्ध उत्पादन में 10 से 25 फीसदी की गिरावट, दूध में वसा के प्रतिशत में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी, प्रतिरक्षा प्रणाली में कमी आदि लक्षण दिखाई देते हैं। गर्मियों में पशुओं को स्वास्थ्य रखने एवं उनके उत्पादन के स्तर को सामान्य बनाए रखने के लिए पशुओं की विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।
प्रमुखतया दो वजह से होता है पशुओं पर गर्मी का प्रभाव
- इनवायरमेंटल हीट
- मेटावालिक हीट
सामान्यतया इनवायरमेंटल हीट की अपेक्षा मेटावालिक हीट द्वारा कम गर्मी उत्पन्न होती है, लेकिन जैसे-जैसे दुग्ध उत्पादन और पशु की खुराक बढ़ती है उस स्थिति में मेटावालिज्म द्वारा जो हीट उत्पन्न होती है वह इनवायरमेंटल हीट की अपेक्षा अधिक होती है। इसी वजह से अधिक उत्पादन क्षमता वाले पशुओं में कम उत्पादन क्षमता वाले पशुओं की अपेक्षा गर्मी का प्रभाव ज्यादा दिखाई देता है। इनवायरमेंटल हीट का प्रमुख स्त्रोत सूर्य होता है। अत: धूप से पशुओं का बचाव करना चाहिए।
गर्मी का पशुओं की शारिरिक क्रियाओं पर प्रभाव
अपने शरीर के तापमान को गर्मी में भी सामान्य रखने के लिए पशुओं की शारीरिक क्रियाओं में कुछ बदलाव देखने को मिलते हैं।
- गर्मी के मौसम में पशुओं की स्वशन गति बढ़ जाती है, पशु हांपने लगते हैं, उनके मुंह से लार गिरने लगती है।
- पशुओं के शरीर में बाइकार्बोनेट आयनों की कमी और रक्त के पी.एच. में वृद्धि हो जाती है।
- पशुओं के रियुमन में भोज्य पदार्थों के खिसकने की गति कम हो जाती है, जिससे पाच्य पदार्थों के आगे बढऩे की दर में कम हो जाती है और रियुमन की फर्मेन्टेशन क्रिया में बदलाव आ जाता है।
- त्वचा की ऊपरी सतह का रक्त प्रभाव बढ़ जाता है, जिसके कारण आंत्रिक ऊतकों का रक्त प्रभाव कम हो जाता है।
- ड्राय मेटर इंटेक 50 प्रतिशत तक कम हो जाता है, जिसके कारण दुग्ध उत्पादन में कमी आ जाती है।
- पशुओं में पानी की आवश्यकता बढ़ जाती है।
गर्मियों में इन बातों का रखे ध्यान
- पशुओं को दिन के समय सीधी धूप से बचाएं, उन्हें बाहर चराने न ले जाएं।
- हमेशा पशुओं को बांधने के लिए छायादार और हवादार स्थान का ही चयन करें।
- पशुओं के पास पीने का पानी हमेशा रखें।
- पशुओं को हरा चारा खिलाएं।
- यदि पशुओं में असमान्य लक्षण नजर आते हैं तो नजदीकी पशुचिकित्सक से संपर्क करें।
- यदि संभव हो तो डेयरी शेड में दिन के समय कूलर, पंखे आदि का इस्तेमाल करें।
- पशुओं को संतुलित आहार दें।
- अधिक गर्मी की स्थिति में पशुओं के शरीर पर पानी का छिड़काव करें।
भैंस प्रबंधन
गायों की तुलना में भैंसें गर्मी से अधिक पीड़ित होती हैं। भैंस की त्वचा में गर्मी प्रतिरोधी पसीने की ग्रंथियां बहुत कम होती हैं। सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करने के लिए आवश्यक गाय जैसी त्वचा होने के बजाय, सूरज की रोशनी को काली त्वचा द्वारा अवशोषित किया जाता है और भैंस के शरीर का तापमान बढ़ जाता है, इसलिए भैंस गर्मी से पीड़ित होती है और भैंसों की संख्या रुक जाती है। दूसरी ओर ठंडी जलवायु वाली चरागाहों में गायों की तरह भैंसें गर्मियों में भी नियमित रूप से चरने आती हैं। चित्तीदार भैंसों की पहचान की जानी चाहिए क्योंकि इन दिनों रोग के लक्षण कम गंभीर होते हैं।
इसलिए दिन में तीन-चार बार निरीक्षण करें। अगर कृत्रिम गर्भाधान करना हो तो सुबह या शाम के समय ही करें। भैंसों को डुबकी लगाने देना उनकी स्वाभाविक पसंद है, इस्से शरीर के तापमान को उपयुक्त तापमान पर बनाए रखने मे मदत मिलती हैं । भैंसों पर गिरने के लिए पानी के फव्वारे की व्यवस्था करनी चाहिए, यदि ऐसी व्यवस्था न हो तो उन्हें दिन में तीन से चार बार पानी से धोना चाहिए। दोपहर के समय पशुओं को खलिहान में बांध देना चाहिए, इस समय उन्हें छाया में रखना चाहिए, शेड को ठंडा रखने के लिए उसके चारों ओर पेड़ होने चाहिए। गर्मियों में छत को घास से ढक दें। हो सके तो टाट या बर्लेप के पर्दे लटकाकर गौशाला के किनारों पर पानी छिड़कें। जानवरों को पीने के लिए ठंडा पानी दिया जाना चाहिए, नमक और गुड़ के साथ बेहतर होगा। इस तरह प्रबंधन से गर्मियों में कम दूध उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
पशुओं को पालने की विधि
1) चारा और जल प्रबंधन
पशुओं को दिन भर के लिए आवश्यक चारा एक बार में खिलाने की बजाय उसे बराबर-बराबर बांटकर तीन से चार बार खिलाना चाहिए। खराब होने से बचाने के लिए चारे को बारीक काट लेना चाहिए। चारे को ज्यों का त्यों रहने दिया जाए तो 33 फीसदी बर्बाद हो जाता है, कुचला जाए तो सिर्फ दो फीसदी ही बर्बाद होता है। कुचले हुए चारे को टोकरी या लकड़ी के कटोरे में डालना चाहिए। सूखी घास या धान पर नमक या गुड़ का पानी छिड़कना चाहिए जिससे पशु चाव से चारा खा लें। चारे की कमी होने पर नीम, अंजन, वड़, पिंपल, शेवरी आदि के गीले पत्ते, चना, मूंगफली के छिलके, गेहूँ की भूसी, गन्ने के अंकुर उचित मात्रा में प्रयोग में लाने चाहिए। अत्यधिक गर्मी पशुओं के चारे, दूध उत्पादन और प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, इसलिए पशुओं को पानी उबाल कर पिलाना चाहिए। दिन में एक या दो बार पानी देने की बजाय दिन में चार से पांच बार पानी दें।
2) स्वास्थ्य देखभाल
अपर्याप्त चारा और खराब आहार के कारण पशु कमजोर हो जाते हैं और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और वे विभिन्न बीमारियों के शिकार हो जाते हैं, इसलिए पशु चिकित्सकों द्वारा लार-खरोंच, रेबीज और रेबीज के खिलाफ पशुओं को टीका लगाया जाना चाहिए। परजीवियों के प्रसार को रोकने के लिए कीटाणुनाशक का प्रबंध किया जाना चाहिए। गर्भवती पशुओं एवं दूध देने वाले पशुओं का विशेष ध्यान रखें। पशु शेड और क्षेत्र साफ होना चाहिए। मल का उचित तरीके से निपटान किया जाना चाहिए।
3) पशु स्वास्थ्य के लिए टीकाकरण
हमारे पशु तभी सुरक्षित रहेंगे जब उन्हें रोगों से मुक्त रखने के लिए ठीक से टीका लगाया जाएगा। उसके लिए हमें बड़े पशुओं के रोगवार टीकाकरण और टीकाकरण के समय बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में जानना होगा।
4) गौशाला
खलिहान अच्छी तरह हवादार होना चाहिए और जानवरों की संख्या कम होनी चाहिए। पशुओं को तेज धूप से बचाने के लिए गौशाला की छत अच्छी होनी चाहिए। जानवरों को अधिमानतः ठंडे स्थान पर सीमित किया जाना चाहिए, और शेड अच्छी तरह हवादार होना चाहिए। साथ ही गौशाला के आसपास धूप व तेज हवा से बचाव के लिए पेड़ लगाने चाहिए। गाय के गोबर और गोमूत्र का निस्तारण नियमित होगा।
5) हीट स्ट्रोक का इलाज
हीटस्ट्रोक के घरेलू उपाय अक्सर फायदेमंद होते हैं। पानी में बर्फ डालें, बीमार पशु को बार-बार उस ठंडे पानी से धोएं, या ठंडे पानी में बोरी या कपड़ा भिगोकर शरीर पर रखें। जिससे त्वचा के नीचे की नसें सिकुड़ेंगी और पशु हीट स्ट्रोक से बचे रहेंगे। यदि उपलब्ध हो तो पंखे लगा देना चाहिए। रोगग्रस्त पशु को ठंडे एवं खुले स्थान पर रखना चाहिए। रोगग्रस्त पशु की त्वचा को मलना चाहिए जिससे बुखार उतर जाता है और शरीर के ऊपरी भाग में ठंडा रक्त प्रवाहित होने लगता है। बीमार पशु को पीने के लिए भरपूर पानी दें। सिर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सूर्य की किरणों से बचाना चाहिए। 50 मिली प्याज का रस और 10 ग्राम जीरा पाउडर और 50 ग्राम पिसी हुई चीनी मिलाएं। हरे आम को पानी में उबालकर पानी में थोड़ा सा नमक और चीनी मिलाकर पीने से अच्छा लाभ मिलता है।
संक्षिप्त सार
- गर्मी के प्रति कम प्रतिरोध के कारण पशुओं के दूध उत्पादन में कमी आती है।
- गायों की तुलना में भैंसें गर्मी से अधिक पीड़ित होती हैं।
- चारा और जल प्रबंधन की अच्छी व्यवस्था करनी चाहिए।
- पशु चिकित्सकों द्वारा लार-खरोंच, और रेबीज के खिलाफ पशुओं को टीका लगाया जाना चाहिए।
- पशु को स्वस्थ रखने के लिए और उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रबंधन बहोत जरूरी है।