पशुओ में फ्रैक्चर देखभाल और निदान
डॉ पी डी एस रघुवंशी ,डॉ धर्मेन्द्र कुमार,डॉ. नीलम टानडीया, डॉ. प्रिया सिंह
हड्डियाँ शारीर को आकृति प्रदान करती हैं | अस्थियों का काम ना केवल शारीर को शारीरिक बनावट प्रदान करना है ,अपितु यह शारीर को गतिशील बनता है| यह शारीर में कैल्शियम और फ़ास्फ़रोस का गोदाम है | फ्रैक्चर अस्थियों के टूटने का प्रचलित नामकरण है | प्रकृति ने शारीर को एक ऐसी शक्ति प्रदान कि है जिससे कोई भी जख्मी अंग खुद ब खुद अपनी पूर्ववत संरचना को क्षति के उपरांत प्राप्त करने कि कोसिस करता है , इस प्रक्रिया को शारीर के उप्चार्त्मक ताकत कहते हैं | शारीर का जब कोई हड्डी टूटता है , तो शारीर शारीर इसे फिर से ठीक करने में जुट जाती है बशर्ते कि हम इसे अनुकूल बातावरण प्रदान करे | इस तरह देखा जाये तो हम भंग अस्थियों को केवल एक अनुकूल बातावरण प्रदान कर रहे हैं और शारीर अपने भंग अस्थियों को फिर से ठीक करने में जुट जाता है| बकरी में फ्रैक्चर एक ऐसा विसंगति है जो कि पशुओं को पूरी तरह से अपाहिज बना देता है और किसानो को इसे मरने के लिए छोड़ने को मजबूर करता है | कृषक बंधुओ को यह न सिर्फ आर्थिक नुकसान पहुंचता है अपितु उसे मानसिक रूप से भी झकजोर देता है | अगर कृषक जागरूक हो तो अस्थिभंग जैसे विसम प्रस्तिथि से बचा जा सकता है और अगर गाहे बगाहे हो भी जाता है तो इसका समुचित इलाज करवा सकते हैं | अमूमन यह देखा गया है कि फ्रैक्चर के बारे में अज्ञानता ही इसके विकराल रूप का कारण है और इसके बारे में ज्ञान ही इसके रोकतम और उपचार कि कुंजी है |
फ्रैक्चर को मोटे तौर पर सरल और मिश्रित फ्रैक्चर में वर्गीकृत–
एक साधारण फ्रैक्चर वह है जहां त्वचा बरकरार रहती है। दूसरी ओर, एक मिश्रित फ्रैक्चर में खुले घाव भी शामिल होते हैं। चूंकि खुली चोटों में संक्रमण का खतरा होता है, यौगिक फ्रैक्चर अधिक गंभीर होते हैं और संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं।
फ्रैक्चर को आगे वर्गीकृत किया गया है:
- संपीड़न फ्रैक्चर–इन्हें वीसीएफ या वर्टेब्रल कम्प्रेशन फ्रैक्चर के रूप में भी जाना जाता है। ये तब होता है जब आपकी रीढ़ की हड्डी में आपके कशेरुका (बोनी ब्लॉक) का एक हिस्सा गिर जाता है। वीसीएफ आमतौर पर आपकी रीढ़ (वक्षीय रीढ़) के मध्य क्षेत्र में होते हैं। इन फ्रैक्चर से हड्डी की विकृति, तीव्र दर्द और ऊंचाई का नुकसान हो सकता है।
- पूर्ण फ्रैक्चर–जैसा कि नाम से पता चलता है, एक पूर्ण फ्रैक्चर तब होता है जब टूटी हुई हड्डियां एक दूसरे से पूरी तरह से अलग हो जाती हैं। पूर्ण फ्रैक्चर दो प्रकार के होते हैं – तिरछा और अनुप्रस्थ। पूर्व प्रकार में, हड्डी आपकी हड्डी की धुरी के साथ एक समतल तिरछी रेखा में टूट जाती है। जबकि बाद वाले (अनुप्रस्थ) प्रकार में, हड्डी सीधे भर में टूट जाती है।
- अधूरा फ्रैक्चर–मामूली फ्रैक्चर के रूप में भी जाना जाता है। यह तब होता है जब आपकी हड्डी में दरारें (हेयरलाइन फ्रैक्चर) हो जाती हैं, लेकिन वे एक दूसरे से पूरी तरह से अलग नहीं होती हैं। आपको तीव्र दर्द का अनुभव हो सकता है जो प्रभावित क्षेत्र को छूने या इसे हिलाने पर खराब हो सकता है।
- लीनियर फ्रैक्चर– यह एक प्रकार का फ्रैक्चर होता है जिसमें दरार एक पतली रेखा होती है जिसमें से कोई अतिरिक्त रेखा अलग नहीं होती है। इसके अलावा, यह हड्डियों को कोई विकृति या संपीड़न भी नहीं करता है।
- ट्रांस्वर्स फ्रैक्चर– यह एक प्रकार का फ्रैक्चर है जिसमें हड्डी हड्डी के तल से 90 डिग्री (समकोण) पर टूटती है। यह तब होता है जब हड्डी की धुरी पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
- स्पाइरल फ्रैक्चर – मरोड़ फ्रैक्चर के रूप में भी जाना जाता है, इस प्रकार का फ्रैक्चर तब होता है जब एक घूर्णन बल या टोक़ अपनी धुरी के साथ हड्डी पर लगाया जाता है। यह आमतौर पर तब होता है जब आपका शरीर जमीन पर एक छोर के साथ गति में होता है।
फ्रैक्चर के मामले में कुछ सावधानी सलाह– क्योंकि फ्रैक्चर बहुत दर्दनाक होते हैं और शरीर के उस घायल हिस्से का उपयोग करना असंभव नहीं तो मुश्किल बना देते हैं, ज्यादातर लोग जल्द ही डॉक्टर को बुलाते हैं। हालांकि, कुछ मामलों में, एक व्यक्ति एक खंडित हाथ या पैर का उपयोग कर सकता है। सिर्फ इसलिए कि आप उस खंडित अंग का उपयोग कर सकते हैं इसका मतलब यह नहीं है कि आपको फ्रैक्चर नहीं है। अगर आपको लगता है कि एक हड्डी टूट गई है, तो तुरंत चिकित्सा सहायता लें। यह सुनिश्चित करने के लिए और उचित उपचार सुनिश्चित करने के लिए एक्स-रे और एक चिकित्सा परीक्षा आम तौर पर आवश्यक हो जाती है।
सामान्य अस्थि भंग में उपचार के तरीकें– हड्डी फ्रैक्चर का इलाज आमतौर पर यह सोच के लिया जाता है की हड्डी जुड़ने के बाद आप आसानी से फिर से पहले जैसे सारे कार्य कर पाएं। बोन हीलिंग (Bone Healing) एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो समय के साथ खुद ही ठीक होती है।
टूटी हुई हड्डी को जोड़ने के लिए कई तरह से उपचार किया जाता है जिसमें शामिल है-
इमोबिलाइजेशन (Immobilization) – इमोबिलाइजेशन की प्रक्रिया में टूटी हुई हड्डी को जोड़ा जाता है और कोशिश की जाती है की ठीक होने तक हड्डी वैसी ही सीधी रहे इसके लिए कुछ उपाय अपनाये जाते है, जैसे-
- प्लास्टर कास्ट या प्लास्टिक फंक्शनल ब्रेसिज़ (Plaster Casts Or Plastic Functional Braces) –इस प्रक्रिया में हड्डी को ऐसे जोड़ा जाता है की यह प्लास्टर हड्डी को तब तक पकड़ के रखता हैं जब तक हड्डी जुड़ नहीं जाती है।
- मेटल प्लेट्स और स्क्रू (Metal Plates And Screws) –इस प्रक्रिया में टूटी हुई हड्डी को मेटल प्लेट्स और स्क्रू के द्वारा सहारा देकर जोड़ा जाता है।
- इंट्रा–मेडुलरी नेल्स (Intra-Medullary Nails) –इस प्रक्रिया में आंतरिक मेटल की रॉड को लंबी हड्डियों के केंद्र के नीचे रखा जाता है। इस प्रक्रिया के तहत बच्चों में लचीले तारों का उपयोग किया जा सकता है।
- रोबर्ट जॉन बैंडेज – सामान्यता यह प्रक्रिया वहां प्रयुक्त होता है जिस पशु में अस्थियाँ, लिगामेंट या टेंडन चोटिल हो गया हो | इस उपचार बिधि में चोटिल अंग के ऊपर सबसे पहले बैंडेज कि एक पतली परत लपेटा जाता है, तदुपरांत रुई का एक मोटा परत उस बैंडेज के ऊपर लपेटा जाता है , जिसके बाद फिर से बैंडेज का एक परत चढ़ा दिया जाता है | इस प्रक्रिया से यह सुनिश्चित किया जाता है कि चोटिल अंग स्थिर हो जाये और अन्वास्यक हिलने डुलने से बचाया जा सके |
- क्रेप बैंडेज – क्रेप बैंडेज बुना हुआ लचीला कपडा होता है जिसे टेंडन या लिगामेंट के तनाव या खिचाव के अवस्था में लगाया जाता है | इसे लगाने से चोटिल अंग स्थिर हो जाता है और शारीर का उपच्रात्मक प्रक्रिया शुरू हो जाता है |
- एक्सटर्नल फिक्सेटर (External Fixators) – यह फिक्सेटर मेटल और कार्बनफाइबरसे बने होते है और इसमें स्टील की पिन लगी होती है जो सीधे त्वचा के द्वारा हड्डी में जाती है और फिक्स हो जाती है। वैसे तो टूटी हुई हड्डी को इमोबिलाइजेशन से स्थिर होने के लिए 2-8 सप्ताह लगता है, पर यह समय इस बात पर निर्भर करता है की किस जगह की हड्डी फ्रैक्चर हुई है और कहीं कोई जटिलता जैसे रक्त की पूर्ति करने में परेशानी या किसी तरह का संक्रमण तो उत्पन्न नहीं हो रहा है।
देर से ठीक होने वाले फ्रैक्चर को ठीक करने के लिए आप कुछ तरीके अपना सकते है जैसे–
- बोन ग्राफ्टिंग (Bone Grafting) –यदि फ्रैक्चर ठीक होने में बहुत लम्बा समय लग रहा है और या फ्रैक्चर ठीक ही नहीं हो रहा है तो इस स्थिति में बोन ग्राफ्टिंग की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है जिसमे प्राकृतिक हड्डी या आर्टिफीसियल हड्डी को टूटी हुई हड्डी से ट्रांसप्लांट किया जाता हैं।
- स्टेम सेल थेरेपी (Stem Cell Therapy) –इस प्रक्रिया को करने के लिए अभी शोध जारी है की क्या स्टेम सेल थेरेपी के द्वारा टूटी हड्डियों को जोड़ा जा सकता है।
फ्रैक्चर से होने वाली जटिलताएं –
फ्रैक्चर होने के बाद कभी कभी कुछ जटिलताएं उत्पन्न हो सकती है, जैसे-
- गलत स्थिति में हीलिंग होना–कभी कभी फ्रैक्चर के बाद यह समस्या उत्पन्न हो जाती है की हीलिंग या तो गलत स्थिति में होने लगती है या वहां से शिफ्ट हो जाती है जिसे कहा जा सकता है की पूरा फ्रैक्चर ही शिफ्ट हो जाता है।
- हड्डी के विकास में व्यवधान होना (Disruption Of Bone Growth) –यदि बचपन में हुए हड्डी के फ्रैक्चर, हड्डी के ग्रोथ प्लेट को प्रभावित करते है तो यह एक जोखिम वाली बात है कि उस हड्डी का सामान्य विकास भविष्य में प्रभावित हो सकता है, जो बाद में होने वाली विकृति (Deformity) के जोखिम को बढ़ाता है।
- बोनमेरो संक्रमण (Bone Marrow Infection) –यदि त्वचा में किसी प्रकार का कट है जो ज्यादातर कंपाउंड फ्रैक्चर की स्थिति में देखा जाता है तो इसमें बैक्टीरिया द्वारा संक्रमण पैदा करने का जोखिम उत्पन्न हो सकता है जिससे क्रोनिक ऑस्टियोमाइलाइटिस (Chronic Osteomyelitis) नाम का गंभीर संक्रमण हो सकता है। इस स्थिति में रोगी को अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए और एंटीबायोटिक्स देनी चाहिए।
- बोन डेथ (Avascular Necrosis) – इस स्थिति में हड्डी में संपूर्ण मात्रा में खून ना पहुँचने से हड्डी के अंदर की टिश्यू ख़राब होकर मर जाती है जिसे बोन डेथ या एवास्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) कहा जाता है।