प्रजनक सांड की देखभाल एंव प्रबंधन

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प्रजनक सांड की देखभाल एंव प्रबंधन

कुछ वर्षों पहले तक एक चलन था. किसी भी डेयरी फार्म के दुग्ध उत्पादन में प्रजनक सांड का योगदान आधा हैं, लेकिन अब वैज्ञानिकों का मानना है प्रजनन हेतु प्रयोग होने वाले साड़ो का योगदान 70% तक होता है. सांड की उर्वरता एंव आनुवंशिक श्रेष्ठता का गाय एंव भैसों की उत्पादन और पुनरुत्पादन क्षमता को बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका है. दूर्भाग्यवश हमारे देश में प्रजनक सांड के महत्व को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है. उचित प्रबंधन एंव देखभाल की कमी की वजह से सांड अनुर्वरता का शिकार हो जाते हैं और पशुपालक भाईयों को आर्थिक क्षति होती है.

प्रजनक सांड के पालन पोषण एंव देखभाल पर जागरूकता एंव विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है.

प्रत्येक दूध उत्पादक पशुपालक के लिए यह बेहद जरुरी है. वह अपनी गाय- भैंस के प्रजनन के लिए किस प्रकार के सांड का चुनाव करता है. पशुपालक भाईयों को सांड की खरीददारी के समय अत्यधिक सतर्कता रखनी चाहिए.

सांड का चुनाव.
सांड का चयन सांड के माता पिता, दादा दादी एंव सम्बंधित के दूध उत्पादन क्षमता के रिकॉर्ड देखने के बाद किया जाना चाहिए. इसे वंशावली विधि द्वारा चयन कहते हैं.

सम्बंधित सांड के माता- पिता उचित आकार नस्ल तथा दूधारू लक्षण युक्त रही हो.

सांड सक्रामंक बीमारीयों से ग्रसित न हो, सामान्य स्वास्थ्य अच्छा हो और नियमित रुप से उसका टिकाकरण हुआ हो.

सांड के चुनाव में अत्यधिक उम्र के सांड की अपेक्षा युवा सांड को चुनना चाहिए क्योंकि वो प्रजनन के लिए अधिक सक्षम एंव योग्य होते हैं.

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सांड का शरीर नस्ल के हिसाब से लम्बा ऊचा तथा हष्ट पुष्ट होना चाहिए.

उसकी त्वचा पतली और चमकीली होनी चाहिए.

सांड की चारों टागें स्वस्थ और मजबूत होनी चाहिए.

सांड के वृषण कोष ( Scrotum) का आकार और परिधि बड़ी होनी चाहिए. शोधों से यह ज्ञात हुआ है की बडे़ वृषण कोष परिधि ( Scrotal circumference) वाले सांडों का वीर्य उत्पादन अधिक होता है. इनसे पैदा हुई बछडियो की उर्वरता उच्च स्तर की होती है.

पोषण प्रबंधन
प्रजनन के लिए प्रयोग किए जाने वाले सांडों को अच्छी किस्म का चारा तथा पर्याप्त मात्रा में चारा खिलाना चाहिए ताकि वो स्वस्थ एंव चुस्त रहे पंरतु अधिक चर्बियुक्त व मोटे ना हो

18 महिने से 3 साल तक की उम्र के साडों को उनके शारीरिक वजन के अनुसार शुष्क पदार्थ 2.5 से 3 प्रतिशत की दर से खिलाना चाहिए ताकि वो प्रति दिन 700-800 ग्राम की दर से बढोत्तरी विकसित कर सकें.

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