बछड़ा व बछीयो की देखभाल व प्रबधन
डॉ.पूजा गवई1 और डॉ. आर के बघेरवाल2
1. तकनीकी सहायक
2. प्राचार्य
वेटरनरी पॉलीटेक्निक महाविद्यालय महू (म.प्र)
बछड़ा व बछीयों की देखभाल व प्रबंधन
किसी भी डेयरी फार्म की सफलता के लिए बछड़े का उचित प्रबंधन एक शर्त है। प्रारंभिक जीवन में पोषण तत्व का एक अष्टतम स्तर तेजी से विकास ओर जल्दी परिपक्वता का पक्षधर है। हमें बछड़े व बछीयों के लिए अच्छा आहार ओर प्रबंधन देना चाहिए ताकि वे अच्छी तरह से विकसित हो सके। शरीर के वजन में इष्टतम लाभ प्राप्त करने के लिए बछडों को सावधानी से पाला जाना चाहिए ताकि वे युवावस्था में परिपक्व शरीर के वजन का लगभग 70-75 प्रतिशत प्राप्त कर सके।
प्रारम्भिक प्रबंधन
1. जन्म के तुरंत बाद नाक ओर मुह से किसी भी श्लेष्म या गंदगी को हटा दे।
2. आम तौर पर गाय बछड़े को जन्म के तुरन्त बाद चाटती है। यह प्रक्रिया बछड़े को सुखाने मे मदद करता है और सांस लेने ओर परिसंचरण को उत्तेजित करने में मदद करता है। यदि किसी स्थिति में गाये न चाट या ठण्डी जलवायु में हो, तो बछड़े को सूखे कपड़े या बोरी से रगड़कर सुखए। हाथो से छाती को सिकोडकर ओर आराम से कृत्रिम श्वसन प्रदान करें।
3. नेवल को शरीर से लगभग 2-5 से.मी. की दुरी पर बांधना चाहिए और संयुक्ताक्षर से 1 से.मी. नीचे काटकर लगाना चाहिए। आयोडिन या बोरिक एसिड या कोई एंटीबायोटिक।
4. बछड़े व बछीयों को साफ ओर सुखी स्थिति मे रखे।
5. बछड़े का वजन रिकॉर्ड किया जाना चाहिए।
6. गाय के थन और निप्पल को क्लोरीन के घोल से घोकर सुख ले।
7. बछड़े को माँ का पहला दूध यानी कोलेस्ट्रम चुसने दे।
बछडों को खिलाना
सबसे पहले बछड़े कों गाय का पहला दूध यानी कोलेस्ट्रम पहले 3 दिनों तक पिलायें कोलेस्ट्रम मोटा ओर चिपचिपा पीला क्रीम रंग का होता है। इसमें पोषक तत्व और एंटीबॉडी की उच्च सांद्रता होती हैं। कोलेस्ट्रम की थोड़ी मात्रा बछड़े में पोषण संबंधित जरूरतों को पूरा करती हैं बछड़ों का पाचन तंत्र बहुत छोटा होता हैं और कोलेस्ट्रम अपने तत्वों पोषक तत्वों को बहुत ही कम मात्रा में केंद्रित करता है। इसकों पिने के बाद मल के परित होने को प्रोत्साहित करता है जिसे म्यूकोनियम कहा जाता है।
इसमें विटामिन ए के उच्च अनुपात ओर प्राटीन शामिल है। प्रोटीन प्रतिरक्षा ग्लोब्युलिन है जो कई बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करते है। एक महिने की उम्र के बाद बछड़े को स्टार्टर दे। तीन महीने बाद से अच्छी गुणवृतत वाला हरा चारा और घास प्रदान करें बछड़ों को एंटीबायोटिक्स खिलाने से भूख में सुधार होता हैं विकास दर मे वृद्धि होती है और बछड़े के दस्त को रोकता है।
प्रबंधन अभ्यास
1. जन्म के बाद बछड़े की पहचान के लिए टेग लगाना चाहिए। कृमिनाशक दवाओं का उपयोग करके कृमि को दूर करने के लिए नियमित रूप सें बछड़े को कीटणुरहित करें। 30 दिन के अंतराल पर कुमिनाषक दवा दे।
2. 2-3 सप्ताह बाद से ताजा पानी दिया जाना चाहिए।
3. बछड़ों को अलग बाडे मे रखना चाहिए तथा 3 महीने बाद समूह में रखे। 6 महीने के बाद नर और मादा बछड़ों को अलग-अलग रखा जाना चाहिए। बछड़ों को सप्ताहिक अंतराल पर 6 महीने तक ओर मासिक अंतराल पर विकास दर जानने के लिए वजन को तोले।
4. 8-9 सप्ताह की आयु में नर को बाधियाकरण कर देनी चाहिए।
5. फंगल इंफेक्शन से बचने के लिए शरीर को साफ व सुखा रखे।
6. खनिज ग्लॉक प्रदान किया जाना चाहिए ताकि बछड़ै उसे चाटे ओर खनिज की कमी न हो।
7. बछड़ों को संक्रामक रोगो से बचाने हेतु टीकाकरण करवाना चाहिए। कुछ रोग ऐसे होते है जिनका कोई उपचार नही होता है ऐसी स्थिति में उपचार से बचाव का रास्ता श्रेष्ठ होता है। संक्रमक रोगो से पीड़ित पशु की चिकित्सा भी अत्यंत मंहगी होती है। उपचार के लिए पशु की चिकित्स भी गाँव में आसानी से नही मिल पाते हैं। इन रोगों से पीड़ित पशु को यदि उपचार करने से भी जीवित बच पाते है तो भी उनके उस ब्यात के दूध की मात्रा में अत्यंत कमी हो जाती है। जिससे पशुपालकों को आर्थिक हानि होती है। संक्रामक रोगो में रोकथाम के लिए आवश्यक है कि पशुओं में रोग रोधक टीके निर्धारित समय के अन्तर्गत प्रत्येक वर्ग लगवाए जाऐ। बछिया व बछड़ों की बेहतर देखभाल और प्रबंधन से डेयरी फार्म को उच्च गुणवत्ता वाला प्रतिस्थापन स्टॉक मिलेगा।
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