नवजात बछड़े एवं बछिया की देखभाल

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           नवजात बछड़े एवं बछिया की देखभाल

 

  1. डॉ मनीष कुमार मुखर्जी  ,M.V. Sc. Research Scholar, BVC. Patna
  2. प्रोo (डॉ) पंकज कुमार ,Assistant Professor & Head Dept. of VAHE, BVC, Patna

नवजात बछड़ों के जन्मो-उपरांत उनकी देखभाल करना उतना ही आवश्यक है, जितना की माँ की देखभाल करना है। गर्भाशय में बच्चा पूरी तरह से मां पर निर्भर रहता है और मां से ही संपूर्ण पोषक तत्व को प्राप्त करता है लेकिन जन्म के बाद खुले वातावरण में आने के बाद उसकी आवश्यकता में अचानक परिवर्तन एवं आवश्यकता में बढ़ोतरी हो जाती है। अतः नवजात बछड़ों की देखभाल अच्छे से होनी चाहिए क्योंकि यही नवजात बछड़े बड़े होकर एक वयस्क पशु (गाय, बैल एवं सॅाड) का रूप धरण करते है और किसानों के लिए अधिक से अधिक मुनाफा का श्रोत बनते है।

प्रसव के उपरांत नवजात पशुओ की मृत्यू दर अपने प्रांत में बहुत अधिक देखी जाती है, जिसका मुख्य कारण नवजात बछड़ों की देखभाल अच्छे से न होना एवं उचित जानकारी का आभाव होना माना जाता है। यदि हम प्रसवोप्रान्त नवजात पशुओ की देखभाल करने की उचित जानकारी रखे तो नवजात बछड़ों की मृत्यू दर काफी हद तक कम की जा सकती है और भविष्य मे होने वाले हानी से बचा जा सकता है। अतः अधिक से अधिक स्वास्थ नवजात पशुओ की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित बातों को याद रखना अवस्यक है:-

  • जन्म के पश्चात बछड़े को साफ स्थान पर रखे एवं उसके पिछली पैड़ों को उपर की ओर उठाए, जिससे उसकी नाक एवं मुह के भीतर फसी हुई श्लेश्मा (embryonic flud) निकल जाए, तथा बछड़े को सांस लेने मे आसानी हो और भविष्य मे सांसजनित रोगों से बचा जा सकता है।
  • नवजात बछड़ों के मुख एवं नाक को साफ सूती कपड़े से अच्छी तरह साफ करे और माँ को अपने बच्चे को अच्छी तरह चाटने दे, जो बछड़े के शरीर मे रक्त-संचार या, परिसंचरण (circulation) को बढ़ाता है, और बछड़े को चलने मे सहायता करता है।
  • कई नवजात बछड़ों में तो जन्म के बाद फेफड़े पूरी तरह से काम नहीं कर पाते हैं और सांस लेने में कठिनाई होती है। ऐसा अधिकतर कठिन प्रसव के बाद होता है। कठिन प्रसव के समय, बच्चे के अधिक समय तक गर्भाधान नली मे फंसे रहने से ऐसी समस्या अधिक होती है ऐसे में बछड़े के मुख एवं नाक के माध्यम से कृत्रिम श्वास देना चाहिए।
  • यदि बछड़े का नाभिरज्जु या गर्भनाल (Navel cord) अपने आप नही टूटे तो, इसे 2-3 cm छोरकर साफ धागे से बांधकर एवं बचे हुए नाभ को नए ब्लैड या कैची से काट दे, एवं कटे नाभिरज्जु पर टिंचर आयोडिन का घोल (1:1000), या टैनिक ऐसिड घोल (5%), या बिटाडीन आदि मे से किसी एक दवा का उपयोग 3-5 दिन, 2-3 बार/दिन करते है।
  • नाभिरज्जु पर दवा लगाने के पश्चात साफ सूती कपड़े या बैन्डिज की सहायता से नाभिरज्जु को बांधे, जिससे नाभिरज्जु मे संक्रमण लगने की संभवना कम रहती है।
  • नवजात बछड़े को जन्म के पहले 2-5 घंटे मे 1-2 लीटर कॉलेस्टरम या खीस पिलाना अति आवस्यक है, क्योंकि खीस मे रोगों प्रीतिरोधक पदार्थों की बहुलता होती है, जो नवजात बछड़ों मे रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है, साथ-ही-साथ गर्भाअवस्था के दौड़ान आतों मे बने मल एवं हानिकारक पदार्थ को बाहर निकालने मे भी सहयोग करती है।
  • कई नवजात बछड़ों को जीवन के शुरुआत मे कॉलेस्टरम या खीस नही उपलब्ध होने
  • https://www.pashudhanpraharee.com/management-of-newly-born-calf/
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पर उसे कृत्रिम खीस दे या दूसरी गाय का खीस देना चाहिए।

(कृत्रिम खीस बनाने की विधि- 750 ml दूध, 200 ml पानी, 1 अंडा, 90 ml काडलीवर आयल तथा 30 ml अरंडी का तेल मिलकर पिलाना चाहिए)

  • खीस नवजात पशु को प्रकृति द्वारा दिया गया एक अमूल्य उपहार या उसके जीवन का पासपोट भी कह सकते है।
  • कृमिनास्क या किड़े की दवा नवजात बछड़े को जन्म के 10-15 दिन पर दे एवं मासिक आधार पर अर्थात माह मे एक बार अगले छः माह की आयु तक देना चाहिए और छः माह के बाद 3-4 माह के अंतराल पर पूरी आयु देना चाहिए।
  • जब नवजात 3 माह का हो जाए, तो टीकाकरण के लिए पशु चिकित्सक से मिलन चाहिए।
  • नवजात बछड़ों के बेहतर विकास और जल्दी परिपक्कत के लिए 2-8 सप्ताह से बछड़ा स्टाटर राशन देना लाभकारी माना जाता है।

(स्टाटर राशन बनाने की विधि- मक्का-52%, जई-20%, सोयाबीन-20%, गुड़-5%, नमक-0.5%, खनिज एवं विटामिन-1.5-2%)

अतः उचित खान-पान के साथ-साथ यदि उचित साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए तो नवजात पशुओ को अनेको प्रकार की बीमारिओ जो नवजात बछड़ों मे बहुलता से पाई जाती है, जो कई बार मृत्यु का कारण बनता है, से बचाव किया जा सकता है।

https://www.dairyknowledge.in/article/care-new-born-calf

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