डेयरी पशुओं में प्रजनन संबंधी समस्या का प्रबंधन
रजंना सिन्हा, आशीष रजंन, दीप नारायण सिंह, मनमोहन क़ुमार एंव सुचित क़ुमार
बिहार पशुचिकित्सा महाविेद्यालय पटना, बिहार पशु विज्ञान विश्वविेद्यालय पटना-14
परिचय
वर्तमान में भारत सबसे ज्यादा दुग्ध उत्पादन करने वाला देश है। फिर भी अन्य विकसित देशो की तुलना में भारतीय नस्ल के पशुओं की उत्पादकता बहुत कम है। देशी पशुओं में कम उत्पादकता के कई कारक है। डेयरी पशुओं की उत्पादक क्षमता प्रत्यक्ष एंव अप्रत्यक्ष रूप से उनकी प्रजातियॉ, कम आनुवंशिक क्षमता, अपर्याप्त भोजन, असंतुलित आहार, खराब प्रजनन, स्वास्थ तथा अन्य प्रबंधन पर निर्भर करता है। जिसमें खराब प्रजनन एक महत्वपूर्ण कारक है। हमारे देश में डेयरी पशुओं के प्रजनन संबंधी समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है अतः इससे निदान पाना अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त कम प्रजनन क्षमता के कारण पशुपालको को भारी आर्थिक नुकसान का सामना भी करना पड़ता है।
प्रजनन क्षमता निर्धारक | आदर्श मानक | वर्तमान औसत मानक |
यौवनावस्था की आयु | 15-18 महीने | 24-36 महीने |
यौनपरिपक्वता की आयु | 22-24 महीने | 34 – 38 महीन |
गर्भाधान से गर्भ धारण करने की अवधि | गाय (80-85 दिन)
भैस (90-95 दिन) |
गाय (136 दिन)
भैस (215 दिन) |
ब्यात अंतराल
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गाय (365 दिन)
भैंस (405 दिन) |
गाय (450 दिन)
भैंस (500 दिन) |
गर्भाधारण दर | 60 प्रतिशत | 40 प्रतिशत |
प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए आवश्यक प्रंबधन
- बछड़ियों में यौवनावस्था एंव यौनपरिपक्वता की आयुः– यौवनावस्था वह अवधि है जिसमें शरीर के जनन अंग कार्यात्मक रूप से विकसित हो जाते है तथा नर एंव मादा पशु शुक्राणु एंव अंडाणु उत्पन्न करने में सक्षम होते है। बाछीयों में यौवनावस्था की पहचान अंडाणु का उत्सर्जन एंव रक्त प्लाज्मा में प्रोजेस्ट्रान की सांद्रता से की जाती है। यौन परिपक्वता वह चरण है जिसमें पशु प्रजनन करने में पूरी तरह से सक्षम होता है। शारीरिक विकास दर एंव शरीर का भार प्रजनन क्षमता को अत्यधिक प्रभावित करता है। बाछीयों में यौवनावस्था की औसत उम्र 24-36 माह तथा यौन परिपक्वता की उम्र 34-38 माह के बीच होती है।
- मादा पशुओं में मद की पहचानः– दुधारू पशुओं में नियमित रूप से मद/गर्मी की पहचान करना अति आवश्यक है, ताकि पशु सही समय पर गर्भधारण कर सके। कृत्रिम गर्भाधान तकनीक में सही समय पर मादा पशु की मद की पहचान न कर पाना सबसे बड़ी बाधा है। मद की सही पहचान न होना तथा गलत समय पर गर्भाधान होने की वजह से पशुओं के गर्भधारण दर में कमी आती है जिससे पशुपालको को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
- डेयरी पशुओं में मद एवं गर्मी की पहचान करने के सही तरीके
- मद के समय मादा पशुओं में व्यवहार संबधी लक्ष्णों में बदलाव आना।
- मादा पशु की योनि में सूजन आना।
- मादा पशु की योनिद्वार से पारदर्शी तरल श्लेष्मा निकलने लगता है तथा योनि के श्लेष्मा झिल्ली में रक्त संचार बढ़ने के कारण हल्का लाल रंग का दिखाई देना।
- पशु बार-बार रंभाना तथा मुत्र त्याग करना।
- मद के समय डेयरी पशुओ के दुग्ध उत्पादकता में गिरावट।
- पशु के आहार में कमी।
- मद की वास्तविक अवस्था में गाय अपने साथी गाय तथा टीजर सांड को अपने ऊपर चढ़ने पर शांत अवस्था में खड़ी रहना। यह मद की पहचान करने के सही लक्षण हैं।
- उचित समय पर कृत्रिम गर्भाधान करना:- डेयरी पशुओं में सही समय पर कृत्रिम गर्भाधान करना चाहिए। अगर गलत समय पर कृत्रिम गर्भाधान हो गया तो पशु गाभीन नही होंगे और पशुपालकों को नुकसान का सामना करना पडेगा। गाय एवं भैस में मद की अवधि लगभग 12 से 24 घंटे की होती है। कृत्रिम गर्भाधान प्रशिक्षित व्यक्ति से ही कराना चाहिए। कृत्रिम गर्भाधान करने से पहले मादा पशु की बाहरी जननागों को गुनगुना पानी से धोना तथा साफ कपड़े से पोंछ लेना चाहिए। गर्भाधान के समय शुक्राणु कई परिवर्तनशील श्रृखंला से गुजरता है। कृत्रिम गर्भाधान के लिए हिमीकृत वीर्य युक्त नलिकाओं को गुनगुने पानी से पिघलाया जाता है। इस पानी का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है और इसमें नलिकाओं को 30 सेकेण्ड तक डुबोकर रखा जाता है। जिसके फलस्वरूप शुसुप्त शुक्राणुओं में प्रतिगामी गतिशीलता एवं प्रजनन क्षमता लौट आती है। इसके बाद इन शुक्राणुओं को मादा के जननांगो में मदकाल के दौरान कृत्रिम गर्भाधान गन द्धारा गर्भाधान किया जाता है।
- ब्यात के पूर्व एवं पश्चात गायों का प्रंबधनः– ब्यात के संक्रमण काल (21 दिन पहले तथा 21 दिन बाद) की अवधि बहुत ही चुनौती पूर्ण होती है इस अवधि के दौरान गाय के शारीरिक चयापचय, पाचन सम्बन्धी तथा अंतःस्रावी स्थिति में कई परिवर्तन आते है, क्योंकि कि इस समय भ्रूण का विकास अंतिम चरण पर होता है। इसके कारण पशु के शरीर में पोषक तत्वों की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। ब्यात के पूर्व एवं पश्चात थन का विकास तेजी से होता है, परिणामस्वरूप दुधारू पशुओं में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता देखने को मिलती है। ब्यात के समय गाय में कई हार्मोनल एंव चयापचय परिवर्तन के कारण ब्याने तथा दुग्ध उत्पादन को शुरू करने में सहायता करती है। अगर इस समय गाय को अच्छी तरह से देखभाल नहीं किया गया तो स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं जैसे कि रूमेन इसिडोसिस, किटोसिस, फैटी लिवर सिंड्रोम, दुग्ध ज्चर, मेट्राइटिस, थनैला रोग एवं जड़ अवधारण उत्पन्न हो सकती है। ब्यात के समय ऊर्जा, प्रोटीन तथा खनिजो की आवश्यकता कई गुना बढ जाती है। इस वजह से दुधारू पशुओं के गर्भावस्था से दुग्ध उत्पादन तक कई भयंकर पयापचय चुनौतीयों का सामना करना पडता है। आमतौर पर इस समय शुष्क पदार्थ का सेवन प्रति सप्ताह 5 प्रतिशत की दर से घट जाती है, वही ब्यान से 3-5 दिन पहले इसमें 30-35 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है।
- प्रसवोत्तर चयापचय समस्या की रोकथाम:- इस समस्या को रोकने के लिए हमें पशु को संक्रमण काल के दौरान प्रयाप्त मात्रा में संतुलित आहार देना चाहिए। पशु के शरीर की स्थिति का स्कोर कम से कम 3 से5 अंक तक बरकरार रखना चाहिए। जिससे कि दुग्ध उत्पादन एवं अगले प्रजनन में कोई अन्य समस्या का सामना न करना पड़े।
- प्रजनन संबंधी रिकार्डः– प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए पशुओं पर कुशल निगरानी एवं प्रजनन संबंधी रिकोर्ड रखना अति आवश्यक है। इन रिर्कोडों से पशु प्रजनन तथा उससे संबंधित प्रंबधन का समुचित ज्ञान आसानी से मिल सकता है।
- कृत्रिम गर्भाधान की तिथि (दिन, महीने एंव वर्ष)
- कुल कृत्रिम गर्भाधान की संख्या
- ब्यान की तिथि (दिन, महीने एंव वर्ष)
- हाल की ब्यान का रिकोर्ड (दिन, महीने एंव वर्ष)
- पहले ब्यात का रिकार्ड
- पशु की प्रजनन अवस्था
- पहले प्रजनन एवं तत्काल की प्रजनन का रिकोर्ड
- पशु पोषण प्रंबधनः– संतुलित आहार एवं बेहतर प्रबध्ंन, पषु प्रजनन संबंधी समस्या को कम करने में मुख्य रूप से सहायक होते है। पशुओं के आहार में पोषक तत्वों की प्र्याप्त मात्रा होनी चाहिए। इसमें प्रोटीन, ऊर्जा, खनिज एवं विटामिन मुख्य तत्व है। आहार में ऊर्जा, वसा एवं पोषक तत्वों को घनीकरण द्धारा मिश्रण बनाकर अधिक मात्रा में देनी चाहिए।
निष्कर्षः– पषुओं के बेहतर प्रंबधन, संतुलित आहार, आवास एंव उतम स्वास्थ्य से यौन परिपक्वता की उम्र को कम करने (अग्रगति) में सकारात्मक प््राभाव डालता है। मद के लक्ष्णों की सही पहचान तथा पषुओं में उचित समय पर गर्भाधान द्वारा पषु की प्रजनन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। संक्र्र्रमण काल के दौरान डेयरी पषुओं को संतुलित आहार एवं देखभाल से पषुओं में चयापचय एवं प्रजनन संबंधी समस्याओं को दूर किया जा सकता है।