नवजात एवं छोटे बछड़ो की देखभाल एवं प्रबन्धन

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नवजात एवं छोटे बछड़ो की देखभाल एवं प्रबन्धन

Compiled & Edited by-DR. RAJESH KUMAR SINGH, (LIVESTOCK & POULTRY CONSULTANT), JAMSHEDPUR, JHARKHAND,INDIA
9431309542, rajeshsinghvet@gmail.com

बछड़े की देखभाल शुरुआती दौर में अच्छी तरह से होना काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज की बछड़ी कल की होने वाली गाय या भैंस है। जन्म से ही उसकी सही देखभाल रखने से भविष्य में वह अच्छी गाय या भैंस बन सकती है।

ऐसा देखा गया है की पशुपालक दुधारू पशुओं पर उचित ध्यान देते है मगर नवजात एवं छोटे पशुओं के प्रबंधन को महत्वपूर्ण नहीं समझते क्योंकि उनसे उन्हें कोई तत्कालिक लाभ नहीं मिलता है I शोध से ये ज्ञात हुआ है की उचित प्रबंधन के अभाव में 15—20प्रतिशत बछड़े/बछड़ी जन्म से 1 महीने की अवधि में मर जाते है I सभी पशुपालकों को ये बात समझनी चाहिए की पशुधन का भविष्य नवजात पशु की देखभाल और प्रबंधन पर निर्भर करता है I हरेक पशुपालक को नवजात एवं छोटे पशुओं के प्रबंधन सम्बन्धी सभी बारीकियों को ध्यान में रखना चाहिए I

बछड़े की देखभाल———–

शुरुआती देखभाल—————–

  • जन्म के ठीक बाद बछड़े के नाक और मुंह से कफ अथवा श्लेष्मा इत्यादि को साफ करें।
  • आमतौर पर गाय बछड़े को जन्म देते ही उसे जीभ से चाटने लगती है। इससे बछड़े के शरीर को सूखने में आसानी होती है और श्वसन तथा रक्त संचार सुचारू होता है। यदि गाय बछड़े को न चाटे अथवा ठंडी जलवायु की स्थिति में बछड़े के शरीर को सूखे कपड़े या टाट से पोंछकर सुखाएं। हाथ से छाती को दबाकर और छोड़कर कृत्रिम श्वसन प्रदान करें।
  • नाभ नाल में शरीर से 2-5 सेमी की दूरी पर गांठ बांध देनी चाहिए और बांधे हुए स्थान से 1 सेमी नीचे से काट कर टिंक्चर आयोडीन या बोरिक एसिड अथवा कोई भी अन्य एंटिबायोटिक लगाना चाहिए।
  • बाड़े के गीले बिछौने को हटाकर स्थान को बिल्कुल साफ और सूखा रखना चाहिए।
  • बछड़े के वजन का ब्योरा रखना चाहिए।
  • गाय के थन और स्तनाग्र को क्लोरीन के घोल द्वारा अच्छी तरह साफ कर सुखाएं।
  • बछड़े को मां का पहला दूध अर्थात् खीस का पान करने दें।
  • बछड़ा एक घंटे में खड़े होकर दूध पीने की कोशिश करने लगता है। यदि ऐसा न हो तो कमजोर बछड़े की मदद करें।

बछड़े का भोजन (Feeding Calves)————

नवजात बछड़े को दिया जाने वाला सबसे पहला और सबसे जरूरी आहार है मां का पहला दूध, अर्थात् खीस। खीस का निर्माण मां के द्वारा बछड़े के जन्म से 3 से 7 दिन बाद तक किया जाता है और यह बछड़े के लिए पोषण और तरल पदार्थ का प्राथमिक स्रोत होता है। यह बछड़े को आवश्यक प्रतिपिंड भी उपलब्ध कराता है जो उसे संक्रामक रोगों और पोषण संबंधी कमियों का सामना करने की क्षमता देता है। यदि खीस उपलब्ध हो तो जन्म के बाद पहले तीन दिनों तक नवजात को खीस पिलाते रहना चाहिए।

जन्म के बाद खीस के अतिरिक्त बछड़े को 3 से 4 सप्ताह तक मां के दूध की आवश्यकता होती है। उसके बाद बछड़ा वनस्पति से प्राप्त मांड और शर्करा को पचाने में सक्षम होता है। आगे भी बछड़े को दूध पिलाना पोषण की दृष्टि से अच्छा है लेकिन यह अनाज खिलाने की तुलना में महंगा होता है। बछड़े को दिए जाने वाले किसी भी द्रव आहार का तापमान लगभग कमरे के तापमान अथवा शरीर के तापमान के बराबर होना चाहिए।

बछड़े को खिलाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बरतनों को अच्छी तरह साफ रखें। इन्हें और खिलाने में इस्तेमाल होने वाली अन्य वस्तुओं को साफ और सूखे स्थान पर रखें।

पानी का महत्व——————–

ध्यान रखें हर वक्त साफ और ताजा पानी उपलब्ध रहे। बछड़े को जरूरत से ज्यादा पानी एक ही बार में पीने से रोकने के लिए पानी को अलग-अलग बरतनों में और अलग-अलग स्थानों में रखें।

खिलाने की व्यवस्था—————-

बछड़े को खिलाने की व्यवस्था इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस प्रकार का भोज्य पदार्थ दिया जा रहा है। इसके लिए आमतौर पर निम्नलिखित व्यवस्था अपनाई जाती है:

  • बछड़े को पूरी तरह दूध पर पालना
  • मक्खन निकाला हुआ दूध देना
  • दूध की बजाए अन्य द्रव पदार्थ जैसे ताजा छाछ, दही का मीठा पानी, दलिया इत्यादि देना
  • दूध के विकल्प देना
  • काफ स्टार्टर देना
  • पोषक गाय का दूध पिलाना।
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पूरी तरह दूध पर पालना———————

  • 50 किलो औसत शारीरिक वजन के साथ तीन महीने की उम्र तक के नवजात बछड़े की पोषण आवश्यकता इस प्रकार है:
सूखा पदार्थ (डीएम) 1.43 किग्रा
पचने योग्य कुल पोषक पदार्थ (टीडीएन) 1.60 किग्रा
कच्चे प्रोटीन 315 ग्राम
  • यह ध्यान देने योग्य है कि टीडीएन की आवश्यकता डीएम से अधिक होती है क्योंकि भोजन में वसा का उच्च अनुपात होना चाहिए। 15 दिनों बाद बछड़ा घास टूंगना शुरू कर देता है जिसकी मात्रा लगभग आधा किलो प्रतिदिन होती है जो 3 महीने बाद बढ़कर 5 किलो हो जाती है।
  • इस दौरान हरे चारे के स्थान पर 1-2 किलो अच्छे प्रकार का सूखा चारा (पुआल) बछड़े का आहार हो सकता है जो 15 दिन की उम्र में आधा किलो से लेकर 3 महीने की उम्र में डेढ किलो तक दिया जा सकता है।
  • 3 सप्ताह के बाद यदि संपूर्ण दूध की उपलब्धता कम हो तो बछड़े को मक्खन निकाला हुआ दूध, छाछ अथवा अन्य दुग्धीय तरल पदार्थ दिया जा सकता है।

NB-

अगर किसी कारणवश माँ की मृत्यु हो जाए तो बच्चे को अन्य पशुओं से उपलब्ध खीस का सेवन कराना चाहिए I यहां इस बात को ध्यान रखने की जरुरत है की किसी अन्य पशु के ब्याने के दिन और बच्चे की उम्र में समानता होनी चाहिए अर्थात अगर बच्चे की उम्र तीन दिन की है तो उसी मादा पशु का खीस देना चाहिए जो तीन दिन पहले ब्याही हो I

अगर किसी अन्य पशु से भी खीस उपलब्ध न हो सके तो नीचे बताये गए विधि से कृत्रिम खीस बना लेना चाहिए I कृत्रिम खीस बनाने के लिए दो अंडे लेकर उन्हें तोड़कर एक कटोरे में डालना चाहिए I उसके बाद एक चम्मच की सहायता से अंडे की जर्दी व सफेदी को अच्छी तरह मथ लेने के पश्चात 30 मिलीलीटर अरंडी का तेल मिलाकर पुनः मथ लेना चाहिए I इस मिश्रण में थोड़ा सा खनिज लवण मिश्रण व विटामिन अंश मिलाकर नवजात पशु के शरीर भार का 1/10 भाग दूध के साथ पिलाना चाहिए I ये मिश्रण हर बार ताजा तैयार करना चाहिए I कृत्रिम खीस बनाकर बच्चे को दिन में तीन बार 5 दिन तक अवश्य देना चाहिए I नवजात पशु को जन्म के 5 दिन बाद पूर्ण दूध पिलाना चाहिए क्योंकि ये पशु की पौष्टिक तत्वों की जरुरत को पूरा करता है I मोटे तौर पर कहा जाए तो दूध बछड़े बछड़ी या कटड़े कटड़ी के लिए एक सम्पूर्ण आहार हैI अगर इस अवस्था में पशु के शरीर के तापमान के बराबर का दूध (101.5°F) पिलाया जाए तो बेहतर परिणाम मिलते है I

5 से 20 दिन तक उसे शरीर भार का 10 वां भाग तक पूर्ण दूध की मात्रा देनी चाहियेI इससे अधिक दूध पिलाने पर पशु को दस्त की समस्या हो सकती है I लगभग 1.39किलोग्राम शुष्क दुग्ध उपभोग पर एक किलोग्राम भार वृद्धि सही वृद्धि दर होती है Iप्रथम तीन महीने में बच्चों को पर्याप्त दूध प्राप्त होना चाहिए I यदि किसी कारणवश प्रसव के बाद मादा पशु की मृत्यु हो जाए तो दुसरे पशु का दूध बच्चे को पिलाना चाहिए और ऐसे दूध में दो चम्मच अरंडी का तेल या मछली का तेल मिला देना चाहिएI माँ से अलग किये गए बच्चे को माँ का दूध किसी साफ़ सुथरे चौड़े बर्तन में रखकर हाथ की ऊँगली के सहारे पिलाने से बच्चा दूध पीना सीख जाता है I गाय भैंस के बच्चो को बोतल से भी दूध पिलाया जा सकता है I

बीस दिन की उम्र के पश्चात बच्चों को कॉफ स्टार्टर अथवा प्रवर्तक दाना देना चाहिए Iएक अच्छे स्टार्टर राशन में 20 प्रतिशत पाच्य प्रोटीन तथा 70 प्रतिशत कुल पाच्य तत्व होते है I इसमें दाने का मिश्रण,प्रोटीन युक्त फीड,खनिज,विटामिन तथा एन्टीबायोटिक मिले होते हैं I जन्म के 30 दिन के बाद से हरेक बछड़ो को हरा चारा (जितना खा सके)भी डालना चाहिए जो उनके रुमेन के विकास में सहायता प्रदान करता है I
जन्म से लेकर 3 महीने तक की आयु के बछड़ो का पोषण नीचे दी गयी सारणी के अनुसार करना चाहिए I

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पशु की उम्र खीस (किलोग्राम) पूर्ण दूध की मात्रा (किलोग्राम) काफ़स्टार्टर की मात्रा(किलोग्राम) हरा चारा (किलोग्राम
0—5 दिनतक 1/10 शरीर भार का — — –
6—20 दिन — 1/10 शरीर भार का — –
21—30 दिन — 1/15 शरीर भार का 0.2
31—60 दिन — 1/20 शरीर भार का 0.3—0.5 जितना खा सके
61—90 दिन — 1/25 शरीर भार का 1.00 जितना खा सके

बछड़े को दिया जाने वाला मिश्रित आहार—————

  • बछड़े का मिश्रित आहार एक सांद्र पूरक आहार है जो ऐसे बछड़े को दिया जाता है जिसे दूध अथवा अन्य तरल पदार्थों पर पाला जा रहा हो। बछड़े का मिश्रित आहार मुख्य रूप से मक्के और जई जैसे अनाजों से बना होता है।
  • जौ, गेहूं और ज्वार जैसे अनाजों का इस्तेमाल भी इस मिश्रण में किया जा सकता है। बछड़े के मिश्रित आहर में 10% तक गुड़ का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • एक आदर्श मिश्रित आहार में 80% टीडीएन और 22% सीपी होता है।

नवजात बछड़े के लिए रेशेदार पदार्थ————-

  • अच्छे किस्म के तनायुक्त पत्तेदार सूखे दलहनी पौधे छोटे बछड़े के लिए रेशे का अच्छा स्रोत हैं। दलहन, घास और पुआल का मिश्रण भी उपयुक्त होता है।
  • धूप लगाई हुई घास जिसकी हरियाली बरकरार हो, विटामिन-ए, डी तथा बी-कॉम्प्लैक्स विटामिनों का अच्छा स्रोत होती है।
  • 6 महीने की उम्र में बछड़ा 5 से 2.5 किग्रा तक सूखी घास खा सकता है। उम्र बढने के साथ-साथ यह मात्रा बढ़ती जाती है।
  • 6-8 सप्ताह के बाद से थोड़ी मात्रा में साइलेज़ अतिरिक्त रूप से दिया जा सकता है। अधिक छोटी उम्र से साइलेज़ खिलाना बछड़े में दस्त का कारण बन सकता है।
  • बछड़े के 4 से 6 महीने की उम्र के हो जाने से पहले तक साइलेज़ को रेशे के स्रोत के रूप में उसके लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता।
  • मक्के और ज्वार के साइलेज़ में प्रोटीन और कैल्शियम पर्याप्त नहीं होते हैं तथा उनमें विटामिन डी की मात्रा भी कम होती हैं।

पोषक गाय के दूध पर बछड़े को पालना—————–

  • 2 से 4 अनाथ बछड़ों को दूध पिलाने के लिए उनकी उम्र के पहले सप्ताह से ही कम वसा-युक्त दूध देने वाली और दुहने में मुश्किल करने वाली गाय को सफलतापूर्वक तैयार किया जा सकता है।
  • सूखी घास के साथ बछड़े को सूखा आहार जितनी कम उम्र में देना शुरू किया जाए उतना अच्छा। इन बछड़ों का 2 से 3 महीने की उम्र में दूध छुड़वाया जा सकता है।

बछड़े को दलिए पर पालना——————-

  • बछड़े के आरंभिक आहार (काफ स्टार्टर) का तरल रूप है दलिया। यह दूध का विकल्प नहीं है। 4 सप्ताह की उम्र से बछड़े के लिए दूध की मात्रा धीरे-धीरे कम कर भोजन के रूप में दलिया को उसकी जगह पर शामिल किया जा सकता है। 20 दिनों के बाद बछड़े को दूध देना पूरी तरह बंद किया जा सकता है।

काफ स्टार्टर पर बछड़े को पालना————-

  • इसमें बछड़े को पूर्ण दुग्ध के साथ स्टार्टर दिया जाता है। उन्हें सूखा काफ स्टार्टर और अच्छी सूखी घास या चारा खाने की आदत लगाई जाती है। 7 से 10 सप्ताह की उम्र में बछड़े का दूध पूरी तरह छुड़वा दिया जाता है।

दूध के विकल्पों पर बछड़े को पालना—————

यह अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि नवजात बछड़े के लिए पोषकीय महत्व की दृष्टि से दूध का कोई विकल्प नहीं है। हालांकि, दूध के विकल्प का सहारा उस स्थिति में लिया जा सकता है जब दूध अथवा अन्य तरल पदार्थों की उपलब्धता बिल्कुल पर्याप्त न हो।

दूध के विकल्प ठीक उसी मात्रा में दिए जा सकते हैं जिस मात्रा में पूर्ण दुग्ध दिया जाता है, अर्थात् पुनर्गठन के बाद बछड़े के शारीरिक वजन का 10%। पुनर्गठित दूध के विकल्प में कुल ठोस की मात्रा तरल पदार्थ के 10 से 12% तक होती है।

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दूध छुड़वाना——————–

  • बछड़े का दूध छुड़वाना सघन डेयरी फार्मिंग व्यवस्था के लिए अपनाया गया एक प्रबन्धन कार्य है। बछड़े का दूध छुड़वाना प्रबन्धन में एकरूपता लाने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बछड़े को उसकी आवश्यकता अनुसार दूध की मात्रा उपलब्ध हो और दूध की बर्बादी अथवा दूध का आवश्यकता से अधिक पान न हो।
  • अपनाई गई प्रबन्धन व्यवस्था के आधार पर जन्म के समय, 3 सप्ताह बाद, 8 से 12 सप्ताह के दौरान अथवा 24 सप्ताह में दूध छुड़वाया जा सकता है। जिन बछड़ों को सांड के रूप में तैयार करना है उन्हें 6 महीने की उम्र तक दूध पीने के लिए मां के साथ छोड़ा जा सकता है।
  • संगठित रेवड़ में, जहां बड़ी संख्या में बछड़ों का पालन किया जाता है जन्म के बाद दूध छुड़ाना लाभदायक होता है।
  • जन्म के बाद दूध छुड़वाने से छोटी उम्र में दूध के विकल्प और आहार अपनाने में सहूलियत होती है और इसका यह फायदा है कि गाय का दूध अधिक मात्रा में मनुष्य के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होता है।

दूध छुड़वाने के बाद———————-

दूध छुड़वाने के बाद 3 महीने तक काफ स्टार्टर की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाई जानी चाहिए। अच्छे किस्म की सूखी घास बछड़े को सारा दिन खाने को देना चाहिए। बछड़े के वजन के 3% तक उच्च नमी वाले आहार जैसे साइलेज़, हरा चारा और चराई के रूप में घास खिलाई जानी चाहिए। बछड़ा इनको अधिक मात्रा में न खा ले इसका ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इसके कारण कुल पोषण की प्राप्ति सीमित हो सकती है।

बछड़े की वृद्धि—————–

बछड़े की वृद्धि वांछित गति से हो रही है या नहीं इसे निर्धारित करने के लिए वजन की जांच करें।

  • पहले 3 महीनों के दौरान बछड़े का आहार बहुत महत्वपूर्ण होता है।
  • इस चरण में बछड़े का खानपान अगर सही न हो तो मृत्यु दर में 25 से 30% की वृद्धि होती है।
  • गर्भवती गाय को गर्भावस्था के अंतिम 2-3 महीनों के दौरान अच्छे किस्म का चारा और सांद्र आहार दिया जाना चाहिए।
  • जन्म के समय बछड़े का वजन 20 से 25 किग्रा होना चाहिए।
  • नियमित रूप से कृमिनाशक दवाई दिए जाने के साथ-साथ उचित आहार दिए जाने से बछड़े की वृद्धि दर 10-15 किग्रा प्रति माह हो सकती है।

बछड़े के रहने के स्थान का महत्व—————-

बछड़ों को अलग बाड़े में तब तक रखा जाना चाहिए जब तक कि उनका दूध न छुड़वा दिया जाए। अलग बाड़ा बछड़े को एक दूसरे को चाटने से रोकता है और इस तरह बछड़ों में रोगों के प्रसार की संभावना कम होती है। बछड़े के बाड़े को साफ-सुथरा, सूखा और अच्छी तरह से हवादार होना चाहिए। वेंटिलेशन से हमेशा ताजी हवा अन्दर आनी चाहिए लेकिन धूलगर्द बछड़ों के आंख में न जाएं इसकी व्यवस्था करनी चाहिए।

बछड़े के रहने के स्थान पर अच्छा बिछौना होना चाहिए ताकि आराम से और सूखी अवस्था में रह सकें। लकड़ी के बुरादे अथवा पुआल का इस्तेमाल बिछौने के लिए सबसे अधिक किया जाता है। बछड़े के ऐसे बाड़े जो घर के बाहर हों, आंशिक रूप से ढके हुए और दीवार से घिरे होने चाहिए ताकि धूप की तेज गर्मी अथवा ठंडी हवा, वर्षा और तेज हवा से बछड़े की सुरक्षा हो सके। पूरब की ओर खुलने वाले बाड़े को सुबह के सूरज से गर्मी प्राप्त होती है और दिन के गर्म समयों में छाया मिलती है। वर्षा पूरब की ओर से प्राय: नहीं होती।

बछड़े को स्वस्थ्य रखना———–

नवजात बछड़ों को बीमारियों से बचाकर रखना उनकी आरंभिक वृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इससे उनकी मृत्यु दर कम होती है, साथ ही बीमारी से बचाव बीमारी के इलाज की तुलना में कम खर्च में किया जा सकता है। बछड़े का नियमित निरीक्षण करें, उन्हें ठीक तरह से खिलाएं और उनके रहने की जगह और परिवेश को स्वच्छ

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