गाभिन पशुओ की देखभाल एवं प्रबंधन

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गाभिन पशुओ की देखभाल एवं प्रबंधन

नरेंद्र कुमार1 ,
सतपाल दहिया1
सुनील कुमार1 एवं
अनिल चित्रा2

1लाइवस्टॉक फार्म काम्प्लेक्स विभाग लुवास, हिसार हरियाणा
2पशु प्रजनन विभाग लुवास हिसार, हरियाणा-125001

गर्भधारण करने के बाद मादा पशु की देखभाल एवं प्रबंधन बहुत आवशयक है। मादा पशु एवं नवजात बछड़े का स्वास्थय इसी बात पर निर्भर करता है की मादा पशु की देखभाल कैसी हुयी है। पशु के ब्याने तक के समय को गर्भकाल का समय कहते हैं। भैंस में गर्भकाल 310-315 दिन तथा गाये में 280 दिन तक का होता है। मदचक्र का बन्द होना गर्भधारण की पहली पहचान होती है। गर्भधारण के बाद पशु का शरीर भी आकर में बढ़ने लगता है परन्तु कुछ भैंसों में शान्त मद होने के कारण गर्भधारण का पता ठीक प्रकार से नहीं लग पाता। अत: गर्भाधान के 21 वें दिन के आसपास मादा पशु का दोबारा मद में न आना गर्भधारण का संकेत मात्रा है परन्तु यह भी कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है । अत किसान गर्भाधाराण के दो महीने बाद पशु चिकिस्सक द्वारा गर्भ जाँच करवानी चाहिए। गर्भकाल के शुरुआत के तीन एवं अंतिम तीन महीने मादा पशु का ध्यान रखना बहुत जरुरी है गाभिन पशुओ की देखभाल पोषण प्रबन्धआवास प्रबन्ध पर निर्भर करता है।

पोषण प्रबन्ध :

गाभिन पशुओ में पोषण का बहुत महत्व है। मादा पशु को अपने जीवन यापन व दूध देने के अतिरिक्त मादा एवं नवजात बछड़े के शारीरिक विकास के लिए भी पोषक तत्वों और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों में बछड़े की शारीरिक वृद्धि 50ः से ज्यादा होती है इसलिए मादा पशु को अंतिम तीन महीने में अधिक पोषक आहार देना चाहिए इसी समय मादा पशु अगले ब्यांत में अच्छा दूध दे ये ऐसी पर निर्भर करता है की पशुओ को पोषक आहार उचित मात्रा में उपलब्ध कराया गया है या नहीं। यदि इस समय खान.पान में कोइ कमी रह जाती है तो निम्नलिखित परेशानियाँ हो सकती हैं

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o बछड़ा कमजोर पैदा होता है तथा वह अंधा भी रह सकता है।
o मादा पशु शरीरध्फूल दिखा सकती है
o प्रसव उपरांत दुग्ध ज्वर ;मिल्क फीवर द्ध हो सकता है
o जेर रूक सकती है या देर से जेर का डालना
o मादा पशु की बच्चेदानी में मवादध्राद पड़ सकती है तथा ब्यांत का दूध उत्पादन भी काफी घट सकता है।
गर्भावस्था के समय मादा पशु का विशेष रूप से ख्याल रखना तथा उचित पोषण देना चाहिए दाने में 40-50 ग्राम खनिज लवणमिश्रण अवश्य मिलाना चाहिए। हरा चारा दिन में 40-50 किलोग्राम एवं हरे चारे में बरसीमए जोवार और मक्की को का प्रयोग कर सकते है। पशु को 3 -4 किलोग्राम दाना देना चाहिए जिसमे मक्का गेहूए बाजरा तथा सरंसो की खल का मुख्यत प्रयोग कर सकते है। पशु के चारे में 40-50 ग्राम खनिज मिश्रण का प्रयोग करना चाहिए।पशु को पीने का पानी हर समय उपलब्ध होना चाहिए । गर्मियों में पशु को 2 -3 बार पानी से नहलाना चाहिए।

आवास प्रबन्ध:

गाभिन पशु को आठवे महीने के बाद अन्य पशुओं से अलग रखना चाहिए। मादा पशु के आवास का आकार 12 मीटर स्क्वायर बंद तथा 12 मीटर स्क्वायर खुला होना चाहिए। पशु के आवास की छत की उचाई 220 सेंटीमीटर से कम नहीं होनी चाहिए। पशु का बाड़ा उबड़-खाबड़ तथा फिसलन वाला नहीं होना चाहिए। बाड़ा ऐसा होना चाहिए जो वातावरण की खराब परिस्थितियों जैसे अत्याधिक सर्दीए गर्मी और बरसात से मादा पशु को बचा सके और साथ में हवादार भी हो।आवास में कच्चा फर्शध्रेत अवश्य हो तथा फर्श का ढलान निकासी की नाली की तरफ होना चाहिए। पशु के आवास में सीलन नहीं होनी चाहिए। स्वच्छ पीने के पानी का प्रबन्ध हर समय आवास में होना चाहिए। गर्मियों के दिनों में पशु के आवास में पँखा या कूलर का प्रयोग कर सकते है। सर्दियों में मौसम में पशु को सर्दी से बचने के लिए हीटर या पर्दो का प्रयोग करके पशु को सर्दी से बचा सकते है।

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सामान्य प्रबन्ध:

मादा पशु अगर दूध दे रही हो तो ब्याने के दो महीने पहले उसका दूध निकालना बंद कर देना चाहिए तथा समय समय पर थानों को खाली करते रहना चाहिए ऐसा करने से पशु में थनैला रोग होने की संभावना कम हो जाती है तथा अगले ब्यांत में उत्पादन भी बढ़ जाता है।गर्भावस्था के अंतिम दिनों में पशु को रेल या ट्रक से नहीं ढोना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसे लम्बी दूरीतक पैदल भी नहीं चलाना चाहिए। पशु को को ऊँची नीची जगह व गहरे तालाब में भी नहीं ले जाना चाहिए। ऐसा करने से बच्चेदानी में बल पड़ सकता है। लेकिन इस अवस्था में प्रतिदिन हल्का व्यायाम मादा पशु के लिए अच्छा होता है। गाभिन पशु को ऐसे पशुओं से दूर रखना चाहिए जिनका गर्भपात हुआ हो। पशु के गर्भधारण की तिथि व उसके अनुसार प्रसव की अनुमानित तिथि को घर के कैलेण्डर या डायरी में प्रमुखता से लिख कर रखना चाहिये। भैंस की गर्भावस्था लगभग 310 दिन तथा गाय की गर्भावस्था 280 दिनों की होती है।

 गाभिन पशु को उचित मात्रा में सूर्य का प्रकाश मिल सके इसका अवश्य ध्यान रखना चाहिए। सूर्य की रोशनी से पशु के शरीर में विटामिन डी बनता है जो कैल्शियम के संग्रहण में सहायक है जिससे पशु को बयाने के उपरांत दुग्ध ज्वरध्मिल्क फीवर से बचाया जा सकता है। गर्भावस्था के अंतिम माह में पशु चिकित्सक से विटामिन ई व सिलेनियम का टीका प्रसव लगवाना चाहिए जिससे जेर का न गिरना इत्यादि समस्या पशु में न आये। पशु को साथ में 5 से 10 ग्राम चूना पानी में मिलाकर दिया जाना चाहिए जिससे कैल्सियम की पूर्ति हो सके।पशु के ब्याने के लक्षण भी किसान भाइयो को पता होने चाहिए जो इस प्रकार है

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o पशु का बार बार पूंछ का ऊपर उठाना।
o पशु का बार बार उठना बैठना
o लेवटि का आकर सामान्य से बड़ा होना
o थानों का दूध का टपकना या थनों का सख्त हो जाना
o पशु का कम चारा खाना या कुछ समय के लिए चारे का सेवन कम करना
o पशु के जननांग में तरल पदार्थ का रिसाव होना एवं पुटठे टूटना यानि की पूंछ के आस पास मांसपेशियों का ढिला हो जाना
o पशु का दूसरे पशुओं से अलग हो जाना

उपरोक्त लिखी बातों का ध्यान रखकर गर्भकाल में मादा पशु का रखरखाव करना चाहिए जिससे मादा पशु एवं होने वाले बछड़े शरीर विपरीत प्रभाव न पड़े।इन सभी बातों का ध्यान रखने से बछड़े का स्वास्थ्य सही रहेगा तथा ब्यांत के दौरान पशु के दूध उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी।

गर्भवती दुधारू पशु की देखभाल एवं प्रबंधन

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