अतिवृष्टि एवं सूखे में पषुओं की देखभाल

0
351

अतिवृष्टि एवं सूखे में पषुओं की देखभाल
डॉ.जितेन्द्र सिंह
पषु चिकित्सा अधिकारी पषुपालन विभाग, उत्तर प्रदेष

हमारा देष कृषि प्रधान देष है। अधिकतर जनसंख्या ग्रामों में रहती है। कृषि के साथ-साथ पषुपालन परम्परागत व पेषेवर मुख्य धन्धा है। अकाल में सूखा पडने के कारण जब मनुष्य अपनी अन्य आजीविका खो बैठता है तो पषुधन ही एक मात्र उनकी आजीविका का साधन बनता है। इस प्रकार किसान की आर्थिक आय की दृष्टि से पषुधन मेरूदण्ड का कार्य करता है। अतः अकाल में इस परम्परांगत एवं पेषेवर पषुपालन-व्यवस्था में पषु की देखभाल बहुत महत्वपूर्ण है। प्षुओं से उर्जा, दूध, दूध से बने दैनिक उपयोग में आने वाले खाद्य पदार्थ के अतिरिक्त, जमीन को बहुमूल्य व सस्ती पौष्टिक खाद प्राप्त होती है सिर्फ गाय के गोबर से ही अधि उत्पादन कर, अधिक से अधिक धन अर्जित किया जा सकता है। दूध नहीं देने वाली गायों से भी प्राप्त गोबर से अच्छा खाद तैयार कर, बेचने से एक गाय से वर्श में हजारों रूपयों की आमदनी हो सकती है। अतः अकाल में प्षुधन आजीविका की रीढ़ की हड्डी साबित हो सकती है।
हमारे देष में प्रति हजार व्यक्तियों की तुलना, में प्षुओं की संख्या 588 है। इन प्षुओं को खिलाने के लिए देष में कम से कम 10 प्रतिषत उपजाउ भूमि में हरे चारे की आवष्यकता है, परन्तु अधिक जनसंख्या के कारण यह संभव नहीं हो पाता। साथ ही देष के सभी स्थानों पर अनुकूल वातावरण नहीं होने से तथा जमीन व सिंचाई के अभाव में अच्छी किस्म के पौष्टिक हरे चारे जैसे बरसीम, रिजका इत्यादि उगाया जाना संभव नहीं होता। अकाल के दिनों में सार्वजनिक चरागाह, गोचर, निजी जोत (परती जमीन) में सूखा पड़ने के कारण चारा उपलब्ध नहीं होता है तथा प्षुपालकों की आर्थिक स्थिति व प्षुधन की उत्पादन क्षमता कम व कमजोर होने से अधिक मंहगा प्षु-आहार देना भी सम्भव नहीं रहता।
अकाल के समय में पौष्टिक आहार के अभाव के कारण, अपेक्षाकृत प्षु का स्वास्थ्य व षारीरिक कमजोरी रोग-निराधन क्षमता अच्छी नहीं होती है। अतः अकाल में प्षुओं की देखभाल की आवष्यकता और बढ़ जाती है।
अकाल में जब विपरीत परिस्थितियां रहती है, उस समय वन-सम्पदा का सूखा चारा, पुवाल, भूसा, बाजरा, करवी व अन्य कुछ घास इत्यादि चारा डिपो में भी अन्य जगहों जहां भी उपलब्ध होते है, अपेक्षाकृत अन्य पौष्टिक चारे से कम कीमत पर मिल सकते है। ये चारे पौष्टिकता की दृष्टि से नही ंके बराबर है, यानि बहुत ही निम्न स्तर के चारे है, जो प्षु के षारीरिक संरक्षण, बढोतरी व उत्पादन की आवष्यकताओं की पूर्ति नहीं करते है, परन्तु अकाल के समय में कुछ हद तक प्ष्ुओं को उनके षारीरिक विकास, दूध उत्पादन तथा षरीर को अच्छी तरह बनाये रखने के लिए सभी आवष्यकता तत्व जैसे प्रोटीन, उर्जा (कार्बोहाइट्रेट एवं वसा) खनिज लवण एवं विटामिन आदि उचित मात्रा व सही अनुपात में उपलब्ध कराने का प्रयत्न भी करना चाहिए। अतः अकाल के समय निम्न श्रेणी के उपलब्ध कम कीमत पर मिलने वाले चारे की कुछ तकनीकी तौर-तरीके अपना कर अधिक पौष्टिक, सन्तुलित व रूचिकारक बनाकर, प्षुओं को आवष्यकता की पूर्ति में सहयोग दिया जा सकता है, जिसके लिए कुछ विधियां विकसित की गई हैं, वे निम्नलिखित हैंः-
(अ) भौतिक विधि :-
चौपिंग (चारे की कुतर करना) इसमें चारे को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। जिसमें चारा ग्रहण करने की क्षमता और उसकी पचनीयता बढ़ जाती है। इसमें भूस को खली के साथ पानी में फुला देते है। इससे उर्जा बढ़ जाती है तथा भूसे में उपस्थित आक्जेलेट (एक प्रकार का हानिकारक पदार्थ) का असर कम हो जाता है।
इस विधि के अन्तर्गत चारे को बारीक पीसने के बाद दाने के साथ सानी बनाकर ठीक अनुपात में मिलाकर, मषीन द्वारा टिकिया बनाई जाती हैं जिसे बाद में धूप में रख लिया जाता है। टिकिया के उपयोग से उर्जा, चारा ग्रहण करने की क्षमता और पौषक तत्वों की उपयोगिता बढ़ जाती है। सभी तत्व एक ही समय उपलब्ध हो जाते है। इस विधि में कम मेहनत व टिकिया के रख-रखाव में आसानी रहती है।
(ब) रासायनिक विधि :-
इस विधि में तरह-तरह के रसायानों से चारे का उपचार किया जाता है जैसे :-
1. सोडियम हाइड्राक्साइड (कास्टिक सोडा) से उपचार।
2. अमोनिया से उपचार।
3. यूरिया से उपचार।
4. यूरिया तथा षीरे से उपचार।
उपरोक्त विधियों में यूरिया तथा षीरे से उपचार की विधि सबसे सरल व सस्ती है। अतः इसकी संक्षिप्त विधि निम्न प्रकार है।
1. यूरिया सस्ता व सरलता से उपलब्ध हो जाता है। यूरिया जुगाली करने वाले पषुओं की प्रोटिन की आवष्यकता को कुछ हद तक पूरा करता है।
2. गन्ने से षक्कर बनाने के समय एक उप-उत्पादन के रूप् में षीरा काफी मात्रा में मिल जाता हैं। षीरे को पषु-आहार में उपयोग कर, अधिक उर्जा प्राप्त हो सकती है। एवं आहार का स्वाद भी अच्छा हो जाता है।
आवष्यकता :- 90किलो भूसा (सूखा चारा) 10 किलो षीरा (रताब), 1 किलो यूरिया, 500 ग्राम खनिज मिश्रण, 500 ग्राम साधारण नमक, 50 ग्राम विटामिन मिश्रण।
विधि :- एक बाल्टी में 10 लीटर पानी लेकर उसमें 1 किलो यूरिया को घोल लें। इसमें 10 किलो षीरा मिलाकर अछी तरह मिलायें और इसी घोल में 500ग्राम नमक, 500 ग्राम खनिज मिश्रण तथा करीब 50 ग्राम विटामिन ‘ए’ भी मिला लेवें।
इस घोल का 90किलो तूडी को फर्ष पर फैला कर उस पर अच्छी तरह छिडकाव करें तथा अच्छी तरह मिला लें। इस प्रकार उपचारित सूखा चारा सुबह षाम खिलाने से प्षुओं के पेट में यूरिया की निर्धारित मात्रा धीरे-धीरे नियमित रूप् से पहुंचती है, जिससे किसी प्रकार की हानि की सम्भावना नहीं रहती। षुरूआत में प्षुओं को थोडा-थोडा उपचारित चारा खिलाकर आदत डालें व धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाते रहें। यूरिया घोल को आवष्यकतानुसार सूखे चारे में मिलाकर रोजाना खिलाया जाता है। ताजा पानी हर समय प्षुओं को भरपूर मिलना चाहि।
कभी-कभी जब षीरा मिलाने में कठिनाई हो या उपलब्ध न हो तो ऐसी परिस्थितियों में भूसा, पुवाल, बाजरा व ज्वार की कुतर को केवल यूरिया द्वारा ही उपचारित करके प्षुओं को खिलाया जा सकता है। इसकी विधि निम्न प्रकार है।
1. 4 (चार) किलो यूरिया को लगभग 65 किलो पानी में अच्छी तरह घोलें।
2. यूरिया घोल को सौ किलो सूखे चारे पर छिडक कर मिला लें।
3. यूरिया घोल के छिडकाव के प्ष्चात घोल पड़े हुए चारे का एक ढेर बनाकर पॉलीथीन की चादर से अच्छी तरह ढक कर चारों तरफ से दबा दें, ताकि हवा न लगें।
4. एक महीने के बाद यूरिया उपचारित चारा प्षु को खिलाने के पहले करीब एक घंटे खुली हवा में रखें।
क्ृप्या ध्यान रखें कि अधिक मात्रा में यूरिया मिलाने से जहर-बाद हो जाता है। जिससे मुंह से अत्याधिक लार गिरती है। सांस लेने में परेषानी होतीहै। मांसपेषियां अकड़ जाती है एवं अंततः रक्त टिटेनी से प्षु की मोत हो सकती है। अतः यूरिया की मात्रा एवं उपचारित चारे की खिलाई गई मात्रा का पूर्ण ध्यान रखा जावे। ऐसी अवस्था में छोटे प्ष्ुओं को आधा लीटर और बड़े प्षुओं को चार लीटर सिरका, नाल द्वारा खिलावें तथा पेट से गैस निकालने का प्रयास करें चार माह से कम उम्र प्षुओं को यूरिया मिश्रण या इससे उपचारित आहार न दें।
सूखे में जहरीले चारे से अपने पषु बचायें
स्ूखे की स्थिति में चरी तथा घासों की बढ़वार रूक जाती है और चरी के पौधों में जहर पैदा हो जाता है जिसे खाने में प्षु बीमार हो जाते है तथा तुरन्त मर जाते है।
लक्षण :- प्षु लड़खड़ाने लगता है, दांत किटकिटाता है, घुमरी या चक्कर खाकर गिर पड़ता है तथा बार-बार चौंकता है। प्षु की अनजाने में गोबर तथा पेषाब निकल जाती है और थोड़ी देर में छटपटाकर मर जाता है।
बचाव के तरीके :-
1) चरी को काटकर ध्ूप में कम से कम दो दिन उलट-पुलट कर सुखा लिया जाएं। इससे जहर कम हो जायेगा।
2) खेत में बची हुई चरी को टुकड़ों में काट कर जमीन में गाडकर रखें जिससे जहर कम हो जायेगा और जरूरत के समय दो तीन माह बाद इसे प्रयोग में लायें। इसमें गुड अथवा षीरा षामिल करने से प्षु चाव से खाते है।
3) चरी को पकने की स्थिति में काटना अधिक हितकर होगा क्योंकि उस स्थित में पतियों तथा तने में जहर की मात्रा कम हो जाती है।
च्ूंकि जहर का असर जल्द होता है और सब लक्षण थोडे समय में ही प्रकट हो जाते है और प्षु कुछ घन्टों में ही मर जाता है अतः तत्काल सहायता हेतू निम्नलिखित इलाज करें
ईलाज :- पांच तोला हाइपो, जो फोटोग्राफर इस्तेमाल करते हैं (सोडियम थायोसल्फेट) दो दस छटांक पानी में घोलकर तुरन्त प्षु को पिलाने से लाभ होता है। बकरी तथा भेड़ों के लिए इसकी मात्रा डेढ़ तोला ही होनी चाहिए।
कभी-कभी सूखे की स्थिति में प्षु लेन्टाना नामक झाडियों को भी चरना षुरू कर देते है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसे ‘कुरी’ तथा मैदानी क्षेत्रों में ‘धनेरी’ कहते है। यह बहुत जहरीला पौधा है। इस पौधे को खाकर प्षुओं की खाल जगह-जगह उधडने लगती है और वह चौबीस से अड़तालिस घन्टें के भीतर मर जाते है। जब भी प्ष्ुओं में ऐसे लक्षण दिखाई पड़े, उन्हें छायेदार स्थान में रखा जाए एवं तुरन्त निकट के प्षु चिकित्सक को सूचना दी जाए।
अन्य सूचनायें :- सूखे में चारे की कमी से प्षु कमजोर हो जाते है और उन्हें बीमारी आसानी से घेर लेती है। अपने निकटवर्ती प्षु-धन विकास अधिकारी /सहायक से महामारियों से बचाव के लिए टीका लगवा लें।
प्षुपालन विभाग से उपलब्ध अन्य सुविधायें :
1. बीमारी की रोकथाम के टीके की व्यवस्था।
2. बीमार प्षुओं के इलाज तथा बधियाकरण की सुविधा।
3. प्रजनन सुविधा।
4. उन्नतिषील हरे चारे के बीज का प्रबन्ध।
5. मुर्गी के चूजों का वितरण व उनके रोंगों की रोकथाम।
6. भेड वबकरी तथा षूकर के प्रजनन तथा इलाज की व्यवस्था।
7. ब्ीज तथा प्षुपालन से संबंधित अन्य जानकारी के लिए अपने क्षेत्र के प्षु चिकित्सा अधिकारी या प्षुधन प्रसार अधिकारी का सहयोग लीजिए।

READ MORE :  Advisories and Standard Operating Procedure (SOP) for African Swine Fever (ASF)

https://www.pashudhanpraharee.com/%E0%A4%AA%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%93%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%89%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%86%E0%A4%B9/

https://hi.vikaspedia.in/agriculture/animal-husbandry/92e93992494d93592a94293094d923-91c93e92891593e930940/92a93694192a93e932928-93892e94d92c92894d927940-92e93992494d93592a94293094d923-91c93e92891593e930940

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON