पशुओं में होने वाला अफारा रोग का कारण एवं उपचार

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पशुओं में होने वाला अफारा रोग का कारण एवं उपचार

 

अफरा रोग क्या है

अफरा रोग पशुओं में होने वाला एक बहुत ही खतरनाक रोग है। इस रोग के हो जाने पर पशुओं का समय पर इलाज न होने के कारण पशु की मौत तक हो जाती है। यह रोग पशुओं में अधिक गीला हरा चारा खाने से उनके पेट में दूषित गैसें – कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, हाइड्रोजन-सल्फाइड, नाइट्रोजन तथा अमोनिया आदि एकत्रित होकर, उनका पेट फुला देती हैं, जिसके कारण पशु अधिक बेचैन हो उठता है। इस रोग को अफरा या अफारा कहते हैं।

अफरा या अफारा रोग का कारण । Etiology or Cause 

अफरा रोग के निम्न कारण है –

  • दूषित आहार खा लेना।
  • अधिक कार्बोहाइड्रेट युक्त पदार्थों का सेवन कर लेना।
  • खाने में अचानक परिवर्तन करना।
  • ज्यादा मात्रा में गीलाहरा चारा खा लेना।
  • कार्य के बाद एकदम ठंडा पानी पी लेना।
  • गले में रुकावट।
  • पेट की मांसपेशियों की खिंचाव शक्ति कम हो जाना।
  • चाराभूसे के साथ जहरीले कीड़े-मकौड़े खा लेना।
  • हरे चारेको खेत से काटकर सीधे पशुओं को खिलाना।
  • दूषित पानी पी लेने के कारण।

आदि कारणों से अफरा या अफारा रोग हो जाता है।

अफरा रोग के प्रमुख लक्षण अथवा अफरा रोग के होने पर पशुओं में दिखने वाले प्रमुख लक्षण

पशुओं में अफरा रोग हो जाने पर निम्न लक्षण दिखाई देते हैं –

  • अफरा रोगका मुख्य लक्षण रूमेन में गैसें भरकर, उसका फुल जाना है।
  • बहुधा बायीं ओर की कोख खूब फूली हुई सी प्रतीत होती है। इसे अंगुलियों से मारने पर ढोल जैसी डमडम की आवाज सुनाई देती है।
  • पशुको श्वास लेने में कष्ट होता है।
  • पशुबेचैन रहता है।
  • पशुखाना-पीना तथा जुगाली करना बिल्कुल ही बंद कर देता है।
  • पशुकी आंखें तथा शिराएं उभरी हुई सी प्रतीत होती हैं तथा पशु का चेहरा बहुत ही दयनीय सा हो जाता है।
  • पशुके मुंह से लार गिरती है तथा जीभ बाहर निकल आती है।
  • पशुबार-बार उठता-बैठता है।
  • पशुकी श्वास मुंह से चलने लगती है।
  • पशु का गोबरतथा पेशाब निकलना भी बंद हो जाता है।
  • अन्त मेंरोगी पशु एक करवट लेटकर गहरी और लंबी सांसे लेता है और यदि पशु का तुरंत इलाज न हो पाए तो पशु मर जाता है।
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अफरा रोग का इलाज ।

अफरा रोग का घरेलू इलाज । पशुओं के पेट में अफारा का इलाज 

पशु के खाने का इतिहास तथा मुख्य लक्षण देखकर ही रोग का निदान किया जाता है।

तीव्र अवस्था में पशु आधा से लेकर तीन घंटे में ही मर जाता है और चिकित्सा का समय ही नहीं मिल पाता। कुछ तीव्र अवस्था ( sub-acute ) में पशु को तेल पिलाना काफी लाभदायक होता है। पेट की बायीं कोख पर दबाव डालकर खूब मालिश करनी चाहिए। रुमेन में खाद्य पदार्थों का किण्वन रोकने के लिए निम्नलिखित नुस्खा दिया जा सकता है –

टिंचर हींग – 15 मिलीलीटर

स्प्रिट अमोनिया एरोमैटिक्स – 15 मिलीलीटर

तेल तारपीन – 40 मिलीलीटर

तेल अलसी – 500 मिलीलीटर

इन सबको मिलाकर एक खुराक बनाकर प्रौढ पशु को पिला देना चाहिए।

पशु के रूमेन से हवा बाहर निकालने के लिए या तो उसकी जीभ बार-बार मुंह से बाहर खींचनी चाहिए अथवा मुंह में बेड़ी लकड़ी अथवा मुख खोलनी ( mouth gag ) डालनी चाहिए। ऐसा करने से पशु को सांस लेने में कुछ आराम मिलता है। फेफड़ों पर से दबाव हटाने के लिए पशु को ऐसे स्थान पर बांधना चाहिए, जहां उसका अगला धड़ ऊंचाई पर हो।

बीमारी का वेग अधिक होने पर बायीं कोख के बीचों-बीच ट्रोकार और कैनुला से छिद्र करके उसमें की हवा बाहर निकाली जा सकती है। ऐसा करने से पशु को अचानक आराम मिलता है। किण्वन रोकने वाली औषधियां जैसे – तेल तारपीन, लिकर फार्मलीन आदि कैनुला के छिद्र से ही रूमेन में डाल देनी चाहिए, जिससे कि वे गैस बनना रोक दें। इसके अतिरिक्त, पेट में आमाशय नली ( stomach tube ) डालकर भी रूमेन से गैसें निकाली जा सकती हैं।

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यदि ट्रोकार एवं कैनुला डालने से भी पशु को आराम न होकर मृत्यु हो जाने का भय हो, तो ऐसी अवस्था में उसे बचाने के लिए बायीं कोख पर 10-15 सेंटीमीटर का जीवाणु रहित चाकू से चीरा लगाकर अंदर की गैस निकालकर टांका लगाकर घाव बंद करके 3-4 दिन तक ऐंटीबायोटिक औषधि देनी चाहिए।

अल्कली एण्ड केमिकल कार्पोरेशन ऑफ इंडिया ( A. C. I. ) द्वारा निर्मित ‘ एव्लीनाॅक्स द्रव ‘ ( avlinox liquid ) इस रोग की चिकित्सा में अति उत्तम सिद्ध हुआ है। एक औसत भार के पशु को इस दवा का 8-10 घन सेंटीग्रेड 100-120 मिलीलीटर पानी में मिलाकर पिलाना चाहिए। बीमारी के ऊग्र अवस्था में कैनुला के छिद्र से इसकी कुछ बूंदें कोख के अंदर डालने से शीघ्र लाभ होता है।

साथ में सुबह-शाम 30 से 45 ग्राम की मात्रा में हिमालियन बत्तीसा, डाइजेस्टोन, टिमप्लेक्स अथवा कोई अन्य पाचक चूर्ण खिलाने से पुनः इसका प्रकोप नहीं हो पाता। आजकल रूमेनटॉन तथा ऐनोरेक्सान गोलियों का भी इस रोग की चिकित्सा में उपयोग होने लगा है। प्रौढ पशु को एक खुराक में ऐसी दो गोलियां खिलानी चाहिए। बोखार्ट द्वारा निर्मित ब्लाटीसोल भी इस बीमारी की उपयोगी दवा है। एविल ऐट्रोपीन सल्फेट का इंजेक्शन देना भी लाभदायक होता है। ‘ टिम्पोल चूर्ण ‘ तथा ‘ टिप्पगो घोल  इस रोग की देशी दवा है।

 

पशुओं में होने वाले अफरा रोग से मिलते-जुलते कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1. अफरा रोग होने पर पशु क्या-क्या करना बंद कर देता है?

उत्तर – अफरा रोग होने पर पशु खाना-पीना और जुगाली करना बंद कर देता है।

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प्रश्न 2. अफरा रोग का होम्योपैथिक इलाज क्या है?

उत्तर – चायना तथा कॉल्चिकम अफारा रोग की होम्योपैथिक दवाएं ( 200 पोटेंसी ) हैं।

 

प्रश्न 3. अफारा रोग का मुख्य लक्षण क्या है?

उत्तर – अफरा रोग का मुख्य लक्षण रूमेन में गैसें भरकर, पशु का पेट फूल जाता है।

 

प्रश्न 4. अफारा रोग की देशी दवाई कौन सी है?

उत्तर – ” टिम्पोल चूर्ण ” तथा ” टिप्पगो घोल  अफारा रोग की देशी दवाई है।

 

प्रश्न 5. पशुओं में अफारा रोग होने पर पशुओं को कौन सी अफारानाशक औषधियां देनी चाहिए?

उत्तर – पशुओं में अफारा रोग होने पर पशुओं को निम्न अफारानाशक औषधियां देनी चाहिए :-

 

  • GARLILL

 

  • AFRON एफ्रोन

 

  • TYMPLAX टाइम्पलेक्स

 

  • TIMPOL टीम्पोल

————-डॉ जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी, कानपुर देहात ,उत्तर प्रदेश

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