CLASSIFICATION OF FODDER & IMPORTANCE OF NUTRIENT IN FODDER
चारे की फसलों का वर्गीकरण एवं पोषक तत्वों का महत्व लिखिए
चारे की फसलों का वर्गीकरण कीजिए
हमारे देश में पशुओं के लिए विभिन्न मौसम में अलग-अलग तरह के चारे उगाए जाते हैं जिनका वर्गीकरण उनके वानस्पतिक गुण, पोषक तत्व की मात्रा, मौसम व चारे के प्रकार के आधार पर किया गया है।
- बोआई के समय के आधार पर चारे का वर्गीकरण
हमारे देश में तीन तरह के मौसम होते हैं, उनके आधार पर इनका वर्गीकरण निम्न है –
क. खरीफ मौसम के चारे
इन चारों की बुवाई खेतों में जून से अगस्त महीने में की जाती है। इन चारों में मक्का, ज्वार, बाजरा, नैपियर घास, गिनी घास, पैराघास, लोबिया, सूडान घास, ग्वार, दीनानाथ घास आदि फलीदार चारे व घासें हैं।
ख. रबी ऋतु के चारे
इन चारों की बुवाई का समय सितंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर दिसंबर तक होता है। इन चारों में बरसीम, रिजका, चारे की सरसों, जई, शलजम, गाजर, सफेद क्लोवर, लैडाइनो क्लोवर, लाल क्लोवर, अल्साइक क्लोवर, राई घास, खेसारी व मटर आदि फसल आती हैं।
ग. गर्मी या वसंत ( जायद ) मौसम के चारे
इनकी बुवाई का समय फरवरी-मार्च से लेकर अप्रैल तक होता है। इनमें सूडान घास, मक्का, मकचरी, बाजरा, लोबिया, नेपियर घास, गिनी घास आदि आती है।
- वानस्पतिक गुणों के आधार पर चारे का वर्गीकरण
वानस्पतिक गुणों के आधार पर निम्न प्रकार से चारे की फसलों का वर्गीकरण किया जाता है।
क. दलहनी चारे की फसलें
इसको पुनः सूखे चारे व हरे चारे में विभाजित करते हैं –
( i ) सूखे चारे – इन चारों में चना, मटर, अरहर, मूंग, उर्द, दलहनी सूखी घासें आदि आती है।
( ii ) हरे चारे – इन चारों में बरसीम, लूसर्न, मटर, मैथी, सैंजी, ग्वार, लोबिया आदि हरे चारे आते हैं।
ख. अदलहनी चारे की फसलें
इसको भी पुनः दो भागों में बांटते हैं –
( i ) सूखे चारे – इसमें गेहूं, जौ, जई, ज्वार, बाजरा, मक्का तथा सूखी घासें आदि आते हैं।
( ii ) हरे चारे – इसमें ज्वार, मक्का, बाजरा, मचकरी, नैपियर, दूब, साईलेज, शलजम, सूडान घास तथा पारा घास आदि आते हैं।
- पोषक तत्वों के आधार पर चारे की फसल का वर्गीकरण
इस वर्ग में आमतौर से प्रोटीन और ऊर्जा की मात्रा के आधार पर चारे का वर्गीकरण किया जाता है।
क. प्रोटीनयुक्त चारे
जिन चारे की फसलों में प्रोटीन की मात्रा 9% या इससे अधिक होती है, उन फसलों को इस वर्ग में सम्मिलित किया जाता है। इस वर्ग में प्राय: फलीदार फसलें सम्मिलित की जाती हैं। जैसे – बरसीम, रिजका, मैथी, सैंजी, क्लोवर समूह के चारे, लोबिया, ग्वार इत्यादि पाए जाते हैं।
ख. ऊर्जा प्रदान करने वाले चारे
जिन फसलों में प्रोटीन की मात्रा कम व ऊर्जा की मात्रा अधिक होती है, उन फसलों को इसके अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है। जैसे – मक्का, ज्वार, बाजरा, जई, दीनानाथ घास, नैपियर घास तथा पारा घास आदि में कार्बोहाइड्रेट की बहुलता होती है।
चारे की सुलभता के आधार पर वर्गीकरण
इस वर्ग को पुनः पांच भागों में बांटा गया है।
क. कृषि उपयोग के चारे
इस वर्ग में वे चारे आते हैं जिन्हें आम फसलों की तरह ही उगाया जाता है, जिसमें मुख्य रुप से बरसीम, रिजका, जई, मक्का, लोबिया, ज्वार, बाजरा तथा अन्य कृष्य घासें मुख्य हैं।
ख. प्राकृतिक चारे
इस वर्ग में आने वाली चारे की फसलों को चारागाह में उगाते हैं और पशुओं को चारा प्रदान करते हैं। जैसे – दूब घास, मौथा, जई घास व अन्य घासों को इस वर्ग में सम्मिलित किया गया है।
स. चारा प्रदान करने वाली झाड़ियां एवं वृक्ष
इस वर्ग में उन सभी झाड़ियों व वृक्षों को सम्मिलित किया जाता है, जिनकी पत्तियां मुलायम व तने पतले होते हैं। इन्हें काटकर पशुओं को चारे के रूप में खिलाया जाता है।
द. चारा प्रदान करने वाली दाने की फसलों के अवशेष
इसमें मुख्य फसलों के सभी अवशेष सम्मिलित किए जाते हैं, जिनमें मुख्यत: गेहूं, जौ आदि का भूसा, धान की पुआल, ज्वार, बाजरा, मक्का की कंडवी आदि सम्मिलित की जाती हैं।
य. सब्जियों के पत्ते तथा जड़े
सब्जी वाली फसलों की पत्तियों व जड़ों को चारे के रूप में पशुओं को खिलाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसमें फूलगोभी, बन्दगोभी के पत्ते, मूली के पत्ते और जड़े, गाजर की पत्ती एवं जड़े, आलू की पत्तियां आदि सम्मिलित की जाती है।
चारे की फसलों में पोषक तत्वों का महत्व
चारे की फसलों में पोषक तत्वों का महत्व अथवा कार्य निम्नलिखित हैं –
- नाइट्रोजन
नाइट्रोजन से चारे में अमीनो अम्ल, प्रोटीन एल्केलाइड व प्रोटोप्लाज्म का निर्माण होता है, प्रोटीन की गुणवत्ता बढ़ती है एवं क्रूड प्रोटीन की मात्रा में भी वृद्धि होती है। पौधों के तने व पत्तियों में सरसता, स्वादिष्टता बढ़ती है, फलस्वरुप चारे की पाचनशीलता में भी वृद्धि होती है।
दानों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है एवं दाने सुडौल तथा गूदेदार बनते हैं, फलस्वरूप पशुओं के शरीर में वृद्धि होती है। नाइट्रोजन से पौधों में फास्फोरस व पोटैशियम का उपयोग सन्तुलित होता है। दलहनी चारों व दाने में अधिक मात्रा में व अदलहनी चारों व दानों में तुलनात्मक कम मात्रा में पाया जाता है।
- फॉस्फोरस
पौधों द्वारा संतुलित मात्रा में फास्फोरस ग्रहण करने पर जड़ एवं वानस्पतिक वृद्धि शीघ्र होती है, पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, वसा व एल्ब्यूमीन अच्छी प्रकार से बनते हैं। पौधों का स्टार्च आसानी से शर्करा में बदल जाता है, जिससे स्वस्थ एवं अधिक भार वाले बीज पैदा होते हैं, अन्य तत्वों के चूषण ( assimilation ) में वृद्धि होती है।
चारे की गुणवत्ता बढ़ती है, दलहनी फसलों में राइजोबियम की संख्या बढ़ाकर, प्रोटीन बढ़ाने में सहायक है। अधिक नाइट्रोजन के विषैले प्रभाव को दूर करता है। चारे का पाचन ( palatable ) गुण बढ़ता है। दलहनी चारों व दानों में अधिक, अदलहनी चारों व दानों में तुलनात्मक कम भूसी, तेलीय उपजात में फास्फोरस पाया जाता है। जड़ों में इसकी मात्रा कम होती है।
- पोटैशियम
पोटैशियम पौधों में शर्करा एवं स्टार्च बनाने में सहायक होता है एवं इनका पौधों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण करता है। पौधों में कार्बनिक अम्लों को उदासीन करता है एवं स्टोमेटा क्रिया में भाग लेता है। चारे की गुणवत्ता एवं स्वाद बढ़ाकर पाचनशीलता को बढ़ाता है। इससे चारे में रोग एवं कीट के प्रति रोधकता बढ़ती है।
पौधे के अन्दर पोषक तत्वों एवं कार्बोहाइड्रेट आदि के वहन में सहायक है, दाने अधिक संख्या में एवं सुडौल बनते हैं, कार्बोहाइड्रेट की मात्रा चारे में बढ़ती है, प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को बढ़ाता है। नाइट्रोजन के विषैले प्रभाव को कम करता है एवं प्रोटीन के निर्माण में सहायक होता है। फलस्वरूप चारे की अधिक उपज प्राप्त होती है। भूसा, सूखी घास, कड़वी में पर्याप्त मात्रा में मिलता है। अनाजों में कम मात्रा में पाया जाता है।
- कैल्शियम
कैल्शियम चारे की फसलों में जड़ों की शीघ्रता से वृद्धि करता है। दलहनी फसलों में राइजोबियम जीवाणु की संख्या बढ़ाकर प्रोटीन वृद्धि में सहायक है, पौधों में कार्बोहाइड्रेट के संचालन में सहायक है, चयापचय की क्रियाओं में कार्बनिक अम्ल जैसे – ऑक्जैलिक अम्ल के प्रभाव को घटाता है, पौधों को स्वस्थ एवं सख्त बनाता है। दलहनी चारों में पर्याप्त खली, गेहूं की भूसी में मध्यम व गेहूं, जौ, जई के भूसे एवं मक्का में बहुत कम मात्रा में मिलता है।
- मैग्नीशियम
चारे की फसलों में पौधों के अंदर पोषक तत्वों के वहन व भूमि से पोषक तत्वों के अवशोषण में सहायक होता है। वसा एवं तेल की मात्रा बढ़ाता है। एन्जाइमिक क्रियाओं को सुचारु रुप से चलाता है, यह पर्णहरिम की रचना में आवश्यक होता है। इस प्रकार यह चारे की गुणवत्ता एवं उपज में वृद्धि करता है। मक्का, जौ, जई के हरे चारे एवं दलहनी सूखी घासों में पर्याप्त मात्रा में होता है। भूसा कड़वी एवं जड़ों में इसकी कम मात्रा पाई जाती है।
- गंधक
यह पौधों में मूल विकास, जड़ों में ग्रंथियों के विकास व पर्णहरिम की रचना में वृद्धि करता है। यह पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। गन्धयुक्त एमीनो अम्ल जैसे – आयोटीन व थायमीन के निर्माण में सहायक है। ये एमीनो अम्ल, पौधे की वृद्धि को नियंत्रित करते हैं। अधिकतर फसलों में वसा, तेल एवं सुगंधित तेलों के निर्माण में सहायक है। इस प्रकार यह चारे की गुणवत्ता व उपज में वृद्धि करता है। यह दलहन चारों एवं दानों में अधिक मात्रा में पाया जाता है।
- लोहा
यह पौधों में पर्णहरिम की रचना, प्रोटीन निर्माण एवं चयापचय की क्रियाओं के लिए आवश्यक होता है। यह कोशिकाओं के अंदर ऑक्सीकरण ( oxidation ) एवं अवकरण ( reduction ) में उत्प्रेरक का कार्य करता है। कोशिकाओं की श्वसन क्रिया में ऑक्सीकरण के वहन में सहायक होता है एवं कोशिका विभाजन में सहायता कर चारे की उपज को बढ़ाता है।
- ताँबा
ताँबा पौधे की वृद्धि व विकास की अनेक क्रियाओं को उत्तेजित करता है। यह पौधे में विटामिन ए के निर्माण एवं वृद्धि एवं वृद्धिकारक हार्मोन इण्डोल एसिटिक एसिड के संश्लेषण में सहायक होता है। पौधों में आवश्यक लोहे के उपयोग को बढ़ाता है एवं श्वसन प्रक्रिया को प्रभावित करता है। इसके द्वारा अधिक मात्रा में अच्छी गुणवत्ता का चारा प्राप्त होता है। तिलहनी चारों दानों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। गाजर आदि में यह काफी मात्रा में पाया जाता है।
- जस्ता
जस्ता पौधों में ऑक्सीकरण में सहायक होता है, यह पौधों में प्रकाश-संश्लेषण व नाइट्रोजन चयापचय में भाग लेता है। विभिन्न एन्जाइम्स जैसे – लेसीथीनेज, सिस्टीन, डाइसल्फाइडेज एवं एक्जेलो-एसिटिक डीकार्बोक्सीलेज आदि की क्रियाशीलता को बढ़ाता है। प्रोटीन एवं कैरोटीन ( विटामिन ए ) के संश्लेषण में सहायक है। यह विभिन्न एन्जाइम्स जैसे – पेप्टीडेज, एल्कोहल डीहाइड्रोजीनेज एवं कार्बोनिक एनहाइड्रेज आदि की संरचना का तत्व है। यह भूमि से पौधों को पानी ग्रहण करने की क्षमता को बढ़ाता है।
- मैंगनीज
मैंगनीज पौधों की विभिन्न वृद्धि क्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य करता है। कार्बोहाइड्रेट के निर्माण के स्वांगीकरण में सहायक होता है।
- क्लोरीन
क्लोरीन के मुख्य कार्य पौधों में पर्णहरिम की रचना, एन्जाइम की क्रिया को उत्प्रेरित करना व रसाकर्षण दाब को बढ़ाना, इसके मुख्य कार्य है। यह कार्बोहाइड्रेट की चयापचय क्रिया को प्रभावित करता है एवं पत्तियों में पानी रोकने की क्षमता को बढ़ाता है। दलहनी एवं अदलहनी सभी प्रकार के चारों में इसकी मात्रा कम पाई जाती है। अतः पशु आहार में इसकी पूर्ति सादा नमक मिलाकर करते हैं।
- बोरोन
बोरोन पौधों में कैल्शियम, मैग्नीशियम के अवशोषण, उपयोग एवं नियंत्रण में सहायक है। कोशिका विभाजन, कार्टेक्स के विकास एवं प्रोटीन संश्लेषण में सहायक है। यह पानी शोषण की क्रिया को नियंत्रित करता है। पेक्टिन, ATP, DNA एवं RNA के संश्लेषण में सहायक है। इस प्रकार परागण, प्रजनन क्रियाओं एवं पौधों में फल बीज बनाने में सहायक है। दलहनी फसलों की जड़ों में राइजोबियम जीवाणु की वृद्धि करता है। यह दलहनी चारों में पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
- मोलिब्डिनम
यह दलहनी फसलों के राइजोबियम जीवाणुओं की वृद्धि करने में सहायक है। पौधों में विटामिन सी, फास्फोरस चयापचय व कार्बोहाइड्रेट के संश्लेषण में आवश्यक है। विभिन्न एन्जाइम्स जैसे – नाइट्रेट रिडक्टेज व जैन्थीन ऑक्सीडेज आदि का महत्वपूर्ण अंग है एवं इसकी सक्रियता बढ़ाता है। यह दलहनी चारों में पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
विभिन्न प्रकार के पशु चारों में खनिज लवणों की प्रतिशत मात्रा
- गेहूं, जौ व जई का भूसा – 6.0 – 6.5 प्रतिशत
- धान का पुआल – 14.0 प्रतिशत
- हरे चारे, मक्का, ज्वार, बाजरा, लूसर्न, बरसीम, साइलेज आदि – 1.20 2.5 प्रतिशत
- दाना – मक्का, जई, जौ, बिनौला, ग्वार, मटर, चना – 1.5 – 4.5 प्रतिशत
- अनाज उपजात – जई, जौ, गेहूं – 4.5 – 5.5 प्रतिशत
चारे की फसलों से मिलते-जुलते कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1. रसीले चारों में कितने प्रतिशत पानी की मात्रा पाई जाती है?
उत्तर – रसीले चारों में 55 – 70 प्रतिशत पानी की मात्रा पाई जाती है।
प्रश्न 2. लोबिया की बुवाई हरे चारे के लिए कौन सी विधि द्वारा की जाती है?
उत्तर – लोबिया की बुवाई हरे चारे के लिए ज्यादातर छिड़काव विधि द्वारा की जाती है।
प्रश्न 3. चारा किसे कहते हैं?
उत्तर – विभिन्न प्रकार के पालतू पशुओं जैसे – गाय, बैल, भैंस, बकरी, घोड़ा आदि को खिलाई जाने वाली सभी चीजें, जिससे उनके शरीर के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्वों की पूर्ति होती है, चारा या पशुचारा कहलाता है।
प्रश्न 4. सन्तुलित आहार किसे कहते हैं?
उत्तर – वह आहार जिसमें सभी प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं एवं आहार साफ एवं स्वच्छ होता है, सन्तुलित आहार कहलाता है।
प्रश्न 5. बरसीम का वानस्पतिक नाम क्या है?
उत्तर – बरसीम का वानस्पतिक नाम :-
ट्राइफोलियम ऐलेक्जैंड्रिनम ( Trifolium alexandrinum L. )
पशुओं में होने वाला अफरा या अफारा रोग की पूरी जानकारी हिन्दी में
जुगाली करने वाले पशुओं में अधिक गीला हरा चारा खाने से उनके पेट में दूषित गैसें जैसे – कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, हाइड्रोजन-सल्फाइड, नाइट्रोजन तथा अमोनिया आदि एकत्रित होकर, उनका पेट फुला देती हैं, जिसके कारण पशु अधिक बेचैन हो उठता है। इस रोग को अफरा या अफारा कहते हैं।
रुमेन में हवा भरने से फेफड़ों पर अनावश्यक दबाव पड़ने के कारण पशु श्वास-प्रश्वास क्रिया में कष्ट का अनुभव करता है। यदि इसका शीघ्र इलाज नहीं हो पाता है तो पशु मर भी जाता है। साधारणतया रोग की दो अवस्थाऐं हैं – एक तो तीव्र ( acute ), जिसमें गैसें रूमेन में उपस्थित खाद्य पदार्थ में मिश्रित हो जाती हैं और दूसरी, कुछ तीव्र ( sub-acute ) जिसमें कि गैसें खाने में मिश्रित न होकर उसके ऊपरी तल पर ही इकट्ठी रहती हैं। रोग की तीव्र अवस्था अधिक भयानक मानी जाती है।
———–डॉ जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी, कानपुर देहात ,उत्तर प्रदेश