भारत में स्वच्छ एवं शुद्ध दूध उत्पादन: एक चुनौती

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भारत में स्वच्छ एवं शुद्ध दूध उत्पादन: एक चुनौती

सावधान,कहीं आपके घर में लाया जाने वाला दूध मिलावटी तो नहीं है…? कहीं आप मिलावटी दूध तो नहीं पी रहे ? अगर आप इस बारे में नहीं जानते, तो हो जाइए सावधान …!!!  क्योंकि आपके स्वास्थ्य पर मंडरा रहा है, मिलावटी दूध का खतरा…

अब तक आपने दूध में केवल पानी की मिलावट के बारे में सुना होगा। लेकिन हम आपको बता दें, कि दूध को सफेद और गाढ़ा बनाने के लिए, आजकल साबुन, डिटर्जेंट और बेहद हानिकारक केमिकल्स का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। सबसे बड़ी बात यह है, कि इस मिलावटी दूध और असली दूध में फर्क समझ पाना आपके लिए बेहद मुश्किल है, और इस तरह से बनाया जाने वाला नकली दूध, आपकी सेहत को बहुत बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। इससे बचने के लिए आपको नकली दूध को पहचानना बहुत जरूरी है।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है, कि इस मिलावटी दूध को आखिर कैसे पहचाना जाए …?  आपके सवाल का जवाब छिपा है, नीचे बताए जा रहे टिप्स में, जो मिलावटी दूध को पहचानने में आपकी मदद करेंगे।

टिप्स जो मिलावटी दूध को पहचानने में आपकी मदद करेंगे-

1  सबसे पहले दूध में पानी की मिलावट को परखने के लिए किसी लकड़ी या पत्थर पर दूध की एक या दो बूंद गिराइए। अगर दूध बहकर नीचे की तरफ गिरे और सफेद निशान बन जाए तो दूध पूरी तरह से शुद्ध है ।

2  दूध में डिटर्जेंट की मिलावट को पहचानने के लिए, दूध की कुछ मात्रा को एक कांच की शीशी में लेकर जोर से हिलाइए। अगर दूध में झाग निकलने लगे तो इस दूध में डिटरर्जेंट मिला हुआ है। अगर यह झाग देर तक बना रहे, तो दूध के नकली होने में कोई संशय नही है।

3  दूध को सूंघकर देखें। अगर दूध नकली है, तो उसमें साबुन की तरह गंध आएगी, और अगर दूध असली है, तो उसमें इस तरह की गंध नहीं आती।

4 दूध को दोनों हाथों में लेकर रगड़कर देखें। अगर दूध असली है, तो सामान्य तौर पर चिकनाहट महसूस नहीं होगी। लेकिन अगर दूध नकली है, तो इसे रगड़ने पर बिल्कुल वैसी ही चिकनाहट महसूस होगी, जैसी कि डिटर्जेंट को रगड़ने पर होती है।

5  दूध को देर तक रखने पर, असली दूध अपना रंग नहीं बदलता है। जबकि दूध अगर नकली है, तो वह कुछ समय बाद पीला पड़ने लगेगा।

6 असली दूध को उबालने पर उसका रंग बिल्कुल नहीं बदलेगा, लेकिन नकली दूध का रंग उबलने पर पीला हो जाएगा।

7 सिंथेटिक दूध में अगर यूरिया मिला हुआ है, तो वह गाढ़े पीले रंग का हो जाता है।

8 स्वाद के मामले में असली दूध हल्का-सा मीठा स्वाद लिए हुए होता है, जबकि नकली दूध का स्वाद डिटर्जेंट और सोडा मिला होने की वजह से कड़वा हो

जमशेदपुर शहर में दूध की खपत प्रतिदिन लगभग 550000 लीटर है जिसकी आपूर्ति लगभग 150000 लीटर दूध सुधा  से  तथा 25000 लीटर दूध झारखंड मिल्क फेडरेशन मेधा द्वारा सप्लाई होता है। लगभग 100000 लीटर दूध और कई ब्रांड के द्वारा आपूर्ति की जाती है शेष लगभग 275000 लीटर दूध जमशेदपुर तथा उसके आसपास स्थित विभिन्न खटालो ,गौशालाओं से आपूर्ति की जाती है।

इन खटालो ,गौशालाओं से जो दूध उपभोक्ताओं को मुहैया कराया जाता है उनके गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह हमेशा से बना रहता है। ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में कुछ एक गोपालक गलत हथकंडा अपनाते हैं तथा दूध का   मिलावट करना शुरू कर देते हैं। ऐसे में जरूरी है कि उपभोक्ताओं को विशेष ध्यान रखना होगा कि कहां से उन्हें स्वक्ष दूध प्राप्त हो सके।

मिलावटी दूध पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती कितनी कारगर?

जस्टिस केएस राधाकृष्णन और ए.के. सीकरी की बेंच ने कहा कि दूध में मिलावटखोरी रोकने के लिए मौजूदा कानूनी व्यवस्था नाकाफी है। बेंच इस मामले में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस दौरान उत्तर प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने अपना जवाब दाखिल किया। इसमें कहा कि उन्होंने पहले से ही ऐसे अपराधों के लिए उम्र कैद की सजा वाले कानून बना रखे हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि बाकी रायों को भी ऐसा करना चाहिए। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने देश में कृत्रिम और मिलावटी दूध के बड़े कारोबार का भंडाफोड़ किया था। प्राधिकरण ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में 68.4 फीसदी दूध मिलावटी बिकता है।

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दूध में मिलावट पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई है। कोर्ट ने कहा है कि जो कोई भी दूध में मिलावट करता है या उसका कारोबार करता है, उसे उम्र कैद की सजा होनी चाहिए। पर मौजूदा कानून में इतनी सख्त सजा का प्रावधान ही नहीं है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी है कि राय सरकारें कानून बदलें। दूध में मिलावट करने वालों को उम्र कैद की सजा का प्रावधान करे।

अभी मिलावट के मामलों में फूड सेफ्टी एंड स्टेंडर्ड एक्ट के तहत कार्रवाई होती है। इस कानून के तहत दोषी को अधिकतम छह माह की सजा हो सकती है। कोर्ट ने इस पर ऐतराज जताया है। जस्टिस केएस राधाकृष्णन और ए.के. सीकरी की बेंच ने कहा कि दूध में मिलावटखोरी रोकने के लिए मौजूदा कानूनी व्यवस्था नाकाफी है। बेंच इस मामले में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस दौरान उत्तर प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने अपना जवाब दाखिल किया। इसमें कहा कि उन्होंने पहले से ही ऐसे अपराधों के लिए उम्र कैद की सजा वाले कानून बना रखे हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि बाकी रायों को भी ऐसा करना चाहिए। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने देश में कृत्रिम और मिलावटी दूध के बड़े कारोबार का भंडाफोड़ किया था।

प्राधिकरण ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में 68.4 फीसदी दूध मिलावटी बिकता है।दूध हमारे जीवन का एक आवश्यक पेय पदार्थ है। दूध की महिमा अपरंपार है। दूध का मोल कभी चुकाया नहीं जा सकता, इस उक्ति के पीछे दूध में समाहित वे भाव हैं, जिससे माँ के माध्यम से शिशु तक पहुँचता है। जन्म के कुछ समय तक तो माँ का यही दूध उसके लिए अमृततुल्य होता है। लेकिन मिलावट की इस दुनिया में अब कुछ भी शुध्द नहीं है, यहाँ तक माँ का दूध भी। आज वह भी मिलावट का शिकार हो गया है। कुछ देशों में मिलावट के कानून इतने सख्त हैं कि वहाँ मिलावट नहीं होती, पर हमारे देश में अभी तक मिलावट के नाम पर किसी को कोई बड़ी सजा दी गई हो, ऐसा सुनने में नहीं आया।

दूध को दवा मानने वालों को कैसे समझाया जाए कि आज दवाओं में भी मिलावट जारी है और हमारे देश में सब चलता है, के कारण कुछ खास नहीं हो पाता। दूध एक संपूर्ण आहार ही नहीं, दवा भी है। विश्व में माता का दूध सर्वश्रेष्ठ साबित हो चुका है। दूध पीने से अनेक रोगों का नाश होता है।

दूध में पानी, खनिज तत्व, वसा, प्रोटीन, शर्करा आदि पदार्थो का समावेश होता है, जो शरीर के लिए अति आवश्यक है। किंतु आज मिलावटी दूध बाजार में उपलब्ध है। इसके सेवन से स्त्रियों को स्तन और गर्भाशय का केन्सर होने की संभावना बढ़ जाती है। छोटे बच्चों को यदि ये मिलावटी दूध नियमित रूप से दिया जाए, तो इसके सेवन से युवावस्था तक आते-आते ये अनेक रोगों के शिकार हो सकते हैं।

ये सारी बातें यदा-कदा अखबार या अन्य पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हमारे मस्तिष्क में बैठती है, किंतु इसके बाद भी आज की आधुनिक मम्मियाँ अपने फिगर मेन्टेन की चाहत में बच्चों को स्तनपान कराने से दूर रहती हैं। शारीरिक सौंदर्य की चिंता में लगभग 94 प्रतिशत माताएँ संतान को डिब्बाबंधा दूध देकर बीमारियों को आमंत्रित कर रही हैं।

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एक समय था, जब हमारे देश में दूध की नदियाँ बहती थीं। इसके विपरीत वह समय जल्द ही आने वाला है, जब हम अपनी सुबह की शुरुआत विदेशी दूध की चाय पीकर करेंगे, क्योंकि मल्टीनेशनल कंपनियाँ अपनी गुणवत्तायुक्त और एकदम नई पेकिंग के साथ दूध का व्यापार करने के लिए हमारे देश में प्रवेश कर चुकी हैं। दक्षिण भारत में इनका दूध का व्यापार शुरू हो चुका है।

विदेशी कंपनियाँ भी अपने लाभ की ओर धयान देते हुए पूरी तैयारी के साथ बाजार में कदम रख रही हैं। इस व्यापार के पीछे की हकीकत देखी जाए, तो मिलावटी दूध की बात सामने आती है। आज पेकिंग दूध में मिलावट की दृष्टि से ही चिकित्सक रोगी को इसे न पीने की सलाह देते हैं। दूध में पानी से लेकर जंतुनाशक, डी.डी.टी., सफेद रंग, हाइड्रोजन पैराक्साइड आदि मिलाकर सिन्थेटिक दूध बनाया जाता है। देश में प्रतिदिन लगभग 1 करोड़ लीटर से अधिक दूध की बिी होती है। किंतु मिलावटी दूध के कारण अब तो दूध को संपूर्ण आहार कहना भी गलत होगा।

आज मिलावटी दूध के सेवन से लोग अनेक रोगों का शिकार हो रहे हैं। माँ के दूध में 87.7 प्रतिशत पानी, 3.6 प्रतिशत वसा, 6.8 प्रतिशत शर्करा, 1.8 प्रतिशत प्रोटीन, 0.1 प्रतिशत खनिज तत्व होते हैं। भैंस के दूध में 84.2 प्रतिशत पानी, 6.6 प्रतिशत वसा, 5.2 प्रतिशत शर्करा, 3.9 प्रतिशत प्रोटीन और 0.8 प्रतिशत अन्य खनिज पदार्थ उपलब्ध होते हैं। गाय के दूध में 84.2 प्रतिशत पानी, 6.6 प्रतिशत वसा, 5.2 प्रतिशत शर्करा, 3.9 प्रतिशत प्रोटीन, 0.7 प्रतिशत खनिज तत्व होते हैं। बकरी के दूध में 86.5 प्रतिशत पानी, 4.5 प्रतिशत वसा, 4.7 प्रतिशत शर्करा, 3.5 प्रतिशत प्रोटीन, 0.8 र्प्रतिशत खनिज तत्व, भेड़ के दूध में 83.57 प्रतिशत पानी, 6.18 प्रतिशत वसा, 4.17 प्रतिशत शर्करा, 5.15 प्रतिशत प्रोटीन और 0.93 प्रतिशत खनिज तत्व होते हैं।

अतरू हम कह सकते हैं कि संसार में माता का दूध सर्वश्रेष्ठ है।   दूध एक उत्तम आहार होने के बाद भी आज केवल मिलावट के कारण ये संदेह के घेरे में है। दूध की शुधदता पर लगे प्रश्न चिह्न से उसकी गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है।

दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में दूध के पंद्रह नमूने लिए गए और जब उस पर शोध किया गया, तो पता चला कि उसमें 0.22 से 0.166 माइोग्राम जितना डी.डी.टी. था। पंजाब में दूध में डी.डी.टी. होने का प्रमाण अन्य रायों की तुलना में 4 से 12 गुना अधिक है। यदि ऐसा दूध स्त्रियाँ सेवन करें, तो उनमें स्तन केन्सर या गर्भाशय का केन्सर होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। दूध पावडर में भी डी.डी.टी. का प्रमाण अधिक होने के कारण यह छोटे बच्चों के लिए भी हानिकारक है।

आज लाइफ स्टाइल में आने वाले बदलाव के कारण पेकिंग वाले दूध की माँग लगातार बढ़ती जा रही है। साथ ही दूध पावडर की मांग भी बढ़ रही है। वसायुक्त एवं वसारहित दूध दोनों का ही विय अधिक होता है। इससे आगे बढ़कर कंपनियों द्वारा खास ऐसी पेकिंग की जा रही है, जिसमें दूध लगभग तीन महीने तक खराब नहीं होता। प्लास्टिक की पेकिंग वाला दूध अच्छा होता है और अधिक समय तक खराब नहीं होता, ऐसा भी लोग मानने लगे हैं।

आंध्रप्रदेश की एक दुग्ध डेयरी ने तो 6 माह तक खराब न होने वाले दूध को बाजार में लाने की तैयारी कर ली है। ग्राहक तो केवल पूर्ण विश्वास के साथ दूध की डेयरी और ब्रान्ड का नाम पढ़कर दूध खरीदते हैं। भारत में डेयरी प्रोजेक्ट का बाजार वर्ष में 36000 करोड़ का है। दूध की लगातार बढ़ती जा रही माँग के कारण ही ताजा दूध मिलना तो अब संभव ही नहीं है। सभी दुधारू पशुपालक अपने पशुओं का दूध डेयरी में बेच देते हैं। यहाँ तक कि बीमार पशु का दूध भी आय को धयान में रखते हुए डेयरी में पहुँचा दिया जाता है। सोने पे सुहागा यह कि कई पशुपालक तो अपने पशुओं को अधिक दूध के लिए इंजेक्शन देकर दूध का व्यापार करने से भी नहीं चूकते। ऐसा दूध स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है, इस दिशा में उन्हें सोचने की फुरसत ही नहीं है। दूध का व्यापार करने वाले इन स्वार्थी लोगों ने तो दूध का मूल रंग ही बदल दिया है। आज दूध सफेद नहीं, अनेक रंगों में उपलब्ध है। साथ ही विविधा फ्लेवर में भी बाजार में उपलब्धा है। 10 रुपए में मात्र 200 ग्राम दूध ग्राहक को देकर आज खूब कमाई की जा रही है।

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अमेरिका, दुबई, सिंगापुर सहित कई देशों में मिलावट को लेकर बनाए गए नियम काफी सख्त होने के कारण वहाँ पर खास मिलावट नहीं होती, पर हमारे देश में तो सब चलता है, की तर्ज पर खूब मिलावट होती है। नियम है, पर वे सभी ताक पर रखे हुए हैं। इसी का फायदा उठाकर व्यापारी वर्ग पूरे मुनाफे के साथ अपना व्यापार फैलाता जा रहा है।

ऑक्सीटॉसिन नामक हार्मोन का इंजेक्शन का उपयोग दुधारू गायों में पशुपालकों द्वारा किया जाता है दूध उतारने हेतु। इस इंजेक्शन को लव हार्मोन भी कहते हैं। जब गाय का बछड़ा मर जाता है तब गाय शॉप में चली जाती है तथा उस समय दूध उतारने वाला हार्मोन ऑक्सीटॉसिन का शराव नहीं हो पाता है जिससे कि हम से दूर नहीं निकल पाता है, जब पशु पालक इस हार्मोन का उपयोग इंजेक्शन के रूप में मांस में करते हैं तो यह इंजेक्शन लगाने के 5 मिनट के अंदर अपना काम करना शुरू कर देता है तथा दूध का निकलना शुरू हो जाता है। यह इंजेक्शन यानी कि ऑक्सीटॉसिन का उपयोग जानवर बच्चा देने के समय करता है, ऑक्सीटोसिन हार्मोन के चलते बचेदानी का मुंह खुल जाता है तथा बच्चा बच दानी से बाहर आसानी से निकल जाता है। एशिया की सबसे बड़ी संस्था NDRI नेशनल डेहरी रिसर्च इंस्टीट्यूट ,करनाल के वैज्ञानिकों ने शोध किया कि इस हार्मोन का उपयोग यदि पशुपालक दूध उतारने हेतु करते हैं तो उस दूध का कोई भी दुष्प्रभाव दूध पीने वालों पर नहीं पड़ता है. क्योंकि यह हार्मोन दूध के माध्यम से बाहर तो निकलता है लेकिन जैसे ही उस दूध को गर्म किया जाता है कुछ सेकंड में ही इसका प्रभाव खत्म हो जाता है तथा वह दूध पीने योग्य हो जाता है. अतः यह एक गलत धारणा आम आदमियों के बीच में फैल गया है कि ऑक्सीटॉसिन इंजेक्शन के द्वारा जो दूध निकाला जाता है उसका दुष्प्रभाव मनुष्यों पर पड़ता है ,यह सही नहीं है। हां पशुपालकों को या वैसे व्यक्तियों को जो इस ऑक्सीटोसिन हार्मोन का उपयोग पशुओं पर करते हैं उनको विशेष ध्यान रखना चाहिए कि यदि पशु गर्भवती है तो उस समय इसका इंजेक्शन उस पशु को नहीं लगाना चाहिए अन्यथा जब वह गर्भवती पशु बच्चा देगी तो उस हार्मोन का सेक्रेशन ठीक से नहीं हो पाएगा तथा बच्चेदानी के अंदर फस भी सकता है। साथ ही यह भी ध्यान देना होगा कि इंजेक्शन में ऑक्सीटोसिन हार्मोन की मात्रा 0. 5 ml-1 ml  से ज्यादा ना हो. हालांकि भारत सरकार ने इस ऑक्सीटोसिन हार्मोन इंजेक्शन की बिक्री पर रोक लगा दी है यह इंजेक्शन शेड्यूल एच ड्रग के अंतर्गत आता है यानी कि जब वेटनरी डॉक्टर प्रिसक्रिप्शन करेगा तभी फार्मासिस्ट किसको देगा। लेकिन यह गलत तरीके से प्रायः सभी जगह पाया जाता है खासकर उस जगह पर जहां पशुपालक चोकर ,खली ,चुनी खरीदने जाते हैं तो वह दुकानदार अवैध तरीके से इस हार्मोन को भी रखते हैं

 

डॉ राजेश कुमार सिंह ,पशुधन विशेषज्ञ ,जमशेदपुर

संपादक: पशुधन प्रहरी पत्रिका

 

 

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