क्लॉस्ट्रिडियम परफ्रिंजेंस संक्रमण

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क्लॉस्ट्रिडियम परफ्रिंजेंस संक्रमण

क्लॉस्ट्रिडियम परफ्रिंजेंस द्वारा उत्पन्न संक्रमण जानवरों और मनुष्यों में आंतों के रोगों से जुड़ा एक सामान्य रोगज़नक़ है जिसमें ऊतकविषी (Histotoxic) और आंत्रिक (Enteric) संक्रमण, खाद्य विषाक्तता (विष से उत्पन्न संक्रमण) और आंत्रशोथ (Enterocolitis) शामिल हैं।

रोग का इतिहास

  • क्लॉस्ट्रिडियम परफ्रिंजेंस का संक्रमण हजारों वर्षों से मनुष्यों के साथ जुड़ा हुआ है, जो 1991 में अल्पाइन ग्लेशियर में पाये गये 5000 वर्ष पुराने नवपाषाण ‘टायरोलियन आइसमैन’ (जिसे ओट्ज़ी के रूप में भी जाना जाता है) के ममीकृत जठरांत्र पथ में अगली पीढ़ी की अनुक्रमण तकनीक का उपयोग करके क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस की पहचान से प्रमाणित है (Kiu & Hall 2018)।
  • 1823 में, पेरिस में चार्ल्स बिलार्ड ने क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस संक्रमण को “गैंगरेनस एंटरोकोलाइटिस” के रूप में वर्णित किया (Neu 2020)।
  • 1891 में विलियम एच. वेल्च द्वारा एक 38 वर्षीय व्यक्ति की शव परीक्षण के दौरान क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस को पहली बार कारक के रूप में पृथक किया और पहचाना (Kiu & Hall 2018)।
  • क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप ए और सी, नेक्रोटिक एंटरटाइटिस के कारक एजेंट को पहली बार 1930 में हेरोल्ड विलियम बेनेट द्वारा ऑस्ट्रेलिया में और 1961 में डब्ल्यू.ई. पैरिश द्वारा ब्रिटेन में दर्ज किया गया था (Mohammed 2007)।
  • 1945 में, खाद्य विषाक्तता में क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस की भूमिका का सुझाव सबसे पहले मैकक्लंग द्वारा दिया गया था, इसके बाद 1953 में हॉब्स एवं सहयोगियों ने और 1968 में सटन एवं हॉब्स ने, जिन्होंने खाद्य-विषाक्तता से जुड़े खाद्य नमूनों में उष्मीय प्रतिरोधी क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप ए आइसोलेट्स की पहचान की थी (Prakash & Pankaj 2020)।
  • 1965 में, मिजराही और उनके सहयोगियों ने पहली बार “नेक्रोटाइज़िंग एंटरोकोलाइटिस” शब्द का इस्तेमाल किया (Neu 2020)।

कारक रोगाणु

यह संक्रमण एक ग्राम-पॉजिटिव, अवायवीय (वायु-सहिष्णु अवायवीय), बीजाणु-गठन, छड़ आकार, अकशाभिक लेकिन विसर्पण (Gliding) गतिशीलता एवं विष उत्पन्न करने वाला गतिशील जीवाणु क्लॉस्ट्रिडियम परफ्रिंजेंस (जिसे पहले बैसिलस एरोजेन्स कैप्सूलटस, बेसिलस परफ्रिंजेंस, बैसिलस वेल्ची या क्लॉस्ट्रि. वेल्ची के रूप में जाना जाता था) के कारण होता है। हालांकि, अधिकांश अन्य अवायवीय जीवों की तुलना में, यह जीवाणु ऑक्सीजन द्वारा मरने के लिए अपेक्षाकृत प्रतिरोधी है। यह जीवाणु ऐसे बीजाणु बना सकता है जो गर्मी, शुष्कन (Desiccation), एसिड और आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले कई कीटाणुनाशकों सहित कई पर्यावरणीय तनावों के प्रति प्रतिरोधी होते हैं (Kiu & Hall 2018, Gohari et al. 2021)।

क्लॉस्ट्रिडियम परफ्रिंजेंस का वर्गीकरण

क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस में विषाक्त तत्वों का एक शस्त्रागार (Arsenal) होता है, और जीवाणु के उपभेदों के बीच विष का उत्पादन महत्वपूर्ण रूप से भिन्न होता है। प्रमुख घातक विषाक्त पदार्थों के उत्पादन के आधार पर क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस को निम्नलिखित विष प्रकारों (टोक्सिनोटाइप्स – Toxinotypes) में वर्गीकृत किया गया है (Songer 2010, El-sify 2015, Kiu & Hall 2018, Sindern et al. 2019, Prakash & Pankaj 2020, Yao & Annamaraju 2021, Issimov et al. 2022)।

 

विष जैविक क्रिया टोक्सिनोटाइप्स
बी सी डी एफ जी
प्रमुख विष
अल्फा (α) (CPA) घातक, लेसिथिनेज (फॉस्फोलिपेज़ सी), कोशिका झिल्ली का विघटन + + + + + + +
बीटा (β) (CPB) घातक, परिगलनकारी, ट्रिप्सिन परिवर्ती, छिद्र निर्माण + +
एप्सिलॉन (ε) घातक, पर्मिएज़, ट्रिप्सिन उत्प्रेरक, छिद्र निर्माण + +
आयोटा (ι) घातक, त्वक्क्षयी (dermonecrotic), युग्मक (Binary), एडीपी राइबोसाइलेटिंग ट्रिप्सिन उत्प्रेरक, कोशिकापंजर (Cytoskeleton) विघटन +
एंटरोटॉक्सिन (CPE) त्वग्रक्तिमा (Erythema), घातक, आंत्रविषक, छिद्र निर्माण, दृढ़-संयोजन विघटन + ± ± ± +
सीपीबी22) त्वक्क्षयी, शोफ, आंत्रविष, स्नायविक विष, छिद्र निर्माण +
Minor toxins
नेक्रोटिक बी लाइक (NetB) छिद्र निर्माण + +
नेक्रोटिक ई (NetE) छिद्र निर्माण +
नेक्रोटिक एफ (NetF) छिद्र निर्माण, अल्फा -हेमोलिसिन +
नेक्रोटिक जी (NetG) छिद्र निर्माण +
टेपेल (TPeL) (ग्लूकोसिलेटिंग विष) कोशिका मृत्युक + +
डेल्टा (δ) हेमोलिसिन, छिद्र निर्माण ± +
गामा (g) परिभाषित नहीं, अस्तित्व संदिग्ध ± ±
ईटा (η) परिभाषित नहीं, अस्तित्व संदिग्ध ±
थीटा (θ) a.k.a परफ्रिंजोलिसिन ओ (FPO) घातक, परिगलनकारी, हेमोलिसिन (O2 परिवर्ती), साइटोलाइसिन, छिद्र निर्माण ± + + + +
कप्पा (κ) कोलेजनेज़, जिलेटिनेज़ + + + + +
α-क्लोस्ट्रिपैन (ccp) कोलेजन का पाचन
लैम्ब्डा (λ) प्रबल प्रोटिएज + + +
म्यू (μ) हयालुरोनिडेज़ ± + ± ± ±
न्यू (ν) डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिएज (हेमोलिटिक और साइटोटॉक्सिक) ± + + ± ±
न्यूरामिनिडेज़ एन-एसिटाइलन्यूरामिनिक एसिड ग्लाइकोहाइड्रोलज़ + + + + +

 

रोग की व्यापकता एवं संचरण

क्लॉस्ट्रिडियम परफ्रिंजेंस एक जूनोटिक रोगज़नक़ है, जिसे एक मृतजीवी (सैप्रोफाइट) माना जाता है जो प्रकृति में व्यापक रूप से मिट्टी, मल वाहित जल, समुद्री तलछट, आहार, मल में पाया जाता है और संक्रमित और गैर-संक्रमित मनुष्यों और जानवरों दोनों की आंत सामग्री में मौजूद हो सकता है और कुछ शर्तों के तहत फैल सकता है। आंत्रित सामग्री में उच्च किण्वित कार्बोहाइड्रेट और धीमा आंत पारगमन आमतौर पर क्लॉस्ट्रिडियल अतिवृद्धि को बढ़ावा देने के लिए माना जाता है (Prakash & Pankaj 2020, Verma et al. 2020)।

हालाँकि, क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस को आमतौर पर एक विशुद्ध अवायवीय जीवाणु के रूप में जाना जाता है; लेकिन, यह ऑक्सीजन की उपस्थिति में भी जीवित रह सकता है, और/या सुपरऑक्साइड या हाइड्रॉक्सिल-रेडिकल-उत्पादक यौगिकों की कम सांद्रता में भी जीवित रह सकता है। विशेष रूप से, एक वायु-सहिष्णु अवायवीय के रूप में, क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस संभावित रूप से वायवीय वातावरण (जैसे अस्पताल के वार्डों में सतहों पर) के माध्यम से जीवित रह सकते हैं और वायुरागी (Aerophilic) वातावरण (यानी, वयस्क/समय से पहले शिशु आंत) में रोग के विकास को प्रेरित कर सकते हैं, और इसके अतिरिक्त ऑक्सीजन-संसर्गीय ऊतक (जैसे गैस गैंग्रीन), जो जिवाण्विक मेजबान-से-मेजबान संचरण की सुविधा प्रदान कर सकते हैं (Kiu & Hall 2018)।

बिजाणुजनन करने की क्षमता और व्यापक तापमान सीमा अनुकूलन क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस जीवाणु को अत्यधिक या पोषक तत्वों की कमी वाली स्थितियों में जीवित रहने की अनुमति देती है। इसके परिणामस्वरूप इस जीवाणु का विविध वातावरणों से मेजबानों के मध्य संचरण होता है (Kiu & Hall 2018, Bedi et al. 2022)।

बीजाणुओं के अंकुरण को शर्करा, न्यूक्लियोसाइड्स, अमीनो एसिड, लवण और प्यूरिन के छोटे अणुओं द्वारा प्रेरित किया जा सकता है। जठरांत्र (Gastrointestinal) पथ में प्राथमिक पित्त एसिड (ग्लाइको-कोलेट, कोलेट और टौरोकोलेट सहित) क्लॉस्ट्रिडियम प्रजातियों में प्रबल वृद्धि करने वाले जीवाणुओं के रूप में कार्य करने के लिए भी जाने जाते हैं (Kiu & Hall 2018)।

संचरण के लिए वाहक के रूप में कार्य करने वाले सबसे आम खाद्य पदार्थ अधपके दूषित मांस और मांस उत्पाद हैं (Bedi et al. 2022)। यहां तक कि जब ये जीवाणु गर्म करने से मर जाते हैं, तो कुछ ऊष्मा प्रतिरोधी बीजाणु जीवित रह जाते हैं और फिर अंकुरित हो जाते हैं, जैसा कि पहले से गर्म किए गए खाद्य पदार्थों के साथ होता है। गर्म करने के समय या धीमी गति से ठंडा करने के दौरान लक्षणों का कारण बनने के लिए आवश्यक आहार के प्रति ग्राम दस लाख कोशिकाओं तक पहुंचने वाली कोशिकाओं का तेजी से निर्माण हो सकता है (Owusu-Apenten & Vieira2023)।

क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस को चूहे इत्यादि कृंतक और छछूंदर में पाया गया है जो संभावित रूप से आहार और पर्यावरण को दूषित कर सकते हैं और मनुष्यों और पशुओं को बहु-औषधी प्रतिरोधी/विष टाइप ए और टाइप सी क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस से संक्रमित कर सकते हैं (Milton et al. 2022)।

क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस के विभिन्न टोक्सिनोटाइप्स द्वारा उत्पन्न रोग

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अद्योलिखित सभी विषाक्त पदार्थों का उत्पादन करने के लिए क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस जीवाणु के किसी भी एकल उपभेद ज्ञातबोध नहीं है। यहां विभिन्न टोक्सिनोटाइप्स से जुड़े क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस के कारण होने वाली बीमारियों की सूची दी गई है (Gohari et al. 2021, Fu et al. 2022, Johnston et al. 2022)।

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टोक्सिनोटाईप उत्पन्न रोग प्रभावित प्रजाति
गैस गैंग्रीन (मायोनेक्रोसिस) मनुष्य, सूअर, घोड़ा, भेड़, गोवंश, कुत्ते
गर्भपात पश्च पूतिजीवरक्तता मनुष्य
दस्त मनुष्य
नेक्रोटाईज़िंग एंट्रोकोलाइटिस (NEC) मनुष्य, सूअर (घेंटा)
गैंग्रीनस थनैला गोवंश, बकरी और भेड़
पीत मेमना रोग भेड़ (मेमने)
स्ट्रक (Struck) भेड़
नेक्रोटिक एंटरटाइटिस भेड़, घरेलू पक्षी
बोवाइन नेक्रोटिक एंटरटाइटिस नवजात बछड़े
रक्तस्रावी आंत्र सिंड्रोम गोवंश
एंटरोटॉक्सिमिया गोवंश, भेड़, बकरी, सूअर, घोड़ा
कैनाइन गैस्ट्रोएंटेराइटिस कुत्ते
इक्वाइन नेक्रोटाइजिंग एंटरोकोलाइटिस घोड़ा
बी एंटरोटॉक्सिमिया गोवंश, भेड़, बकरी, सूअर, घोड़ा
पेचिश, नेक्रोहेमरेजिक एंटरटाइटिस, रक्तस्रावी पेचिश भेड़ (मेमने)
नेक्रोटिक एंटरटाइटिस गोवंश, घोड़ा, बकरी, सूअर
सी एंटरोटॉक्सिमिया गोवंश, भेड़, बकरी, सूअर, घोड़ा
क्लोस्ट्रीडियल नेक्रोटाइज़िंग एंटरटाइटिस गोवंश, भेड़, घोड़ा
नेक्रोटिक एंटरटाइटिस (Pig-bel, Darmbrand) मनुष्य
नेक्रोटिक एंटरटाइटिस घरेलू पक्षी
रक्तस्रावी पेचिश भेड़
नियोनेटल नेक्रोटिक एंटरटाइटिस बछड़े, बकरी के बच्चे, बछेरे, घेंटा
डी एंटरोटॉक्सिमिया गोवंश, भेड़, बकरी, सूअर, घोड़ा
पेचिश भेड़
पल्पी किडनी डीजिज भेड़
एंटरोकोलाइटिस बकरी
एंटरोटॉक्सिमिया गोवंश, भेड़, सूअर, घोड़ा, खरगोश
रक्तस्रावी पेचिश बछड़े
एफ दस्त मनुष्य, कुत्ते
सीपीई-संबंधित गैर-खाद्य जनित जठरांत्र रोग मनुष्य
गैस गैंग्रीन (मायोनेक्रोसिस) मनुष्य
आंत्र रोग घोड़ा
नेक्रोटिक एंटरटाइटिस कुत्ते
जी नेक्रोटिक एंटरटाइटिस घरेलू पक्षी

 

इष्टतम स्थितियों में प्रयोगशाला में क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस का वृद्धि समय बहुत कम (8-12 मिनट) होता है, जो अन्य औपनिवेशी जीवाणुओं के बढ़ने के लिए एक प्रभावी तंत्र का प्रतिनिधित्व कर सकता है, इस प्रकार यह जीवाणु कुशल आंत औपनिवेशीकरण के लिए अग्रणी होता है।

पशुओं में रोग के लक्षण

  1. गैस गैंग्रीन: सूअरों, घोड़ों, भेड़ों, गोवंश और कुत्तों में गैस गैंग्रीन (पहले मैलिग्नेंट एडिमा के रूप में संदर्भित) चमड़ी के नीचे के ऊतकों और मांसपेशियों का एक परिगलनकारी (Necrotizing) संक्रमण है जो मुख्य रूप से जुगाली करने वाले पशुओं और घोड़ों, बल्कि अन्य घरेलू और जंगली स्तनधारियों को भी प्रभावित करता है। क्लॉस्ट्रिडियम चाउवोई, क्लॉस्ट्रि. सेप्टिकम, क्लॉस्ट्रि. नोवी टाइप ए, क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप ए अल्फा टॉक्सिन, और क्लॉस्ट्रि. सोर्डेली इस बीमारी के कारक एजेंट हैं, जो अकेले या संयोजन में काम करते हैं (Junior et al. 2020, Gohari et al. 2021)।

उदासी, क्षिप्रहृदयता (Tachycardia), श्वसन संकट, मांसपेशियों में कंपन, क्षुदानाश और बुखार ऐसे नैदानिक ​​लक्षण हैं जो अक्सर प्रभावित जानवरों में देखे जाते हैं। संक्रमण के कुछ घंटों के भीतर, जीवाणुओं के प्रवेश स्थल और निकटस्थ ऊतक सूज जाते हैं, रक्तिम चित्ती (Erythematous), पीड़ायुक्त और गर्म हो जाते हैं। जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, अवत्वचीय (Subcutaneous) शोफ और वातस्फीति (Emphysema) के कारण सूजन बढ़ जाती है, वातस्फीति (Emphysema) स्पर्शपरीक्षण के दौरान कड़कड़ (Crepitation) ध्वनि के रूप में महसूस होती है। यदि टांगों में घाव/लक्षण हैं तो आमतौर पर पशु हिलने-डुलने में अनिच्छुक, लंगड़ा हो जाता है और अंततः लेट जाता है। त्वचीय परिगलन (Dermal necrosis) के रूप में त्वचा आमतौर पर सख्त होती है और लाल या काली होती है। रोग के बाद के चरणों में, प्रभावित भाग ठंडे हो जाते हैं। ज्यादातर मामलों में, नैदानिक ​​लक्षणों की शुरुआत के बाद कुछ घंटों से 3 दिन के बीच विषाक्तता और सदमे के परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है। दुर्लभ मामलों में 30 दिनों या उससे अधिक की नैदानिक (Clinical) अवधि हो सकती है। कभी-कभी, पशु बिना कोई नैदानिक लक्षण प्रकट किये बिना भी मर जाते हैं (Junior et al. 2020)।

प्रसव के बाद गैस गैंग्रीन में, परिगलत भग-योनिशोथ (Vulvovaginitis), गर्भाशयशोथ (Metritis), भग (Vulva) सूजन सबसे आम नैदानिक लक्षण हैं। यह प्रसव के 1-3 दिन बाद शुरू होता है, इसके साथ बुखार, उदासी, लेटना, लाल-भूरे रंग का द्रव निकलना और अंत में मृत्यु हो जाती है। इन मामलों में, यह माना जाता है कि प्रसव से जुड़े आघात योनि में घाव पैदा करते हैं, जो क्लॉस्ट्रि.  सेप्टिकम के लिए भी प्रवेश द्वार हैं (Junior et al. 2020)।

  1. गैंग्रीनस थनैला: मवेशियों, बकरियों और भेड़ों में, रोग की विशेषता दुग्ध ग्रंथियों में गंभीर सूजन एवं मलिनकिरण (फीका पड़ा हुआ), मवाद युक्त पानी जैसा दूध और/या रक्त स्राव होता है। बुखार, निमोनिया, सेप्टीसीमिया, टॉक्सिमिया और मृत्यु भी हो सकती है (Fu et al. 2022)।
  2. नेक्रोटाईज़िंग एंट्रोकोलाइटिस: क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप ए और सी/बीटा-2-टॉक्सिन संक्रमण 1-7 दिनों के सूअर के बच्चों में सबसे आम है, जो जन्म के 12 घंटे बाद तक हो सकता है; एक सप्ताह से अधिक उम्र के सूअरों में रोग असामान्य है। तीव्र पेट दर्द, सुस्ती, और खूनी दस्त सहित तीव्र और अतितीव्र स्थितियों के लक्षणों के साथ नैदानिक बीमारी अतितीव्र, तीव्र या जीर्ण हो सकती है, जो जोखिम के 8-22 घंटे बाद शुरू होती है। सूअरियों के मल में थोड़ी संख्या में टाइप-सी जीवाणु होते हैं, और ये शावकों की छोटी आंत में तेजी से बढ़ते हैं, अन्य जीवाणुओं से प्रतिस्पर्धा करते हैं और आबादी में प्रमुख जीवाणु बन जाते हैं। रोग की अवधि आमतौर पर 1-2 दिन के शावकों में 24 घंटे या इससे कम समय की होती है, लेकिन पुरानी बीमारी (आमतौर पर बड़े जानवरों में) 1 या 2 सप्ताह तक बनी रह सकती है, और रक्तरहित लगातार दस्त और निर्जलीकरण की विशेषता होती है। तीव्र और जीर्ण रूपों में मृत्यु से ठीक पहले चिह्नित गुदा अतिरक्तता (Hypremia) हो सकती है (Songer et al. 2005, Kiu & Hall 2018)।
  3. गौवंश में एंटरोटॉक्सिमिया: बीटा और एप्सिलॉन विषाक्त पदार्थों से संक्रमित गौवंश क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप डी (कभी-कभी टाइप ए, कभी-कभार टाइप बी और सी) या क्लॉस्ट्रि. सोर्डेली द्वारा उत्पादित होते हैं, जो बीमारी के शुरुआती चरणों में अचानक मृत्यु या कभी-कभी गंभीर, अक्सर रंक्तरंजित दस्त का कारण होते हैं। ये जीवाणु कई युवा जानवरों की आंत में मौजूद होते हैं। वर्ष के किसी भी समय युवा बछड़ों से लेकर एक वर्ष के बछड़े तक प्रभावित हो सकते हैं और कृत्रिम रूप से पाले गए बछड़ों में रोग होने की संभावना अधिक होती है। आहार में बदलाव या लालची खाद्यार्थ पोषित (Feeders), खाने के गंदे उपकरण (जैसे बाल्टी), कोलोस्ट्रम की कमी और आंत में पहले से मौजूद अन्य रोग, ये सभी रोग को प्रेरित कर सकते हैं।
  4. कैनाइन गैस्ट्रोएंटेराइटिस: टाइप ए, एफ/एंटरोटॉक्सिन सीपीई के साथ संबद्ध, बीटा-2-टॉक्सिन रक्तस्रावी/नेक्रोटिक आंतों का कारण बनता है (Kiu & Hall 2018)।
  5. इक्वाइन नेक्रोटाइजिंग एंटरोकोलाइटिस: टाइप ए, एफ/एंटरोटॉक्सिन सीपीई, बीटा- 2-टॉक्सिन, नेट-ई, नेट-एफ और नेट-एफ से संबद्ध जीवाणु 1-14 दिनों के नवजात बछड़ों को प्रभावित करते हैं और खूनी दस्त, रक्तस्रावी और परिगलित आंतें, इस रोग की अभिव्यक्तियाँ हैं (Kiu & Hall 2018)।
  6. पीत मेमना रोग (Yellow lamb disease): इसे टाइप ए एंटेरोटॉक्सिमिया या एंटरोटॉक्सेमिक पीलिया के रूप में भी जाना जाता है, भेड़ (भेड़ के बच्चे) में एक दुर्लभ बीमारी है, जिसे क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप ए के कारण माना जाता है जो अल्फा टॉक्सिन (सीपीए) की उच्च मात्रा का उत्पादन करता है। नैदानिक रूप से उदासी, रक्ताल्पता, पीलिया (Icterus) और रक्तकणरंजकद्रव्यमेह (Haemoglobinuria) विशेषता है। कभी-कभी, अचानक मौत हो सकती है यानी मेमनों को मृत पाया जाता है या नैदानिक लक्षणों की शुरुआत के बाद 12 घंटे से मेमने अधिक समय तक जीवित नहीं पाये जाते हैं। स्थूल (Gross) जाँच में सामान्यीकृत (Generalized) पीलिया, मूत्राशय में लाल मूत्र, पीली एवं भुरभुरी प्लीहावर्धन, कोष्ठकी (Acinar) स्वरूप के साथ यकृतवृद्धि और काले, सूजे हुए गुर्दे शामिल हैं (Uzalet et al. 2022)।
  7. स्ट्रक (Struck): ‘स्ट्रक’ शब्द बीमारी की एक छोटी अवधि की विशेषता वाली लेकिन घातक बीमारी पर लागू होता है और घाव के संक्रमण से जुड़ी नहीं होती है। क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप सी के साथ संक्रमण पेट दर्द, ऐंठन (Tenesmus) और अचानक मौत के साथ प्रकट होता है, जो शरद ऋतु के मौसम में एक या दो वर्ष की उम्र के युवा वयस्कों में घास चरने के दौरान देखा जाता है। आहार में अचानक परिवर्तन, आमतौर पर निम्न गुणवत्तता की घास वाली चरागाह से रसीली, अच्छी गुणवत्ता वाली घास की चरागाह के एक परिणाम के रूप में, अचानक जीवाणुओं की वृद्धि करने और विषाक्त पदार्थों के स्रवण (Release) का कारण बनता है और यह एक ही समय में पर्णकृमि (Flukes) पर्याक्रमण (Infestation) से भी जुड़ा हो सकता है।
  8. रक्तस्रावी आंत्रशोथ (खूनी दस्त): एंटरोटॉक्सिमिया टाइप सी क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप सी के कारण होता है और जीवन के पहले कुछ हफ्तों के दौरान मेमनों को प्रभावित करता है, जिससे छोटी आंत का खूनी संक्रमण होता है। यह अक्सर अपच से संबंधित होता है और आहार (Feed) में अचानक बदलाव जैसे क्रीप (Creep) राशन शुरू करना या दूध की आपूर्ति में अचानक वृद्धि के कारण होता है। अधस्त्वचीय (Subcutaneous) एंटीटॉक्सिन उपचार के रूप में आमतौर पर अप्रभावी होता है; रोकथाम के रूप में मेमनों को जन्म देने से 30 दिन पहले गर्भवती भेड़ों का टीकाकरण करने की सलाह दी जाती है।
  9. परिगलित आंत्रशोथ (Necrotic enteritis): यह समस्या क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप ए संक्रमण के कारण भेड़ों एवं कुक्कुटों; टाइप बी – गौवंश, घोड़े, बकरी, सूअर; टाइप सी और जी – कुक्कुट; टाइप एफ – कुत्तों को प्रभावित करती है।
  10. बोवाइन नेक्रोटिक एंटरटाइटिस: टाइप ए/बीटा-2-टॉक्सिन और परफ्रिंजोलिसिन-ओ टॉक्सिन के कारण नवजात बछड़ों को प्रभावित करता है। आध्मात बृहदान्त्र (Distended colon); श्लैष्मिक परिगलन (Mucosal necrosis) प्रमुख नैदानिक लक्षण हैं (Kiu & Hall 2018)।
  11. मुर्गियों में परिगलित आंत्रशोथ: क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप ए, सी, जी/बीटा-टॉक्सिन, सीपीए (CPA), नेटबी (NetB), टेपेल (TPeL – Toxin Perfringens Large) हैचिंग (अंडों से चूजे निकलने) के 2-5 सप्ताह बाद नवजात चूजों को प्रभावित करते हैं। परिगलित आंत्रशोथ की प्रमुख विशेषता तीव्र मृत्यु है, जिसमें मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। नैदानिक लक्षणों में गंभीर सुस्ती, भूख में कमी, हिलने-डुलने में अनिच्छा, दस्त और अस्त-वयस्त (Ruffled) पंख शामिल हैं; गैसीय घाव; श्लैष्मिक परिगलन; आध्मात (Distended) आंतें (Mohammed 2007, Kiu & Hall 2018)।
  12. लैम्ब (Lamb) डाईसेंट्री: मेमनों में पेचिश (dysentry) क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप बी जीवाणु के कारण होती है, जो आमतौर पर मेमनों के वातावरण में पाया जाता है और दूषित थन से दूध पीने वाले मेमनों में होती है। यह बीमारी आमतौर पर जनवरी से मई तक देखी जाती है जब मेमनों की आयु कुछ दिनों से लेकर तीन सप्ताह तक की होती है। लक्षणों में अचानक मृत्यु, सुस्ती, लेटना, पेट में दर्द, और दुर्गंधयुक्त दस्त शामिल हैं जो रक्तरंजित वाले हो सकते हैं। शव परीक्षण पर, आंतों में गंभीर सूजन, अल्सर और परिगलन दिखाई देते हैं। मृत्यु दर 100 प्रतिशत के करीब पहुंच जाती है। अधिक दूध पीने और पेट फूलने से जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है और विषाक्त पदार्थ उत्पन्न हो जाते हैं, और इसलिए अधिक दूध देने वाली भेड़ों के एकल मेमनों में नुकसान होने की संभावना सबसे अधिक होती है। अच्छी स्वच्छता प्रबंधन से संक्रमण का खतरा कम होता है।
  13. पल्पी किडनी डिजिज (Pulpy kidney disease): भेड़, बकरी और गायों की सबसे आम क्लॉस्ट्रिडियल बीमारी, जिसे ‘क्लासिक’ अतिभक्षण रोग और एंटरोटॉक्सिमिया के रूप में भी जाना जाता है। यह रोग अक्सर जानवरों की मौत का परिणाम होता है, और अक्सर इसका निदान (Diagnosis) करना मुश्किल होता है। यह क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप डी के कारण होता है, जो आमतौर पर घास और जानवरों की आंतों में निष्क्रिय अवस्था में पाया जाता है। अतिभक्षण रोग विश्व में सबसे आम रोगों में से एक है। इसका जोखिम वर्षभर रहता है, लेकिन यह रोग अक्सर छह सप्ताह से एक वर्ष के आयुवर्ग के पशुओं में देखा जाता है। पशु गतिभंग (चक्कर आना), ऐंठन लक्षणों के साथ अचानक मृत्यु हो जाती है, आमतौर पर शुरुआत के दो घंटे के भीतर और नुकसान व्यापक हो सकता है। यह आहार (Feed) में अचानक परिवर्तन के कारण होता है जो आंतों में पहले से ही मौजूद जीवाणुओं की वृद्धि का कारण बनता है, जिससे जीवविष प्रतिक्रिया होती है। यह रोग आमतौर पर एक महीने से अधिक आयु के उन मेमनों खासतौर से उच्च सांद्रता वाले राशन या अधिक दूध पीने वाले मेमनों में पाया जाता है। अधस्त्वचीय (Subcutaneous) एंटीटॉक्सिन उपचार के रूप में आमतौर पर अप्रभावी होता है; रोकथाम के रूप में मेमनों को जन्म देने से 30 दिन पहले गर्भवती भेड़ों का टीकाकरण करने की सलाह दी जाती है।
  14. रक्तस्रावी आंत्र सिंड्रोम (Hemorrhagic bowel syndrome): यह टाइप ए क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस के कारण, मुख्य रूप से परिपक्व दूध पिलाने वाली दूध देने वाली गायों में छिटपुट रूप से होता है। एक अन्य प्रस्तावित संभावित कारक एजेंट एस्परगिलस फ्यूमिगेटस है, जो फ़ीड और चारे में एक आम कवक है। नैदानिक ​​लक्षणों में सुस्ती, निर्जलीकरण, हृदय और श्वसन दर में वृद्धि, और पीली श्लेष्मा झिल्ली शामिल हैं। दाहिने ओर का पेट हल्का सा बढ़ा हो सकता है लेकिन तेजी से और अधिक बढ़ता है। तीव्र लक्षणों की शुरुआत होने के बावजूद भी प्रथम आमाशय (Rmen) अच्छी तरह से भरा हो सकता है, लेकिन उसमें तानहीनता (Atonicity) पायी जाती है, और पेट के ऊपर दाहिनी ओर आस्फालन (Succussion) ध्वनि से द्रव की आवाजें सुनाई दे सकती हैं। मल में चिपचिपी कंटकगुल्म (Bramble) जेली (Jelly) की तरह गहरे लाल रक्त के थक्के मौजूद होते हैं। पूर्ण और लंबे समय तक आंतों की रुकावट के मामलों में, मलाशय सूखा और चिपचिपा होता है, जिसमें केवल थोड़ी मात्रा में गहरे रंग का मल होता है। गहन (Deep) मलाशय परीक्षण खासतौर से मलाशय में थोड़ा गहराई तक परीक्षण करने पर आंत के विकृत और दृढ़ लूप स्पष्ट हो सकते हैं (Grünberg 2021)।
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मनुष्यों में रोग के लक्षण

क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस जानवरों के साथ-साथ मनुष्यों में भी विभिन्न दैहिक (Systemic) और आंत्र रोगों से जुड़ा हुआ है, जिनमें निम्न रोग शामिल हैं:

  1. गैस गैंग्रीन: गैस गैंग्रीन जिसे क्लोस्ट्रीडियल मायोनेक्रोसिस भी कहते हैं, आमतौर पर कंकाल की मांसपेशीयों और त्वचा के नीचे के ऊतकों का एक अत्यधिक घातक, परिगलनकारी (Necrotizing) संक्रमण है जो मुख्य रूप से क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप ए के कारण होता है। इसमें टाइप ए वानस्पतिक (Vegetative) कोशिकाएँ या बीजाणुओं द्वारा चोट से बने घावों पर आक्रमण शामिल है, इसके बाद वानस्पतिक कोशिकाएं गुणात्मक वृद्धि और विष उत्पादन करती हैं जो प्रभावित ऊतकों में तेजी से, गंभीर और व्यापक परिगलन को प्रेरित करता है। नैदानिक रूप से दर्द, स्थानीय शोफ और वातस्फीति, बुखार, और मांसपेशीपरिगलन (Myonecrosis) रोग की विशेषता है, जो आमतौर पर तेजी से जीवाणुओं के प्रसार में प्रगति करता है, जिससे पूतिजीवरक्तता (Sepsis), विषाक्तता, सदमा और अंततः मृत्यु हो जाती है (Gohari et al. 2021)।
  2. गर्भपात पश्च पूतिजीवरक्तता (Post abortion septicaemia): क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस कभी-कभी गर्भपात के बाद मानव मातृ सेप्सिस का कारण बनता है, जिसे गर्भपात पश्च पूतिजीवरक्तता कहा जाता है। पेट में दर्द, योनि से रक्तस्राव और अंतर्गर्भाशयकला (Endometrial) गुहिका (Cavity) में गैस बनने के साथ उच्च मृत्यु दर देखी जाती है (Fu et al. 2022) ।
  3. दस्त: एंटरोटॉक्सिन (CPE), छिद्र बनाने वाला विष, खाद्य विषाक्तता और गैर-खाद्य दस्त का प्रमुख कारक जीव है। टाइप ए (मुख्य रूप से) और टाइप एफ द्वारा निर्मित एंटरोटॉक्सिन जिसे सी, डी और ई द्वारा भी निर्मित माना जाता है, के कारण होता है। आंत्रशोथ तब विकसित होता है जब लोग गलती से पर्याप्त मात्रा में जीवाणुओं (प्रति ग्राम भोजन में 106 कोशिकाएं) को ग्रहण कर लेते हैं। अधिकांश लोगों में इसके विष के खिलाफ एंटीबॉडी पाये गये हैं जिसका अर्थ है कि अधिकांश लोगों द्वारा क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस के लक्षणहीन खाद्य विषाक्तता होती है। दूषित मांस जो लंबे समय तक पूरी तरह से पकाया या अनुचित तरीके से संग्रहीत नहीं किया जाता है, जीवाणु को शरण देने का सामान्य स्रोत हैं (Yao & Annamaraju 2021, Fu et al. 2022)।
    • खाद्यजनित अतिसार (तीव्र पानी जैसा दस्त): पेट में ऐंठन, दर्द, दस्त, मतली, उल्टी (के साथ या बिना), और बुखार के विशिष्ट लक्षण आमतौर पर जीवाणुओं के संपर्क में आने के 8-14 घंटे बाद शुरू होते हैं। 12-24 घंटों के भीतर सुधार हो सकता है, लेकिन खराब स्वास्थ्य स्थितियों वाले रोगियों के लिए यह 2 सप्ताह तक चल सकता है (Kiu & Hall 2018, Fu et al. 2022)।
    • गैरखाद्य जनित दस्त: क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस टाइप एफ/एंटेरोटॉक्सिन (सीपीई) गैर-खाद्य जनित दस्त से भी जुड़ा हुआ है, जो खाद्य विषाक्तता से एक अलग रोग इकाई है, जिसकी मुख्य रूप से अधिक गंभीर लक्षणों और लंबी अवधि की विशेषता है। इसमें एंटीबायोटिक से जुड़े दस्त (आमतौर पर 5-25 प्रतिशत रोगियों में ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स देने के बाद होता है) और छिटपुट (Sporadic) दस्त शामिल हैं। गैर-खाद्य जनित दस्त आमतौर पर वृद्ध वयस्कों जो कि 60 वर्ष से अधिक की आयु वर्ग (हालांकि छिटपुट दस्त भी कम आयु वर्ग के साथ जुड़े हुए पाये गये हैं) और प्रतिरक्षा में अक्षम व्यक्तियों को प्रभावित करता है। नैदानिक लक्षणों में पेट दर्द, लंबे समय तक दस्त (3 दिन से लेकर कई सप्ताह तक), और खूनी मल होते हैं। गैर-खाद्य जनित दस्त, विशेष रूप से एंटीबायोटिक से जुड़े दस्त से पीड़ित रोगी, दस्त से प्रेरित निर्जलीकरण के कारण गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं, और बृहदांत्रशोथ (Colitis) विकसित करने के लिए प्रगति कर सकते हैं, हालांकि पूरी तरह से ठीक होना सामान्य है (Kiu & Hall 2018, Bedi et al. 2022)।
  4. प्रीटर्म नेक्रोटाइज़िंग एंटरोकोलाइटिस: यह एक तीव्र विनाशकारी आंतों की सूजन की बीमारी है जो मुख्य रूप से जन्म के तुरंत बाद अपरिपक्व शिशुओं में होती है। आज तक, किसी विशेष विष को विशेष रूप से प्री-टर्म नेक्रोटाइज़िंग एंटरोकोलाइटिस से जोड़ा नहीं गया है, हालांकि बीटा-2-विष का सुझाव दिया गया है (Kiu & Hall 2018)। अत्यधिक आंतों की सूजन, संभावित रोगज़नक़ रिसाव और दैहिक (Systemic) सूजन इस रोग की विशेषता है। नैदानिक लक्षण एक बच्चे से अन्य बच्चों में भिन्न होते हैं, लेकिन आमतौर पर शेषांत्रशोथ (Ileitis), पेट में गड़बड़ी, पेट में हरा तरल पदार्थ, मल के साथ ताजा रक्त आना (Hematochezia), साथ ही श्वासरोध (Apnea) के घातक लक्षण, चयाचपयी अम्लरक्तता (Metabolic acidosis), सदमा और प्रसृत अंतर्वाहिका जमावट (Disseminated intravascular coagulopathy) इत्यादि लक्षण शामिल होते हैं। इस रोग से जीवित बचे हुए शिशुओं में अक्सर स्नायुतंत्र (Nervous system) का विकास बाधित रहता है (Sun et al. 2018, Fu et al. 2022)।
  5. एंट्राइटिस नेक्रोटिकन्स: यह बच्चों या कुपोषित वयस्कों में टाइप सी/बीटा-टॉक्सिन से जुड़ा होता है और आंतों में गैंग्रीन (मुख्य संक्रमण स्थल के रूप में छोटी आंत) का कारण बनता है। इसे परिगलित आंत्रशोथ (Enteritis necroticans) भी कहते हैं (Kiu & Hall 2018, Bedi et al. 2022)।
    • डार्मब्रांड (जिसका अर्थ जर्मन मेंजलती आंतहै): इस शब्द का इस्तेमाल एक प्रकार के परिगलित सूजन आंत रोग का वर्णन करने के लिए किया गया था जिसे पश्चिमोत्तर जर्मनी में द्वितीय विश्व युद्ध (1944-1949) के बाद डार्मब्रांड की महामारी रूप में जाना जाता है।
    • पिगबेल (एंट्राइटिस नेक्रोटिकन्स के रूप में भी जाना जाता है): यह भी एक प्रकार की आंतों में सूजन की बीमारी है। पहला प्रलेखित प्रकोप 1966 में हुआ जो पापुआ न्यू गिनी के पर्वतीय निवासियों (Highlanders) में शूकर-मांस दावत (Feasting) से जुड़ा था। लक्षणों का क्लासिक विवरण स्पष्ट संवहनी (Vascular) या यांत्रिक कारण के बिना छोटी आंत का स्वतःस्फूर्त परिगलन (Spontaneous gangrene) है। नैदानिक रूप से डार्मब्रांड जैसा दिखता है और मुख्य रूप से बच्चों में होता है।
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निदान

क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस आहारीय विषाक्तता का निदान तब होता है जब एक प्रयोगशाला परीक्षण में रोगी के मल के नमूने में जीवाणुओं या विष का पता चलता है या बीमारी से जुड़े आहार में जीवाणु पाए जाते हैं। लेकिन क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस आहारीय विषाक्तता से पीड़ित अधिकांश लोगों को निदान नहीं मिलता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि नैदानिक प्रयोगशालाएँ क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस के लिए नियमित रूप से परीक्षण नहीं करती हैं, और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाएँ आमतौर पर इसका परीक्षण केवल तभी करती हैं जब यह प्रकोप का संदिग्ध कारण हो।

उपचार

अधिकांश लोग एंटीबायोटिक दवाओं के बिना क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस आहारीय विषाक्तता से ठीक हो जाते हैं। निर्जलीकरण को रोकने के लिए जब तक दस्त रहते हैं तब तक अतिरिक्त तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

नियंत्रण एवं बचाव

  • खाना पकाने के बाद, कमरे के तापमान पर धीमी गति से ठंडा करने से बीजाणु अंकुरित हो जाते हैं (चूंकि गर्म करने से ऑक्सीजन हट जाती है और अनुकूल अवायवीय वातावरण बन जाता है)। इसलिए, जिन खाद्य पदार्थों को उच्च तापमान पर गर्म करने की आवश्यकता होती है और फिर उन्हें बहुत धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है, और फिर भोजन को प्रशितक में अत्यधिक ठंडा किया जाता है और खाने से पहले अपर्याप्त रूप से गर्म किया जाता है तो ऐसे भोजन को क्लॉस्ट्रि. परफ्रिंजेंस खाद्य विषाक्तता के लिए उच्च जोखिम का कारक माना जाता है (Bedi et al. 2022)।
  • जीवाणुओं को मारने के लिए भोजन को सुरक्षित तापमान पर पकाएं। विशेष रूप से गर्म किये मांस में तापमान जांचने के लिए एक खाद्य थर्मामीटर का उपयोग करना चाहिए।
  • पके हुए भोजन को 60 डिग्री सेल्सियस या अधिक तापमान पर गर्म करना चाहिए। यदि इसे जल्दी परोसा या खाया नहीं जाता है तो 4 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक ठंडा रखना चाहिए।
  • खाना पकाने के 2 घंटे के भीतर या इसे सुरक्षित तापमान पर रखने वाले उपकरण से निकालने के 2 घंटे के भीतर बचे हुए भोजन को 4 डिग्री सेल्सियस या ठंडे तापमान पर रेफ्रिजरेट करें। यदि भोजन को गर्म कार या पिकनिक जैसे 32 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान में रखा जाता है, तो एक घंटे के भीतर रेफ्रिजरेट करें।
  • गर्म खाद्य पदार्थों को सीधे रेफ्रिजरेटर में रखना ठीक है।
  • भोजन की अधिक मात्रा, जैसे सूप और स्ट्यू, को थोड़ी मात्रा में और मांस के बड़े टुकड़ों को छोटे टुकड़ों में विभाजित करें ताकि इन्हें रेफ्रिजरेटर में जल्दी ठंडा किया जा सके।
  • बचे हुए खाने को परोसने से पहले 70 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तापमान पर गर्म करना चाहिए।

 

के.एल. दहिया
पशु चिकित्सक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, हरियाणा;
email: drkldahiya@hotmail.com

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