भारत में देसी मुर्गी पालन का व्यवसायिक स्वरूप
हमारे देश में मुर्गी पालन का व्यवसाय भी काफी लोकप्रिय व्यवसाय है | आज के समय में देश के तक़रीबन 35-40 लाख लोग मुर्गी पालन से रोगजार पा रहे है | मुर्गी पालन के व्यवसाय में आप दो तरह की मुर्गियों का पालन कर आय अर्जित कर सकते है | इसमें सामान्य मुर्गी पालन और देसी मुर्गी पालन शामिल है | देसी मुर्गी पालन को कम जगह में भी करके अच्छी कमाई कर सकते है | इसमें बहुत कम लागत और थोड़ी पूँजी की जरूरत होती है | चीन और अमेरिका के बाद अंडा उत्पादन के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है, और मांस उत्पादन में भारत को 5वा स्थान प्राप्त है , मुर्गी पालन को पोल्ट्री फार्मिंग या कुक्कुट पालन भी कहते है | अगर सही प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद यह व्यवसाय आरम्भ किया जाए तो मुर्गी पालन से अधिक लाभ लिया जा सकता है | बाजार में देसी मुर्गी के अंडे और मांस के अच्छे दाम मिल जाते है | देसी मुर्गी पालन के लिए मुर्गी का चयन और पालन की प्रक्रिया की जानकारी प्राप्त कर आप मुर्गी पालन कर सकते है | यहाँ पर आपको देसी मुर्गी पालन [Deshi Murgi Palan] कैसे करें, देसी मुर्गी पालन के बारे में जानकारी दी जा रही है |
देशी मुर्गी पालन शायद सबसे आसान कुक्कुट प्रबंधन विधियों में से एक है क्योंकि इसमें न्यूनतम श्रम शामिल है। यह कुछ ऐसा है जिसे करने में परिवार के सदस्य हाथ मिला सकते हैं। जानें कि भारत में देशी चिकन फार्म परियोजना कैसे शुरू करें (देसी मुर्गी पालन या देसी मुर्गी पालन)।
देसी मुर्गी या देसी मुर्गी पालन की पोल्ट्री फार्मिंग भारत में दशकों से चली आ रही है। आमतौर पर पिछवाड़े में मुर्गी पालन में स्थानीय, देसी पक्षियों को पाला जाता है। परंपरागत रूप से इन पक्षियों में व्यावसायिक ब्रायलर और लेयर फार्मिंग की तुलना में अंडा और मांस उत्पादन क्षमता कम थी। लेकिन बेहतर स्ट्रेन के साथ प्रदर्शन में काफी सुधार होता है। कम प्रारंभिक निवेश और उच्च आर्थिक रिटर्न देशी चिकन का सबसे बड़ा दायरा है। प्रति व्यक्ति प्रोटीन की खपत भारत में काफी समय से चिंता का विषय रही है। इसके लिए अंडा और पोल्ट्री मीट सबसे सस्ता और आसानी से उपलब्ध विकल्प है। हालांकि पिछले कुछ दशकों में पोल्ट्री फार्मिंग में जबरदस्त वृद्धि हुई है, लेकिन ग्रामीण पोल्ट्री में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह काफी हद तक उपेक्षित क्षेत्र रहा है। कुंजी पालन, बेहतर प्रबंधन प्रथाओं और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने में निहित है।
देशी मुर्गी पालन के फायदे
देशी मुर्गी पालन के लाभ इस प्रकार हैं:
- कम प्रारंभिक निवेश उच्च आर्थिक रिटर्न के साथ जुड़ा हुआ है।
- कंट्री चिकन फार्म को सिर्फ दो पक्षियों के साथ शुरू किया जा सकता है और धीरे-धीरे एक झुंड में बढ़ाया जा सकता है।
- स्थानीय मुर्गियों की उच्च मांग के कारण, उनके द्वारा उत्पादित पक्षियों और अंडों को मौसम के बावजूद स्थानीय बाजार में बेचा जा सकता है।
- बचे हुए चारे, अनाज और विभिन्न कृषि उप-उत्पादों का उपयोग पक्षियों के चारे के रूप में किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, फ़ीड लागत नगण्य है।
- देसी मुर्गी या ‘देसी मुर्गी’ और ब्राउन एग वैरायटी की अन्य नस्लों के मुकाबले ज्यादा डिमांड है।
- व्यावहारिक रूप से कोई श्रम लागत शामिल नहीं है क्योंकि परिवार के सदस्य विशेष रूप से बच्चे और वरिष्ठ नागरिक खेत को बनाए रखने में ‘मजदूर’ के रूप में कार्य करते हैं। इसलिए यह परिवार की आय को बढ़ावा देने वाला है।
- चूंकि अंडे और कुक्कुट पक्षियों को लगभग किसी भी समय बेचा जा सकता है, ग्रामीण कुक्कुट ‘किसी भी समय धन’ का एक रूप है।
- अगर पक्षियों को जैविक फार्म में पाला जाता है तो मुर्गी और अंडे की गुणवत्ता काफी बेहतर होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पक्षियों को तनाव मुक्त वातावरण में पाला जाता है। इस विधि में पोल्ट्री अपशिष्ट जैसे गोबर, अतिरिक्त चारा आदि को सीधे जैविक खाद के रूप में लगाया जाता है और फसल की उपज में वृद्धि होती है।
देशी मुर्गी की नस्लें (Native Chicken Breeds)
देसी मुर्गी में भी कई प्रजातियां मौजूद है, जिनकी अपनी अलग-अलग विशेषताएँ होती है, यहाँ पर आपको मुख्य प्रजातियों की जानकारी दी जा रही है:-
- ग्रामप्रिया देसी मुर्गी :- इस प्रजाति की मुर्गी से हमें अंडे और मांस दोनों का उत्पादन मिलता है | ग्रामप्रिया मुर्गी का वजन 1500 GM से 2000 GM के आसपास होता है | इस क़िस्म के मांस का इस्तेमाल सबसे अधिक तंदूरी चिकन बनाने के लिए करते है | ग्रामप्रिया एक वर्ष में औसतन 210 से 225 अंडो का उत्पादन दे देती है | जिसमे अंडो का भार 57 से 60 GM और रंग भूरा होता है |
- श्रीनिधि :- इस प्रजाति की मुर्गी का वजन 2.5 से 5 KG तक होता है | गावो की मुर्गियों की तुलना यह अधिक वजनी होती है | श्रीनिधि मुर्गियों से तो तरह से लाभ कमा सकते है | इस प्रजाति की मुर्गी से आपको अधिक मांस और अंडे दोनों ही मिल जाते है, जो अधिक मुनाफा देने में सक्षम है | इस प्रजाति की मुर्गिया अधिक तेजी से विकास करती है |
- वनराजा देसी मुर्गी :- देसी मुर्गी की यह प्रजाति भी काफी अच्छी मानी जाती है | वनराजा मुर्गिया वर्ष में 120 से 140 अंडे दे देती है | हालाँकि अन्य प्रजातियों की तुलना में यह प्रजाति थोड़ा कम सक्रिय है |
देसी मुर्गी पालन के फायदे (Domestic Poultry Farming Benefits)
- देसी मुर्गी का मांस अधिक स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है |
- बाज़ारो में भी देसी मुर्गी की अधिक डिमांड रहती है |
- बाजार में इसके अच्छे दाम मिल जाते है |
- किसान भाई इसका पालन बैकयार्ड मुर्गी के रूप में भी कर सकते है |
- गरीब किसान देसी मुर्गी पालन को अपनी कमाई का जरिया बना सकते है |
- देसी मुर्गी पालन कम लागत में भी कर सकते है |
- आमदनी बढ़ाने में किसानो का अतिरिक्त साधन बन सकता है |
देसी मुर्गी पालन कैसे करे (Desi Poultry Farming)
किसी भी तरह के मुर्गी पालन में उनका भविष्य पोषण पर निर्भर होता है | अगर आप पाली गयी मुर्गियों को अच्छा पोषण देंगे तो उनका विकास भी उतना ही अच्छा होगा | आज-कल बाज़ारो में मुर्गियों के लिए आसानी से पोषित आहार मिल जाता है | जिसे खरीद कर मुर्गियों को दे सकते है | लेकिन अगर आप बाजार से आहार नहीं खरीदना चाहते है, तो आप घर पर भी आहार तैयार कर खिला सकते है | आहार तैयार करते समय एक बात का ख्याल रखे कि आहार दूषित या उसमे किसी तरह की हानिकारक चीज न मिली हो | ख़राब व् हानिकारक आहार से मुर्गियों की मृत्यु भी हो सकती है |
घर पर देसी मुर्गी का पालन (Domestic Poultry Farming at Home)
यदि आपके घर में काफी जगह है, तो आप अपने घर में भी देसी मुर्गियों का पालन सरलता से कर सकते है | मुर्गी पालन में मुर्गियों के लिए ऐसी जगह होनी चाहिए, जहा उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो और वह आराम से रह सके | इसके अलावा केवल आपको मुर्गियों के लिए पोषित आहार पर ध्यान देना होता है, क्योकि मुर्गी के मांस और अंडे देने की क्षमता उसके खान-पीन पर निर्भर करती है | इस तरह घर पर भी देसी मुर्गी का पालन किया जा सकता है | कुछ लोग तो घर की छतो पर ही मुर्गी पालन कर लेते है, अगर आपके पास भी बड़ी छत है, तो मुर्गियों को वहां भी पाला जा सकता है |
देसी मुर्गी पालन में ध्यान रखने योग्य बाते (Domestic Poultry Farming Important Things)
अगर आप छोटे पैमाने पर देसी मुर्गी का पालन कर रहे है, तो आपको शेड तैयार करने की जरूरत नहीं होती है | किन्तु बड़े पैमाने पर व्यापारिक तौर पर देसी मुर्गी का पालन करने के लिए वैज्ञानिक पद्धति को अपनाना होता है | अगर योजनाबद्ध तरीके से देसी मुर्गी का पालन किया जाए तो कम लागत में भी अधिक कमाई की जा सकती है | इसके लिए बस तकनीकी चीजों पर ध्यान देना होता है | रख-रखाव में कमी और लापरवाही से मुर्गियों को हानि पहुँचती है, तथा उनके मरने जैसी समस्या भी देखने को मिल सकती है | तकनीकी चीजों पर ध्यान देने के लिए फार्म निर्माण के दौरान इस बात का ध्यान रखे कि फार्म ऐसी जगह पर हो जहा पानी और बिजली की उचित व्यवस्था हो, तथा फार्म मैन रोड से दूर भी होना चाहिए | फार्म को भूमि से ऊंचाई पर बनाए, ताकि फार्म में जलभराव न हो सके |
एक स्थान पर दो पोल्ट्री फार्म न हो, तथा फार्म की लंबाई पूरब से पश्चिम की तरफ हो | फार्म की ऊंचाई मध्य में 12 फ़ीट और साइड में 8 फ़ीट तक हो | इसकी अधिकतम चौड़ाई 25 फ़ीट और शेड का अंतर न्यूनतम 20 फ़ीट होना चाहिए | पोल्ट्री फार्म की फर्श पक्की होनी चाहिए |
एक शेड में केवल एक ही ब्रीड के चूजों का पालन करे | इसके अलावा आल-इन आल-आउट पद्धति पालन करने के साथ ही बर्तनो की निरंतर साफ़ सफाई करते रहे | शेड के अंदर बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित रखे, तथा चूहा, कुत्ता, गिलहरी से मुर्गियों की हमेशा देखभाल करे | मरे हुए चूजों और वैक्सीन की खाली बोतलों को जलाकर नष्ट कर दे | टीकाकरण नियमो का पालन करे शेड के बाहर समय-समय पर दवाई का छिड़काव करे |
देसी मुर्गी आहार खपत (Desi Chicken Diet Consumption)
एक एवरेज के अनुसार यह देखा गया है, कि एक मुर्गी तक़रीबन 100 GM फीड करती है | अगर आपने 50 मुर्गिया पाली है, तो 50 मुर्गीया 5 KG आहार को फीड करेंगी | यदि 1 KG फीड की कीमत 20 रूपए है, तो आपका खर्च 250 रूपए आएगा | इस तरह से 50 मुर्गियों के फीड पर 3 हज़ार रूपए खर्च होंगे और 500 रूपए दवा का खर्च और 500 रूपए अन्य खर्च रख ले, तो कुल खर्च 4000 रूपए के आसपास बैठता है |
देसी मुर्गी पालन के लिए प्रशिक्षण (Indigenous Poultry Farming Training)
अगर आपने कभी मुर्गी पालन का कार्य नहीं किया है, तो देसी मुर्गी पालन करने से पहले आपको प्रशिक्षण लेना जरूरी होता है | लेकिन अगर आप पहले भी मुर्गी पालन कर चुके है, तो बिना प्रशिक्षण के भी आप देसी मुर्गी पालन कर सकते है | आज के समय में लगभग सभी राज्यों के शहरी एवं ग्रामीण इलाको में पोल्ट्री फार्मिंग के लिए मुफ्त में प्रशिक्षण दिया जा रहा है |
मुर्गी पालन के लिए लोन (Poultry Loan)
मुर्गी पालन के क्षेत्र का विस्तार करने के लिए सरकार कई तरह की योजनाए चला रही है | इन योजनाओ में देसी मुर्गी पालन लोन योजना भी शामिल है | अगर आप देसी मुर्गी का पालन करना चाह रहे है, तो किसी भी बैंक में जाकर देसी मुर्गी पालन के लिए लोन आवेदन कर सकते है, और लोन प्राप्त करके मुर्गी पालन शुरू कर सकते है |
इसमें सबसे खास बात यह है, कि यहाँ पर आपको सरकार 0% ब्याज की दर पर ऋण (Loan) दे देती है | इसके अलावा लोन पर सब्सिडी भी दी जाती है| जिसमे सामान्य श्रेणी (General Category) के लोगो को 25% सब्सिडी, एसटी / एससी श्रेणी वाले लोगो को 35% तक सब्सिडी की सुविधा दी जाती है |
देसी मुर्गी पालन से कमाई (Desi Poultry Farming Earning)
अगर आप 50 देसी मुर्गियों का पालन करते है | तो आप रोजाना मुर्गी के अंडो को बेचकर 300 से 700 रूपए तक कमा सकते है | यदि मुर्गी की बात की जाए तो देसी मुर्गी की कीमत 300 से 700 रूपए तक जगह के अनुसार कम ज्यादा होती है | इस तरह से आप मुर्गी और उनके अंडो की बिक्री कर काफी अच्छी कमाई कर सकते है |
जानिए देसी मुर्गियों की कुछ प्रमुख नस्लें
असेल नस्ल
यह नस्ल भारत के उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में पाई जाती है। भारत के अलावा यह नस्ल ईरान में भी पाई जाती है जहाँ इसे किसी अन्य नाम से जाना जाता है। इस नस्ल का चिकन बहुत अच्छा होता है। इन मुर्गियों का व्यवहार बहुत ही झगड़ालू होता है इसलिए मानव जाति इस नस्ल के मुर्गों को मैदान में लड़ाते हैं।
मुर्गों का वजन 4-5 किलोग्राम तथा मुर्गियों का वजन 3-4 किलोग्राम होता है। इस नस्ल के मुर्गे-मुर्गियों की गर्दन और पैर लंबे होते हैं तथा बाल चमकीले होते हैं। मुर्गियों की अंडे देने की क्षमता काफी कम होती है।
कड़कनाथ नस्ल
इस नस्ल का मूल नाम कलामासी है, जिसका अर्थ काले मांस वाला पक्षी होता है। कड़कनाथ नस्ल मूलतः मध्य प्रदेश में पाई जाती है। इस नस्ल के मीट में 25% प्रोटीन पायी जाती है जो अन्य नस्ल के मीट की अपेक्षा अधिक है। कड़कनाथ नस्ल के मीट का उपयोग कई प्रकार की दवाइयां बनाने में भी किया जाता है इसलिए व्यवसाय की दृष्टि से यह नस्ल अत्यधिक लाभप्रद है। यह मुर्गिया प्रतिवर्ष लगभग 80 अंडे देती है। इस नस्ल की प्रमुख किस्में जेट ब्लैक, पेन्सिल्ड और गोल्डेन है।
ग्रामप्रिया नस्ल
ग्रामप्रिया को भारत सरकार द्वारा हैदराबाद स्थित अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना के तहत विकसित किया गया है। इसे ख़ास तौर पर ग्रामीण किसान और जनजातीय कृषि विकल्पों के लिये विकसित गया है। इनका वज़न 12 हफ्तों में 1.5 से 2 किलो होता है।
इनके मीट का प्रयोग तंदूरी चिकन बनाने में अधिक किया जाता है। ग्रामप्रिया एक साल में औसतन 210 से 225 अण्डे देती है। इनके अण्डों का रंग भूरा होता है और उसका वज़न 57 से 60 ग्राम होता है।
स्वरनाथ नस्ल
स्वरनाथ कर्नाटक पशु चिकित्सा एवं मत्स्य विज्ञान और विश्वविद्यालय, बंगलौर द्वारा विकसित चिकन की एक नस्ल है। इन्हें घर के पीछे आसानी से पाला जा सकता है। ये 22 से 23 सप्ताह में पूर्ण परिपक्व हो जाती है और तब इनका वज़न 3 से 4 किलोग्राम होता है। इनकी प्रतिवर्ष अण्डे उत्पादन करने की क्षमता लगभग 180-190 होती है।
कामरूप नस्ल
यह बहुआयामी चिकन नस्ल है जिसे असम में कुक्कुट प्रजनन को बढ़ाने के लिए अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना द्वारा विकसित किया गया है। यह नस्ल तीन अलग-अलग चिकन नस्लों का क्रॉस नस्ल है, असम स्थानीय(25%), रंगीन ब्रोइलर(25%) और ढेलम लाल(50%)।
इसके नर चिकन का वज़न 40 हफ़्तों में 1.8 – 2.2 किलोग्राम होता है। इस नस्ल की प्रतिवर्ष अण्डे देने की क्षमता लगभग 118-130 होती है जिसका वज़न लगभग 52 ग्राम होता है।
चिटागोंग नस्ल
यह नस्ल सबसे ऊँची नस्ल मानी जाती है। इसे मलय चिकन के नाम से भी जाना जाता है। इस नस्ल के मुर्गे 2.5 फिट तक लंबे तथा इनका वजन 4.5 – 5 किलोग्राम तक होता है। इनकी गर्दन और पैर बाकी नस्ल की अपेक्षा लंबे होते है। इस नस्ल की प्रतिवर्ष अण्डे देने की क्षमता लगभग 70-120 अण्डे है।
केरी श्यामा नस्ल
यह कड़कनाथ और कैरी लाल का एक क्रास नस्ल है। इस किस्म के आंतरिक अंगों में भी एक गहरा रंगद्रव्य होता है, जिसे मानवीय बीमारियों के इलाज़ के लिए जनजातीय समुदाय द्वारा प्राथमिकता दी जाती है। यह ज्यादातर मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान में पायी जाती है।
यह नस्ल 24 सप्ताह में पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाती है और तब इनका वज़न लगभग 1.2 किलोग्राम(मादा) तथा 1.5 किलोग्राम(नर) होता है। इनकी प्रजनन क्षमता प्रतिवर्ष लगभग 85 अण्डे होती है।
झारसीम नस्ल
यह झारखंड की मूल दोहरी उद्देश्य नस्ल है इसका नाम वहाँ की स्थानीय बोली से प्राप्त हुआ है। ये कम पोषण पर जीवित रहती है और तेज़ी से बढ़ती है। इस नस्ल की मुर्गियाँ उस क्षेत्र के जनजातीय आबादी के आय का स्रोत है। ये अपना पहला अण्डा 180 दिन पर देती है और प्रतिवर्ष 165-170 अण्डे देती है। इनके अण्डे का वज़न लगभग 55 ग्राम होता है। इस नस्ल के पूर्ण परिपक्व होने पर इनका वज़न 1.5 – 2 किलोग्राम तक होता है।
देवेंद्र नस्ल
यह एक दोहरी उद्देश्य चिकन है। यह पुरूष और रोड आइलैंड रेड के रूप में सिंथेटिक ब्रायलर की एक क्रॉस नस्ल है। 12 सप्ताह में इसका शरीरिक वज़न 1800 ग्राम होता है। 160 दिन में ये पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाती है। इनकी वार्षिक अण्डा उत्पादन क्षमता 200 है। इसके अण्डे का वज़न 54 ग्राम होता है।
श्रीनिधि
इस प्रजाति की भी मुर्गियां दोहरी उपयोगिता वाली होती हैं यह लगभग 210 से 230 अंडे तक देती है। इनका वजन 2.5 किलोग्राम से 5 किलोग्राम तक होता है जो कि ग्रामीण मुर्गियों से काफी ज्यादा होता है और इन से अधिक मात्रा में मांस और अंडे दोनों के जरिए अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। इस प्रजाति की मुर्गियों का विकास काफी तेजी से होता है।
वनराजा
शुरुआत में मुर्गी पालन करने के लिए यह प्रजाति सबसे अच्छी मानी जाती है ये मुर्गी 3 महीने में 120 से 130 अंडे तक देती हैं और इसका वज़न भी 2.5-5 किलो तक जाता है। हलाकि यह प्रजाति अन्य प्रजाति से थोडा कम क्रियात्मक और सक्रिय रहते हैं।
देसी मुर्गी पालन करते समय इन बातों का रखें ध्यान
मुर्गी फार्म
सबसे पहले तो मुर्गियों का फार्म किसी ऊँचे स्थान वाले क्षेत्र में बनाएं जहाँ वर्षा का पानी जमा न हो सके।
आधुनिक उपकरण
आधुनिक उपकरणों में फीडर गर्मी प्रदान करने के लिए लाइट बल्ब तथा हलोजन्स लाइट, दवाई, टीकाकरण की सामग्री इत्यादि।
सही संतुलित आहार
आज कल बाजार में सही संतुलित आहार आसानी से उपलब्ध है जिससे आपके मुर्गियों का विकास तेजी से होता है और अंडा देने की क्षमता भी बढ़ती है।
देखा जाये तो यह देसी मुर्गी पालन व्यवसाय तीन चीज़ों के लिए किया जाता है। मांस के लिए, अंडा के लिए और अंडा मांस दोनों के लिए, कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाना हमारा उद्देश्य है तथा इसके लिए हमें चाहिए के हम सही देसी नस्लों के मुर्गी का चयन करें। जगह के वातावरण के अनुसार ही मुर्गी का नसल का चुनाव करें आजकल बाजार में संकर नस्ल के मुर्गियां भी उपलब्ध हैं जो के अंडा और मांस के लिए काफी लाभदायक हैं।
कड़कनाथ मुर्गी
कड़कनाथ मुर्गी पालन की पूरी जानकारी
आपने कभी ना कभी कड़कनाथ मुर्गे का नाम जरूर सुना होगा तो आपके मन मे ये जिज्ञासा जरूर आई होगी की कडकनाथ मुर्गा क्या है और इसको पालने से क्या फायदे होते होंगे तो चलिए सबसे पहले आपको ये बताते है की कड़कनाथ मुर्गे की उत्पत्ति कहा हुई कड़कनाथ मुर्गे की उत्पत्ति मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के जंगलों मे मानी जाती है कड़कनाथ मुर्गा सबसे ज्यादा चर्चा मे तब आया था जब भारत के मशहूर क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी ने इसका पालन शुरू किया है ये खबर अखबारों मे छपी थी |
कड़कनाथ मुर्गे पालन का प्रचलन एक समय हमारे देश मे सुरू मे बहोत बड़ी स्तर हो रहा था मार्केट मे ये भी प्रचारित किया गया था की इसका मीट 1500 रुपया किलो तक बिकता है जिसके बाद बाद की फर्जी कंपनियों द्वारा कई राज्यों मे भोले किसानों से ठगी भी की गई थी उस समय भी कड़कनाथ मुर्गा काफी चर्चा मे आया था |
कड़कनाथ मुर्गी पालन कैसे करे –
कड़कनाथ मुर्गी पालन करने के लिए सबसे पहले आपको अपने लोकल मार्केट मे इसकी डिमांड और प्रति किलो दाम आदि चीजों के बारे मे पता कर लेना चाहिए क्यूंकी अभी तक कडक नाथ मुर्गे के बाजार भाव मे काफी उतार चढ़ाव देखने को मिला है भारत के कुछ राज्यों मे इसका दाम 500 रुपया प्रति किलो तो कुछ राज्यों मे सिर्फ 300 प्रति किलो भी मिलना मुश्किल हो जाता है |
कड़कनाथ मुर्गे की विशेषताए – कड़कनाथ मुर्ग जो की देखने मे एकदम काले रंग का होता है और इसका मांस के साथ इसके खून का रंग भी काला होता है इसमे प्रोटीन की बहोत अच्छी मात्रा पाई जाती है और इसमे कोलेस्ट्रॉल और वसा का स्तर काफी कम पाया जाता है जिसकी वजह से दिल मरीजों को की बार डॉक्टर कड़कनाथ मुर्गा खाने की सलाह देते है |
कम पैसे मे कड़कनाथ पालन कैसे करे – कड़कनाथ मुर्गा बिल्कुल देशी मुर्गे की तरह होता है या यह कह सकते है की कड़कनाथ मुर्गा देशी मुर्गा ही होता है है जिस तरह देशी मुर्गा हरा चारा , बचा हुआ खाना आदि खा लेता है उसी तरह आप कडक नाथ का भी पालन कर सकते है कड़कनाथ को आप दो तरह से पाल सकते है –
1 – पॉल्ट्री शेड के अंदर कमर्शियल फ़ीड खिलाकर – अगर आप कड़कनाथ को व्यवसायिक रूप मे लगभग 100 की संख्या के ऊपर इसका पालन करेंगे तो आपको कड़कनाथ मुर्गे को पॉल्ट्री फ़ीड खिलाना चाहिए जिसमे की प्री स्टार्टर , स्टार्टर ,और फिनिसर आता है जिससे कम समय मे आप की मुर्गीया तैयार हो जाए |
2 – अगर आपको बैकयार्ड मे कम से कम संख्या मे कड़कनाथ मुर्गी पालन करना है तो आपको फ्री रेंज मे कड़कनाथ मुर्गे का पालन करना चाहिए जिसके लिए लिए आपको बहोत कम फ़ीड और जगह की जरूरत होगी फ्री रेंज मे मुर्गियों का फ़ीड प्रबंधन दो तरह से किया जाता है प्रथम तो अगर आप का बजट बहोत ही कम है आप फ़ीड पर नहीं खर्च कर सकते तो इसके लिए आप सुरू के 10 दिनों तक इन्हे प्री स्टार्टर दे सकते है और बाद मे घर का बना फ़ीड हरा चारा , बरसीम आदि दे सकते है इससे आपका फ़ीड पर खर्च लगभग 50 प्रतिशत तक बचा सकते है लेकिन इससे आपको ये नुकसान उठाना पड़ेगा की मुर्गे का वजन जितना तीन महीने मे होने वाला था वो कम से कम पाँच महीने लग जायेगे तो यह पर आप फ़ीड कोस्ट तो कम कर सकते है लेकिन समय की बर्बादी होगी |
फ्री रेंज मे इन्हे पालने का दूसरा तरीका ये है की आप इन्हे सिर्फ 10 दिनों तक प्री स्टार्टर खिलाए और बाद मे 100 प्रतिशत फ्री रेज मे फ़ीड खिलाए जैसा की बहोत सारे किसान करते है जो की इनका पालन सिर्फ सड़ी गली सब्जिय हरे चारे , बचा हुआ बासी खाना आदि खिलाकर लेकिन यहाँ पर आपको एक चीज का विशेष रूप से खयाल रखना चाहिए की अगर हमे 50 की संख्या से कम मुर्गों का पालन हमे करना करना है तभी इस तरह से फ्री रेंज मे इनका पालन करना चाहिए क्यों इस तरह अगर आप मुर्गा पालन करेंगे तो आपको बहोत समय लग जाएगा जो मुर्गा 3 महीने मे 1 किलो का होना चाहिए उसको 1 किलो का होने मे लगभग 5 महीने तक लग सकते है |
कड़कनाथ मुर्गी पालन के लिए क्या सावधानिया रखे –
- कड़कनाथ मुर्गी पालन शुरू करने के पहले अपने लोकल पोल्ट्री मार्केट मे इसका भाव पता करे |
- |मुर्गी पालन शुरू र्करने के पहले इसकी ट्रेनिंग कृषि विज्ञान केंद्र या किसी ऐसे पॉल्ट्री फार्म से ले जहा पर कड़कनाथ मुर्गा पालन किया जा रहा हो |
- कड़कनाथ के ओरिजनल और स्वस्थ चूजे ही मंगाए सुनिश्चित करे जिस भी हेचरी ही मुर्गी के बच्चे ऑर्डर करे वह भरोसेमंद हो |
- पॉल्ट्री फार्म बनाते समय जिला कुक्कुट विभाग के संपर्क करके या किसी पॉल्ट्री फार्मर से संपर्क करके ही पॉल्ट्री शेड का निर्माण करे |
कड़कनाथ मुर्गी पालन क्यों करे – कड़कनाथ मुर्गा पालन हम क्यों करे और जब हमारे पास पहले से बहोत सारे विकल्प मौजूद है तो ऐसी क्या खूबी कड़कनाथ मुर्गे मे है जिसकी वजह से हमे इसका पालन करना चाहिए तो चलिए जानते है –
- कड़कनाथ मुर्गे का काफी प्रचार प्रसार हो गया है जिसकी वजह से कड़कनाथ मुर्गा एक पॉल्ट्री ब्रांड बन चुका है जिसकी वजह से इसकी मार्केटिंग मे कोई समस्या नहीं होती भारत के किसी भी हिस्से मे कड़कनाथ को आप बेच सकते है |
- कड़कनाथ मुर्गा काफी मजबूत नस्ल मानी जाती है मुर्गों की अन्य नस्लों की तुलना मे इसकी इम्यूनिटी बहोत अधिक होती है जिसके वजह से ये जल्दी बीमार नहीं होती |
- छोटे किसान जिनके पास पूंजी की कमी है और वो कम जगह मे मुर्गी पालन शुरू करना चाहते है कड़कनाथ उनके लिए बहोत अच्छा विकल्प है ऐसे किसान छोटे स्तर पर कड़कनाथ मुर्गी पालन घर के बैकयार्ड मे कर सकते है और बाद मे इसे बड़े स्तर पर ले जा सकते है |
- कड़कनाथ मुर्गी पालन मे मुर्गी की अन्य नस्लों की अपेक्षा अभी ज्यादा मुनाफा है पूरे भारत मे इसकी अच्छी खासी डिमांड है |
सरकारी मदद से कड़कनाथ मुर्गी पालन कैसे शुरू करे –
देश के लगभग सभी राज्यों मे नाबार्ड के पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड और रक्षत्री राष्ट्रीय पशुधन मिशन के अंतर्गत आप कड़कनाथ पोल्ट्री फार्म के लिए ऋण और सब्सिडी के साथ बहुत अच्छा लाभ ले सकते है जिसमे की सामान्य श्रेणी के मुर्गी पालक को 25% अनुदान तथा BPL और ST/ST तथा उत्तर पूर्वी राज्य मे रहने वाले किसानों को 33% सब्सिडी का प्रावधान है |
कड़कनाथ मुर्गी पालन की शुरुआत कैसे कर्रे / कड़कनाथ मुर्गी पालन शुरू करने का सही तरीका
दोस्तों कड़कनाथ मुर्गी पालन आप सामान्य देशी मुर्गियों की तरह ही कर सकते है | इसको भोजन के रूप मे आप चाहे तो बरसींम,बाजरा ,हरी सब्जियों के अवशेष,अनाज चोकर ,आदि भी दे सकते है अगर छोटे स्तर पर करते है और अगर आप बड़े स्तर पर आप इनका पालन करना चाहते है तो आपको कमर्शियल पोल्ट्री फ़ीड ही खिलाना चाहिए |
कड़कनाथ मुर्गी पालन की अगर आप शुरुआत कर रहे है तो आपको शुरू मे इसे छोटे स्तर पर ही करना चाहिए, इशकी शुरुआत आपको 30-35 चूजों से ही करनी चाहिए और इनके चूजों को खरीदने के लिए आपको नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करना चाहिए |
अगर आप कड़कनाथ मुर्गी पालन शुरू करना चाहते है आपके लिए कुछ जरूरी बातों का विशेष रूप से धयान रखना चाहिए –
- सबसे पहले आपको किसी कड़कनाथ पोल्ट्री फार्म मे कुछ दिन जाना चाहिए जहा पर आपको कड़कनाथ मुर्गी पालन के रखरखाव और इसके ऊपर होने वाले सभी प्रकार के खर्चों का का आकलन करके इनका लेखा जोखा तैयार करना चाहिए |
- इसके बाद आप कड़कनाथ पोल्ट्री फार्म के लिए स्थान को चुने , और निश्चित करे आपको कितना बड़ा पोल्ट्री फार्म बनवाना है , साथ मे ध्यान दे की आपको पोल्ट्री फार्म आबादी से कम से कम 500 मीटर दूरी पर बनाना है |
- सही स्थान चुनने के बाद पोल्ट्री शेड का निर्माण करे |
- इसके बाद आपको चूजों के आहार के लिए दाना , पानी का प्रबंध करना चाहिए , और आहार के लिए आप चाहे तो कमर्शियल पोल्ट्री फ़ीड की व्यवस्था भी कर सकते है |
- मुर्गियों मे कई प्रकार की बीमारिया लगती है , जिनके लिए आपको सभी टीकों की व्यवस्था भी करनी चाहिए |
- इसके बाद आप चाहे तो कृषि विज्ञान से संपर्क करके कड़कनाथ के चूजों को मँगवा सकते है और अपना कड़कनाथ मुर्गी पालन व्यवसाय शुरू कर सकते है |
कड़कनाथ मुर्गे का बाजार भाव क्या मिलता है –
आप ने किसी से कभी सुना या पढ़ा होगा की कड़कनाथ मुर्गे का भाव 1000 रुपये प्रति किलो तक है , जो की सरासर झूठ है , इसिलए पोस्ट मे हमने आपको कड़कनाथ मुर्गी पालन शुरू करने के पहले एक बार आप के पोल्ट्री मार्केट मे भाव पता करने की सलाह दी है |
कड़कनाथ मुर्गे के अगर सही दाम की बात करे तो इसका खुदरा दाम आपको कम से कम 500 रुपया प्रति किलो तक मिल सकता है , और अधिकतम 550 रुपया और इसको अगर आप होलसेल के दाम मे बेचेंगे तो आपको कम से कम 350/ प्रति किलो और अधिकतम 400 रुपया तक मिल सकता है |
कई राज्यों मे इसका दाम थोड़ा कम ज्यादा हो सकता है लेकिन अधिकतर राज्यों मे इसका यही दाम आपको देखने को मिलेगा |
कड़कनाथ का चूजा कितने का मिलता है – कड़कनाथ मुर्गी का एक दिन का चूजा आको हेचरी पर अधिक से अधिक 90 रुपये मे और कम से कम 70 रुपये तक मिल जाता है इससे अधिक दाम आपको नहीं देना चाहिए |
चूजों को मँगवाते समय आपको निश्चित करना चाहिए की जो चूजे आप मँगवा रहे हो वो असली हो |
कारी श्यामा (कडकनाथ × केरी रेड)
कालामासी: काले मांस (फ्लैश) वाला मुर्गा
- पुराने मुर्गे का रंग नीले से काले के बीच होता है जिसमें पीठ पर गहरी धारियां होती हैं।
- इसका मांस और अंडे प्रोटीन (मांस में 25-47 प्रतिशत) तथा लौह एक प्रचुर स्रोत माना जाता है, वसा और मांस में रेशा कम।
- 20 सप्ताह में शरीर वजन (ग्राम)- 920
- यौन परिपक्वता में आयु (दिन)- 180
- वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 210
- 40 सप्ताह में अंडे का वजन (ग्राम)- 49
- कारी निर्भीक (एसील × केरी रेड)
- एसील को अपनी तीक्ष्णता, शक्ति, मैजेस्टिक गेट या कुत्ते से लड़ने की गुणवत्ता के लिए जाना जाता है।
- इस नस्ल का गृह आंध्र प्रदेश माना जाता है।
- इन्हें शौकीन लोगों और पूरे देश में मुर्गे की लड़ाई-शो से जुड़े हुए लोगों द्वारा पाला जाता है।
- बीस सप्ताह में ही इसका वजन 1847 ग्राम हो जाता है
- यौन परिपक्वता की आयु (दिन) 196 दिन है।
- वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 198-200
- हितकारी(भारतीय देसी मुर्गी नेकेडनेक × विदेशी मुर्गी केरी रेड )
- नैक्ड नैक परस्पर बड़े शरीर के साथ-साथ लम्बी गोलीय गर्दन वाला होता है, पक्षी की गर्दन पूरी नंगी या गालथैली (क्रॉप) के ऊपर गर्दन के सामने पंखों के सिर्फ टफ दिखाई देते हैं।
- आतंरिक गर्मीं निकालने में सहायक
- मूल आवास :केरल का त्रिवेन्द्रम क्षेत्र
- गर्मी में मृत्युदर कम
- 20 सप्ताह में शरीर का वजन (ग्राम)- 1005
- यौन परिपक्वता में आयु (दिन)- 201
- वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 200
- 40 सप्ताह में अंडे का वजन (ग्राम)- 54
उपकारी (देसी मुर्गी × केरी रेड)
- यह विशिष्ट मुरदार-खोर (स्कैवइजिंग) प्रकार का पक्षी
- उपकारी पक्षियों की चार किस्में उपलब्ध हैं जो विभिन्न कृषि मौसम स्थितियों के लिए अनुकूल है।
काडाकनाथ X केरी रैड
असील X केरी रैड
नैक्ड नैक X केरी रैड
फ्रिजल X केरी रैड
इस मुर्गी के शरीर से तेजी से गर्मी निकल जाती है जिस कारण इसे उषणकटिबंधीय जलवायु विशेषकर शुष्क क्षेत्रों में भी पाला जा सकता है।
- यौन परिपक्वता की आयु 170-180 दिन
- वार्षिक अंडा उत्पादन 165-180 अंडे
- अंडे का आकार 52-55 ग्राम
- अंडे का रंग भूरा होता है।
- गिरिराज (देशी मुर्गी विदेशी सफ़ेद कलंगी वाली नश्ल)
ड्यूल पर्पस नस्ल
अन्य उच्च उत्पादन की शंकर नस्लें
IBL-80, B-77, MH-260, IBI-91, ILI-80, ILS-82, IBB-83
इनमें से IBL-80, ILS-82 एवं B-77प्रतिवर्ष 200 जबकि HH-260 एक वर्ष में 260 अंडे देती है।
लेयर्स
कारी सोनाली लेयर (गोल्डन- 92)
- 18 से 19 सप्ताह में प्रथम अंडा
- 155 दिन में 50 प्रतिशत उत्पादन
- व्यस्तम उत्पादन 27 से 29 सप्ताह
- उत्पादन (96 प्रतिशत) तथा लेयर (94 प्रतिशत) की सहनीयता
- व्यस्तम अंडा उत्पादन 90 प्रतिशत
- 265 अंडों से ज्यादा 72 सप्ताह तक हैन-हाउस
अंडे का औसत आकार
ब्रायलर
- कारीब्रो – विशाल( कारीब्रो-91)
- दिवस होने पर वजन – 43 ग्राम
- 6 सप्ताह में वजन – 1650 से 1700 ग्राम
- 7 सप्ताह में वजन – 100 से 2200 ग्राम
- ड्रैसिंग प्रतिशतः 75 प्रतिशत
- सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
- 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 94 से 2.20
कारीब्रो-धनराजा (बहु-रंगीय)
- दिवस होने पर वजन – 46 ग्राम
- 6 सप्ताह में वजन – 1600 से 1650 ग्राम
- 7 सप्ताह में वजन – 2000 से 2150 ग्राम
- ड्रेसिंग प्रतिशतः 73 प्रतिशत
- सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
- 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 90 से 2.10
कारीब्रो- मृत्युंजय (कारी नैक्ड नैक)
- दिवस होने पर वजन – 42 ग्राम
- 6 सप्ताह में वजन – 1650 से 1700 ग्राम
- 7 सप्ताह में वजन – 200 से 2150 ग्राम
- ड्रैसिंग प्रतिशतः 77 प्रतिशत
- सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
- 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 9 से 2.0
मुर्गियों में प्रजनन की प्रक्रिया एवम् उप नस्ल कैसे तैयार करें
जनन जीवों कीं एक जैविक क्रिया है जिसमें नर व मादा के सह्वास के फल स्वरूप नये जीव की उत्पत्ति होती है।
नर के शुक्राणु तथा मादा के अंडाणु के मिलने पर निशेचन होता है जिससे भ्रूण बनना है जो पशु के गर्भाशय में एक निश्चित समय तक रह्कर मां से पोषण प्राप्त कर धीरे- धीरे विकसित होकर नये जीव के रूप में जन्म लेता है।
नर प्रजनन तंत्र
नरों में प्रजनन तंत्र निम्न अंगों से बना होता है:
अण्ड कोष (२), एपेडिडीमिस(२), वास डिफेरेंस(२), पैपिला, कोपुलेटरि अंग
क्लोएका : यह मुर्गियों के आहार नाल का अंतिम छोर होता है जिसमें से आहार नाल, जनन नाल एवं मूत्र नाल के अंतिम उत्पाद गुज़रते हैं।
पैपिला: यह अंग वास डिफरेंस के अंत पर एवं क्लोएका के आधार वाले स्थान पर होता है पैपिला के माध्यम से सीमेन मादा के क्लोएका में त्यागा जाता है।
फेलस: यह एक अवशेषी कपोलट्री अंग होता है जो सीमेन को मादा में संचयित करने में सहायता करता है।
मादा प्रजनन तंत्र
ओवरी, ओवीडक्ट, क्लोएका
ओवरी: ओवम का बनना
इन्फैन्डीबुलम: ओवरी से योक? को ग्रहण करना
मैगनम: सफ़ेद गाढ़ा द्रव्य बनाना 3 घंटे बाद
इस्थमस: योक के आसपास झिल्लियों का निर्माण 1 ¼ घंटे बाद
यूटेरस: पतली सफ़ेद एवं बाहरी सफ़ेद कवच का निर्माण 20 घंटे बाद
वेजाइना: पूर्ण रूप से तैयार अंडे का संग्रहण
कुल : 25-27 घंटे
क्लोएका : यह मुर्गियों के आहार नाल का अंतिम छोर होता है जिसमें से आहार नाल, जनन नाल एवं मूत्र नाल के अंतिम उत्पाद गुज़रते हैं।
पैपिला: यह अंग वास डिफरेंस के अंत पर एवं क्लोएका के आधार वाले स्थान पर होता है पैपिला के माध्यम से सीमेन मादा के क्लोएका में त्यागा जाता है।
फेलस: यह एक अवशेषी कपोलट्री अंग होता है जो सीमेन को मादा में संचयित करने में सहायता करता है।
नया जीव बनने यानी निषेचन की प्रक्रिया तभी पूर्ण होगी जब अंडाणु अंडाशय से बाहर निकलते ही तुरंत शुक्राणु से मिल जाए, ऐसी स्थिति में भ्रूण बनता है।
अगर निषेचन ना भी हो तब भी अंडाणु अपना सफर पूरा करता है एवं अनिषेचित अंडे के रूप में मुर्गी के शरीर से बाहर निकलता है।
मुर्गियों में संसर्ग/मैटिंग की प्रक्रिया
मेटिंग: नर एवं मादा का आपस में मिलना जिससे कि मादा निषेचन युक्त अंडे पैदा कर सके।
- नर कितनी मादाओं से मेटिंग कर सकता है ये उसकी नस्ल, शरीर का भार, मौसम, उम्र, शारीरिक क्षमता आदि पर निर्भर करता है। जैसे कि लेग हॉर्न मुर्गे में रोड आइसलैंड की तुलना में अधिक मादा के साथ रखा जा सकता है।
- जवान उम्र के कोकरेल में अधिक आयु से अधिक क्षमता होती है।
- बसंत ऋतू में बेहतर मैटिंग होती है।
- मैटिंग के समय मुर्गियों में व्याहारिक परिवर्तन देखे जाते हैं।
मैटिंग की शुरुआत नर के अनुरंजन/ कोर्टशिप व्यवहार से होती है, इसमें नर एक पंख निचे और झुकाता है एवं एक परिमंडल में नृत्य करने लगता है एवं मादा सर एवं पुरे शरीर को नीचे की और दुबकने लगती है ताकि वह नर को ग्रहण कर सके अब नर मादा पर चढ़ता है एवं उसकी कलगी को, गर्दन के पंखों इत्यादि को जकड लेता है। - एक और व्यवहार में नर मादा की और दौड़ता है और मादा की पीठ पर चढ़कर मैटिंग को पूर्ण करता है।
नर अंत में अपनी पूँछ को मादा की पूँछ की बगल में रखकर अपनी पूँछ के पंखों को फैलाता है जिससे की नर मादा की क्लोएका संपर्क में आती है इसी समय नर मादा की वेजाइना में शुक्राणुओं को छोड़ देता है। - नर में एक छोटा फेलस होता है जो लिम्फ से भर जाता है एवं एक तरह से मैथुन करने वाला अंग बना लेता है।
- यह मैथुन वाला अंग अवशेषी होता है एवं प्रयोगात्मक रूप से मादा वेजाइना को बहिरवलित करती है जिससे की सीमेन औविडक्ट में आसानी से चला जाता है।
मैटिंग के व्यहार को जानने की आवश्यकता
फ्लॉक का उपजाऊपन अच्छा रहेगा, औसत रहेगा या खराब रहेगा ।
मैटिंग व्यवहार देखने का सबसे अच्छा समय
सुबह सुबह
देर दोपहर
मुर्गियों में संसर्ग/मैटिंग की प्रक्रिया
मेटिंग के प्रकार
पेन मेटिंग: १० मुर्गियां+एक मुर्गा, मेटिंग के लिए एक पेन में साथ में रखे जाते हैं।
फ्लॉक मेटिंग: यहां अधिक संख्या में मुर्गियों को मुर्गों के साथ रखा जाता है, इसमें भी १० मुर्गियां+एक मुर्गा के आधार पर ही रखा जाता है।
कमियां: नर अधिक होने से आपस में लड़ाई करते हैं।
अंडे किस नर के हैं यह नहीं पता लगाया जा सकता।
स्टड मेटिंग : इसमें मुर्गियों को बारी बारी से एक मुर्गे के साथ रखा जाता है।
अल्टरनेट नर: इसमें २ नरों का उपयोग किया जाता है परन्तु एक दिन में पुरे दिन के लिए एक मुर्गे को रखा जाता है एवं अगले दिन दूसरे मुर्गे से काम लिया जाता है।
- नर एक समय में १०० मिलियन से ५ बिलियन तक शुक्राणु निषेचित करते हैं।
- सीमेन शुरू में 1 मिली एवं धीरे से ५ मिली होने लगता है।
- एक नर एक दिन में १० से ३० बार तक मैटिंग कर सकता है।
उप नस्ल तैयार करना
नस्ल: एक ही प्रजाति के पशु जो विशेष लक्षणों वाले हो एवं शरीर में समान एवं आकार में समान हो।
वैरायटी: किसी नस्ल का सब डिवीज़न होता है जिन्हें रंग या कलंगी के आधार पर पहचाना जाता हैं।
उप नस्ल: किसी नस्ल का लघु परिवर्तन रूप या द्वितीय नस्ल
क्रॉस प्रजनन में अधिक उत्पादन पैदा करने के लिए पेन मैटिंग का प्रयोग किया जाता है।
देसी नस्लों में क्रॉस प्रजनन कराने के निम्नलिखित लाभ हैं:
- कम चारे पर देसी नस्लों से अधिक मॉस
- कम चारे पर देसी नस्लों से उतने ही अंडे
- वाणिज्यिक चिक उत्पादन के लिए बौने ब्रायलर जनक उत्पन्न करना
- गर्मी सहन करने वाली मुर्गियों का विकास
- देखभाल एवं रख रखाव व्यय काम लगना
सिलेक्शन: जनसंख्या में कुछ विशेष को चुना जाता है जिन्हें आगे पीढ़ियां बनाने में काम में लाया जा सके।
वैयक्तिक सिलेक्शन: किसी वैयक्तिक विशेष को उसके बाहरी लक्षणों के आधार पर चुना जाता है।
पेडिग्री सिलेक्शन: पूर्वजों के रिकॉर्ड के आधार पर चुना जाता है।
फॅमिली सिलेक्शन: पूरी फॅमिली की परफॉरमेंस के आधार पर चुना जाता है।
प्रोजेनी सिलेक्शन: प्रोजेनी की परफॉरमेंस के आधार पर चुना जाता है।
क्रॉस ब्रीडिंग: दो शुद्ध गुणों वाली किस्मों को आपस में क्रॉस करवाना जिससे की दोनों नस्लों के गन मिल सके।
देशी चिकन फार्म के लिए आवास सुविधाएं
चूंकि देशी चिकन मजबूत और अनुकूलनीय प्रकार के होते हैं, इसलिए उन्हें अन्य नस्लों के विपरीत विस्तृत आवास तैयारियों की आवश्यकता नहीं होती है। घरों को पक्षियों को कड़ी धूप, बारिश, हवा और ठंड के तनाव से बचाना चाहिए। उन्हें सर्दियों के दौरान पाले से भी बचाना चाहिए। फ्री रेंज पालन प्रणाली के मामले में पक्षियों को दिन के दौरान चारे के लिए खुला छोड़ दिया जाता है और रात के समय बाड़े में रखा जाता है। सीधी धूप से बचने और अधिकतम वायु परिसंचरण को प्रोत्साहित करने के लिए घरों को उत्तर-दक्षिण दिशा में बनाना चाहिए न कि पूर्व-पश्चिम दिशा में। सस्ते, स्थानीय रूप से उपलब्ध आवास सामग्री जैसे बांस, लकड़ी, फूस, घास आदि का उपयोग घरों के निर्माण के लिए किया जाता है। पानी के जमाव या बाढ़ जैसी स्थिति से बचने के लिए फर्श ऊंचाई पर है। यह चूहे की परेशानी या पानी की दरारों से मुक्त होना चाहिए, यदि आवश्यक हो तो घरों की स्थिति को बदलने में सक्षम होने के लिए पोर्टेबल होना चाहिए और उन्हें आसान सफाई की सुविधा प्रदान करनी चाहिए। चूजों को गर्म रखने और रोशनी प्रदान करने के लिए छत पर एक बल्ब भी लगा होना चाहिए।
खेत का चारा
अन्य प्रकार के पालन-पोषण की तुलना में देशी चिकन में कम से कम फ़ीड खर्च होता है क्योंकि पक्षियों को खुले में मैला ढोने के लिए छोड़ दिया जाता है। प्रोटीन, विटामिन, खनिज और ऊर्जा की उनकी दैनिक पोषक आवश्यकताओं को कीड़े, कीड़े, खरपतवार, घरेलू कचरे, फसल अवशेषों और बचे हुए अनाज से पूरा किया जाता है, जिसे वे मैला ढोने के दौरान इकट्ठा करते हैं और खाते हैं। अतिरिक्त पूरक के रूप में चावल की भूसी, टूटा हुआ चावल, मूंगफली का भूसा आदि दिया जा सकता है। वे दिन में दो बार भोजन करते थे। बरसात के मौसम के दौरान फ़ीड को एक महीने से अधिक समय तक संग्रहीत नहीं किया जाता है क्योंकि फ़ीड में फंगल संदूषण विकसित हो सकता है। बेहतर प्रदर्शन के लिए पक्षियों को प्रतिदिन 30-60 ग्राम अतिरिक्त राशन की आपूर्ति की जा सकती है। विटामिन, खनिज और नमक की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए फ़ीड को गेहूं की भूसी, मछली के भोजन, मक्का, चावल की पॉलिश, शेल ग्रिट या चूना पत्थर के साथ तैयार किया जाता है। एक आदर्श पोल्ट्री फीड को निम्नलिखित आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए:
विकास का चरण | प्रोटीन | ऊर्जा |
स्टार्टर | 20% | 2800 किलो कैलोरी / किग्रा |
उत्पादक | 16% | 2600 किलो कैलोरी / किग्रा |
बिछाना | 18% | 2650 किलो कैलोरी / किग्रा |
वृद्धि के चरण के दौरान पक्षियों को बाजार में उपलब्ध चूजों के लिए मानक आरंभिक आहार दिया जाता है। सफाई के माध्यम से एकत्र किए गए फ़ीड के अलावा, पक्षियों को विकास चरण के दौरान अजोला, सहजन के पत्ते, बेकार अनाज, शहतूत के पत्ते आदि भी खिलाए जाते हैं। 120 दिनों के बाद शरीर का औसत वजन 1.3 से 2.4 किलोग्राम होना चाहिए। इसके अलावा, उन्हें शुरुआती कुछ हफ्तों के दौरान समय-समय पर थोड़ी मात्रा में खिलाना चाहिए, इससे खाने की आदत को उत्तेजित करने में मदद मिलती है। इसके अलावा यह कंकाल पंखों के विकास में मदद करता है और एक अच्छी प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित करता है।
चिक ब्रूडिंग
ब्रूडिंग को उस दिन से चूजों को पालने की ‘कला’ के रूप में वर्णित किया जाता है, जिस दिन से वे बच्चे पैदा करते हैं। एक नए अंडे से निकले चूजे को अपना होमियोस्टेसिस और थर्मोरेगुलेटरी सिस्टम विकसित करने में लगभग दो सप्ताह लगते हैं। दूसरे शब्दों में, वे अपने जीवन के पहले कुछ दिनों के दौरान अपने शरीर के तापमान को बनाए रखने में असमर्थ होते हैं। इसलिए शरीर के तापमान को बनाए रखने के लिए विशेष प्रावधान किए जाने चाहिए। इस प्रक्रिया को ब्रूडिंग कहा जाता है। श्राद्ध दो प्रकार का होता है-
- प्राकृतिक ब्रूडिंग: प्राकृतिक ब्रूडिंग में देशी ब्रूडी मुर्गियों को सिटर के रूप में उपयोग किया जाता है। मुर्गी को भोजन और पानी सहित सभी आवश्यक घोंसले के शिकार सामग्री प्रदान की जाती है। उष्मायन के लिए उन्नत किस्म के अण्डों का उपयोग किया जाता है। अंडे से बच्चे निकलने के बाद चूजों को मां के पास सफाई के लिए छोड़ दिया जाता है। रात के लिए चूजे और मां के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। एक ब्रूडी मुर्गी एक बार में 12-15 चूजों की देखभाल कर सकती है।
- कृत्रिम ब्रूडिंग: इस मामले में कोई ब्रूडी मुर्गी का उपयोग नहीं किया जाता है। इसके स्थान पर कृत्रिम ताप प्रदान करने का प्रावधान है। विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए ‘बुखारी’ हैं जिनमें लकड़ी, लकड़ी का कोयला, मिट्टी का तेल, चूरा-धूल आदि का उपयोग गर्मी स्रोत के रूप में किया जाता है। पहले सप्ताह में तापमान 95⁰ F पर बनाए रखा जाता है। बाद के हफ्तों में, यह 6 वें सप्ताह तक 5⁰F कम हो जाता है। ब्रूडिंग अवस्था में औसतन 2 वाट प्रति चूजे तक की ऊष्मा की आवश्यकता होती है।
‘देसी मुर्गी पालन’ में तंदुरूस्ती प्रबंधन
एक बार चूजों को फार्म में लाने के बाद उनकी सेहत और अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना किसानों की जिम्मेदारी है। इस उद्देश्य के लिए कुछ बिंदु हैं जिन पर सटीक रूप से विचार किया जाना चाहिए।
ब्रूडिंग और फीडिंग सुविधाएं
चूजों को ब्रूडर में रखा जाना चाहिए और फीडर को दिन में कम से कम दो बार और जरूरत पड़ने पर अधिक भरना चाहिए। उन्हें पानी पीने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके लिए शुरुआती दौर में कप लगाए जाते हैं। कृत्रिम ब्रूडर के मामले में उनके तापमान की नियमित जांच की जानी चाहिए। बहुत अधिक तापमान का मतलब है कि चूजे बुखारी से दूर चले जाएंगे, जबकि बहुत कम तापमान का मतलब है कि चूजे आपस में चिपकेंगे।
कंट्री चिकन फार्मिंग के लिए फ्लोर स्पेस
गहरे कूड़े में चूजों को पालने के लिए प्रति चूजे के लिए लगभग 280 सेमी² फर्श की जगह की आवश्यकता होती है। छठे सप्ताह से लगभग एक वर्ग फुट फर्श की जगह प्रदान की जानी चाहिए। ब्रूडिंग चरण में अत्यधिक भीड़भाड़ तनाव पैदा कर सकता है जिससे संक्रमण और मृत्यु दर हो सकती है। दाना रूपांतरण अनुपात और वृद्धि चूजों के लिए उपलब्ध फर्श स्थान के अनुपात में होनी चाहिए।
प्रकाश प्रबंधन
ब्रूडरों में रोशनी प्रदान करने के पीछे विचार यह है कि फ़ीड की खपत को बढ़ाया जाए और इस प्रकार बहुत कम समय में अधिकतम विकास किया जा सके। पहले छह हफ्तों तक लगातार 48 घंटे तक रोशनी होनी चाहिए। विकास अवस्था के दौरान 10-12 प्रकाश घंटे की आवश्यकता होती है। प्रकाश व्यवस्था प्रदान करते समय चूजों को ताप बल्ब के सीधे संपर्क में आने से रोकने के लिए एक चिक गार्ड भी होना चाहिए। यह आमतौर पर कार्डबोर्ड से बना होता है।
पीने की सुविधा
एक दिन के चूजों के लिए, उन्हें कुंडों में पीने का साफ पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए। पानी की मात्रा 2 सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। पहले तीन दिनों के लिए, चिंता किए बिना घंटी के आकार के पानी पीने वालों की सिफारिश की जाती है। पीने वालों को होवर के पास रखा जाना चाहिए।
वेंटिलेशन और सापेक्ष आर्द्रता
ऑक्सीजन की कमी के साथ कार्बन डाइऑक्साइड और अमोनिया का संचयन ब्रूडिंग चरण में मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में से एक है। यदि ब्रूडर एयरटाइट पर्दे के साथ फिट होते हैं तो इससे बहुत अधिक गैस जमा हो जाती है और चूजों का दम घुटने लगता है। इसलिए हवा के संचलन को सुनिश्चित करने के लिए छत और पर्दे के बीच 3.5 इंच की जगह छोड़नी चाहिए।
इसी तरह 65% की सापेक्ष आर्द्रता बनाए रखनी चाहिए। सापेक्ष आर्द्रता को 50% से नीचे गिरने से रोकने के लिए देखभाल की जानी चाहिए क्योंकि इससे चूजों में निर्जलीकरण होगा। कीटाणुरहित पानी का छिड़काव इष्टतम स्तर पर आर्द्रता बनाए रखने का एक तरीका है।
चोंच की छंटाई
चोंच की छंटाई बेतुकी लग सकती है लेकिन यह भोजन की बर्बादी और नरभक्षण को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह तीसरे सप्ताह में किया जाता है और लगभग एक तिहाई चोंच काट दी जाती है। गर्म लोहे का उपयोग करके चोंच को दागना चोंच ट्रिमिंग का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका है। यह चोंच के विकास के ऊतकों को नष्ट कर देता है और चोंच के विकास को भी रोकता है। दाग़ने के दौरान इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जीभ जले नहीं।
कूड़े का प्रबंधन
झुंडों में होने वाली बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है। कूड़े को सूखा रखा जाना चाहिए और नियमित रूप से हिलाया जाना चाहिए। सरगर्मी तापमान, आर्द्रता के स्तर और वेंटिलेशन को विनियमित करने में मदद करती है।
देशी चिकन का विपणन
स्थानीय चिकन की मार्केटिंग बहुत आसान है क्योंकि स्थानीय, स्वदेशी चिकन किस्म की बाजारों में हमेशा मांग रहती है। उन्हें दुकानों में आपूर्ति की जा सकती है या नियमित रूप से देशी चिकन की आपूर्ति के लिए फार्म होटलों के साथ टाई-अप कर सकते हैं। देशी चिकन फार्मिंग (देसी चिकन फार्मनिग) एकीकृत कृषि प्रणाली में आय का एक वैकल्पिक स्रोत है।
मुर्गीपालन में संतुलित आहार की भूमिका
जैसा कि सर्वविदित है कि वर्तमान युग में मुर्गीपालन का मुख्य उद्देश्य प्रोटीनयुक्त आहार प्राप्त करना है। मुर्गी का अण्डा एवं मांस सस्ता प्रोटीन आहार तो है ही, इनके उत्पादन में कम पूंजी व कम समय को आवश्यकता होती है। मानव के लिए बेकार अनाज, हरा चारा, विटामिन्स एवं पोषक तत्वों मुर्गी को खिलाकर एक उत्तम, सुपाच्य पौष्टिक पदार्थ मानव के लिए मुर्गी के अण्डे के रूप में उपलब्ध हो जाता है इसलिए अनेक वैज्ञानिक मुर्गी को अद्भूत प्रवर्तक यंत्र की संज्ञा देते हैं। मानव हेतु तैयार किए पक्षियों को पौष्टिक एवं संतुलित आहार ही मिलना चाहिए। मुर्गी पालन व्यवसाय में 60 प्रतिशत व्यय तो केवल मुर्गी आहार पर होता है। अतः यह कहने में अतिश्यक्ति नहीं होगी कि मुर्गीपालन में संतुलित आहार अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है। अतः मुर्गीपालन हेतु अति आवश्यकता है कि उसे आहार विज्ञान के प्रत्येक चरण का एवं मुर्गी खाने के पक्षियों की आवश्यकताओं का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए एवं उसे व्यवहार में लाने का समुचित ध्यान रखना चाहिए। इस लेख में आहार के पोषक तत्वों एवं उनके कार्यो, संतुलित आहार तैयार की विधि, आहार व्यवस्था का उल्लेख किया गया है, ताकि मुर्गीपालन लाभान्वित हो सकें।
आहार के तत्व एवं उनके कार्य
मुर्गी पालन व्यवसाय में मुर्गीपालकों को आहार के तत्व एवं उनके कार्य की जानकारी होना निवान्त आवश्यक है ताकि वे स्वयं संतुलित आहार तैयार कर सकें। जिसकी जानकारी नीचे दी गई है –
प्रोटीन – प्रोटीन आहार का प्रमुख एवं महत्वपूर्ण पोषक तत्व है, क्योंकि यह शारीरिक विकास, प्रजजन और टिशु की मरम्मत के लिए उपयोगी होता है। प्रोटीन, जल, एल्कोहल एवं नमक के घोल में घुलने वाला घुलनशील पदार्थ है, जिसका निर्माण कार्बन, हाईड्रोजन, ऑक्सीजन व नाईट्रोजन से होता है। चूंजे का 15 प्रतिशत, मुर्गी का 25 प्रतिशत और अण्डे का 12 प्रतिशत भाग में प्रोटीन होता है।
कार्बोहाइड्रेट – यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाला प्रमुख तत्व है। इसका निर्माण कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन से होता है। मुर्गी आहार में कार्बोहाइड्रेट का बहुत बड़ा भाग होता है, क्योंकि सभी पौधों एवं अनाजो के सुखे भाग में लगभग ¾ कार्बोहाईड्रेट होता है, जो मुर्गियों को ऊर्जा प्रदान करता है।
वसा – वसा का निर्माण भी कार्बोहाइड्रेट की भाति कार्बन, हाइड्रोजन नाइट्रोजन के संयोग से होता है। परन्तु इनके अनुपात में भिन्नता पाई जाती है। वसा शरीर में ऊर्जा एवं ऊष्मा प्रदान करती है। मुर्गी के मांस का 17 प्रतिशत भाग वसा का होता है और अण्डे का लगभग 10 प्रतिशत भाग वसा का होता है। यह भी सत्य है कि शरीर में पचने के बाद प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट भी किसी सीमा तक वसा में परिवर्तित हो जाते हैं।
खनिज पदार्थ – कैल्सियम, फॉस्फोरस, सल्फर, सोडियम, मैग्नीशियम आदि सब खनिज तत्व हैं, जो पाचन क्रियाशीलता एवं अन्य शारीरिक क्रियाओं के लिए आवश्यक होते हैं। अतः मुर्गियों के आहार में इनका होना नितान्त आवश्यक है।
विटामिन – यद्पि पशु-पक्षियों के आहार मे इनकी आवश्यकता अधिक नहां होती है, फिर भी ये आहार के अनिवार्य अंग है, क्योंकि शारीरिक विकास, वृद्धि एवं प्रजनन हेतु आहार में इन का समावेश नित्यन्त आवश्यक है।
मुर्गियों के लिए आवश्यक पोषक तत्व, उन के कार्य एवं उपलब्धि स्रोत –
सारणी 1
आहार तत्व | प्रमुख कार्य | उपलब्धि स्रोत |
प्रोटीन | शारीरिक विकास, टिशु-मरम्मत, ऊष्मा, ऊर्जा, अंडा निर्माण व उत्पादन | मीट स्क्रैप, फिश मील, सोयाबीन मील, मेज मील आदि |
कार्बोहाइड्रेट | ऊष्मा, ऊर्जा व वसा उत्पादन | अनाज व अनेक उप उत्पाद |
वसा | ऊष्मा एवं ऊर्जा | अनाज व उनके उप उत्पाद |
खनिज पदार्थ | अंडा उत्पादन, हडिडयों की बनावट व शारीरिक प्रक्रियाओं में सहायक | मीट स्कैप, फिश मील, बोन मील, चना व नमक |
विटामिन्स | शारीरिक विकास, पाचन क्रिया स्वस्थ स्नायु, रिकेट से बचाव, प्रजनन | हरी घास, एल्फा-एल्फा, मछली का तेल, गेहूं का चोकर, दूब घास, फिश ऑयल, सोयाबीन आदि |
पानी | शरीर में विभिन्न द्रव्यों का प्रमुख स्रोत, तापमान, नियंत्रक, पाचन क्रियाओं में सहायक | पानी, हरी घास |
मुर्गियों के लिए विभिन्न प्रकार के संतुलित आहार तैयार किए जाते हैं, जिनमें कार्बोहाइड्रेट आहार 70-80 प्रतिशत भाग होता है। खनिज आहार की मात्रा 10 प्रतिशत और विटामिन्स की मात्रा 5 प्रतिशत होती है, वसा आहार 2-5 प्रतिशत तक मिलाए जाते है, लेकिन मुर्गी को स्वस्थ निरोग रखने के लिए व्यवसाय मे आर्थिक लाभ प्राप्ति के लिए आव्शयक है कि मुर्गी के लिए संतुलित, किन्तु सस्ता आहार मिश्रण तैयार किया जाना चाहिए, यहां प्रश्न उठता है कि संतुलित आहार क्या हैं? और कैसे बनाएं?
मुर्गी की आयु के अनुसार संतुलित आहार
स्टार्टर राशन- यह राशन 1 दिन से 8 सप्ताह तक की आयु के चूजों के लिए बनाया गया है।
ग्रोवर्स राशन- यह राशन 8 से 20 सप्ताह तक की मुर्गियों के लिए बनाया जाता है।
लेअर्स राशन- यह राशन 20 सप्ताह से अधिक आयु की मुर्गियों के लिए बनाया जाता है।
संतुलित आहार कैसे बनाएं?
मुर्गियों के लिए संतुलित आहार निम्न दो प्रकार से बनाया जा सकता है –
आहार वजन की इकाई में आहार सामग्री का प्रतिशत प्रति 1000 किलो कैलोरीज में आहार सामग्री की आवश्यकता यहां जो सारणीयां दी जा रही है उनमें प्रथम विधि को अपनाया गया है। सारणीयों में दो आहारों का नमूने दिए गए हैं। यही अथवा इनमें उपलब्ध वस्तुओं द्वारा इसी हिसाब को ध्यान में रखते हुए सम्भावित आहार भी तैयार किया जा सकता है।
स्टार्टर राशन 1 दिन से 8 सप्ताह के चूजों का आहार
वस्तु | आहार – 1 | आहार – 2 |
चावल पालिश प्रतिशत | 25.0 | 20.0 |
खल मूंगफली | 20.0 | 20.0 |
पीली मक्का | 20.0 | 15.0 |
ज्वार | 10.0 | 20.0 |
गेहूं की चापड | 15.0 | 15.0 |
मछली चूरा | 0.5 | 6.5 |
लाइम स्टोन | 1.0 | 1.0 |
हड्डी चूरा | 1.0 | 1.0 |
प्रिमिक्स | 1.0 | 1.0 |
नमक | 0.5 | 0.5 |
योग | 100 ग्राम | 100 ग्राम |
सारणी 2 ग्रोअर्स राशन 8-20 सप्ताह तक की मुर्गियों का आहार
वस्तु | आहार – 1 | आहार – 2 |
चावल पालिश प्रतिशत | 22.0 | 30.0 |
खल मूंगफली | 20.5 | 12.5 |
पीली मक्का | 10.0 | 10.0 |
ज्वार | 20.0 | 20.0 |
गेहूं का चापड | 10.0 | 20.0 |
मछली चूरा | 7.5 | 7.5 |
लाइम स्टोन | 3.0 | 3.0 |
हड्डी चूरा | 1.0 | 1.0 |
प्रिमिक्स | 1.0 | 1.0 |
लपटी | 4.5 | 4.5 |
नमक | 0.5 | 0.5 |
योग | 100 ग्राम | 100 ग्राम |
सारणी 3 लेअर्स राशन 20 सप्ताह से अधिक आयु की मुर्गियों का आहार
वस्तु | आहार – 1 | आहार – 2 |
चावल पालिश प्रतिशत | 22.0 | 24.0 |
खल मूंगफली | 10.0 | 10.0 |
पीली मक्का | 10.0 | 20.0 |
ज्वार | 27.0 | 12.0 |
गेहूं का चापड | 15.0 | 16.0 |
मछली चूरा | 4.0 | 5.0 |
लाइम स्टोन | 2.0 | 1.0 |
हड्डी चूरा | 2.0 | 1.0 |
प्रिमिक्स | 1.0 | 1.0 |
लपटी | 5.0 | 5.0 |
नमक | 1.0 | 1.0 |
योग | 100 ग्राम | 100 ग्राम |
आहार व्यवस्था
मुर्गी की आयु, उत्पादन क्षमता व स्थानीय जलवायु के अनुसार संतुलित आहार का ज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात मुर्गी पालक को यह भी सोचना है कि स्थानीय उपलब्ध आहार सामग्री का चयन कर उसकी व्यवस्था किन-किन बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कुछ आवश्यकता बातें निम्नवत है –
– अधिक समय के लिए आहार बनाकर नहीं रखना चाहिए।
– आहार सामग्री के मिक्चर से मिलाना चाहिए, ताकि कम मात्रा वाली सामग्री (विटामिन, एन्टीबायोटिक्स) का सम निर्माण हो पाए।
– आहार निर्माण कक्ष में चूहे, जंगली पक्षी व कीड़े नहीं होने चाहिए।
– आहार निर्माण कक्ष में सीलन नहीं होनी चाहिए।
मुर्गी संख्या के अनुसार आहार तोलकर देना चाहिए।
– यदि गर्मी अधिक हो तो मेश कुछ गीला करके देना चाहिए।
– आहार निर्माण कक्ष में समय-समय कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए।
– आहार उपयोगी की जांच निरन्तर होनी चाहिए।
Compiled & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)
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