आईसीएआर के पुनर्गठन के लिए कमेटी गठित, 94 साल पुराने संस्थान का आकार भी होगा छोटा

0
439

आईसीएआर के पुनर्गठन के लिए कमेटी गठित, 94 साल पुराने संस्थान का आकार भी होगा छोटा

केंद्र सरकार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को पुनर्गठित करना चाहती है, साथ ही इसके आकार को भी छोटा करना चाहती है। इस काम को अंजाम देने के लिए सरकार ने एक समिति गठित की है। डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च एंड एजुकेशन (डेअर) के अतिरिक्त सचिव और सेक्रेटरी आईसीएआर को समिति का चेयरमैन बनाया गया है। इस 11 सदस्यीय समिति में छह सदस्य प्रशासनिक अधिकारी हैं जो संयुक्त सचिव और अतिरिक्त सचिव स्तर के हैं। समिति के लिए 24 अप्रैल, 2023 को ऑफिस ऑर्डर जारी हुआ है और इसे 30 दिन के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी है

आईसीएआर के पुनर्गठन को बनी समिति।

केंद्र सरकार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को पुनर्गठित करना चाहती है, साथ ही इसके आकार को भी छोटा करना चाहती है। इस काम को अंजाम देने के लिए सरकार ने एक समिति गठित की है। डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च एंड एजुकेशन (डेअर) के अतिरिक्त सचिव और सेक्रेटरी आईसीएआर को समिति का चेयरमैन बनाया गया है। इस 11 सदस्यीय समिति में छह सदस्य प्रशासनिक अधिकारी हैं जो संयुक्त सचिव और अतिरिक्त सचिव स्तर के हैं। समिति के लिए 24 अप्रैल, 2023 को ऑफिस ऑर्डर जारी हुआ है और इसे 30 दिन के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी है।
दिलचस्प बात यह है कि समिति की टर्म्स ऑफ रेफरेंस (टीओआर) केवल एक वाक्य में कही गई है। इसमें कहा गया है कि समिति को आईसीएआर को तर्कसंगत और राइट साइजिंग बनाने के लिए सिफारिशें देनी हैं ताकि इसे एक डायनामिक, लीन और एफिशिएंट ऑर्गनाइजेशन के रूप में ट्रांसफॉर्म किया जा सके।

READ MORE :  Atul Chaturvedi appointed as Secretary, Dept of AH and Dairying GOI

समिति के अन्य सदस्यों में आईसीएआर के फाइनेंशियल एडवाइजर, आईसीएआर के डीडीजी (एनआरएम), डीडीजी (फिशरीज), कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, पशुपालन एवं डेयरी विभाग और मत्स्य विभाग के प्रतिनिधि के रूप में इन विभागों के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी सदस्य होंगे। नीति आयोग में सीनियर एडवाइजर डॉ. नीलम पटेल और कृषि अर्थशास्त्री डॉ. पी. के. जोशी भी समिति के सदस्य हैं। इनके अलावा आईसीएआर के एडीजी (टीसी) इसके सदस्य हैं। आईसीएआर के संयुक्त सचिव (प्रशासन) समिति के सदस्य सचिव बनाये गये हैं।

आईसीएआर का गठन 16 जुलाई, 1929 को हुआ था। तब इसका नाम इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च था। इसके अधीन अभी 111 संस्थान और 71 कृषि विश्वविद्यालय हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े राष्ट्रीय कृषि सिस्टम में गिना जाता है।

इस समिति के गठन पर एक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने  बातचीत में कहा, “ऐसा नहीं कि आईसीएआर को पुनर्गठित करने के लिए पहली बार समिति गठित हुई है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी अतिरिक्त सचिव स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता में समिति गठित हुई है। इससे पहले डॉ. आर. ए. माशेलकर, डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में इस मकसद से समितियां गठित की गई थीं। करीब दो साल पहले मौजूदा सरकार द्वारा गठित डॉ. रामासामी समिति ने भी अपनी सिफारिशें दी थीं। पिछली समितियों की रिपोर्ट पर तो कोई कदम नहीं उठाया गया, अब एक नई कमेटी गठित की गई है। बेहतर होता कि सरकार पुरानी समितियों की सिफारिशों पर अमल करती या फिर किसी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक की अध्यक्षता में समिति गठित करती। आईसीएआर दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित कृषि शोध संस्थानों में शुमार की जाती है। इसे पुनर्गठित करने का जिम्मा प्रशासनिक अधिकारियों को देने का कोई तर्क नहीं बनता है।”

READ MORE :  न्यूयॉर्क के चिड़ियाघर में बाघिन कोरोना पॉजिटिव, कर्मचारी के जरिए फैला संक्रमण।

एक दिलचस्प बात यह भी है कि आईसीएआर के डायरेक्टर जनरल (डीजी) और सचिव (डेअर) के मातहत काम करने वाला अतिरिक्त सचिव स्तर का अधिकारी संस्था के पुनर्गठन की सिफारिश देने वाली समिति का चेयरमैन बनाया गया है।
समिति के सदस्य अर्थशास्त्री डॉ. पी. के. जोशी तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई समिति के भी सदस्य थे। इसके अलावा वह इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) के एशिया पैसिफिक डायरेक्टर भी रहे हैं।
एक अन्य वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक का कहना है कि भारत एक मल्टी एग्रो क्लाइमेटिक जोन वाला देश है। यहां विभिन्न फसलों पर शोध के लिए इंस्टीट्यूट हैं। उनके जरिये ही हमें हरित क्रांति से लेकर हॉर्टिकल्चर, फिशरीज और डेयरी में कामयाबी मिली है। अगर आईसीएआर का राइट साइजिंग संस्थानों को बंद करना या एक दूसरे में मिलाना है तो यह देश के कृषि क्षेत्र के लिए हितकर नहीं होगा। पिछले कई साल से आईसीएआर के लिए बजटीय प्रावधान में कोई प्रभावी बढ़ोतरी नहीं हुई है।

कृषि वैज्ञानिक लगातार जोर देते रहे हैं कि देश की कृषि जीडीपी का एक फीसदी रिसर्च पर खर्च होना चाहिए, जबकि यह 0.3 से 0.4 फीसदी के बीच ही अटका हुआ है। उक्त वैज्ञानिक के अनुसार इतने बड़े सांस्थानिक तंत्र के पुनर्गठन के लिए समिति को सिर्फ 30 दिन में सिफारिशें देने के लिए कहना भी व्यावहारिक नहीं है।

Source-https://www.ruralvoice.in/latest-news

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON