आधुनिक सूकर पालन की संपूर्ण जानकारी

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आधुनिक सूकर पालन की संपूर्ण जानकारी

सूअर पालन का व्यवसाय काफी कम समय में अधिक लाभ देने वाला व्यवसाय है. सूअर के माँस का इस्तेमाल खाने के साथ साथ सौंदर्य प्रसाधन की चीजों में भी किया जाता है. सूअर के मास में प्रोटीन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है. इस कारण भारत सहित विदेशी बाजार में इसकी मांग बहुत ज्यादा है.

भारत में इसका कारोबार ज्यादातर उत्तर पूर्वी राज्यों में किया जाता हैं. लेकिन अब इसका दायरा बढ़ने लगा है. जिसको देखते हुए अब काफी लोग इस कारोबार से जुड़ चुके हैं. इसके व्यापार को करने के लिए कई तरह की चीजों का ध्यान रखा जाना जरूरी होता है.

बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन की व्यवस्था करना अति आवश्यक है | भोजन के रूप में अनाज एवं मांस, दूध, मछली, अंडे इत्यादि का प्रयोग होता है | छोटानागपुर में जहाँ सिंचाई के अभाव में एक ही फसल खेत से लाना संभव है, वैसी हालत में साल के अधिक दिनों में किसान बिना रोजगार के बैठे रहते है | यह बेकार का बैठना गरीबी का एक मुख्य कारण है इस समय का सदुपयोग हमलोग पशुपालन के माध्यम से कर सकते हैं | अत: पशुपालन ही गरीबी दूर करने में सफल हो सकती है | आदिवासी लोग मुर्गी, सुअर, गाय, भैंस एवं बकरी आवश्य पलते हैं लेकिन उन्न्त नस्ल तथा उसके सुधरे हुए पालने के तरीके का अभाव में पूरा फायदा नहीं हो पाता है | सुअर पालन जो कि आदिवासियों के जीवन का एक मुख्य अंग है, रोजगार के रूप में करने से इससे अधिक लाभ हो सकता है |

हमारे देश में सूकर पालन (suar palan) सदियों से चली आ रही है लेकिन इसके पालने का तरीका अब बदल रहा है। किसान शूकर पालन (pig farming) की उन्नत विधि (suar palan kaise kiya jata hai) पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। सूअर पालन (suar palan) गरीब और सीमांत किसानों के लिए एक मुनाफे का व्यवसाय है।

 

सूअर पालन पर एक नजर

आपको बता दें, भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में सूअर की मांस की मांग सबसे ज़्यादा है। कास्मेटिक प्रोडक्ट और दवाओं में भी इसका उपयोग खूब होता है। सूअर साल में 2 से 3 बार बच्चे देती है। शूकर के मांस में भरपूर मात्रा में प्रोटीन होता है। यही कारण है कि इस व्यवसाय की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है।

लाभदायक व्यवसाय

अपने देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए केवल अनाज का उत्पादन बढ़ाना ही आवश्यक  नहीं है | पशुपालन में लगे लोगों का यह उत्तरदायित्व हो जाता है कि कुछ ऐसे ही पौष्टिक खाद्य पदार्थ जैसे- मांस, दूध, अंडे, मछली इत्यादि के उत्पादन बढ़ाए जाए जिससे अनाज के उत्पादन पर का बोझ हल्का हो सके | मांस का उत्पादन थोड़े समय में अधिक बढ़ने में सुअर का स्थान सर्वप्रथम आता है | इस दृष्टि से सुअर पालन का व्यवसाय अत्यंत लाभदायक है | एक किलोग्राम मांस बनाने में जहाँ गाय, बैल आदि मवेशी को 10-20 किलोग्राम खाना देना पड़ता है, वहां सुअर को 4-5 किलोग्राम भोजन की ही आवश्यकता होती है | मादा सुअर प्रति 6 महीने में बच्चा दे सकती है और उसकी देखभाल अच्छी ढंग से करने पर 10-12 बच्चे लिए जा सकते हैं| दो माह के बाद से वे माँ का दूध पीना बंद कर देते हैं और इन्हें अच्छा भोजन मिलने पर 6 महीने में 50-60 किलोग्राम तक वजन के हो जाते हैं| यह गुण तो उत्तम नस्ल की विदेशी सुअरों द्वारा ही अपनाया जा सकता है | ऐसे उत्तम नस्ल के सुअर अपने देश में भी बहुतायत में पाले एवं वितरित किए जा रहे हैं| दो वर्ष में इनका वजन 150-200 किलोग्राम तक जाता है | आहारशास्त्र की दृष्टि से सोचने पर सुअर के मांस द्वारा हमें बहुत ही आवश्यक एवं अत्यधिक प्रोटीन की मात्रा प्राप्त होती है | अन्य पशुओं की अपेक्षा सुअर घटिया किस्म के खाद्य पदार्थ जैसे- सड़े हुएफल, अनाज, रसोई घर की जूठन सामग्री, फार्म से प्राप्त पदार्थ, मांस, कारखानों से प्राप्त अनुपयोगी पदार्थ इत्यादि को यह भली-भांति उपयोग लेने की क्षमता रखता है | हमारे देश की अन्न समस्या सुअर पालन व्यवसाय से इस प्रकार हाल की जा सकती है | अच्छे बड़े सुअर साल में करीब 1 टन खाद दे सकते हैं| इसके बाल ब्रश बनाने के काम आते है | इन लाभों से हम विदेशी मुद्रा में भी बचत कर सकते हैं|

सूअर पालन की शुरुआत कैसे करें

सूअर पालन की शुरुआत करने के लिए पहले सूअर पालन के बारें में हर प्रकार की जानकारी ले लेनी चाहिए. और सूअर पालन की शुरुआत किसान भाइयों को छोटे पैमाने पर करनी चाहिए. इसके लिए अधिक पैसों को जरूरत भी नही होती. सूअर साल में दो या तीन बार नए बच्चों को जन्म देता है. जो एक बार में ही 5 से 12 बच्चों को जन्म देता हैं. ये बच्चे लगभग दो महीने बाद दूध पीना छोड़ देते हैं. अगर बच्चों को उचित पोष्टिक खाना दिया जाये तो प्रत्येक बच्चे आसानी से एक साल में 80 से 100 किलो वजन के हो जाते हैं. किसान भाई सूअर पालन की शुरुआत एक पशु रखकर भी कर सकता हैं. या फिर बड़े पैमाने पर भी इसे शुरू कर सकता हैं. बड़े पैमाने पर शुरू करने के लिए कई तरह की चीजों की जरूरत होती है. जिन पर खर्च भी ज्यादा आता हैं.

सूअर पालन के लिए आवश्यक चीजें

किसी भी व्यवसाय को चलाने और उसकी शुरुआत के लिए कई तरह की मूलभूत चीजों को आवश्यकता होती हैं. जिनके बिना किसी व्यवसाय को सुचारु रूप से शुरू नही किया जा सकता. उसी तरह सूअर पालन के लिए भी कई तरह की मूलभूत चीजें हैं जिनकी आवश्यकता व्यवसाय को सुचारु रूप से चलाने के लिए काफी जरूरी हैं.

जमीन

किसी भी तरह के व्यवसाय को चलाने के लिए जमीन की जरूरत सबसे पहले होती हैं. बिना जमीन के किसी भी व्यवसाय को शुरू नही किया जा सकता, सूअर पालन करने के लिए जमीन का चयन करने के दौरान शांत जगह वाली जमीन का चयन करना चाहिए. जमीन के पास सभी तरह की आवश्यक मूलभूत चीजें उपलब्ध होनी चाहिए. जिस जगह इसका व्यवसाय शुरू करें वो जमीन शहर से बहार ग्रामीण एरिया में हो तो काफी बेहतर मानी जाती है. क्योंकि शहरी इलाकों में इसके पालन के लिए पहले नगर पालिका से इसकी अनुमति लेनी होती हैं.

सूअर के रहने का स्थान

सूअर के रहने के स्थान का निर्माण करने के दौरान भी ख़ास ध्यान रखा जाता हैं. क्योंकि सूअर के बीच लड़ाई काफी ज्यादा देखने को मिलती हैं. जिसमें पशु एक दूसरे को अधिक नुक्सान पहुंचा देते हैं. इसलिए अलग अलग उम्र के सूअरों के रहने के लिए अलग अलग जगह का निर्माण किया जाना जरूरी होता है.

प्रसूति सूअरी के लिए

प्रसूति सूअर के पास दो महीने तक बच्चे रहते हैं. इस दौरान उनके अच्छे से विकास के लिए एक अलग घर की जरूरत होती हैं. प्रसूति सूअर के लिए लगभग 10 फिट लम्बा और आठ फिट चौड़े घर की जरूरत होती हैं. और इससे लगभग दुगनी जगह का खुला वातावरण होना चाहिए. जिसमें बच्चे माँ के साथ आसानी से घूम सके. सर्दी के मौसम में बच्चों को बचाने के लिए घर में लोहे की छड़ों या लकड़ी के माध्यम से रिले बनाई जाती हैं. जिन पर इसके बच्चे आसानी से रहा सके. क्योंकि इसके बच्चे रात के समय माँ के नीचे आने पर मर जाते हैं. इस रिले की ऊंचाई लगभग 9 से 10 इंच ऊँची होनी चाहिए.

गाभिन सुअरी के लिए

गाभिन सूअर के लिए भी अलग से घर की जरूरत होती हैं. क्योंकि गाभिन अवस्था में इनके आपस में लड़ने की वजह से कारोबारी को नुक्सान उठाना पड सकता हैं. गाभिन सुअरी के रहने के लिए लगभग 12 फिट लम्बे और आठ फिट चौड़े मकान की आवश्यकता होती हैं. जिसमें उसे खाना दिया जाता हैं. और उसी मकान में उसके घुमने की जगह होती हैं. इनके घुमने के लिए अलग से खुली जगह की जरूरत नही होती.

विसूखी सुअरी के लिए

विसूखी सुअरी के रहने के लिए भी अलग से जगह का निर्माण किया जाता है. जिसमें तीन से चार सुअरी को एक साथ रखा जा सकता हैं. विसुखी सुअरी के रूप में कुआरी सुअरी को ही रखा जाता हैं. जिसमें प्रत्येक कुआरी सुअरी के रहने के लिए 10 से 12 वर्ग फिट की जगह होनी चाहिए. जिसमें उनके खाने और रहने की नाद और घुमाने की जगह होती हैं.

नर सूअरों के लिए

नर सूअर में अलग उन्ही सूअरों को रखना चाहिए जिनका इस्तेमाल प्रजनन के लिए किया जाता हैं. और प्रत्येक घर में केवल एक ही सूअर को रखना चाहिए. क्योंकि दो या दो से ज्यादा नर सूअर को अगर एक कमरे में रख दिया जाए तो दोनों एक दूसरे को खाने की कोशिश करते हैं. जिससे दोनों एक दूसरे को नुक्सान पहुँचा देते हैं. एक नर सूअर के रहने के लिए 10 फिट चौड़ा और आठ फिट लम्बे कमरे की जरूरत होती हैं जिसमें उसकी नाद बनाई जाती हैं. जिसकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई क्रमशः 6, 4, 4 होनी चाहिए. और कमरें में ही खुला स्थान होना चाहिए, जिसमें नर के घुमने और खाने की व्यवस्था की जाती है.

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छोटे बच्चों के लिए

सुअरी अपने बच्चों को दो महीने तक ही दूध पिलाती हैं. उसके बाद वह अपने बच्चों को अपने से अलग कर देती है. जिससे बाद इन बच्चों के लग रहने की व्यवस्था की जाती हैं जो एक खुला स्थान ही होता है. जिसमें सभी बच्चे साथ रहते हैं. लेकिन जब इन बच्चों की उम्र चार महीने से ज्यादा हो जाती है तब इनमें नर और मादा को अलग अलग कर दिया जाता है. तब भी इन्हें एक साथ ही नर और मादा को अलग अलग रखा जाता है और सामान रूप से आहार दिया जाता हैं. जिसके बाद इनमें से नर सूअर को एक साल बाद बेच दिया जाता है. जबकि मादा को प्रजनन के लिए तैयार किया जाता हैं.

सूअरों का खाना

सूअर पालन में होने वाला खर्च का सबसे ज्यादा खर्च इनके खाने पर ही किया जाता है. सूअर की अलग अलग अवस्था में इसके जीवों को खाने की जरूरत अलग अलग होती है. बच्चे और सुअरी के प्रसूति होने की स्थिति में अधिक प्रोटीन की जरूरत होती हैं. इस दौरान खाना उचित मात्रा में देना चाहिए.

वैसे सूअर पालन के दौरान खाने की अधिक दिक्कत नही होती. क्योंकि सूअर ज्यादातर ख़राब और सड़ी गली सब्जी और फल के साथ साथ अन्य कई वस्तुओं को खाते हैं. इसके अलावा बाजार में बड़े होटलों में बचे खाने का इस्तेमाल भी इनके खाने के लिए उपयोग में लिए जा सकता है. ख़राब चीजों के अलावा भी इन्हें पोष्टिक खाना दिया जाता हैं. जिसमें मछली का चूरा, मूंगफली की खली, खनिज लवण, गेहूं का चोकर, नमक और मकई दी जाती हैं.

इनके खाने का दाना भी बाजार में आसानी से मिल जाता हैं. जिसका इस्तेमाल इनके खाने के रूप में किया जाता हैं. इनके दाने के रूप में कम उम्र के बच्चों को प्रति दिन एक से डेढ़ किलो दाना की मात्रा देनी चाहिए. जबकि पूर्ण रूप से तैयार होने वाले एक पशु को प्रतिदिन दो से ढाई किलो दाने की जरूरत होती हैं. इसके अलावा गाभिन और दुधारू सूअर को प्रतिदिन तीन किलो से ज्यादा दाना देना चाहिए.

पानी की व्यवस्था

सूअरों के नहाने और पीने के लिए पानी की जरूरत होती हैं. जिसके लिए एक छोटे कुंडे का निर्माण करवाना चाहिए. जिसमें पानी की ऊंचाई एक से डेढ़ फिट तक ही रखनी चाहिए. क्योंकि अधिक पानी होने पर छोटे बच्चों के डूबने का डर बना रहता हैं. सूअर को दिन में कम से कम दिन में तीन बार पानी देना चाहिए. हालांकि सर्दियों में पानी की आवश्यकता काफी कम होती हैं.

सूअर पालन (suar palan) के लिए जरूरी जलवायु 

शूकर(Pig) पानी पसंद पशु है। इसके पालन के लिए नम जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके पालन के लिए 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान काफी अनुकूल होता है। हमारे देश में शूकर पालन (pig farming) सभी राज्यों में की जा सकती है।

सूअर के लिए आवास प्रबंधन (suar farm ki jankari)

  • सूकर पालन (suar palan) खुली और बंद दोनों विधि से की जाती है। यदि आप व्यवसायिक रूप से सूकर पालन करना चाहते हैं, तो बाड़े की व्यवस्था जरूर करें। बाड़े में हवा और रोशनी की व्यवस्था जरूर होना चाहिए। बाड़े में पानी की उचित व्यवस्था जरूर करें।
  • नर, मादा, और शावकों के लिए अलग-अलग बाड़े बनाएं। सभी के लिए एक संयुक्त रूप से छोटी तालाबनुमा बाड़े का निर्माण जरूर करें, जहां शूकरों को आसानी से नहलाया जा सके।

आहार प्रबंधन (diet management)

सूअर (suar) एक ऐसा जानवर है जो बासी और सड़े गले भोजन भी चाव खा लेती है। इसके लिए हमें आहार में बहुत ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं होती है। सूअर अनाज, चारा, कूड़ा-कचरा, सब्जियां, सड़े गले भोजन खाते हैं। फिर भी शूकरों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त और संतुलित आहार की जरूरत होती है।

 

बढ़ते हुए शावकों और गर्भवती मादों को प्रोटीन की अधिक मात्रा आवश्यक होती है। इन्हें खाने में  प्रोटीनयुक्त भोजन जरूर दें। इसके लिए मकई, मूंगफली की खल्ली, गेंहूं के चोकर, मछली का चूरा, खनिज लवण, विटामिन और नमक का मिश्रण दे सकते हैं।

सूअर के स्टार्टर ,ग्रोअर और फिनिसर आहार  

स्टार्टर राशन

⚫ मक्का – 60%

⚫ वादामी खल – 20%

⚫ चोकर -10%

⚫ मछली चूर्ण -8%

⚫ मिनरल मिक्सचर – 1.5%

⚫ नमक – 0.5%

ग्रोअर राशन

⚫ मक्का – 64%

⚫ वादामी खल – 15%

⚫ चोकर -12.5%

⚫ मछली चूर्ण -6%

⚫ मिनरल मिक्सचर – 2.5%

 

फिनिशर राशन

⚫ मक्का – 60%

⚫ बादामी खल – 10%

⚫ चोकर -24.5%

⚫ मछली चूर्ण -3%

⚫ मिनरल मिक्सचर – 2.5%

 

नोट- ग्रोअर सूअर को प्रतिदिन शरीर वजन का 4% या 1.5-2 किलोग्राम दाना आवश्यकतानुसार दें।

मादा सूअर में गर्मी के लक्षण 

⚫ मादा के गर्मी में आने के 2 से 8 दिन पहले योनि के आकार में वृद्धि हो जाती है।
⚫ योनि में लालपन सूजन आ जाती है।
⚫ योनि से साफ तरल पदार्थ बाहर आता है।
⚫ मादा का बैचेन होना एक दूसरे के ऊपर चढ़ना।
⚫ मादा मेरूदंड को ऊपर मोड़ती हैं, जिससे पीछे का भाग नीचे की ओर झुक जाता है।
⚫ कान खड़े करना तेजी से आवाज करना, खाना कम करना प्रमुख लक्षण है।

 

गर्भाधान का समय

⚫ मादा के गर्मी शुरू होने के 24-30 घंटे में गाभिन कराएं, देरी से या दूसरे दिन की सुबह।
⚫ नर सूअर को बदलते रहना चाहिए, जिससे प्रजनन दर और बच्चों की संख्या में कमी न आएं।
⚫ प्रजनन प्राकृतिक या कृत्रिम विधि से करा सकते हैं।

 

शूकर पालन (suar palan) के लिए लोन

जनजातीय और निर्धन परिवारों के लिए सरकार द्वारा इस क्षेत्र में कई कार्यक्रम चलाई जा रही है। सूकर पालन के लिए बैंक से ऋण भी लिया जा सकता है। सुअर पालन के लिए सरकार प्रशिक्षण सुविधाओं के साथ इसके लिए सब्सिडी भी देती है। इसके लिए आप पशुधन अधिकारी या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं।

शूकर पालन में लागत और कमाई

यदि आप व्यवासायिक स्तर पर सूकर पालन (suar palan) करना चाहते हैं, तो इसके लिए शुरू में 2-3 लाख रूपए तक की जरूरत पड़ सकती है। छोटे स्तर पर यानी घरेलू उपयोग के लिए इसका पालन करना चाहते हैं, तो आपको 50 हजार रूपए तक खर्च करने पड़ सकते हैं।

कमाई की बात करें तो पशुपालन में शूकर पालन (suar palan) सबसे अधिक मुनाफे वाला व्यवसाय है। इसके चर्बी बहुत मंहगे बिकते हैं। इसका उपयोग औषधीय, चिकनाई, क्रीम बनाने में होता है। 2-3 लाख रुपए की लागत में सालभर में शुद्ध 3 लाख रुपए कमा सकते हैं। भारत के गांवों में इसकी खपत ज्यादा है जो समय के साथ शहरों में भी खूब बढ़ रहा है।

सूअर की प्रमुख प्रजातियाँ

सूकर की नस्लें (pig breeds)

हमारे देश में शूकरों की देसी और संकर दोनों नस्लें पाई जाती है। लेकिन, अधिक लाभ और व्यावसायिक उत्पादन के लिए संकर नस्लों का ही चुनाव करें।

संकर नस्लों में सफेद यॉर्कशायर, लैंडरेस, हैम्पशायर, ड्युरोक और घुंघरू प्रमुख हैं।

सूअर पालन के दौरान सूअर की प्रजातियों का चयन करना भी सबसे अहम माना जाता है. अगर आप सूअर पालन का व्यवसाय करना चाहते हैं तो देशी प्रजाति के सूअर ना पालकर अच्छी प्रजाति के सूअरों का पालन करना चाहिए. वर्तमान में भारत में इसकी कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं.

सफेद यॉर्कशायर सूकर

सफेद यॉर्कशायर सूकर एक विदेशी नस्ल हैं. जो भारत में सबसे ज्यादा पाई जाती हैं. इस नस्ल के सूअर का शरीर सफ़ेद रंग का होता है. जिसके शरीर पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. इस नस्ल के सूअर के कान सामान्य आकार के पाए जाते हैं. जबकि इनका मुख थोड़ा खड़ा होता है. इस प्रजाति के सूअर पालन के लिए सबसे बेहतर माने जाते हैं. क्योंकि इनमें प्रजनन का गुण सबसे ज्यादा पाया जाता है. इस प्रजाति के नर सूअर का वजन 300 से 400 किलो और मादा का वजन ढाई से तीन सौ किलो तक पाया जाता है.

लैंडरेस

लैंडरेस नस्ल के सूअर लम्बे शरीर के दिखाई देते हैं. जबकि इनका वजन कम पाया जाता हैं. इस प्रजाति के नर सूअर का वजन 250 से 350 किलो के बीच पाया जाता है. वहीं मादा प्रजाति के सूअर का वजन 300 किलो तक पाया जाता हैं. इस नस्ल के सूअरों का रंग सफ़ेद दिखाई देता है. और इनके कान और नाक की लम्बाई अधिक पाई जाती हैं.

हैम्पशायर

सूअर की इस प्रजाति के जीवों का रंग काला दिखाई देता हैं. माँस व्यवसाय के लिए इस प्रजाति को भी अच्छी माना जाता हैं. इस प्रजाति के नर पशु में तीन सौ किलो तक वजन पाया जाता हैं. और मादा में भी ढाई सौ किलो तक वजन पाया जाता हैं. इस प्रजाति के पशुओं का आकार सामान्य पाया जाता हैं. जो साल में दो बार बच्चे देते हैं.

घुंघरू

घुंघरू नस्ल के सूअर का पालन सबसे ज्यादा बंगाल राज्य में किया जाता है. बंगाल के अलावा उत्तर पूर्वी और भी कई राज्यों में इसका पालन किया जाता हैं. इस प्रजाति के जीवों का आकर छोटा होता है. लेकिन इनके माँस की गुणवत्ता अच्छी होती हैं. जो खाने में सबसे बेहतर माना जाता हैं. इस प्रजाति के सूअरों में प्रजनन क्षमता सबसे बेहतर होती हैं. इस प्रजाति के जीव एक बार में 10 से 12 बच्चे आसानी देते हैं. इस प्रजाति के जीवों का वजन अधिक नही होता. इसके जीव खाने के रूप में ख़राब और सड़ी गली चीजों को ही खाते हैं. इसलिए इनके खाने के लिए भी अधिक परेशानी का सामना नही करना पड़ता. इस प्रजाति के सूअर ज्यादातर काले रंग के ही दिखाई देते हैं.

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इनके अलावा और भी कुछ नस्लें हैं जिन्हें अलग अलग जगहों पर पाला जाता हैं. जिनसे किसान भाई काफी अच्छी कमाई कर रहे हैं.

सूअर पालन में सरकार की तरफ से सहायता

सूअर पालन के लिए सरकार की तरफ से वैसे तो किसी तरह की सहायता नही दी जाती. लेकिन लोन के रूप में सरकार की तरफ से छूट दी जाती हैं. इस योजना के अंतर्गत लोन की सुविधा नाबार्ड और सरकारी बैंकों द्वारा प्रदान की जाती हैं. जिस पर 8 से 15 प्रतिशत तक ब्याज दर लगाई जाती हैं. लेकिन एक लाख तक के लोन पर किसी तरह का ब्याज नही लागत. सूअर पालन हेतु लोन लेने के लिए सुरक्षा के रूप में जमीन या घर के कागजात रखने होते हैं. इस योजना में अधिकतम लाभ आपको सुरक्षा में रखी गई प्रोपर्टी के आधार पर दिया जाता है. इसका ऋण मिलने के बाद उसे एक निशचित अवधि में चुकाना होता है.

यदि आप भी सूअर पालन लोन योजना के अंतर्गत अपना व्यवसाय शुरू करना चाहते है, तो सूअर पालन के लिए लोन कैसे प्राप्त करे? इसके बारें में आपको यहाँ पूरी जानकारी प्रदान की जा रही है | इसके साथ ही यह योजना के तहत मिलनें वाली सब्सिडी के बारें में बताया जा रहा है |

सूअर पालन योजना क्या है (What is Pig Farming Scheme)

सूअर पालन व्यवसाय को अधिक लाभ देने वाले व्यवसायों में से एक माना जाता है | हालाँकि हमारे देश में सूअर पालन का कार्य बहुत ही पुराने समय से किया जा रहा है | भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में इसके मांस की मांग सबसे अधिक है, इसके अलावा कास्मेटिक प्रोडक्ट और दवाओं में भी इसका उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता है | सबसे खास बात यह है कि इस व्यवसाय को शुरू करनें के लिए किसी खास शैक्षिक योग्यता या अनुभव की आवश्यकता नही होती है | सरकार द्वारा इस व्यवसाय को बढ़ावा देने का मुख्य उद्देश्य युवाओ को स्वरोजगार की तरफ प्रेरित करना है।यहाँ तक कि सरकार लोगो को लोग को अपना व्यवसाय शुरू करनें के लिए विभिन्न योजनाओं द्वारा ऋण के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है |

दरअसल पशुपालन व्यवसाय में अन्य पशुओं की अपेक्षा सूअर पालन को सबसे सस्ता और मुनाफा देने वाले बिजनेस माना गया है | इसका मुख्य कारण मार्केट में इसके मांस कीमांग तेजी से बढ़ती जा रही है और इस पशु को पालने का लाभ यह है कि एक तो मादा सूअर एक ही बार में 5 से 14 बच्चे देने की क्षमता वाला एकमात्र पशु है | सूअर पालन व्यवसाय में लगत कम और मुनाफा अधिक मिलता है |

सूअर पालन योजना के उद्देश्य (Objectives of Pig Farming Scheme)

सरकार द्वारा सूअर पालन योजना को शुरू करनें का मुख्य उद्देश्य देश मे बेरोजगार लोगो को व्यवसाय के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराना है | सूअर पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे बहुत ही कम लागत से शुरू किया जा सकता है, यदि आप इस व्यवसाय को बड़े पैमानें पर करना चाहते है तो सरकार द्वारा इसके लिए सब्सिडी के साथ लोन की सुविधा दी जा रही है |

ऐसे में यह व्यवसाय बेरोजगार लोगो के लिए आय का एक अच्छा साधन बन सकता है और इसके लिए आपको किसी प्रकार के विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करनें की आवश्यकता नही होती है | सूअर का मांस भोजन के रूप में खाने के अलावा इसका प्रत्येक अंग किसी न किसी रूप में उपयोगी है। सूअर की चर्बी, पोर्क, त्वचा, बाल और हड्डियों से विभिन्न प्रकार के कास्मेटिक सामान तैयार किये जाते हैं। इसे व्यवसाय को अपनाकर बेरोजगार युवक आत्मनिर्भर बन सकते हैं।

सुअर पालन हेतु वित्तीय सहायता और सब्सिडी (Financial Assistance &Subsidy for Pig Farming)

सूअर पालन व्यवसाय शुरू करनें के लिए सरकार द्वारा ऋण के रूप में धनराशि प्रदान की जाती है | वैसे तो इस बिजनेस को शुरू करनें में खर्च, पशुओं की प्रजाति और उनकी संख्या पर निर्भर होती है, हालाँकि इस व्यवसाय के लिए सरकारी संस्थाओं जैसे बैंकों और नाबार्ड और सरकारी बैंकों द्वारा ऋण सुविधा उपलब्ध है। बैंकों और नाबार्ड द्वारा दिए जाने वाले लोन पर पर ब्याज दर और समयावधि अलग-अलग होती है। वैसे ऋण पर ब्याजदर 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष होती है।

यदि आप सूअर पालन योजना के अंतर्गत ऋण के लिए आवेदन करते है, तो इसके लिए सरकार 1 लाख तक की धन राशि पर सब्सिडी देती है| इससे अधिक धन राशि लेने पर अपने क्षेत्र के एरिया नाबार्ड खेती परियोजना अधिकारी से संपर्ककर लोन राशि पर अधिक छूट प्राप्त कर सकते है।

  • एक लाख रूपए तक का ऋण लेने पर ब्याज दर 0% होगी अर्थात इस राशि पर कोई ब्याज नही लिया जायेगा।
  • एक लाख रूपए से अधिक धनराशि पर 15% से लेकर 25%तक ब्याज देना होगा |
  • नाबार्ड सूअर खेती परियोजना के अंतर्गत आपको ऋण की राशि पर 20 से 30%  तक सब्सिडी प्रदान की जाएगी।

सुअर पालन लोन योजना हेतु पात्रता (Eligibility for Pig Farming Loan Scheme)

  • आवेदक को भारतीय नागरिक होना आवश्यक है |
  • लोन लेने वाले व्यक्ति को आयु 18 वर्ष से कम नही होनी चाहिए।
  • इस स्कीम के अंतर्गत आपके पास अपनें नगर निगम अधिकारी द्वारा अनुमति पत्र होना आवश्यक है।
  • सूअर पालन स्कीम के मुताबिक, पशुपालक के पास पशुओं को रखने के लिए स्वयं की जमीन होनी चाहिए अथवा आप कोई जमीन कम से कम 10 वर्ष के लिए लीज पर ले सकते है |
  • पशुओं को विभिन्न प्रकार बिमारियों से बचाने के लिए आपके पास पर्याप्त पर्याप्त सुविधा होनी चाहिए, ताकि आवश्यकता पड़ने पर आप उन्हें नजदीकी चिकित्सक केंद्र तक पंहुचा सके।
  • आवेदन करने हेतु शैक्षणिक योग्यता या फिर अनुभव की कोई खास आवश्यकता नहीं है।

सुअर पालन लोन योजना हेतु आवश्यक दस्तावेज (Documents Required for Pig Farming Loan Scheme)

  • आवेदक का आधार कार्ड (Aadhar Card)
  • नगर निगम अधिकारी द्वारा जारी अनुमति |
  • बैंक अकाउंट विवरण (Bank Account Details)
  • नवीन पासपोर्ट साइज़ फोटो (Passport Size Photo)
  • जमीन से सम्बंधित दस्तावेज |

सूअर पालन लोन योजना में आवेदन कैसे करे (How to Apply for Pig Farming Loan Scheme)

  • सूअर पालन लोन योजना के अंतर्गत अभी ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया शुरू नही हुई है, अभी आपको इसके लिए ऑफलाइन आवेदन करना होगा |
  • सूअर पालन लोन योजना के लिए सबसे पहले आपको इससे सम्बंधित जानकरी प्राप्त करनें हेतु अपनें नजदीकी बैंक से जानकारी प्रपात करनी होगी |
  • इसके पश्चात आप बैंक से ऋण प्राप्त करनें के लिए आवेदन फॉर्म प्राप्त करे |
  • आवेदन फॉर्म को भरनें के पश्चात उसमें आवश्यक दस्तावेजों को संलग्न कर बैंक में जमा करना होगा |
  • आवेदन फॉर्म जमा करनें के पश्चात बैंक द्वारा आपके दस्तावेजों का वेरिफिकेशन किया जायेगा, सभी डाक्यूमेंट्स सही पाए जानें पर आपका लोन बैंक द्वारा स्वीकृत कर दिया जायेगा |
  • अब लोन की धनराशि आपके बैंक अकाउंट में ट्रान्सफर कर दी जाएगी |
  • उसके बाद आपका लोन मंजूर कर दिया जाएगा।

पशुओं की देखभाल

सूअर पालन के दौरान पशुओं की देखभाल काफी अहम होती है. सूअरों की देखभाल के दौरान पशुओं के रहने के स्थान की सफाई नियमित रूप से करते रहना चाहिए. और सूअर के अच्छे विकास के लिए उन्हें आहार के साथ साथ औषधियों की जरूरत भी होती है. जो पशुओं के विकास के लिए उपयोगी होती हैं.

सूअर की देखभाल के साथ साथ जो पशु बेचने योग्य हो जाए उसे अलग कर बेच देना चाहिए. जबकि मादा सुअरी जो अच्छी दिखाई दे उसे प्रजनन के लिए रख लेना चाहिए. इसके बच्चे दो साल बाद ही प्रजनन के लिए तैयार हो जाते हैं.

सूअर को लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

सूअर पालन के दौरान जीवों में कई तरह के रोग देखने को मिल जाते हैं. जिनकी उचित समय पर पहचान कर उनका उपचार कर देना चाहिए, या चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए.

बीमारियों का रोकथाम

पशुपालन व्यवसाय में बीमारियों की रोकथाम एक बहुत ही प्रमुख विषय है | इस पर समुचित ध्यान नहीं देने से हमें समुचित फायदा नहीं मिल सकता है | रोगों का पूर्व उपचार करना बीमारी के बाद उपचार कराने से हमेशा अच्छा होता है | इस प्रकार स्वस्थ शरीर पर छोटी मोटी बिमारियों का दावा नहीं लग पाता| यदि सुअरों के रहने का स्थान साफ सुथरा हो, साफ पानी एवं पौष्टिक आहार दिया जाए तब उत्पादन क्षमता तो बढ़ती ही है | साथ ही साथ बीमारी के रूप में आने वाले परेशानी से बचा जा सकता है |

संक्रामक रोग

क) आक्रांत या संदेहात्मक सुअर की जमात रूप से अलग कर देना चाहिए| वहाँ चारा एवं पानी का उत्तम प्रबंध होना आवश्यक है | इसके बाद पशु चिकित्सा के सलाह पर रोक थाम का उपाय करना चाहिए|

ख) रोगी पशु की देखभाल करने वाले व्यक्ति को हाथ पैर जन्तूनाशक दवाई से धोकर स्वस्थ पशु के पास जाना चाहिए|

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ग) जिस घर में रोगी पशु रहे उसके सफाई नियमित रूप से डी. डी. टी. या फिनाईल से करना चाहिए|

घ) रोगी प्शूओन्न के मलमूत्र में दूषित कीटाणु रहते हैं| अत: गर्म रख या जन्तु नाशक दवा से मलमूत्र में रहने वाले कीटाणु को नष्ट करना चाहिए| अगर कोई पशु संक्रामक रोग से मर जाए तो उसकी लाश को गढ़े में अच्छी तरह गाड़ना चाहिए| गाड़ने के पहले लाश पर तथा गढ़े में चूना एवं ब्लीचिंग पाउडर भर देना चाहिए जिससे रोग न फ़ैल सके|

 

सुअरों के कुछ संक्रामक रोग निम्नलिखित हैं

क) सूकर ज्वर

इसमें तेज बुखार, तन्द्र, कै और दस्त का होना, साँस लेने में कठिनाई होना, शरीर पर लाला तथा पीले धब्बे निकाल आना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं| समय-समय पर टीका लगवा कर इस बीमारी से बचा जा सकता है |

ख) सूकर चेचक

बुखार होना, सुस्त पड़ जाना, भूख न लगना, तथा कान, गर्दन एवं शरीर के अन्य भागों पर फफोला पड़ जाना, रोगी सुअरों का धीरे धीरे चलना, तथा कभी-कभी उसके बाल खड़े हो जाना बीमारी के मुख्य लक्षण है | टीका लगवाकर भी इस बीमारी से बचा जा सकता है |

ग) खुर मुंह पका

बुखार हो जाना, खुर एवं मुंह में छोटे-छोटे घाव हो जाना, सुअर का लंगड़ा का चलना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं| मुंह में छाले पड़ जाने के कारण खाने में तकलीफ होती है तथा सुअर भूख से मर जाता है |

खुर के घावों पर फिनाईल मिला हुआ पानी लगाना चाहिए तथा नीम की पत्ती लगाना लाभदायक होता है | टीका लगवाने से यह बीमारी भी जानवरों के पास नहीं पहुँच पाती है |

घ) एनये पील्ही ज्वर

इस रोग में ज्वर बढ़ जाता है | नाड़ी तेज जो जाती है | हाथ पैर ठंडे पड़ जाते हैं| पशु अचानक मर जाता है | पेशाब में भी रक्त आता है | इस रोग में सुअर के गले में सृजन हो जाती का भी टीका होता है |

ङ) एरी सीपलेस

तेज बुखार, खाल पर छाले पड़ना, कान लाल हो जाना तथा दस्त होना इस बीमारी को मुख्य लक्षण हैं| रोगी सुअर को निमानिया का खतरा हमेशा रहता है | रोग निरोधक टीका लगवाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है |

च) यक्ष्मा

रोगी सुअर के किसी अंग में गिल्टी फूल जाती है जो बाद में चलकर फूट जाता है तथा उससे मवाद निकलता है | इसके अलावे रोगी सुअर को बुखार भी आ जाता है | इस सुअर में तपेदिक के लक्षण होने लगते हैं| उन्हें मार डाल जाए तथा उसकी लाश में चूना या ब्लीचिंग पाउडर छिड़क कर गाड़ किया जाए|

छ) पेचिस

रोगी सुअर सुस्त होकर हर क्षण लेटे रहना चाहता है | उसे थोड़ा सा बुखार हो जाता है तथा तेजी से दुबला होने लगता है | हल्के सा पाच्य भोजन तथा साफ पानी देना अति आवश्यक है | रोगी सुअर को अलग- अलग रखना तथा पेशाब पैखाना तुरंत साफ कर देना अति आवश्यक है |

 

परजीवी जय एवं पोषाहार संबंधी रोग

सुअरों में ढील अधिक पायी जाती है | जिसका इलाज गैमक्सीन के छिड़काव से किया जा सकता है | सुअर के गृह के दरारों एवं दीवारों पर भी इसका छिड़काव करना चाहिए|

सुअरों में खौरा नामक बीमारी अधिक होता है जिसके कारण दीवालों में सुअर अपने को रगड़ते रहता है | अत: इसके बचाव के लिए सुअर गृह से सटे, घूमने के स्थान पर एक खम्भा गाड़ कर कोई बोरा इत्यादि लपेटकर उसे गंधक से बने दवा से भिगो कर रख देनी चाहिए| ताकि उसमें सुअर अपने को रगड़े तथा खौरा से मुक्त हो जाए|

सुअर के पेट तथा आंत में रहने वाले परोपजीवी जीवों को मारने के लिए प्रत्येक माह पशु चिकित्सक की सलाह से परोपजीवी मारक दवा पिलाना चाहिए| अन्यथा यह परोपजीवी हमारे लाभ में बहुत बड़े बाधक सिद्ध होगें|

पक्का फर्श पर रहने वाली सुअरी जब बच्चा देती है तो उसके बच्चे में लौह तत्व की कमी अक्सर पाई जाती है | इस बचाव के लिए प्रत्येक प्रसव गृह के एक कोने में टोकरी साफ मिट्टी में हरा कशिस मिला कर रख देना चाहिए सुअर बच्चे इसे कोड़ कर लौह तत्व चाट सकें|

ध्यान देनेयोग्य बातें

  1. प्रसूति सुअर से बच्चों को उनके जरूरत के अनुसार दूध मिल पाता है या नहीं अगर तो दूध पिलाने की व्यवस्था उनके लिए अलग से करना चाहिए| अन्यथा बच्चे भूख से मर जाएंगें|
  2. नवजात बच्चों के नाभि में आयोडीन टिंचर लगा देना चाहिए|
  3. जन्म के 2 दिन के बाद बच्चों को इन्फेरोन की सूई लगा देनी चाहिए|
  4. सुअरों का निरिक्षण 24 घंटो में कम से कम दो बाद अवश्य करना चाहिए|
  5. कमजोरसुअर के लिए भोजन की अलग व्यवस्था करनी चाहिए|
  6. आवास की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए|
  7. प्रत्येक सुअर बच्चा या बड़ा भली भांति खाना खा सके, इसकी समुचित व्यवस्था करनी चाहिए|
  8. एक बड़े नर सुअर के लिए दिन भर के के लिए 3-4 किलो खाने की व्यवस्था होना चाहिए|
  9. एक बार में मादा सुअर 14 से 16 बच्चे दे सकती है अगर उचित व्यवस्था की जाए तो एक मादा सुअरी साल में बार बच्चा दे सकती है |
  10. सुकर ज्वर एवं खुर मुंह पका का का टीका वर्ष में 1 बार जरूर लगा लेना चाहिए|
  11. बच्चों को अलग करने के 3-4 दिन के अंतर में ही सुअरी गर्भ हो जाती है और यदि सुअरी स्वस्थ हालर में हो तो उससे साल में 2 बार बच्चा लेने के उद्देश्य से तुरंत पाल दिला देना चाहिए|
  12. सूअरियों नका औसतन 12, 14 बाट (स्तन) होते हैं| अत: प्रत्येक स्तन को पीला कर इतनी ही संख्या में बच्चों को भली भांति पालपोस सकती है | सूअरियों को आगे की ओर स्तन में दूध का प्रवाह बहुधा पीछे वाले स्तन से अहिक होता है | अत; आगे का स्तन पीने वाला बच्चा अधिक स्वस्थ होता है | यदि पीछे का स्तन पीने वाला बच्चा कमजोर होता जा रहा है तो यह प्रयास करना चाहिए कि 2-3 दिन तक आगे वाला बात दूध पीने के समय पकड़वा दिया जाय ताकि वह उसे पीना शुरू कर दे|

सूअर पालन का अर्थशास्त्र-

  • पूरी तरह विकसित सूअर की कीमत 8 हजार रुपये, महज एक नर और एक मादा से कोई भी इस धंधे को शुरु कर सकता है।
  • एक बार में छह या इससे ज्यादा सूअर के बच्चे पैदा होते हैं, इस तरह तीन महीने के अंदर 10 सूअर हो जाता है।
  • सूअर का एक बच्चा करीब ढाई हजार रुपये में बिकता है, पूर्ण विकसित सूअर आठ हजार रुपये में तक बिकता है।
  • दो एकड़ जमीन पर एक बार में 50 सूअर का पालन हो सकता है।
  • एक साल में एक हजार सूअर का उत्पादन कर 30 लाख रुपये कमाई की जा सकती है।

सूअर पालन के दौरान रखी जाने वाली सावधानियाँ

सूअर पालन के दौरान कई तरह की सावधानियां रखना आवश्यक है. जो पशु के जन्म से ही रखनी होती हैं.

  1. नवजात के जन्म लेने बाद ही नाभि में आयोडीन टिंचर लगा देना चाहिए. और दो दिन बाद उसे इन्फेरोनका टिका लगवा देना चाहिए.
  2. जन्म के बाद ध्यान रहे की सभी बच्चों को समान मात्रा में दूध मिलना चाहिए. कमजोर बच्चों के लिए अलग से दूध की व्यवस्था करनी चाहिए. अन्यथा बच्चा मर भी सकता हैं. कमजोर बच्चे को आगे वाले स्तन का दूध पिलाना चाहिए. क्योंकि आगे के स्तन में दूध का प्रवाह अधिक होता है.
  3. सूअर में लड़ने की आदत ज्यादा पाई जाती हैं. इसलिए शुरुआत से बच्चों के लक्षण देखकर उन्हें अलग कर देना चाहिए.
  4. पशुओं में टीकाकरण उचित समय पर करवाते रहना चाहिए. और जगह की साफ-सफाई का भी खास ध्यान रखना चाहिए.
  5. सूअर पालन के दौरान पशुओं के प्रजनन का खास ध्यान रखना चाहिए. बच्चे देने के दो महीने बाद जब बच्चों को अलग कर दिया जाता है. उसके बाद लगभग एक सप्ताह में की सुअरी मीटिंग करने के लिए तैयार हो जाती हैं. उस दौरान अगर पशु स्वस्थ और अच्छे से हो तो मीटिंग करवा देनी चाहिए. जिससे पशु जल्दी गर्भित हो जाता हैं.

आय और व्यय का लेखा-जोखा

सूअर पालन का व्यवसाय काफी ज्यादा कमाई करने वाला व्यापार है, अगर जानवरों में किसी तरह की बीमारी ना आयें तो. क्योंकि एक उन्नत नस्ल का एक सुअर साल में 20 बच्चों को भी जन्म देता है तो वो बच्चे एक साल बाद बिकने के लिए तैयार हो जाते हैं. और एक सूअर का बाजार भाव 5 से 8 हजार के बीच पाया जाता हैं. जिस हिसाब से 20 बच्चों के बेचने पर औसत कमाई डेढ़ लाख तक की होती हैं. जबकि 20 बच्चों के खाने का अधिकतम खर्च 60 हजार होता है. और बाकी खर्च अगर 30 हजार और मान लिया जाये तो एक सूअर से दो साल में 60 हजार की कमाई हो जाती हैं. जो बाद में सूअरों की संख्या के बढ़ने पर बढती ही जाती हैं.

सूअर पालन से संबंधित पुस्तक आप यहां से पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं:

 

आधुनिक सूकर पालन की संपूर्ण जानकारी

डॉ जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी, कानपुर देहात ,उत्तर प्रदेश

https://dahd.nic.in/sites/default/filess/NAP%20on%20Pig%20.pdf

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