देसी मुर्गी पालन की पूरी जानकारी
डॉ जितेंद्र सिंह, पशु चिकित्साअधिकारी, कानपुर देहात ,उत्तर प्रदेश
भारत में कुक्कुट पालन का उद्योग आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व ही शुरू हो चुका था। कुक्कुट पालन मौर्य साम्राज्य का एक प्रमुख उद्योग था। हालांकि इसे 19वीं शताब्दी से ही वाणिज्यिक उद्योग के रूप में देखा जाने लगा था। कुक्कुट पालन में मुर्गियों की विभिन्न प्रकार की नस्लों का पालन कर उनके अंडे एवं चिकन का व्यवसाय किया जाता है। फसलों के विविधिकरण तथा मिश्रित खेती में मुर्गी पालन व्यवसाय भी किसानों के लिए फायदे का सौदा है। यदि मुर्गियों में कोई बीमारी न आए और मार्किट में अच्छा दाम मिल जाए तो यह व्यवसाय परिवार के पालन-पोषण में काफी हद तक सहायक सिद्ध हो सकता है। क्षेत्र के कई किसान कृषि के साथ-साथ अन्य व्यवसाय भी करते है जिसमें मछली पालन, मुर्गी पालन, हैचरी, वर्मी कंपोष्ट, पशुपालन इत्यादि कार्य शामिल है।
मुर्गीपालन व्यवसाय आपकी आय का अतिरिक्त साधन बन सकता है। बहुत कम लागत से शुरू होने वाला यह व्यवसाय लाखों-करोड़ों का मुनाफा दे सकता है। आज के समय में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में युवा मुर्गीपालन को रोजगार का माध्यम बना सकते हैं। पिछले चार दशकों में मुर्गीपालन व्यवसाय क्षेत्र में शानदार विकास के बावजूद, कुक्कुट उत्पादों की उपलब्धता तथा मांग में काफी बड़ा अंतर है। वर्तमान में प्रति व्यक्ति वार्षिक 180 अण्डों की मांग के मुकाबले 86 अण्डों की उपलब्धता है। इसी प्रकार प्रति व्यक्ति वार्षिक 11 कि.ग्रा. मीट की मांग के मुकाबले केवल 3.8 कि.ग्रा. प्रति व्यक्ति कुक्कुट मीट की उपलब्धता है। जनसंख्या में वृद्धि जीवनचर्या में परिवर्तन, खाने-पीने की आदतों में परिवर्तन, तेजी से शहरीकरण,प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरुकता, युवा जनसंख्या के बढ़ते आकार आदि के कारण कुक्कुट उत्पादों की मांग में जबर्दस्त वृद्वि हुई है। वर्तमान बाजार परिदृश्य में कुक्कुट उत्पाद उच्च जैविकीय मूल्य के प्राणी प्रोटीन का सबसे सस्ता उत्पाद है। मुर्गीपालन व्यवसाय से भारत में बेरोजगारी भी काफी हद तक कम हुई है। आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर बैंक से लोन लेकर मुर्गीपालन व्यवसाय की शुरुआत की जा सकती है और कई योजनाओं में तो बैंक से लिए गए लोन पर सरकार सब्सिडी भी देती है। कुल मिलाकर इस व्यवसाय के जरिए मेहनत और लगन से फिर से शिखर तक पहुंचा जा सकता है
अण्डा देने वाली मुर्गियों का प्रबंधन
यदि योजनाबद्ध तरीके से मुर्गीपालन किया जाए तो कम खर्च में अधिक आय की जा सकती है। बस तकनीकी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। मुर्गियां तभी मरती हैं जब उनके रख-रखाव में लापरवाही बरती जाए। मुर्गीपालन में हमें कुछ तकनीकी चीजों पर ध्यान देना चाहिए। फार्म बनाते समय यह ध्यान दें कि यह गांव या शहर से बाहर मेन रोड से दूर हो, पानी व बिजली की पर्याप्त व्यवस्था हो। फार्म हमेशा ऊंचाई वाले स्थान पर बनाएं ताकि आस-पास जल जमाव न हो। दो पोल्ट्री फार्म एक-दूसरे के करीब न हों। फार्म की लंबाई पूरब से पश्चिम हो। मध्य में ऊंचाई 12 फीट व साइड में 8 फीट हो। चौड़ाई अधिकतम 25 फीट हो तथा शेड का अंतर कम से कम 20 फीट होना चाहिए। फर्श पक्का होना चाहिए। इसके अलावा जैविक सुरक्षा के नियम का भी पालन होना चाहिए। एक शेड में हमेशा एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए। आल-इन-आल आउट पद्धति का पालन करें। शेड तथा बर्तनों की साफ-सफाई पर ध्यान दें। बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित रखना चाहिए। कुत्ता, चूहा, गिलहरी, देशी मुर्गी आदि को शेड में न घुसने दें। मरे हुए चूजे, वैक्सीन के खाली बोतल को जलाकर नष्ट कर दें, समय-समय पर शेड के बाहर डिसइंफेक्टेंट का छिड़काव व टीकाकरण नियमों का पालन करें। समय पर सही दवा का प्रयोग करें।
जगह की आवश्यकता (डीप लिटर सिस्टम में)
ये निर्भर करता है की आप कितने बर्ड्स का फार्म बना रहे है। 1 लेयर मुर्गी के लिए 2 वर्गफीट जगह ठीक है। पर हमें थोड़ी ज्यादा जगह लेनी चाहिए जिससे मुर्गियों को कोई तकलीफ या चोट न लगे और उन्हें अच्छी जगह मिले जिससे वो जल्द बड़े हो सके। इसलिए 1 मुर्गी के लिए 2.5 वर्गफीट जगह अच्छी रहेगी। यदि हम 1000 मुर्गी पालन करते हैं तो हमें 2500 वर्गफीट का शेड बनाना है या 2000 मुर्गियों 4500 वर्गफीट इस तरह से हम जगह का चुनाव कर सकते है।
मुर्गियों के लिए संतुलित आहार
मुर्गीपालकों को चूजे से लेकर अंडा उत्पादन तक की अवस्था में विशेष ध्यान देना चाहिए यदि लापरवाही की गयी तो अंडा उत्पादकता प्रभावित होती है। मुर्गीपालन में 70 प्रतिशत खर्चा आहार प्रबंधन पर आता है अतः इस पहलु पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए।
अंडा देने वाली मुर्गियों हेतु आहार प्रबंधन
स्टार्टर राशन – यह एक से लेकर 8 सप्ताह तक दिया जाता है। इसमें प्रोटीन के मात्रा 22 -24 प्रतिशत, ऊर्जा 2700 – 2800 ME (Kcal/kg) और कैल्शियम 1 प्रतिशत होनी चाहिये। राशन बनाने हेतु निम्न्लिखित तत्वों को शामिल किया जा सकता है-
मक्का = 50 किलो सोयाबीन मील = 16 किलो
खली = 13 किलो मछली चुरा =10 किलो
राइस पोलिस = 8 किलो
खनिज मिश्रण = 2 किलों नमक = 1 किलो
ग्रोवर (वर्धक) राशन – यह 8 से लेकर 20 सप्ताह तक दिया जाता है। इसमें प्रोटीन के मात्रा 18 -20 प्रतिशत, ऊर्जा 2600 – 2700 ME (Kcal/kg) और कैल्सियम 1 प्रतिशत होनी चाहिये। राशन बनाने हेतु निम्न्लिखित तत्वों को शामिल किया जा सकता है –
मक्का = 45 किलो सोयाबीन मील = 15 किलो
खली = 12 किलो मछली चुरा =7 किलो
राइस पोलिस = 18 किलो
खनिज मिश्रण = 2 किलों नमक = 1 किलो
फिनिशर राशन – यह 20 से लेकर आगे के सप्ताह तक दिया जाता है। इसमें प्रोटीन के मात्रा 16 -18 प्रतिशत, ऊर्जा 2400 – 2600 ME (Kcal/kg) और कैल्सियम 3 प्रतिशत होनी चाहिये। राशन बनाने हेतु निम्न्लिखित तत्वों को शामिल किया जा सकता है –
मक्का = 48 किलो सोयाबीन मील = 15 किलो
खली = 14 किलो मछली चुरा =8 किलो
राइस पोलिस = 11 किलो
खनिज मिश्रण = 3 किलों नमक = 1 किलो
अण्डा देने वाली मुर्गियो में विभिन्न रोग आने की संभावना बनी रहती है जिसके अन्तर्गत निम्न्लिखित रोग है –
अवस्था | रोग | टीकाकरण |
पहला दिन | मैरिक्स | HVT वैक्सीन (0. 2 ML) चमड़ी के नीचे |
दुसरे से पांचवे दिन | रानीखेत | फ 1 लसोटा टिका |
14 वे दिन | गम्बोरो रोग | IBD नामक टीका एक बून्द आँख में दे |
21 वे दिन | चेचक | चेचक टिका 0 . 2 ml दवा चमड़ी के नीचे |
28 वे दिन | रानीखेत | फ 1 लसोटा टिका |
63 वे दिन (नौवा सप्ताह) | रानीखेत | बूस्टर टिका 0. 5 ml पंख के नीचे |
84 वे दिन (बाहरवा सप्ताह) | चेचक | चेचक टिका 0 . 2 ml दवा चमड़ी के नीचे |
अण्डों का रख-रखाव
अण्डों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने की चुनौती होती है बड़े व्यवसायी कोल्ड स्टोरेज या रेफ्रीजिरेटर का इस्तेमाल कर सकते है। छोटे व्यवसायी अण्डों को चुने के पानी में भिगोने के बाद छाव में सुखाकर काफी दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है अण्डों को कड़ी धुप से बचाना चाहिए। अण्डों को बाजार तक ले जाने हेतु कूट का बक्सा या बांस की डोलची का उपयोग करे इस तरह अण्डे
भारत में अण्डा देने वाली मुर्गियो की प्रमुख देशी नस्लें
कारी प्रिया लेयर
< पहला अंडा 17 से 18 सप्ताह
< 150 दिन में 50 प्रतिशत उत्पादन
< 26 से 28 सप्ताह में व्यस्तम उत्पादन
< उत्पादन की सहनीयता (96 प्रतिशत) तथा लेयर (94 प्रतिशत)
< व्यस्तम अंडा उत्पादन 92 प्रतिशत
< 270 अंडों से ज्यादा 72 सप्ताह तक हेन हाउस
< अंडे का औसत आकार
< अंडे का वजन 54 ग्राम
कारी सोनाली लेयर (गोल्डन- 92)
< 18 से 19 सप्ताह में प्रथम अंडा
< 155 दिन में 50 प्रतिशत उत्पादन
< व्यस्तम उत्पादन 27 से 29 सप्ताह
< उत्पादन (96 प्रतिशत) तथा लेयर (94 प्रतिशत) की सहनीयता
< व्यस्तम अंडा उत्पादन 90 प्रतिशत
< 265 अंडों से ज्यादा 72 सप्ताह तक हैन-हाउस
< अंडे का औसत आकार
< अंडे का वजन 54 ग्राम
कारी देवेन्द्र
< एक मध्यम आकार का दोहरे प्रयोजन वाला पक्षी
< कुशल आहार रूपांतरण- आहार लागत से ज्यादा उच्च सकारात्मक आय
< अन्य स्टॉक की तुलना में उत्कृष्ट- निम्न लाइंग हाउस मृत्युदर
< 8 सप्ताह में शरीर वजन- 1700-1800 ग्राम
< यौन परिपक्वता पर आयु- 155-160 दिन
< अंडे का वार्षिक उत्पादन- 190-200
भारत में मुर्गियों की नस्लें
इसके लिए एक दिन का बच्चा खरीदा जाता है जो करीब 30 से 45 ग्राम का होता है जिसकी बाजार में कीमत 12 से 30 रुपये की होती है। बीस से तीस दिन बाद बच्चा जब एक से सवा किलो का हो जाता है तो इसे तंदूरी मुर्गा भी कहते है। बाजार में इसका भाव 60 से 70 रुपये प्रति किलोग्राम मिल जाता है। इसके अतिरिक्त 40 से 45 दिन के बाद बिकने वाले मुर्गे की कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम मिल जाते हैं। इस समय उसका वजन लगभग दो किलोग्राम होता है। हरियाणा में मुर्गी बेचने की मार्किट नहीं है। इसके लिए दिल्ली जाना पड़ता है, जहा खर्चे के अतिरिक्त कमीशन देना पड़ता है। एक कैंटर में 22 क्विंटल के करीब 100 मुर्गे होते है जिनकी मार्किट में कीमत एक लाख 32 हजार रुपये बनती है। इस प्रकार के मुर्गे 60 रुपये प्रति किलो तक बिक जाते है। 45 दिन में एक मुर्गा 72 रुपये से 100 रुपये तक दाना खा जाता है। एक मुर्गे पर लगभग 32 रुपए खर्चा निकालकर लाभ मिलता है। मुर्गी पालन में बीमारियों का अंदेशा अकसर बना रहता है। गुमारों सीआरडी, बर्ड फ्लू, कैक्सी सिटी आदि बीमारिया इस व्यवसाय के लिए घातक हैं। वैसे सरकार की तरफ से डाक्टर की सुविधा है।
भारत मे पायी जाने वाली अन्य नस्लें
असेल नस्ल Aseel
यह नस्ल भारत के उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में पाई जाती है। भारत के अलावा यह नस्ल ईरान में भी पाई जाती है जहाँ इसे किसी अन्य नाम से जाना जाता है। इस नस्ल का चिकन बहुत अच्छा होता है। इन मुर्गियों का व्यवहार बहुत ही झगड़ालू होता है इसलिए मानव जाति इस नस्ल के मुर्गों को मैदान में लड़ाते हैं। मुर्गों का वजन 4-5 किलोग्राम तथा मुर्गियों का वजन 3-4 किलोग्राम होता है। इस नस्ल के मुर्गे-मुर्गियों की गर्दन और पैर लंबे होते हैं तथा बाल चमकीले होते हैं। मुर्गियों की अंडे देने की क्षमता काफी कम होती है।
कड़कनाथ नस्ल Kadaknath –
इस नस्ल का मूल नाम कलामासी है, जिसका अर्थ काले मांस वाला पक्षी होता है। कड़कनाथ नस्ल मूलतः मध्य प्रदेश में पाई जाती है। इस नस्ल के मीट में 25% प्रोटीन पायी जाती है जो अन्य नस्ल के मीट की अपेक्षा अधिक है। कड़कनाथ नस्ल के मीट का उपयोग कई प्रकार की दवाइयां बनाने में भी किया जाता है इसलिए व्यवसाय की दृष्टि से यह नस्ल अत्यधिक लाभप्रद है। यह मुर्गिया प्रतिवर्ष लगभग 80 अंडे देती है। इस नस्ल की प्रमुख किस्में जेट ब्लैक, पेन्सिल्ड और गोल्डेन है।
ग्रामप्रिया नस्ल Gramapriya –
ग्रामप्रिया को भारत सरकार द्वारा हैदराबाद स्थित अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना के तहत विकसित किया गया है। इसे ख़ास तौर पर ग्रामीण किसान और जनजातीय कृषि विकल्पों के लिये विकसित गया है। इनका वज़न 12 हफ्तों में 1.5 से 2 किलो होता है। इनके मीट का प्रयोग तंदूरी चिकन बनाने में अधिक किया जाता है। ग्रामप्रिया एक साल में औसतन 210 से 225 अण्डे देती है। इनके अण्डों का रंग भूरा होता है और उसका वज़न 57 से 60 ग्राम होता है।
स्वरनाथ नस्ल –
स्वरनाथ कर्नाटक पशु चिकित्सा एवं मत्स्य विज्ञान और विश्वविद्यालय, बंगलौर द्वारा विकसित चिकन की एक नस्ल है। इन्हें घर के पीछे आसानी से पाला जा सकता है। ये 22 से 23 सप्ताह में पूर्ण परिपक्व हो जाती है और तब इनका वज़न 3 से 4 किलोग्राम होता है। इनकी प्रतिवर्ष अण्डे उत्पादन करने की क्षमता लगभग 180-190 होती है।
कामरूप नस्ल-
यह बहुआयामी चिकन नस्ल है जिसे असम में कुक्कुट प्रजनन को बढ़ाने के लिए अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना द्वारा विकसित किया गया है। यह नस्ल तीन अलग-अलग चिकन नस्लों का क्रॉस नस्ल है, असम स्थानीय(25%), रंगीन ब्रोइलर(25%) और ढेलम लाल(50%) इसके नर चिकन का वज़न 40 हफ़्तों में 1.8 – 2.2 किलोग्राम होता है। इस नस्ल की प्रतिवर्ष अण्डे देने की क्षमता लगभग 118-130 होती है जिसका वज़न लगभग 52 ग्राम होता है।
चिटागोंग नस्ल Chittagong –
यह नस्ल सबसे ऊँची नस्ल मानी जाती है। इसे मलय चिकन के नाम से भी जाना जाता है। इस नस्ल के मुर्गे 2.5 फिट तक लंबे तथा इनका वजन 4.5 – 5 किलोग्राम तक होता है। इनकी गर्दन और पैर बाकी नस्ल की अपेक्षा लंबे होते है। इस नस्ल की प्रतिवर्ष अण्डे देने की क्षमता लगभग 70-120 अण्डे है।
केरी श्यामा नस्ल-
यह कड़कनाथ और कैरी लाल का एक क्रास नस्ल है। इस किस्म के आंतरिक अंगों में भी एक गहरा रंगद्रव्य होता है, जिसे मानवीय बीमारियों के इलाज़ के लिए जनजातीय समुदाय द्वारा प्राथमिकता दी जाती है। यह ज्यादातर मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान में पायी जाती है। यह नस्ल 24 सप्ताह में पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाती है और तब इनका वज़न लगभग 1.2 किलोग्राम(मादा) तथा 1.5 किलोग्राम(नर) होता है। इनकी प्रजनन क्षमता प्रतिवर्ष लगभग 85 अण्डे होती है।
झारसीम नस्ल –
यह झारखंड की मूल दोहरी उद्देश्य नस्ल है इसका नाम वहाँ की स्थानीय बोली से प्राप्त हुआ है। ये कम पोषण पर जीवित रहती है और तेज़ी से बढ़ती है। इस नस्ल की मुर्गियाँ उस क्षेत्र के जनजातीय आबादी के आय का स्रोत है। ये अपना पहला अण्डा 180 दिन पर देती है और प्रतिवर्ष 165-170 अण्डे देती है। इनके अण्डे का वज़न लगभग 55 ग्राम होता है। इस नस्ल के पूर्ण परिपक्व होने पर इनका वज़न 1.5 – 2 किलोग्राम तक होता है।
देवेंद्र नस्ल –
यह एक दोहरी उद्देश्य चिकन है। यह पुरूष और रोड आइलैंड रेड के रूप में सिंथेटिक ब्रायलर की एक क्रॉस नस्ल है। 12 सप्ताह में इसका शरीरिक वज़न 1800 ग्राम होता है। 160 दिन में ये पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाती है। इनकी वार्षिक अण्डा उत्पादन क्षमता 200 है। इसके अण्डे का वज़न 54 ग्राम होता है।
कुक्कुट की नस्लें और उनकी उपलब्धता –
केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर द्वारा विकसित नस्लें –
घर के पिछवाड़े में पाले जाने वाली नस्लें –
कारी निर्भीक (एसील क्रॉस)
एसील का शाब्दिक अर्थ वास्तविक या विशुद्ध है। एसील को अपनी तीक्ष्णता, शक्ति, मैजेस्टिक गेट या कुत्ते से लड़ने की गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। इस देसी नस्ल को एसील नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसमें लड़ाई की पैतृक गुणवत्ता होती है। इस महत्वपूर्ण नस्ल का गृह आंध्र प्रदेश माना जाता है। यद्यपि, इस नस्ल के बेहतर नमूने बहुत मुश्किल से मिलते हैं। इन्हें शौकीन लोगों और पूरे देश में मुर्गे की लड़ाई-शो से जुड़े हुए लोगों द्वारा पाला जाता है। एसील अपने आप में विशाल शरीर और अच्छी बनावट तथा उत्कृष्ट शरीर रचना वाला होता है। इसका मानक वजन मुर्गों के मामले में 3 से 4 किलो ग्राम तथा मुर्गियों के मामले में 2 से 3 किलो ग्राम होता है। यौन परिपक्वता की आयु (दिन) 196 दिन है। वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 92 40 सप्ताह में अंडों का वजन (ग्राम)- 50
कारी श्यामा (कडाकानाथ क्रॉस) –
इसे स्थानीय रूप से “कालामासी” नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ काले मांस (फ्लैश) वाला मुर्गा है। मध्य प्रदेश के झाबुआ और धार जिले तथा राजस्थान और गुजरात के निकटवर्ती जिले जो लगभग 800 वर्ग मील में फैला हुआ है, इन क्षेत्रों को इस नस्ल का मूल गृह माना गया है। इनका पालन ज्यादातर जनजातीय, आदिवासी तथा ग्रामीण निर्धनों द्वारा किया जाता है। इसे पवित्र पक्षी के रूप में माना जाता है और दीवाली के बाद इसे देवी के लिए बलिदान देने वाला माना जाता है। पुराने मुर्गे का रंग नीले से काले के बीच होता है जिसमें पीठ पर गहरी धारियां होती हैं।
इस नस्ल का मांस काला और देखने में विकर्षक (रीपल्सिव) होता है, इसे सिर्फ स्वाद के लिए ही नहीं बल्कि औषधीय गुणवत्ता के लिए भी जाना जाता है। कडाकनाथ के रक्त का उपयोग आदिवासियों द्वारा मानव के गंभीर रोगों के उपचार में कामोत्तेजक के रूप में इसके मांस का उपयोग किया जाता है। इसका मांस और अंडे प्रोटीन (मांस में 25-47 प्रतिशत) तथा लौह एक प्रचुर स्रोत माना जाता है।
– 20 सप्ताह में शरीर वजन (ग्राम)- 920
– यौन परिपक्वता में आयु (दिन)- 180
– वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 105
– 40 सप्ताह में अंडे का वजन (ग्राम)- 49
– जनन क्षमता (प्रतिशत)- 55
– हैचेबिल्टी एफ ई एस (प्रतिशत)- ५२
हितकारी (नैक्ड नैक क्रॉस) –
नैक्ड नैक परस्पर बड़े शरीर के साथ-साथ लम्बी गोलीय गर्दन वाला होता है। जैसे इसके नाम से पता लगता है कि पक्षी की गर्दन पूरी नंगी या गालथैली (क्रॉप) के ऊपर गर्दन के सामने पंखों के सिर्फ टफ दिखाई देते हैं।
इसके फलस्वरूप इनकी नंगी चमड़ी लाल हो जाती है विशेषरूप से नर में यह उस समय होता है जब ये यौन परिपक्वतारूपी कामुकता में होते है।केरल का त्रिवेन्द्रम क्षेत्र नैक्ड नैक का मूल आवास माना जाता है।
– 20 सप्ताह में शरीर का वजन (ग्राम)- 1005
– यौन परिपक्वता में आयु (दिन)- 201
– वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 99
– 40 सप्ताह में अंडे का वजन (ग्राम)- 54
– जनन क्षमता (प्रतिशत)- 66
– हैचेबिल्टी एफ ई एम (प्रतिशत)- ७१
उपकारी (फ्रिजल क्रॉस) –
यह विशिष्ट मुरदार-खोर (स्कैवइजिंग) प्रकार का पक्षी है जो अपने मूल नस्ल आधार में विकसित होता है। यह महत्वपूर्ण देसी मुर्गे की तरह लगता है जिसमें बेहतर उपोष्ण अनुकूलता तथा रोग प्रतिरोधिता, अपवर्जन वृद्धि तथा उत्पादन निष्पादन शामिल है।
घर का पिछवाड़ा मुर्गी पालन के लिए उपयुक्त है।
उपकारी पक्षियों की चार किस्में उपलब्ध हैं जो विभिन्न कृषि मौसम स्थितियों के लिए अनुकूल है।
काडाकनाथ X देहलम रैड
असील X देहलम रैड
नैक्ड नैक X देहलम रैड
फ्रिजल X देहलम रैड
निष्पादन रूपरेखा –
– यौन परिपक्वता की आयु 170-180 दिन
– वार्षिक अंडा उत्पादन 165-180 अंडे
– अंडे का आकार 52-55 ग्राम
– अंडे का रंग भूरा होता है
– अंडे की गुणवत्ता, उत्कृष्ट आंतरिक गुणवत्ता
– 95 प्रतिशत से ज्यादा सहनीय
– स्वभाविक प्रतिक्रिया तथा बेहतर चारा
लेयर्स वाली मुर्गी की उन्नत नश्लें –
कारी प्रिया लेयर –
– पहला अंडा 17 से 18 सप्ताह
– 150 दिन में 50 प्रतिशत उत्पादन
– 26 से 28 सप्ताह में व्यस्तम उत्पादन
– उत्पादन की सहनीयता (96 प्रतिशत) तथा लेयर (94 प्रतिशत)
– व्यस्तम अंडा उत्पादन 92 प्रतिशत
– 270 अंडों से ज्यादा 72 सप्ताह तक हेन हाउस
– अंडे का औसत आकार
– अंडे का वजन 54 ग्राम
कारी सोनाली लेयर (गोल्डन- 92)-
– 18 से 19 सप्ताह में प्रथम अंडा
– 155 दिन में 50 प्रतिशत उत्पादन
– व्यस्तम उत्पादन 27 से 29 सप्ताह
– उत्पादन (96 प्रतिशत) तथा लेयर (94 प्रतिशत) की सहनीयता
– व्यस्तम अंडा उत्पादन 90 प्रतिशत
– 265 अंडों से ज्यादा 72 सप्ताह तक हैन-हाउस
– अंडे का औसत आकार
– अंडे का वजन 54 ग्राम
कारी देवेन्द्र
– एक मध्यम आकार का दोहरे प्रयोजन वाला पक्षी
– कुशल आहार रूपांतरण- आहार लागत से ज्यादा उच्च सकारात्मक आय
– अन्य स्टॉक की तुलना में उत्कृष्ट- निम्न लाइंग हाउस मृत्युदर
– 8 सप्ताह में शरीर वजन- 1700-1800 ग्राम
– यौन परिपक्वता पर आयु- 155-160 दिन
– अंडे का वार्षिक उत्पादन- 190-200
ब्रायलर मुर्गियों की नश्लें –
कारीब्रो – विशाल( कारीब्रो-91) –
– दिवस होने पर वजन – 43 ग्राम
– 6 सप्ताह में वजन – 1650 से 1700 ग्राम
– 7 सप्ताह में वजन – 100 से 2200 ग्राम
– ड्रैसिंग प्रतिशतः 75 प्रतिशत
– सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
– 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 1.94 से 2.20
कारी रेनब्रो (बी-77) –
– दिवस होने पर वजन – 41 ग्राम
– 6 सप्ताह में वजन – 1300 ग्राम
– 7 सप्ताह में वजन – 160 ग्राम
– सहनीय प्रतिशत – 98-99 प्रतिशत
– ड्रैसिंग प्रतिशतः 73 प्रतिशत
– 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 1.94 से 2.20
कारीब्रो-धनराजा (बहु-रंगीय) –
– दिवस होने पर वजन – 46 ग्राम
– 6 सप्ताह में वजन – 1600 से 1650 ग्राम
– 7 सप्ताह में वजन – 2000 से 2150 ग्राम
– ड्रेसिंग प्रतिशतः 73 प्रतिशत
– सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
– 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 1.90 से 2.10
कारीब्रो- मृत्युंजय (कारी नैक्ड नैक)
– दिवस होने पर वजन – 42 ग्राम
– 6 सप्ताह में वजन – 1650 से 1700 ग्राम
– 7 सप्ताह में वजन – 200 से 2150 ग्राम
– ड्रैसिंग प्रतिशतः 77 प्रतिशत
– सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
– 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 1.9 से 2.0
कोयल –
हाल ही के वर्षों में जैपनीज कोयल ने अपना व्यापक प्रभाव दिखाया है और अंडे तथा मांस उत्पादन के लिए पूरे देश में अनेक कोयला-फार्म स्थापित किये गये हैं। यह उपभोक्ताओं की गुणवत्ता वाले मांस के प्रति बढ़ती हुई जागरुकता के कारण हुआ है।
निम्नलिखित घटक कोयल पालन प्राणाली को किफायती और तकनीकी रुप से व्यवहारिक बनाते हैं।
– लघु अवधि पीढ़ी अंतराल
– कोयल रोग के प्रति काफी सशक्त होती
– किसी तरह के टीकाकरण की जरूरत नहीं होती
– कम जगह की जरूरत होती
– रख-रखाव में आसानी होती
– जल्दी परिपक्व होती
– अंडे देने की उच्च तीव्रता – मादा 42 की आयु में अंडे देना आरंभ करती
कारी उत्तम –
– कुल अंडे सैट पर हैचेबिल्टीः 60-76 प्रतिशत
– 4 सप्ताह में वजनः 150 ग्राम
– 5 सप्ताह में वजनः 170-190 ग्राम
– 4 सप्ताह में आहार दक्षताः 2.51
– 5 सप्ताह में आहार दक्षताः 2.80
– दैनिक आहार खपतः 25-28 ग्राम
कारी उज्जवल
– कुल अंडे सैट पर हैचेबिल्टीः 60-76 प्रतिशत
– 4 सप्ताह में वजनः 140 ग्राम
– 5 सप्ताह में वजनः 170-175 ग्राम
– 5 सप्ताह में आहार दक्षताः 2.93
– दैनिक आहार खपतः 25-28 ग्राम
कारी स्वेता –
– कुल अंडे सैट पर हैचेबिल्टीः 50-60 प्रतिशत
– 4 सप्ताह में वजनः 135 ग्राम
– 5 सप्ताह में वजनः 155-165 ग्राम
– 4 सप्ताह में आहार दक्षताः 2.85
– 5 सप्ताह में आहार दक्षताः 2.90
– दैनिक आहार खपतः 25 ग्राम
<5>कारी पर्ल
– कुल अंडे सैट पर हैचेबिल्टीः 65-70 प्रतिशत
– 4 सप्ताह में वजनः 120 ग्राम
– दैनिक आहार खपतः 25 ग्राम
– 50 प्रतिशत अंडा उत्पादन की आयुः 8-10 सप्ताह
– टैन-डे उत्पादनः 285-295 अंडे
गिनी कुक्कुट / गिनी मुर्गा –
गिनी मुर्गा एक काफी स्वतंत्र घूमने वाला पक्षी है। यह सीमांत और छोटे किसानों के लिए काफी उपयुक्त है। उपलब्ध तीन किस्में हैं- कादम्बरी, चितम्बरी तथा श्वेताम्बरी
विशेष लक्षण –
– स्वस्थ पक्षी
– किसी भी तरह के कृषि मौसम स्थिति के लिए अनुकूल
– मुर्गे के अनेक सामान्य रोगों की प्रतिरोधी क्षमता
– विशाल और महंगे घरों की जरुरत न होना
– उत्कृष्ट चारा अनुकूलता
– चिकन आहार में उपयोग न किये जाने वाले समस्त गैर पारंपरिक आहार की खपत
– माइकोटोक्सीन तथा एफ्लाटोक्सीन के प्रति अधिक वहनीयता
– अंडे का बाहर का छिलका सख्त होने की वजह से कम टूटता है और इसकी बेहतर गुणवत्ता बनी रहने की अवधि में वृद्धि होती है
– गिनी मुर्गे का मांस विटामिन से भरपूर होता है तथा इसमें कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम होती है।
उत्पादन लक्षण वर्गन
– 8 सप्ताह में वजन 500-550 ग्राम
– 12 सप्ताह में वजन 900-1000 ग्राम
– प्रथम अंडे जनन में आयु 230-250 दिन
– औसत अंडे का वजन 38-40 ग्राम
– अंडा उत्पादन (मार्च से सितम्बर तक एक अंडे जनन चक्र में) 100-120 अंडे
– जनन क्षमता 70-75 प्रतिशत
– जनन शक्ति वाले अंडे सैट पर हैचेबिल्टी 70-80 प्रतिशत
टर्की – कारी-विराट
– चौड़ी छाती वाली सफेद प्रकार की
– टर्की की बाजार में बिक्री लगभग 16 सप्ताह की आयु में ब्रायलर के रूप में उस समय होती है जब मुर्गियां सामान्यतः लगभग 8 किलो ग्राम के जीवित – वजन में और टौम का वजन लगभग 12 किलो ग्राम होता है।
– स्थानीय बाजार की मांग के अनुसार कम आयु में पशुवध द्वारा छोटे, फ्रायर रोस्टरों में इसे तैयार किया जा सकता है।
– नस्ल संबंधी जानकारी के लिए कृपया निम्नलिखित से सम्पर्क करें –
निदेशक,
केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान,
इज्जतनगर, उत्तर प्रदेश
पिन-243122
ई-मेलः caridirector@rediffmail.com
फोनः 91-581-230122091-581-2301220; 2303223; 2300204
फैक्सः91-581-230132191-581-2301321
कुक्कुट पालन परियोजना निदेशालय, हैदराबाद द्वारा विकसित नस्लें –
वनराजा –
कुक्कुटपालन परियोजना निदेशालय, हैदराबाद द्वारा विकसित ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में पिछवाड़े में पालन के लिए उपयुक्त पक्षी
यह एक बहुरंगी तथा दोहरे प्रयोजन वाला पक्षी होने के साथ आकर्षक पक्षति (प्लूमेज) वाला पक्षी है।
सामान्य कुक्कुट रोग के विरुद्घ इसमें बेहतर प्रतिरक्षा स्तर है और यह मुक्त रेंज पालन के लिए अनुकूल है।
वजराजा के नर नियमित आहार प्रणाली के तहत 8 सप्ताह की आयु में मामूली शरीर वजन हासिल करते हैं।
मुर्गी के अंडजनन का चक्र 160-180 अंडे एक चक्र में होते हैं।
इसके परस्पर हल्के वजन और लम्बी टांगों के कारण पक्षी परभक्षी से अपनी रक्षा करने में सफल होते हैं जो कि पिछवाड़े में पक्षी पालन में अपने आप में एक मुख्य समस्या है।
कृषिभ्रो –
– कुक्कुट पालन परियोजना निदेशालय, हैदराबाद द्वारा विकसित
– बहु-रंगी व्यावसायिक ब्रायलर चिक्स
– 2-2 आहार रूपांतरण अनुपात से कम
– 6 सप्ताह की आयु तक शरीर वजन प्राप्त करता
कृषिभ्रो से लाभ –
– सख्त, बेहतर अनुकूल तथा जीवित रहने की बेहतर क्षमता
– इसकी निर्वाहता 6 सप्ताह तक लगभग 97 प्रतिशत है
– इन पक्षियों का आकर्षक रंग पक्षति है तथा उपोष्ण मौसम स्थितियों के अनुकूल है।
– व्यावसायिक कृषिभ्रो सामान्य पोल्ट्री रोग जैसे रानीखेत तथा संक्रमण ब्रुसलरोग के विरुद्ध उच्च प्रतिरोधी है।
नस्लों की उपलब्धता के बारे में कृपया निम्नलिखित से सम्पर्क करें।
Director
Project Directorate on Poultry
Rajendra Nagar, Hyderabad – 500030
Andhra Pradesh, INDIA
Phone :- 91-40-2401700091-40-24017000/24015651
Fax : – 91-40-24017002
E-mail: pdpoult@ap.nic.in
कर्नाटक पशुचिकित्सा एवं मात्स्यिकी विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलोर द्वारा विकसित नस्लें
गिरिराजा –
कुक्कुट विज्ञान विभाग, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलोर द्वारा विकसित जिसे वर्तमान में कर्नाटक पशु चिकित्सा विज्ञान एवं मात्स्यिकी विज्ञान विश्वविद्यालय, हेब्बल, बंगलुरु के रूप में जाना जाता है।
स्वर्णधारा –
यह नस्ल एक वर्ष में 15-20 अंडे देती है जो गिरिराज चिकन नस्ल से ज्यादा है और इसे कर्नाटक पशुचिकित्सा एवं मात्स्यिकी विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलोर द्वारा वर्ष 2005 में जारी किया गया। स्वर्णधारा चिकन में अन्य स्थानीय नस्लों की तुलना में अंडे की उच्च उत्पादन क्षमता के साथ-साथ बेहतर वृद्धि का भी गुण है और यह मिश्रित तथा पिछवाड़ा पालन प्रणाली के लिए उपयुक्त है।
गिरिराज नस्ल की तुलना में, स्वर्णधारा नस्ल छोटे आकार की और कम शरीर वजन वाली है जो इसे पर-भक्षियों जैसे जंगली बिल्ली और लोमड़ी के हमले से बचने में मददगार होती है। इस पक्षी को अंडों और मांस के लिए पाला जाता है। हैचिंग के बाद यह 22-23 सप्ताह में परिपक्व होती है।
मुर्गियों का वजन लगभग 3 किलो ग्राम तथा मुर्गों का वजन लगभग 4 किलो ग्राम होता है। स्वर्णधारा नस्ल की मुर्गियां एक वर्ष में लगभग 180-190 अंडे देती हैं ।
अन्य देसी नस्लें
– भारत मे पायी जाने वाली अन्य नस्लें – यह कुछ अन्य मुर्गियों की प्रजाति है जो भारत में पायी जाती हैं –
– अंकलेश्वर
– कश्मीर फेवरोला
– कालास्थि
– कलिंगा ब्राउन
– कृष्णा-जे.
– कालाहांडी
– कोमान
– गिरिराज
– कैरी गोल्ड
– ग्रामलक्ष्मी
– गुजरी
– डांकी
– घाघस
– तेलीचेरी
– धुमसील
– डाओथीर
– धनराजा
– पंजाब ब्राउन
– निकोबारी
– फुलबनी
– बुसरा
– यमुना
– मृत्युंजय
– वंजारा
– मिरी
– वेजागुडा
– हरींगाटा ब्लैक
– हंसली
भारत मे पायी जाने वाली अन्य नस्लें –
नस्लें | गृह क्षेत्र |
अंकलेश्वर | गुजरात |
एसील | आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश |
बुसरा | गुजरात और महाराष्ट्र |
चिट्टागोंग | मेघालय और त्रिपुरा |
पगंनकी | आंध्र प्रदेश |
दाओथीगिर | असम |
धागुस | आंध्र प्रदेश और कर्नाटक |
हरिनघाटा ब्लैक | पश्चिम बंगाल |
काडाकनाथ | मध्य प्रदेश |
कालास्थी | आंध्र प्रदेश |
कश्मीर फेवीरोल्ला | जम्मू व कश्मीर |
मिरी | असम |
निकोबारी | अंडमान एवं निकोबार |
पंजाब ब्राउन | पंजाब व हरियाणा |
टेल्लीचेरी | केरल |
देसी मुर्गी पालन से संबंधित पुस्तक :-
आप यहां से पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं:
मुर्गियों के प्रमुख रोग एवं रोकथाम