एक आदर्श डेयरी ग्राम की संकल्पना

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एक आदर्श डेयरी ग्राम की संकल्पना

डॉ. सौरभ योगी  , डॉ. विकास न. खुने , डॉ.वन्दना भगत  , डॉ. अजय चतुर्वेदानी 

  • PhD शोध छात्र, पशुधन उत्पादन एवं प्रबंधन विभाग , पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महा विद्यालय अंजोरा, दुर्ग .
  • सहायक प्राध्यापक ,पशुधन उत्पादन एवं प्रबंधन विभाग , पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महा विद्यालय अंजोरा, दुर्ग .
  • सहायक प्राध्यापक, पशुपालन प्रसार विभाग , पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्व विद्यालय

 

भारत  में कुल जनसंख्या का ६८.८४% आबादी गाँवों में निवास करती है, कृषि के आलावा पशुपालन कृषकों के लिए आजीविका का अच्छा स्त्रोत है. यह ग्रामीण युवाओ के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न कर उन्हें आत्मनिर्भर बनने सहायता  करता है. गाय का दूध प्रोटीन, विटामिन एवम् मिनरल से भरपूर होता है. यह बच्चो में व्याप्त कुपोषण की समस्या को हल करने में सक्षम है. गौपालक अपने पारम्परिक पशु पालन गतिविधियों में  कुछ उन्नत तकनिक का समावेश कर अधिक उत्पादन कर सकते है.

एक आदर्श डेयरी ग्राम के लिए आवश्यक है, कि उत्पादन होने वाले दुग्ध के लिए वर्ष पर्यंत बाजार उपलब्ध हो, ग्राम में दुग्ध पालको को मिलकर सहकारी समिति का निर्माण करना चाहिए ,जो सहकारिता के सिद्धांत पर कार्यरत हो , प्रत्येक गौपालक दुग्ध सहकारी समिति में विक्रय करे जिससे उसे उचित मूल्य प्राप्त हो. ये सहकारी समिति सदस्यों के बुनियादी आवश्यकताओ की पूर्ति करने में सहयोग करता है. सहकारी समिति के सदस्य जिला दुग्ध संघ परिसर में पशु आहार , पशु पालन की जानकारी प्राप्त कर सकते है. समिति के माध्यम से कम ब्याज दर में ऋण प्राप्त कर सकते है. सहकारी समिति सभी वर्ग के उत्पादकों को समान अधिकार प्रदान करता है.

ग्राम में उन्नत पशुपालन हेतु सुझाव

गृह व्यवस्था :-  पशुओ का आवास स्वच्छ, हवादार, सूर्य प्रकाश से युक्त, जल निकासी की समुचित व्यवस्था के साथ तथा प्रतिकूल मौसम में (ग्रीष्म ,शीत, वर्षा) में पशुओ को सुरक्षा प्रदान करे. पशुओ के खड़े होने की जगह , पशु के स्वछंद विचरण के लिए पर्याप्त जगह हो.

नस्ल सवर्धन : नस्ल सुधार के लिए उस क्षेत्र में लागु प्रजनन नीति का पालन करना आवश्यक है  जैसे ग्रेडिंग अप इस विधि में कम उत्पादक देसी गायो का संकरण दुधारू भारतीय  नस्ल के गुणवत्ता युक्त सांड के वीर्य  द्वारा कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से किया जाता है , इस तकनीक से धीरे धीरे दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है

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 ीढ़ीीक से कर्मशी दो सा्नत तकनिकीचयनात्मक नस्ल संवर्धन इस विधि में  अच्छे नस्ल के भारतीय गायो (साहिवाल, गिर, रेड सिन्धी ) का संकरण उसी नस्ल के उच्च गुणवत्ता युक्त सांड से किया जाता है. कम उत्पादक भैंसों  में संवर्धन के लिए उच्च वंशीय मुर्रा नस्ल के वीर्य का प्रयोग करे.

बीमार अनुत्पादक कम वृद्धि दर बाँझपन समस्या वाले गायो को अन्यत्र विक्रय कर दी जाये. अतिरिक्त नर भैंसे  एवं संकर साकर को कम उम्र में ही विक्रय कर दें , निकृष्ट नर वत्स एवं नाटो का ग्राम स्तर पर सघन बधियाकरण कर विक्रय कर देना चाहिए , इन्हें कृषि कार्य में प्रयुक्त कर सकते है . ग्राम में कृत्रिम गर्भाधान हेतु उच्च गुणवत्ता युक्त अच्छे नस्ल का वीर्य स्ट्रॉ सप्ताह में प्रतिदिन उपलब्ध हो. ग्राम में प्रशिक्षित कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्त्ता की व्यवस्था हो. प्रत्येक पशुपालक गाय में गर्मी के लक्षण दिखते ही सही समय में कृत्रिम गर्भाधान करा लेना चाहिए, तथा २ -३ माह पश्चात पशु चिकित्सक से गर्भ परिक्षण अवश्य कराए.

पशु पोषण  :- सभी भूमि धारक गौपालक कुछ कृषि भूमि में हरा चारा  ( नेपियर, मक्का, एम. पी.  चारी, जई, बरसीम ,लुसर्न, सुडान ग्रास इत्यादि) लगायें. हाईब्रीड एवम् मल्टी कट वेरायटी का हरा चारा लगाए, जिससे प्रतिवर्ष प्रति इकाई क्षेत्र में कम खर्च में ३०० से ४०० % अधिक उत्पादन  हो . मृदा में आवश्यकता अनुसार उर्वरक का प्रयोग करे. अतिरिक्त उत्पादित चारा को संरक्षित (हे ,साइलेज )  कर के रखा जाए जिससे, इसका उपयोग भविष्य में चारे की अल्पता के समय किया जाये  भूमिहीन पशु पालक हार्वेस्टर से कटाई के पशात शेष  फसल अवशेष , सडक किनारे चराई, विष रहित खरपतवार एवं गन्ने के उपरी भाग का उपयोग चारे के रूप में कर सकते है. सभी वर्ग के पशुओ के लिए अलग-अलग ( उच्च उत्पादक, काफ स्टार्टर, कार्यकारी बैल )  पशु आहार का निर्माण कम खर्च में सहकारी समिति या दुग्ध संघ के परिसर में किया जाये, जिससे पशु आहार उचित मूल्य में उपलब्ध हो. प्रति  ३ लिटर दूध उत्पादन के लिए १ किलो पशु आहार खिलाये , १ किलो पशु आहार शरीर के भरण पोषण के लिए दें एवम् उपलब्धता अनुसार हरा चारा / सुखा चारा मिला उचित अनुपात (३:१) में दिया जाये. पैरा , पुवाल  में युरिया एवम् मिनरल अदि मिलाकर (युरिया उपचार) पोषकता को बढाया जा सकता है.  अजोला का उपयोग भी चारे के रूप में किया जा सकता है यह प्रोटीन से भरपूर होता है. हाइड्रो पोनिक्स में मक्का चारा एवं सिल्विपेस्टोरल तकनीक के माध्यम से भी कम भूमि में अधिक चारा का उत्पादन किया जा सकता है.

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पशु स्वास्थ्य सेवा  :- विकासखंड स्तर एवं  अधिक पशु संख्या वाले  गाँव/कस्बे  स्तर पर  पशु चिकित्सालय होता है, जहां पशु चिकित्सक की पदस्थापना होती है. ग्राम स्तर पर पशु औषधालय होता है जिसमे सहायक पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी की पदस्थापना होती है. पशु चिकित्सक के सहयोग के लिए प्रत्येक ग्राम में  प्रशिक्षित मैत्री ,गौसेवक, पशु सखी की व्यवस्था होनी चाहिए. ये ग्राम स्तर में कृमिनाशक दवा पान किलनी नाशक का छिड़काव एवं टीकाकरण में सहायता कर सकते है.

चलित पशु चिकित्सा इकाई  :- भारत शासन की महत्वकांछी योजना जो शीघ्र ही देश भर में आरम्भ होने वाली है , वर्तमान में उत्तरप्रदेश में अभिनव एम्बुलेंस के नाम से आरम्भ हो चुकी है ,१ लाख पशु संख्या पर १ एम्बुलेंस कार्यरत होगा.  इसके अंतर्गत एक पशु एम्बुलेंस वाहन एवं  १  पशु चिकित्सक १ वेटनरी डिप्लोमा धारक एवं वाहन चालक की  व्यवस्था होगी. वाहन में आवश्यक मेडिसिन टीकाद्र्व्य जरुरी उपकरण (कृत्रिम गर्भाधान के उपकरण ) शल्य क्रिया हेतु औजार,  ब्लेड, कैंची ,सुचर थ्रेड , केनुला आदि होना चाहिए. चलित इकाई अपने समय सारिणी अनुसार प्रतिदिन ५-६ ग्राम का दौरा करेगी. चलित इकाई वायरलेस या मोबाईल फोन, जीपीएस से लैस होगा किसी आपातकालीन दशा में कंट्रोल रूम से सुचना प्राप्त होने उपरान्त, पशु पालक के घर पहुँच कर उपचार किया जायेगा.

पशुओ के  स्वास्थ्य के लिए ग्राम में समय समय पर चिकित्सा शिविर का आयोजन किया जाये जिसमे शल्य क्रिया एवं बांझपन का उपचार एवं सलाह दिया जाये  तथा सभी ग्रामो में विभिन्न रोगों (एक टंगिया, गल घोंटू, खुरहा चपका, ब्रुसेलोसिस) सघन टीकाकरण अभियान के रूप में किया जाये.

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पंच गव्य  :-  औसतन प्रति गाय १५-२० किलोग्राम गोबर प्राप्त होता है , इसमें बचे हुए चारे को मिला कर कम्पोस्ट खाद बनया जा सकता है. जो रासायनिक उर्वरक से होने वाले खर्चे को कम करता है, ये जैविक खेती आरम्भ करने में सहायक है.  जैविक फल, सब्जी एवं फसल का  शहरी क्षेत्र में बहुत मांग है तथा अधिक मूल्य की प्राप्ति होती है . गोबर में केंचुआ मिलाकर केंचुआ खाद बनाया जा सकता है. गौमुत्र और पंचगव्य में औषधि गुण अधिक है इनसे विभिन्न औषधि का भी निर्माण किया जाता है.  गोबर से ग्राम स्तर पर बायो गैस का भी निर्माण किया जा सकता है, जो खाना बनाने में उपयोग होता है.

 प्रसार सेवा – सरल एवं प्रचलित भाषा में मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया जाए. यह पशु पालकों को नवीन तकनीक एवं विभिन्न योजनाओ की जानकारी देंने में सहायक सिद्ध होते है, जैसे मौसम के अनुसार क्या तैयारी एवं सावधानी रखी जाए पाठको में रूचि बढ़ने के लिए लोकप्रिय संवाद नारा कार्टून दीवार लेखन सोशल मिडिया अदि का उपयोग भी कर सकते है. फिल्म शो प्रदर्शनी, पशु मेला, दुग्ध उत्पादन प्रतियोगिता का आयोजन हो. गौपालको की  जानकारी बढाने के लिए उन्नत डेयरी फ़ार्म , हरा चारा फ़ार्म, पशु आहार संयंत्र इत्यादि जगह शैक्षणिक भ्रमण में ले जाया जाये, पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महा विद्यालय एवं कृषि विज्ञानं केंद्र द्वारा दुग्ध उत्पादन के विभिन्न पहलुओ पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाये. इस तरह एक आदर्श डेयरी ग्राम एक गाँव के विकास के लिए सहायक  होगा  I

https://www.pashudhanpraharee.com/importance-of-milk-productsvalue-addition-milk-processing/

 

https://rural.nic.in/sites/default/files/SAGY_FAQ_hindi.pdf

 

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